समाजवादी पार्टी और मुस्लिम हित: मिथ या हक़ीक़त


2019 के चुनाव में उत्तर प्रदेश का मुस्लिम विशेष कर पसमांदा मुस्लिम तय करेगा कि उसे अभी भी कोई राक स्टार चाहिये या अपनी आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी




ज़ुबैर आलम

यह बात सबको मालूम है कि उत्तर प्रदेश में समाजवाद का मतलब समाजवादी पार्टी. अगर मैं यह सवाल करूँ कि क्या समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव मुस्लिमों के मसीहा हैं? तो शायद आप लोग चुप हो जायें. लेकिन अगर में यह कहूँ कि मुलायम सिंह यादव मुस्लिमों के राकस्टार हैं तो हर तरफ से तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई पड़ेगी.

चैंपियन होने के पैमाने

कितना अजीब है ना. दुनिया में हर प्रकार के प्रॉफ़ेशन/ कार्य से जुड़ा हुआ आदमी चैम्पियन तब कहीं जा कर बनता है जब वह आंकड़ों/ अचिवमेंट की एक लंबी फेहरिस्त (List) बना दे. उदाहरण के तौर पर सचिन तेंदुलकर इसलिये क्रिकेट का राक स्टार है कि उसने इस प्रॉफ़ेशन/ खेल में आंकड़ों की एक सीरीज खड़ी कर दी है. इसी प्रकार सेरेना विलियम्स या रोजर फ़ेडरर अपने प्रॉफ़ेशन/ खेल के राक स्टार हैं क्योंकि उन्होने अपने चुने हुये प्रॉफ़ेशन/ खेल में आंकड़ो का पहाड़ खड़ा कर दिया है. इसी तरह अभिनेता आमिर खान बॉलीवुड का राक स्टार है क्योंकि कि उसने अपनी एक के बाद एक आने वाली फिल्मों के ज़रिये एक नये प्रकार की परिभाषा गढ़ने की कामयाब कोशिश की है. अगर यहाँ सिर्फ इस तरह के उदाहरणों को दर्ज किया जाये तो एक दिलचस्प और आँखों मे चमक पैदा करनी वाली रिपोर्ट तैयार हो जायेगी.

कहना यह है कि ऊपर की लाइनों में दिये गये उदाहरणों में अगर कोई एक चीज़ कामन है, तो वह है किसी ख़ास प्रॉफ़ेशन/ कार्य में निपुण होना यानि क़ाबिल होना. दूसरे शब्दों में कहा जाये तो पूरी दुनिया के सामने संबन्धित प्रॉफ़ेशन/ कार्य में शामिल लोगों की पहचान का एक सीधा सा हवाला उनकी क़ाबिलियत एवं चुने गये एरिया में उनके द्वारा स्थापित किये गये नये नये कीर्तिमानों के चमकते आंकड़ें हैं.

समाजवादी पैमाना

इस प्रस्तावना के बाद अब आते हैं आज के विषय की तरफ यानि समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के मुस्लिमों का राक स्टार होने या नहीं होने के सवाल पर. हमारे हिसाब से तो मुलायम सिंह यादव पर मुस्लिमों का राक स्टार होने का बोझ बे मतलब डाला जा रहा है. हमारा मत बिल्कुल साफ और सीधा है. भाई! माननीय मुलायम सिंह यादव के पास किस चीज़ की कमी है कि वो मुस्लिमों का सहारा या मदद लें.

उनके हाथ में एक बड़ी राजनैतिक पार्टी है जिसके दम पर वह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में कई बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनका दबदबा और राजनैतिक इच्छा शक्ति इतनी मज़बूत है कि जम्हूरी निज़ाम (Democratic System) में भी अपने बेटे को मुख्यमंत्री बना देते हैं. जबकि हम सब जानते हैं कि डेमोक्रेसी में ‘’राजा और उसके बाद उसका बेटा राजा’’ जैसा सिस्टम नहीं होता फिर भी समाजवादी पार्टी के  संस्थापक अपने बेटे को इसके विपरीत जा कर मुख्यमंत्री बनाते हैं. अब आप ही बताइये कि जब अखिलेश यादव बिना किसी दिक़्क़त के पूरे पाँच साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहते हैं तो उन्हे या उनकी पार्टी को “ऊल जलूल हरकत करने वाले, असभ्य, गैर पढ़े लिखे और बेगारी को आतुर” मुस्लिमों की ज़रूरत कहाँ पड़ी? भाई जब मुख्यमंत्री पिता के बाद बेटा भी मुख्यमंत्री बन जाये तो ऐसी पार्टी को जुम्मन और लड्ड्न की चौखट का मुँह देखने की क्या ज़रूरत ?

पर क्या किया जाये, हमारे मिलने जुलने वालों में विविधता बहुत है. इसलिये बहुत बार ऐसा होता है कि उम्र दराज़ नगर वासियों की संगत में मेरा जैसा आदमी भी ज़बान की ज़ोर पर मुलायम सिंह यादव को मुस्लिमों का राक स्टार मानने के लिये विवश किया जाता है. यह लोग मेरे इतने करीब हैं और इससे कहीं ज़्यादा मासूम कि अखिलेश यादव को भी वही सारी उपाधि देते नज़र आते हैं जो उनके पिता श्री को 1990 के बाद से दे रखा है. इसको भी स्वीकार करने के लिये हमें विवश किया जाता है. अन्यथा मेरे जैसा इंसान किसी को राक स्टार या चैम्पियन तभी मानता है जब वह आंकड़ों/ सफलताओं से मुझे अपना हम ख्याल बना ले. जैसा कि इस आर्टिकल की शुरू की लाईनों में मैने उदाहरणों के ज़रिये बताया है.

उत्तर प्रदेश का समाजवाद

आज के डिजिटल दौर में सुचनाओं की उपलब्धता भी एक विकराल समस्या ही मानी जानी चाहिये. यह बात इसलिये कह रहा हूँ कि मैं इस उपलब्धता की अधिक्ता का मारा हुआ हूँ. आप कहेंगे कि जब दुनिया इस उपलब्धता को अवसर या प्रसाद मान रही है तो आपको क्या हो गया है. सच बात तो यह है कि मैं अपने नगर वासियों को यह समझाने में लगा था कि आप लोग मुलायम सिंह यादव पर ज़बरदस्ती मुस्लिमों का राक स्टार होने का बोझ लादे जा रहे हैं. और नहले पे दहला यह है कि उनके बेटे अखिलेश यादव को भी वही सारी उपाधि दिये जा रहे हैं. मैंने ज़ोर दे कर कहा कि आप लोग इस तरह कि उपाधियों के ज़रिये समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उनके परिवार के साथ ज़्यादती कर रहे हैं क्योंकि वो लोग कभी इसे स्वीकार नहीं करते हैं.

इतने में एक साहब विकीपीडीया पेज खोले हुवे मोबाइल हाथ में लिये सामने आये और तेज़ आवाज़ मे कहा कि पढ़िये इसे. मैं मजबूर इंसान पढ़ने लगा, चौंकने वाली बात थी इसलिये आप भी पढ़िये.

 “समाजवादी पार्टी एक राजनैतिक दल है. यह 4 अक्तूबर 1992 को स्थापित किया गया. इसके संस्थापक मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और देश के डिफेंस मिनिस्टर रह चुके हैं… समाजवादी पार्टी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में आधारित है. इसके समर्थन में बड़े पैमाने पर ओबीसी, दलित, शोषित विशेष रूप से मुलायम सिंह की अपनी जाति और मुसलमानों पर आधारित है”.

ऊपर के पैराग्राफ को तेज़ आवाज़ में पढ़ने का नुक़सान यह हुआ कि आखिरी लाइन आते ही नगर वासियों का जोश आसमान पर पहुँच गया. अब में क्या करता, वो लोग बोल रहे थे कि देखिये विशेष रूप से यादवों और मुसलमानों को इस पार्टी का समर्थक बताया गया है. मैं असहाय इंसान मुलायमवाद से अखिलेशवाद तक का सफर तय कर चुकी भीड़ के सामने चुप्पी साधे खड़ा था. हालांकि यह स्थिति देर तक नही रही लेकिन इतने कम समय मे ही मुझे अपनी स्थिति का अंदाज़ा हो गया था.

समाजवादी सामाजिक न्याय

मैं भी आसानी से हार मानने वाला नहीं था इसलिये हौसला जुटाया और बैकफूट से फ्रंटफूट पर आ गया. भीड़ मे से ही एक साहब का मोबाइल उधार लिया उत्तर प्रदेश विधान परिषद की वेबसाइट को सबके सामने खोला. भला हो इस वेबसाइट के बनाने वालों का जिन्होंने दलों के नाम से इस सदन के सदस्यों की लिस्ट को सामने ही रखा है. हमने भी नगर वासियों का आज़माया हुआ नुस्खा उन्ही पर इस्तेमाल किया और विकिपीडिया की आखिरी लाइन समाजवादी पार्टी के मुख्य समर्थक यादव और मुसलमान हैं को दोहराते हुये कहा कि देखिये आप लोग इस लिस्ट मे कहाँ हैं?

फिर क्या था समाजवादी पार्टी कि तरफ से विधान परिषद मे भेजे जाने वाले 55 सदस्यों मे से 17 सदस्य  यादव निकाल आये और सिर्फ 6 सदस्य मुस्लिम(अधिकतर अशराफ़). यह देखने के बाद बहुतों के चेहरे के हाव भाव बदल गये. कुछ को यकीन नही हुवा तो उन्होने अपने अपने मोबाइल मे इस सदन की लिस्ट देखी तो किसी ने कहा कि यह कैसे हो सकता है जबकि हमने हमेशा समाजवादी पार्टी को अपना वोट दिया और मुलायम सिंह यादव को अपना रहनुमा मानते रहे हैं. ज़्यादा जागरूक लोगों ने कहा कि अखिलेश तो आबादी के अनुपात मे रिज़रवेशन की माँग करते हैं परंतु अपनी पार्टी में इसके विपरीत? अखिलेश ने ही 2011 के मेंफेस्टो में 18 प्रतिशत मुस्लिम रिज़रवेशन का वादा भी किया था. ज़ाहिर है कि यह रिज़रवेशन आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े मुस्लिमों को मिलना था जिनकी आबादी मुस्लिमो की कुल आबादी का 14 से 16 प्रतिशत मानी जाती है. यह तो समाजवादी पार्टी की मुस्लिमों के साथ खुलेआम धोखाधड़ी है. तभी किसी ने फिर विकिपीडिया के आखिरी लाइन यादव और मुस्लिम इस पार्टी के मुख्य समर्थक हैं, को दोहराया.

इस तरह के सवालों ने एक नई उमंग पैदा कर दी . लोहा गरम देख कर मैंने भी दबदबे के साथ कहा कि आप लोगों को पता है कि उत्तर प्रदेश में आपके समाज की आबादी कितनी है? मैंने कहा कि  2011 की जनगणना के हिसाब से लगभग 19 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. इसमे भी पसमांदा मुस्लिमों का हिस्सा लगभग 14 से 16 प्रतिशत है. अब लोगों ने खुद ही हिसाब लगाना शुरू कर दिया कि आबादी के हिसाब से उनकी हिस्सेदारी कितने प्रतिशत बनती है और अब तक उनको कितना हिस्सा दिया गया है.

अपनी आबादी का सही प्रतिशत जानने के बाद नगर वासियों के अंदर जो मैंने जिज्ञासा देखी तो उससे अंदाज़ा हुआ कि यह वही लोग हैं जिन्होंने कांशीराम को यह कहते हुये सुना है कि जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी. इन लोगों ने अखिलेश को भी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी मांगते हुवे सुना है. उनके जोशीले चेहरों को देखने के बाद मेरी यह ग़लत फहमी भी दूर हो गयी कि लोग कुछ करना नही चाहते या बदलाव नही चाहते.

आंकड़ो को पेश करते ही आबादी के अनुपात में नुमाइन्दगी का मामला बहुत कम समय मे ही एक गंभीर सवाल बन गया. बात यहाँ तक पहुंची कि मुझे अपनी पहली वाली बात पर दोबारा विचार करना पड़ा कि डिजिटल दौर में सूचनाओं की आसान उपलब्धता को समस्या कहना शायद सही नही है. क्योंकि मेरे घर कि तरफ कदम बढ़ाने से पहले ही कई लोगों ने बहुत क़ायदे से सूचनायें इकट्ठा कर ली थी और सवाल कर रहे थे कि लगभग 9 प्रतिशत यादव आबादी और 17 विधान परिषद सदस्य यादव जाति से ?

जनता सब जानती है

अब मेरे घर जाने का वक़्त हो चुका था लेकिन चलने से पहले कुछ बातें साफ हो गयी थीं. पहली तो यह कि जिस जनता को लोग ना समझ मानते हैं अगर उन्हे स्थिति का सही अनुमान हो जाये तो बड़े बड़े होशियार की होशियारी को बेकार करने मे देर नहीं लगेगी. दूसरी यह कि डिजिटल दौर मे सामने आने वाले सोशल मीडिया को सही दिशा मे मोड़ दिया जाये तो जनता 19 प्रतिशत आबादी पर 6 सदस्य और 9 प्रतिशत पर 17 सदस्य के आंकड़ों की मदद से वर्तमान के राक स्टारों/ चैम्पियनों का बोझ उतार देगी. यह भी संभावना है कि लोग इसी तरीक़े को अपनाते हुवे पहले के राक स्टारों से भी अपने अधिकारों का हिसाब मांगने लगें. शायद इसी तरह शोषित लोगों को पता चले कि उन्होने बहुत से लोगों पर ग़लत भरोसा किया था और उन्हे अपना राक स्टार वगैरह कहा था.

मैं निजी तौर पर भारत जैसे देश में इस तरीक़े को Participative Democracy का अहम हिस्सा मानता हूँ क्योंकि यहाँ बनने वाले हर तरह के चुनावी समीकरण में सभी दल, सत्ताधारी दल को हटा कर खुद स्थापित होना चाहते हैं और एक बड़े तबक़े को ब्यवस्था एवं राजकाज से दूर रखना चाहते हैं. वैसे भी जम्हूरियत में स्थायित्व या किसी दल विशेष के अधिकार को अच्छा संकेत नही माना जाता है.

2019 के चुनाव में उत्तर प्रदेश का मुस्लिम विशेष कर पसमांदा मुस्लिम तय करेगा कि उसे अभी भी कोई राक स्टार चाहिये या अपनी आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी. जब वो हिस्सेदारी माँगेगा तो संगठन में भी लेगा एवं विधायिका से लगाये मंत्रीमण्डल तक जायेगा.


(लेखक भारतीय भाषा केन्द्र, जेएनयू से सम्‍बद्ध हैं)  


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