ICICI की चंदा कोचर और उनके कुनबे के कुकृत्यों पर आखिर RBI क्यों धृतराष्ट्र बना हुआ है?



गिरीश मालवीय 

06.04.2018

निजी क्षेत्र के सबसे जानेमाने बैंक आईसीआईसीआई बैंक का सबसे बड़ा घोटाला पकड़ा गया है पर कोई भी खुल कर के कुछ कहने को तैयार नहीं है क्योंकि अरविंद पनगढ़िया और उर्जित पटेल जैसे अर्थशास्त्रियों की बैंकिंग के बारे में समझ की पोल खुलने का पूरा अंदेशा है, दोनों ही खुलकर सरकारी बैंकों के निजीकरण के पक्ष में आ गए थे.

कल रात आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंदा कोचर के देवर राजीव कोचर को मुंबई हवाई अड्डे पर कस्टम अधिकारियों ने हिरासत में ले लिया और सीबीआई को सौंप दिया है. सीबीआई अब उससे पूछताछ कर रही है.

अब यह खेल समझिये जो चन्दा कोचर ने, उनके पति दीपक कोचर ने, वीडियोकॉन के वेणुगोपाल धूत ने और चन्दा कोचर के देवर राजीव कोचर ने मिलकर के खेला है…

आपको यहाँ इस खेल की कोई जानकारी नहीं होगी, न ही इसे अभी तक गलत प्रेक्टिस बताता हुआ रिजर्व बैंक का बयान आया है लेकिन अमेरिका में आईसीआईसीआई बैंक की इस हरकत पर ICICI बैंक को ‘क्लास एक्शन’ कानूनी मामले और एक महंगे सेटलमेंट का सामना करना पड़ सकता है और अमेरिका में आईसीआईसीआई बैंक से सम्बंधित संस्थान के शेयर तेजी से नीचे गिर गए हैं.

दरअसल चन्दा कोचर आईसीआईसीआई बैंक को अपने फैमिली बिजनेस की तरह चला रही थी और यह बात पिछले दिनों ही सामने आ चुकी है कि किस तरह से एक बड़ी इंडस्ट्री यानी वीडियोकॉन से चन्दा कोचर अपने पति दीपक कोचर की पार्टनरशिप में रिन्यूएबल एनर्जी की एक कम्पनी खुलवाती है फिर एक बहुत बड़ा लोन मंजूर करने की एवज में उस कम्पनी का पूरा आधिपत्य, दीपक कोचर को वीडियोकॉन वाले धूत साहब ट्रांसफर कर देते हैं. साथ ही उस कम्पनी में करोड़ों का इन्वेस्टमेंट भी कर देते हैं.

लेकिन कहानी यहीं खत्म नही होती. दो दिनों मे इस कहानी में बहुत बड़ा चेंज आया है और वो चेंज ये है कि एक नए किरदार की एंट्री हुई है और वो है चंदा कोचर के देवर राजीव कोचर जो एक खास तरीके का बिजनेस चलाते हैं.

राजीव अविस्टा एडवाइजरी ग्रुप नाम की कंपनी चलाते हैं यह कंपनी बड़ी कंपनियों की बैंकों के साथ लोन रिस्‍ट्रक्‍चरिंग में मदद करती है यानी जिन इंडस्ट्री का कर्जा लगभग डूब गया होता है उस इंडस्ट्री और बैंक के बीच एक प्रकार की मध्यस्थता का रास्ता सुझा देते हैं. साथ ही उन कंपनियों को नया लोन भी दिलवा देते हैं. इस काम को कारपोरेट की भाषा मे क्लाइंट्स के कर्ज को रीस्ट्रक्चरिंग के लिए एडवाइस किया जाना बोला जाता है.

एविस्टा एडवाइजरी वो ही कंपनी है, जिसने पिछले 6 साल में सात बड़ी कंपनियों के 1.7 अरब डॉलर से अधिक के विदेशी मुद्रा और लोन दिलाने में मदद की. और कमाल की बात तो यह है कि इन सभी कंपनियों ने ICICI बैंक से एक ही समय पर कर्ज लिया था. कुछ कम्पनियों के नाम इस प्रकार हैं- जयप्रकाश एसोसिएट, जीटीएल इंफ्रा, सुजलॉन और जयप्रकाश पावर आदि वीडियोकॉन भी अविस्ता एडवाजरी का एक बड़ा क्लाइंट है.

जब आईसीआईसीआई बैंक से पूछा गया कि किस बिना पर आपने एविस्ता के राजीव कोचर और चन्दा कोचर के नजदीकी रिश्तेदार होने पर प्रश्न नहीं उठाया तो ICICI का कहना था कि कंपनीज एक्ट 1956 और 2013 के तहत पति का भाई रिलेटिव की कैटेगरी में नहीं आता है. इसलिए बैंक इसे गलत नहीं मानता है.

अब बताइये ये घटिया जवाब किस तरह से गले उतर सकता है. राजीव कोचर भी कह देते हैं कि ‘इसमें हितों के टकराव का कोई मामला नहीं है. सलाहकार चुनने की पूरी प्रकिया प्रतिस्पर्धी होती है.’

लेकिन बिजनेस करने वाला हर आदमी जानता है कि जब इस कम्पनी वाले का इतना करीबी रिश्तेदार बैंक के CEO के पद पर बैठा हो तो किसी और कम्पनी से लोन का रिस्ट्रक्चरिंग क्यो करवाया जाए.

लिहाजा यह फायदा धूत साहब ने पूरी तरह से उठाया और एविस्ता की सेवाएं लेकर आईसीआईसीआई बैंक में अपने लोन 3,250 करोड़ रुपये को 2017 में राइट ऑफ करवा लिया, और ऐसे ही बाकी कंपनियों ने भी किया होगा जिनके कच्चे चिट्ठे खुलना अभी बाकी है.

अब यदि इसमें भी किसी को कोई घोटाला नहीं दिख रहा तो वह अपने दिमाग का इलाज करवा ले!

07.04.2018

निजी क्षेत्र के बैंकों की आप बेशर्मी देखिए कि जिस समारोह में राष्ट्रपति जा रहे हैं उसमें चन्दा कोचर मुख्य अतिथि बनने से इनकार तो कर रही हैं लेकिन इतना बड़ा घोटाला सामने के आने के बाद आईसीआईसीआई बैंक में अपना पद नहीं छोड़ रही हैं. सिर्फ आईसीआईसीआई बैंक की बात नहीं है. एक्सिस बैंक का बोर्ड मिन्नत कर रहा है कि शिखा शर्मा को चौथा टर्म यानी तीन साल का एक्सटेंशन और दिया जाए और इस बात की घोषणा बैंक का बोर्ड शिखा शर्मा के कार्यकाल की समाप्ति के 11 महीने पहले ही कर देता है कि मैडम 2021 तक बैंक की प्रमुख बनी रहेंगी.

एक्सिस बैंक की खराब परफोरमेंस और लगातार बिगड़ती एसेट क्वालिटी के बावजूद बैंक का बोर्ड शिखा शर्मा को तीन साल के लिए बैंक प्रमुख बनाने पर क्यों तुला है, समझ के बाहर है.

एक्सिस बैंक की हालत इस कदर खराब है कि आरबीआई ने एक्सिस बैंक को उन बैंकों की सूची से हटा दिया है जिन्हें मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सोने व चांदी के आयात की अनुमति है जबकि निजी क्षेत्र का एक्सिस बैंक पिछले साल सर्राफा के सबसे बड़े आयातक बैंकों में से एक रहा था. रिजर्व बैंक ने उन 16 बैंकों की सूची अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित की है जिन्हें मौजूदा वित्त वर्ष में सोने-चांदी के आयात की अनुमति रहेगी। इसमें एक्सिस बैंक का नाम नहीं है। पिछले साल जिन 19 बैंकों को यह अनुमति थी उनमें प्रमुख आयातकों में से एक एक्सिस बैंक रहा था। इस अनुमति के तहत बैंक कच्चे सोने व चांदी का आयात कर उसे बेचते हैं.

आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर और एक्सिस बैंक की शिखा शर्मा को पिछले महीने सीबीआई ने पूछताछ के लिए तलब किया था. ये दोनों ही टॉप बैंक अधिकारी उस कंसोर्टियम की सदस्य थीं, जिन्होंने नीरव मोदी के मामा मेहुल चोकसी की कंपनी गीतांजलि ग्रुप के लिए 3280 करोड़ रुपये के बैंक लोन की मंजूरी दी थी.

जब पीएनबी घोटाला सामने आया था तो उसमें यह पता चला कि बैंकों ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) का आदेश नहीं माना कि कोई भी अधिकारी एक शाखा में तीन साल से ज्यादा नहीं टिक सकता, लेकिन जब बड़े बड़े अधिकारियों और सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों की बात आती है तो सारे नियम कायदे धरे रह जाते हैं.

चन्दा कोचर के मामले से साफ हो जाता है कि एक व्यक्ति को लगातार यदि कई सालों से बैंक प्रमुख के पद पर रखा जाता है तो वह किस तरह से अपने निजी हितों को प्राथमिकता देते हुए पब्लिक के जमा पैसे में हेराफेरी करने से नहीं चूकता…

लेकिन इस पूरे प्रकरण में रिजर्व बैंक क्यों धृतराष्ट्र की भूमिका निभा रहा है, यह भी समझ के परे है!