पहलू खान की हत्‍या के आरोपी क्‍यों और कैसे बरी हो गए? जानिए पूरी कहानी



कल अदालत का फैसला आया है. छह आरोपी संदेह का लाभ देकर बरी किये गये हैं. राज्य सरकार इसके विरुद्ध अपील दाखिल करने जा रही है. पहलू खान के पुत्रों इरशाद और आरिफ और दो अन्य घायल अज़मत व रफ़ीक़ की ओर से जल्द अपील हाई कोर्ट जयपुर में दाखिल की जाएगी. इसकी तैयारी हो रही है.

सोशल मीडिया में इस केस को लेकर भारी जिज्ञासा है. आइए इस पर चर्चा करते हैं.

घटना 1 अप्रैल, 2017 की है. विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओ और संगठनों की ओर से घटना के विरोध में धरना प्रदर्शन किये गये. उस वक़्त मैंने और मेरे मित्र जनाब नूरदीन नूर साहब ने पहलू के गांव जाकर पहलू के पुत्रों और हस्तक्षेप कर रहे संगठनों को कहा था कि निष्पक्ष जांच कराने हेतु जयपुर हाई कोर्ट में रिट लगायी जाये ताकि इन्वेस्टीगेशन को हाई कोर्ट मॉनिटर करे, लेकिन हमारी बात नहीं मानी गयी. थक कर मैं और नूर साहब बैठ गये.

कुछ दिनों बाद हाई कोर्ट से मुल्जिमान की ज़मानत हो गयी. ज़मानतों का विरोध पहलू खान के पुत्रों ने हाई कोर्ट में किया था मगर इन्वेस्टीगेशन को हाई कोर्ट मॉनिटर करे, इसके लिए कोई रिट दाखिल नहीं हुई. कुछ दिन बाद चुप्पी छा गयी और धरने/प्रदर्शन भी बंद हो गये. इन्वेस्टीगेशन पर किसी की भी नज़र नहीं थी और पुलिस मनमाने तरीके से इन्वेस्टीगेशन करती रही.

पहलू के पुत्र कानूनी जानकार नहीं थे. मनोबल इनका टूटा हुआ था. कौन कौन सलाहकार थे, ये भी कुछ साफ नहीं था.

मेरी और नूर साहब की सक्रियता दोबारा अगस्त 2018 के आखिर में हुई. उस वक़्त पता चला कि बहरोड़ कोर्ट में गवाही शुरू होने जा रही है. बहरोड़ कोर्ट से केस को अलवर ट्रांसफर कराने के लिये अलवर ज़िला जज की कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी जिस पर कई महीने सुनवाई चलती रही. ये याचिका अलवर से जनाब क़ासिम खान एडवोकेट और जनाब अमजद अली एडवोकेट द्वारा मेरे मशवरे से लगायी गयी थी.

इसके बाद केस में जनाब अख़्तर हुसैन एडवोकेट (अलवर) भी वकील नियुक्त हुए. अभी कुछ ही दिन पूर्व केस में जनाब नूरदीन नूर एडवोकेट (नूह), जनाब सलामुदीन एडवोकेट (अध्यक्ष, मेवात विकास सभा) का भी वकालतनामा कोर्ट में दाखिल हुआ. मेवात एक्शन ग्रुप के ज़िम्मेदार साथियों का भी सक्रिय सहयोग इस केस पर था. मैं लगातार पैरवी कर रहा था.

कानूनी प्रश्न 

अभियुक्तों की पहचान 

  • घटना 1 अप्रैल 2017 की है. पहलू खान ने 6 लोगों के नाम अपने बयान में लिये थे, उनका कथन था कि मारने पीटने वाले आपस में अपना नाम ओम, हुकम, जगमाल व 3 अन्य का नाम ले रहे थे. CBCID ने बिना कोई कारण बताए इन 6 लोगों को क्लीन चिट दे दी और इनके खिलाफ आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल नहीं किया. पहलू के पुत्रो और गवाहों में अज़मत, रफीक ने अपने अदालत के बयानों में 15 लोगों के नाम बताते हुए कहा कि मारने वाले आपस में अपना नाम ले रहे थे. इनमें वे नाम भी शामिल थे जिनको पहलू खान ने अपने बयान में बताया था और वे 6 भी शामिल थे जिन पर मुक़दमा चल रहा है. सभी 15 मुल्ज़िमों के नाम इरशाद, अज़मत, रफ़ीक़ व आरिफ ने अपने बयानों में लिये. अदालत ने सेक्शन 319 का प्रार्थना पत्र ख़ारिज कर दिया. इसके विरुद्ध भी अपील की जा रही है.
  • मुल्ज़िम के गिरफ्तार होने के 30 दिन के भीतर मजिस्ट्रेट की निगरानी में पुलिस जेल के भीतर शिनाख्त परेड कराती है. मगर इस केस में पुलिस ने घटना के फ़ौरन बाद इरशाद, आरिफ, अज़मत, रफ़ीक़ के जो बयान अप्रैल 2017 में धारा 161 के अंतर्गत लिखे, उनमें झूठ लिखा कि हम मारपीट करने वालों को पहचानने में असमर्थ हैं, जबकि इन्होंने पुलिस को ऐसा नहीं कहा था. इसी झूठे इंद्राज को आधार बना कर पुलिस ने मुल्जिमान की गिरफ़्तारी के 30 दिन के भीतर (यानि 10 मई 2017) शिनाख़्त परेड नहीं करायी.
  • अदालत के समक्ष IO (जांच अधिकारी) रमेश सिनसिनवार ने बयान दिया कि मुझे मुखबिर ने घटना का वीडिओ दिया था, जिसको मैंने अपने मोबाइल में ले लिया था और उससे मैंने करीब 42 फोटो तैयार कराये जो अदालत के रिकॉर्ड पर हैं, उन पर मुल्जिमान के नाम लिखे जो घटनास्थल पर ओवर एक्ट कर रहे हैं. इन फोटोज़ को साबित करते हुए उनपर Exhibit 57-99 डाला गया. अभियुक्तों की ओर से कोई ऐतराज़ इस पर नहीं किया गया. इसी तरह Exhibit 108-114 फोटोज़ साबित किये गये. IO ने कहा कि वो वीडियो मेरे मोबाइल से निकल गया. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि अगर वो डिवाइस जिससे सबूत लिया गया है, वह नष्ट हो जाये या खो जाये तो सेक्शन 65बी का प्रमाणपत्र देना ज़रूरी नहीं है और ऐसे सबूत को सेक्शन 63, 65 के तहत सेकेंडरी एविडेंस माना जायेगा. मगर अदालत ने इस स्थिति पर विचार नहीं किया और Exhibit हो चुके इन फोटोज़ को सबूत नहीं माना.
  • गवाही के दौरान मुल्जिमान के साथ अदालत के कटधरे में बाहरी 10-15 लोगों को भी खड़ा किया गया और तब इरशाद, अज़मत से असल मुल्जिमान की पहचान करने को कहा गया. ये कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं थी, इस पर हमने एतराज़ किया जो दर्ज नहीं किया गया.
  • NDTV ने स्टिंग ऑपरेशन किया था जिसमें मुल्ज़िम विपिन ने ये स्वीकार किया था कि उसने अपने साथियों के साथ इन 2 पिक अप गाडियों को रोका, उनकी चाबी निकाली और फिर मारपीट की.

हमने सेक्शन 311 के तहत NDTV चैनल और एंकर श्री सौरभ शुक्ला को पूरी सामग्री सहित गवाही को बुलाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया मगर कोर्ट ने ये कहकर ख़ारिज किया कि मीडिया रिकॉर्डिंग विश्वास करने के योग्य नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने ज़ाहिरा शेख केस में कहा है कि सेक्शन 311 के सेकंड पार्ट पर अमल करना कोर्ट के लिये Mandatory है.

इस प्रार्थना पत्र को ख़ारिज कर अदालत ने ख़ुद अहम सबूत को रिकॉर्ड पर लाने से रोक दिया जबकि Extra-Judicial Confession के बाद फिर किसी सबूत की ज़रूरत नहीं रह जाती है.

कुछ अन्य पॉइंट्स भी हैं, जिन पर चर्चा अगली पोस्ट में. अभी अपील फ़ाइल करने पर फोकस है.


असद हयात वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता हैं और पहलू खान के केस में कानूनी सलाहकार हैं