चीनी प्रीपेड मीटर लगाएँगे घर-घर चूना! आपकी जेब कटेगी, घोटालेबाज़ों की भरेगी!


यह पूरी योजना गरीब आदमी के हितों के नाम पर बड़ी पावर कंपनियों को लाभ में लाने की योजना है।





उम्मीद है कि अब तक आप एलईडी घोटाला भूल चुके होंगे। वही, जिसके नाम पर स्वयं माननीय प्रधानमंत्री मोदी बड़े-बड़े विज्ञापनों पर नजर आए थे। आज एलईडी बल्ब लगाने वाले कहाँ छूमंतर हुए इसका पता किसी को नहीं। लोग खराब बल्बों की गारंटी लिए टहल रहे हैं। अब एक नए घोटाले के संकेत मिल रहे हैं जो आपके बिजली मीटर को स्मार्ट करने के नाम पर किया जाएगा। शुरूआत हो चुकी है। कुछ लोगों का नंबर आ चुका है, आपका भी जल्दी आएगा। पूरा मामला पढ़ने के लिए गिरीश मालवीय की यह रिपोर्ट पढ़िए- संपादक

गिरीश मालवीय

आप इस ‘घोटाले’ के बारे मे जानकर 2G घोटाले को भूल जाएंगे। कॉमनवेल्थ घोटाला, कोल-ब्लॉक घोटाला भी इसके सामने बहुत छोटा है। यहां तक कि रॉफेल घोटाला भी आपके आपके जीवन को इतना प्रभावित नही करेगा जितना यह आपको प्रभावित करने जा रहा है। लेख लम्बा है लेकिन पूरा जरूर पढियेगा। यह है- ‘स्मार्ट मीटर घोटाला !’

आप सभी ने वर्षों पहले अपने घरों में लगे बिजली के पुराने मीटर देखे होंगे, जिसमें एक लोहे की प्लेट लगी रहती थी। वह प्लेट घूमती थी ओर उसी की रीडिंग के अनुसार आपका बिजली बिल निर्धारित किया जाता था। जमाना बदला और उसके बाद उन मीटरों का स्थान डिजिटल/ इलेक्ट्रॉनिक मीटर ने लिया। उसे लगवाए अभी आपको ज्यादा समय नही हुआ, लेकिन अब इसे फिर बदलने की तैयारी है। मोदी सरकार आने वाले तीन सालों में देशभर में बिजली के सभी मीटरों को स्मार्ट प्रीपेड में बदलने की योजना शुरू कर चुकी है।

इससे बिजली के बिल भरने की जरूरत नहीं रह जाएगी, क्योंकि यह मीटर प्रीपेड  होगा। यानी जेब में पैसा है तो पहले रिचार्ज करवाइये, उसके बाद ही आपके घर मे ‘बिजली देवी’ का प्रवेश होगा। इसे अच्छे शब्दों में बिजली मंत्रालय ने इस तरह बताया है- ‘स्मार्ट मीटर गरीबों के हित में है। उन्हें पूरे माह का बिल एक बार में चुकाने की जरूरत नहीं होगी। वे जरूरत के मुताबिक बिल चुका सकेंगे।’

इस मीटर की सारी गतिविधियां एक मोबाइल एप के जरिए आपके फोन पर अपडेट होती रहेगी। अब आप यह नही बोल सकते कि आपके घर मे 2 पँखे 4 ट्यूबलाइट ओर 1 फ्रिज ही है……!  एप पर आपको ओर बिजली विभाग को सब दिख जाएगा कि कितने उपकरण आपके यहाँ इस्तेमाल हो रहे हैं। इस व्यवस्था में लोड ज्यादा होने पर सेंट्रल कार्यालय से उसको कंट्रोल किया जा सकेगा। एक सीमा के बाद मीटर में लोड जा ही नहीं पाएगा।

योजना के तहत स्मार्ट मीटर बिजली निगम में बने कंट्रोल रूम से जुड़े होंगे। कर्मचारी सॉफ्टवेयर के जरिए कंट्रोल रूम से ही मीटर रीडिंग नोट कर सकेंगे। इसके साथ ही अगर कोई मीटर के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसका संकेत कंट्रोल रूम में मिलेगा। अगर कोई उपभोक्ता समय पर रीचार्ज नहीं भरता, तो कंट्रोल रूम से ही उसका कनेक्शन भी काटा जा सकेगा। इसके लिए उपभोक्ताओं के घर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।

एक नज़र में यह अच्छी योजना लग रही है। लेकिन फिर हम इसमें घोटाले की आशंका क्यों जता रहे हैं?

दरअसल दावा किया जा रहा है कि स्मार्ट मीटर को लगाने की एवज में उपभोक्ताओं से कोई पैसा नहीं लिया जा रहा है। उपभोक्ता का पुराना मीटर हटाकर स्मार्ट मीटर फ्री में लगाया जा रहा है। साथ ही पांच साल तक मीटर में कोई गड़बड़ी होती है तो भी मीटर बिना किसी शुल्क के बदला जाएगा। पर इस कॉरपोरेट लूट के युग में यह बात तो सबको पता चल गई है कि फ्री में कुछ नहीं होता। यहाँ भी फ्री मीटर लगाने से पहले ही सारा केलकुलेशन कर लिया गया है। पहले 6 महीने में ही आपको बढ़ा हुआ बिल दिखेगा जिसमें यह ‘फ्री की कीमत’ समायोजित होगी। जिन घरों में यह मीटर लगाए गए हैं उनके बिलों में सवा से डेढ़ गुनी अधिक खपत दिखाई दे रही है।

खुले बाजार में सबसे सस्ता सिंगल फेज प्रीपेड बिजली मीटर अभी 8 हजार रुपये का मिल रहा है। अच्छी गुणवत्ता वाला मीटर खरीदने के लिए लोगों को 25 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं। ऐसे में स्मार्ट मीटर लगाने वाली कंपनी पैसा कैसे वसूल करेगी आप खुद ही सोच लीजिए।

दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरकार यह मीटर सप्लाई कौन कर रहा है? कहीं न कहीं तो इनका उत्पादन किया जा रहा होगा? क्या विद्युत नियामक आयोग स्वतंत्र रूप से इन स्मार्ट मीटरों की जाँच करवा चुका है? क्योंकि सारा झोलझाल तो यही है। देश भर में इन स्मार्ट मीटर की आपूर्ति ‘एनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड’(  ईईएसएल)  कर रहा है। विद्युत मंत्रालय ने एनटीपीसी लिमिटेड, पीएफसी, आरईसी और पावरग्रिड के साथ मिलकर एक संयुक्त उद्यम बनाया है जिसे ईईएसएल कहा जाता है।

यहीं पर ‘घोटाले’ के सूत्र छिपे हैं जिसे समझना जरूरी है। दरअसल यह कंपनी भारत सरकार ने 2009 में बनाई थी लेकिन इस कंपनी ने 2014 तक कोई काम नहीं किया। यह कंपनी सिर्फ कागज तक ही सीमित रही। जून 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने अचानक इस कंपनी को देश के 100 शहरों में एलईडी बल्ब लगाने का काम दे दिया जिसे आप उजाला योजना के नाम से जानते हैं।

इस कंपनी में कोई क्षमता ही नहीं थी कि उसे इतना बड़ा काम दिया जाए।  कंपनी के पास कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नहीं था। यह कंपनी न तो एलईडी का उत्पादन करती थी और न ही उसके पास एलईडी बल्ब लगवाने का कोई साधन था। वह सिर्फ दूसरी छोटी कंपनियों को सब-कांट्रेक्ट देकर चीन से एलईडी बल्ब खरीदवा रही थी और लगवा रही थी ! इसके पीछे क्या खेल हो रहा था उसका पर्दाफाश किसी और ने नही, बीजेपी की सहयोगी शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के कार्यकारी संपादक और संजय राउत ने किया। 2016 में ‘सच्चाई’ नामक शीर्षक के तहत एलईडी बल्ब में भारी घोटाले का रहस्योद्घाटन किया गया।  

उस वक्त कांग्रेस के प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने आरोप लगाया था कि इस योजना में एलईडी की निविदा प्रक्रिया में अनियमितता है। चीनी एलईडी बल्बों का आयात कर, मेक इन इंडिया नीति और सतर्कता नियमों का उल्लंघन करने के अतिरिक्त 20 हजार करोड़ रूपये का घोटाला किया गया हैं। कांग्रेस ने इस पूरे मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराने की मांग की थी।

लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया। और फिर हुआ ये कि जो बल्ब देश भर में तीन सालों के लिए लगवाए गए थे, वह कुछ महीनों बाद ही खराब होना शुरू हो गए। जब उपभोक्ता इन्हें बदलने के लिए पुहंचे तो इन्हें बेचने वाले नदारद थे। सभी जगहों पर ऐसी घटनाएं घटीं। बहुत विवाद भी हुए, लेकिन इस कम्पनी पर कोई कार्रवाई नही हुई। इस EESL कंपनी को देश भर में स्ट्रीट लाइट को LED से बदलने का ठेका भी दिया गया, जिसका सब-कांट्रेक्ट ऐसे लोगों को दिया गया जो एक साल में ही शहर छोड़ कर भाग गए। स्थानीय अखबारों में इनके किस्से छपे पर बात आई गई हो गई। यह कम्पनी सिर्फ led बल्ब तक ही सीमित नही रही, लाखों पंखे भी और एसी की खरीद भी की गई। लेकिन आफ्टर सेल सर्विस की कोई व्यवस्था नहीं हुई क्योंकि यह कम्पनी किसी तरह का उत्पादन नही करती।

दिलचस्प बात यह है कि मोदी सरकार ने एलईडी योजना के नाम पर घोटाले के आरोप पर चुप्पी साधे रखी। न विपक्षी कांग्रेस के सवालों का जवाब दिया और न ही शिवसेना के इतने तीखे हमले की ही परवाह की। और अब एक कदम आगे बढ़ाते हुए उसी कंपनी के जरिए फिर मनमानी कीमत स्मार्ट मीटरों की खरीद करवाई जा रही है।

ये मीटर किससे खरीदे जा रहे हैं? उनकी गुणवत्ता को कैसे निर्धारित किया गया है? इसका कुछ अता पता नहीं है। दरअसल यह पूरी योजना गरीब आदमी के हितों के नाम पर बड़ी पावर कंपनियों को लाभ में लाने की योजना है। जिनमे बड़े पैमाने पर अडानी, टाटा ओर रिलायंस जैसे उद्योगपतियों ने निवेश कर रखा है। खुद बिजली मंत्रालय ने माना है कि सभी मीटर को प्री-पेड कर देने से बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की लागत काफी कम हो, और डिस्कॉम आसानी से घाटे से उबर जाएंगी। अभी देश के कई राज्यों की डिस्कॉम भारी घाटे में चल रही है।

लब्बोलुआब यह कि सारे स्मार्ट-मीटर चीन से मनमाने भाव पर खरीदे जाएंगे और बिना गुणवत्ता जांच के आपके घर में लगा दिए जाएँगे। आशंका यह है कि ये विद्युत खपत को सीधे डेढ़ गुना करके बताएंगे। आप कुछ कर न पाएँगे क्योंकि प्रीपेड होंगे। और कहीं आपने शिकायत की तो बिजली चोर भी कहलाएँगे। यही है मोदी सरकार की सौभाग्य योजना !

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।