कासगंज दंगे में पुलिस ने किया पक्षपात, जेल में हैं बेगुनाह, हाईकोर्ट की देखरेख में हो जाँच-रिपोर्ट



 

दिल्ली के कान्स्टीट्यूशन क्लब में आज शाम कासगंज दंगे को लेकर एक  स्वतंत्र जांच रिपोर्ट पेश की गई। इस रिपोर्ट को वरिष्ठ पत्रकार अजित साही के नेतृत्व में तैयार किया गया है जिस पर कई जन और मानवाधिकार संगठनों की मुहर है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे गणतंत्र दिवस पर हुए इस दंगे को लेकर पुलिसिया कार्रवाई पक्षपात से भरी रही और तमाम  बेगुनाह आज भी बेवजह जेल में सड़ रहे हैं- संपादक 

पुलिस का झूठ 

गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी 2018, को नई दिल्ली से 220 किलोमीटर पूर्व उत्तर प्रदेश के कासगंज शहर में सांप्रदायिक दंगा भड़काहिंसा और आगज़नी के साथ फ़ायरिंग हुई जिसमें गोली लगने से एक शख़्स की मौत हो गई.
पुलिस के मुताबिक़ गणतंत्र दिवस के मौक़े पर जब कुछ हिंदू युवक मोटरसाइकिल पर सवार होकर तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे तो कुछ मुसलमानों ने उस यात्रा में बाधा पहुँचाई जिसके बाद हिंसा भड़की
कथित हत्यारे को मिलाकर पुलिस ने 28 मुसलमानों को आरोपी बनाया और दो हफ़्ते के भीतर अधिकतर को गिरफ़्तार भी कर लिया.
ये स्वतंत्र रिपोर्ट बताती है कि किस तरह पुलिस ने हिंसा के लिए ज़िम्मेदार हिंदुओं को बचाया और बेगुनाह मुसलमानों को फंसाया.
इस छल की शुरुआत एक की जगह दो प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ़आईआरदर्ज करके की गई.
गवाहों के मुताबिक़ वहाँ हिंदू भी गोली चला रहे थेएक एफ़आईआर होता तो हिंदू भी फंसते क्योंकि ये बताना मुश्किल होता कि मरने वाला हिंदू युवक चंदन गुप्ता किसकी गोली से मरा था.
हत्या के लिए अलग एफ़आईआर करने का फ़ायदा ये हुआ कि उसमें सिर्फ़ मुसलमानों को फंसाया जा सकाहत्या के आरोपी होने की वजह से मुसलमानों को ज़मानत मिलने में छह महीने लग गएपाँच मुसलमान अभी भी जेल में हैंक्योंकि हिंदू सिर्फ हिंसा के एफ़आईआर के आरोपी हैं सबको ज़मानत मिल गई हैकुछ तो चंदन कीहत्या के चश्मदीद गवाह भी बना दिए गए हैं

पहला एफ़आईआरघटनाक्रम

पहला एफ़आईआर (नं. 59/18) कासगंज कोतवाली के एसएचओ रिपुदमन सिंह ने दर्ज किया जिनके अधिकार क्षेत्र में दंगा हुआवो गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में थे जब उन्हें पता चला तिरंगा यात्रा पर दो समुदायों में झगड़ा हो रहा हैउन्होंने फ़ोर्स बुला भेजी और घटनास्थल बिलराम गेट चौराहे को रवाना हो गएवहाँ पाया कि 100-150 लोग पहले से मौजूद थेऔर पुलिस अधिकारी भी मय फ़ोर्स जल्द वहाँ पहुँच गए.
लेकिन रिपुदमन सिंह का यह एफ़आईआर दरअसल झूठ का पुलिंदा हैपुलिस वालोंचश्मदीद गवाहों और आरोपियों के बयान और एफ़आईआर में विस्तृत घटनाक्रम में पूरी तरह विरोधाभास हैहालाँकि एफ़आईआर में हिंदुओं और मुसलमानों को अलग से चिन्हित नहीं किया गया हैलेकिन जिस तरह से इसे लिखा गया है उससेसाफ़ है कि बात किसकी हो रही है.
उक्त व्यक्ति [हिंदूबिलराम गेट से कोतवाली कासगंज के मध्य स्थित गलियों में दूसरे संप्रदाय के लोगों [मुस्लिमको ललकार रहे थे कि उन्होंने तिरंगा रैली में व्यवधान डाला है,” एफ़आईआर कहता है. “उक्त व्यक्तियों को रोकने का समुचित प्रयास किया गया लेकिन मान नहीं रहे थे कि गलियों के अंदर से फ़ायरिंग एवं पथराव होनेलगातब ये लोग भी पथराव करने लगे.
पुलिस बल द्वारा धैर्य का परिचय देते हुए उक्त व्यक्तियों को रोका जाता रहा लेकिन नहीं माने एवं दोनों पक्षों की ओर से पुलिस बल पर पथराव करते हुए अपने-2 हाथों में लिए नाजायज़ असलाहों से हम पुलिस वालों पर जान से मारने की नीयत से फ़ायरिंग की जिससे हम लोग बालबाल बचे.
उपद्रवियों द्वारा नगर कासगंज में एक दूसरे पक्ष की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के आशय से गाली गलौजधार्मिक स्थलों में तोड़ फोड़आगजनी की गईनगर की लोक व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई.
जनता में भय  आतंक व्याप्त हो गयाजनता के लोग अपने-2 व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद कर भयवश अपने-2 घरों में छिप गए.”
एफ़आईआर के मुताबिक़ एसएचओ रिपुदमन सिंह और अन्य पुलिस वालों ने दंगाइयों में से चार मुसलमानों को पहचान लिया थाअतउनपर और उनके साथ अज्ञात 100-150 दंगाइयों पर एफ़आईआर में भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्न धाराएँ लगाई गईं:
टेबल 1
आईपीसी
सरोकार
सज़ा
147
दंगा/बलवा करना
दो साल तक की जेल
148
घातक हथियार के साथ दंगा/बलवा करना
तीन साल तक की जेल
149
ग़ैरक़ानूनी भीड़ का हर सदस्य बराबर का दोषी
295
धर्मस्थल को अपमानित करनातोड़फोड़ करनानुक़सान पहुँचाना 
दो साल तक की जेल
307
हत्या का प्रयास
दस साल तक की जेल
323
हाथापाईमारपीट करना
एक साल तक की जेल
336
दूसरे के जीवन को या उसकी सुरक्षा को संकट में डालना
तीन महीने तक की जेल
427
शरारत से पचास रुपए से अधिक का नुक़सान
दो साल तक की जेल
436
आग या विस्फोटक से किसी भवन को नष्ट करना
दस साल तक की जेल
504
जानबूझ कर शांति भंग करना
दो साल तक की जेल
इस एफ़आईआर में भारतीय दंड संहिता के संशोधन अधिनियम 1934 की धारा 7 को भी शामिल किया गयाजानबूझकर किसी के कामधाम या कारोबार को रोकने के लिए हिंसा करने वाले के ख़िलाफ़ ये धारा लगाई जाती है.

अब्दुल  हमीद चौक

पुलिस की जाँच में जिस तथ्य को सबसे कम तवज्जो दी गई हैया यूँ कहा जाए कि नज़रअंदाज ही कर दिया गया हैवो ये है कि 26 जनवरी की उस सुबह मुहल्ले के मुसलमान बिलराम गेट चौराहे से लगभग 400 मीटर दूर स्थित अब्दुल हमीद चौक पर गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में ध्वजारोहण के लिए जमा हुए थेइस चौक का नामभारतीय सेना के उस शहीद जवान की याद में रखा गया है जिसने 1948 में कश्मीर में हुए युद्ध में अपनी जान दे दी थीये कार्यक्रम वहाँ सालों से आयोजित किया जा रहा है.
मुसलमानों का कहना है कि विवाद तब शुरू हुआ जब मोटरसाइकिल पर सवार हिंदू लड़के मुसलमानों द्वारा ध्वजारोहण के उस कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे और वहाँ रखी कुर्सियों को बलपूर्वक हटाकर आगे बढ़ने के लिए रास्ता बनाने की ज़िद करने लगे.
आगे चल कर 1 अप्रैल को शफ़ीक़ अहमद नाम के एक “स्वतंत्र” गवाह ने पुलिस को बताया कि जब मोटरसाइकिल रैली अब्दुल हमीद चौक पर पहुँची थी और झगड़ा शुरू हुआ था तो उसकी अगुवाई अनुकल्प चौहान नाम का एक हिंदू नौजवान कर रहा था.
फिर भी पुलिस ने चौहान को मुख्य अभियुक्त  बनाकर उसे एक तरह से क्लीन चिट दे डाली.

 16 अप्रैल को रज़्ज़ान नाम के एक दूसरे “स्वतंत्र” गवाह ने भी पुलिस को बताया कि हिंसा तब भड़की जब हिंदुओं ने मुसलमानों के ध्वजारोहण कार्यक्रम में बाधा पहुँचाई.

इन मुसलमान गवाहों के बयान संदिग्ध मान भी लेंतो हिंदू नौजवान सौरभ पाल और सिद्धार्थ वाल्मीकि के बयान इसकी पुष्टि करते हैंपाल और वाल्मीकि मोटरसाइकिल रैली का हिस्सा थे और पहले एफ़आईआर के आधार पर बनी चार्जशीट में अभियुक्त क़रार दिए गए हैं
18 अप्रैल को पाल और वाल्मीकि ने पुलिस को बताया कि जब मोटरसाइकिल रैली अब्दुल हमीद चौक पहुँची तो वहाँ सड़क पर कुर्सियाँ रखी हुई थींचंदन गुप्ता ने मुसलमानों को कुर्सियाँ हटाने को कहा लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दियाइसके बाद “कहा सुनी होने लगीहम लोग जय श्रीराम और वंदे मातरम् के नारे लगा रहेथे”.

अब्दुल हमीद चौक पर हुई इस घटना के शुरुआती अंश वहाँ लगे सीसीटीवी कैमरे के फ़ुटेज में मौजूद हैंइसके बावजूद पुलिस ने कभी भी उस फ़ुटेज को सबूत के तौर पर नहीं लिया  ही चार्जशीट में उसका ज़िक्र किया.

 

 

पहला एफ़आईआर: 10 बड़ी ग़लतियाँ

 

ग़लत समयएफ़आईआर के मुताबिक़ एसएचओ रिपुदमन सिंह को हिंसा की सूचना सुबह 9:30 बजे मिलीलेकिन सीसीटीवी फ़ुटेज से पता चलता है कि दोनों गुटों के बीच का झगड़ा कमसेकम 25 मिनट बाद शुरू हुआ.

 

अलग-अलग घटनास्थलरिपुदमन सिंह ने लिखा कि हिंसा बिलराम गेट चौराहे से शुरू हुईलेकिन अन्य पुलिस वालों और चश्मदीद गवाहों ने बाद में बयान दिए कि हिंसा वहाँ से 400 मीटर दूर अब्दुल हमीद चौक पर शुरू हुई.
जानकारियाँ शामिल नहीं की गईंएफ़आईआर में इसका ज़िक्र नहीं है कि अब्दुल हमीद चौक पर मुसलमानों द्वारा तिरंगा फहराए जाने के कार्यक्रम में हिंदुओं द्वारा बाधा डालने की कोशिश के बाद हिंसा शुरू हुई.
ग़लत दूरी: एफ़आईआर कहता है घटनास्थल कासगंज कोतवाली से 500 मीटर दूर है जबकि ये दूरी 300 मीटर की है.
ग़लत दावा: एफ़आईआर कहता है कि पुलिस स्टेशन को हिंसा की जानकारी रात 10:09 बजे मिली जबकि एसएचओ रिपुदमन सिंह के साथ अन्य पुलिस वाले भी उस सुबह हिंसा के चश्मदीद गवाह रहे थे.
विलंब का कारण नहींएफ़आईआर में “देरी का कारण बताओ” वाला कॉलम ख़ाली हैहिंसा की अवधि 00:00 लिखी गई है.

हत्या
 दर्ज नहींएफ़आईआर हिंसा के 12 घंटे बाद दर्ज किया गया फिर भी उसमें चंदन गुप्ता की मृत्यु का ज़िक्र नहीं हैऔर  ही इस बात की कोई जानकारी दी गई कि हत्या का ज़िक्र क्यों नहीं है.
शिकायतकर्ता नहीं: हिंसा भीड़भाड़ वाले इलाक़े में दिनदहाड़े हुई जहाँ सैंकड़ों घर और दुकानें हैंफिर भी स्वतंत्र शिकायतकर्ता खोजने के बजाए एसएचओ रिपुदमन सिंह ने एफ़आईआर में शिकायतकर्ता की जगह अपना नाम लिख दिया.
ढीली जाँचएसएचओ ने कहा झगड़ा उनके पहँचने से पहले शुरू हो गया थाफिर भी 12 घंटे तक एफ़आईआर नहीं दर्ज किया.
दंगाइयों की पहचानहिंसा के समय एसएचओ सिंह हिंदुओं से बात कर रहे थेएफ़आईआर में फिर भी हिंदुओं का नाम नहीं हैजो मुस्लिम दंगाई उनके मुताबिक़ गली के अंदर से गोलियाँ चला रहे थे उनको दूर से पहचान लिया

हिंदुत्व संगठन के तार

एफ़आईआर के मुताबिक़ हिंसा की पहली सूचना पुलिस स्टेशन में 26 जनवरी को रात 10:09 बजे दी गई जिसे उस समय पुलिस स्टेशन की जनरल डायरी (जीडीमें एंट्री संख्या 43 के अधीन दर्ज किया गया.
लेकिन जीडी में उस रोज़ की एंट्री संख्या 29 के मुताबिक़ हिंसा की पहली सूचना सुबह 11:53 दर्ज हो चुकी थीइसमें लिखा है कि मोटरसाइकिल रैली को “हिंदू विश्व वाहिनी” ने आयोजित किया थासंभवतये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संगठन “हिंदू युवा वाहिनी”  का उल्लेख था.
दरअसल मोटरसाइकल रैली के कई हिंदू आदित्यनाथ की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपीसे जुड़े हैंकई के फ़ेसबुक पेज से ज़ाहिर होता है कि वो मुस्लिम विरोधी हैं और हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक कट्टरता का व्यवहार करते हैं.
एफ़आईआर के विवेचक (जाँच अधिकारीसबइंस्पेक्टर मोहर सिंह तोमर ने उसी रात केस डायरी में जीडी की एंट्री संख्या 29 को अक्षरशदर्ज किया.
लेकिन आने वाले महीनों में तोमर ने उस मोटरसाइकिल रैली में भाग लेने वाले हिंदुओं की राजनीतिक और संगठनात्मक पृष्ठभूमि की जाँच करने की कोशिश नहीं की.
 

पक्षपाती जाँच

एफ़आईआर में चार मुसलमानों को नामज़द करने के कुछ मिनट बाद ही एसएचओ सिंह ने तोमर को दिए बयान में 24 और मुसलमानों के भी नाम दे दिएएसएचओ ने कहा “मेरी जानकारी में आया है” कि इस घटना में ये 24 भी शामिल थेलेकिन ये नहीं बताया कि मिनटों में यह तथ्य उनकी “जानकारी” में कहाँ से आया.
तीन महीने की जाँच में तोमर ने ये जानने की कोशिश भी नहीं कि एसएचओ सिंह को इन 24 मुसलमानों के नाम आख़िरकार कहां से और कैसे मिलेआगे चलकर इन मुसलमानों में से ज़्यादातर को 19-वर्षीय चंदन गुप्ता की हत्या का आरोपी बना दिया गया.
अगले दो हफ़्ते तक जाँच अधिकारी तोमर का ध्यान मुसलमानों को गिरफ़्तार करने में लगा रहाउन्होंने हिंदुओं की जाँच तक नहीं की.

मुसलमानों की गिरफ़्तारी

एफ़आईआर में नामज़द चारों मुसलमानों को घटना के अलगे दिन 27 जनवरी को गिरफ़्तार कर लिया गयागिरफ़्तार होते ही उन्होंने अपना “गुनाह” भी क़बूल कर लियाइतना ही नहींचारों ने चार और मुसलमानों के नाम भी दे दिएइत्तफ़ाक़ ये कि ये नए चार नाम एसएचओ रिपुदमन सिंह द्वारा जाँच अधिकारी तोमर को दी गई 24 मुसलमानों की सूची के पहले चार नाम थे.
अगले दिन रेलवे स्टेशन पर ये चारों गिरफ़्तार हो गएतोमर ने लिखा कि वे भागने वाले थेइन चारों ने भी गुनाह मान लिया29 जनवरी को एक और मुसलमान गिरफ़्तार हुआउसने तीन और मुसलमानों के नाम बताएअज्ञात जानकारी के आधार पर अगले दिन रेलवे स्टेशन से ये तीन भी गिरफ़्तार हो गए.
31 जनवरी को चंदन का कथित हत्यारा सलीम गिरफ़्तार हो गयाउसका नाम एसएचओ की सूची में थाउसने भी गुनाह क़बूल कर 27 मुसलमानों के नाम लिएचार एफ़आईआर के नामज़द और बाक़ी एसएचओ की सूची सेघटना के दो हफ़्ते बाद 8 फ़रवरी तक 19 मुसलमान गिरफ़्तार हो चुके थे.

हिंदुओं का बचाव

तमाम पुलिसवालों और चश्मदीद गवाहों ने अपने बयानों में कहा कि रैली के हिंदुओं ने गोलीबारी की और मुसलमानों के घरोंदुकानों और मस्जिदों पर आगज़नी और तोड़फोड़ की.
लेकिन हिंदुओं को गिरफ़्तार करना तो दूर तोमर ने उनकी जाँचपड़ताल तक नहीं कीये तब जब घटना के अगले ही दिन, 27 जनवरी कोएक मस्जिद के इमाम हाजी अलीम ने तोमर को उनकी मस्जिद पर हमले की विस्तृत जानकारी दी थी.
26 जनवरी को इमाम अलीम एक पड़ोसी से बात कर रहे थे जब 25-30 लोग नारे लगाते हुए आए और पेट्रोल बम से उनकी मस्जिद को आग लगा दीपड़ोसी ने भी इस तथ्य की पुष्टि कीलेकिन तोमर ने इन दावों की जाँच नहीं की.
दो हिंदू दुकानदारों ने तोमर को बताया कि वो हमलावरों को नहीं पहचान पाएमतलब ये कि हमलावर बाहरी थेस्थानीय मुसलमान नहींलेकिन तोमर ने हमलावरों की जाँच नहीं की.
29 जनवरी को सिपाही बलबीर सिंह ने तीन हिंदुओं के नाम दिएअनुकल्प चौहानविशाल ठाकुर और सौरभ पालसिपाही अजय पाल ने चौहान को रैली का आयोजक कहा.
दोनों सिपाहियों ने एफ़आईआर में नामज़द चार मुसलमानों की पहचान कीसाथ ही उन 24 मुसलमान दंगाइयों के नाम भी लिए जो एसएचओ सिंह ने दिए थेलेकिन इन दोनों सिपाहियों ने ये नहीं बताया कि उन्हें ये नाम कैसे मिले.
फ़रवरी को चंदन गुप्ता के कथित हत्यारे सलीम के दो भाइयों को गिरफ़्तार कर लिया गयादोनों ने पुलिस को बताया कि चौहानठाकुर और पाल रैली में थे.
फ़रवरी — घटना के 14 दिन बाद और सिपाही बलबीर सिंह और अजय पाल द्वारा तीन हिंदुओं की पहचान के 11 दिन बाद — जाँच अधिकारी तोमर ने केस डायरी में लिखा कि वो अनुकल्प चौहानविशाल ठाकुर और सौरभ पाल के घरों तक गए थे लेकिन तीनों घटना के दिन से ही भागे हुए थे.
फ़रवरी को ही चंदन गुप्ता के भाई विवेक ने तोमर को बताया कि वो भी रैली में मौजूद थाविवेक ने चौहानठाकुर और पाल की रैली में मौजूदगी की पुष्टि की.
उस दिन केस डायरी में तोमर ने लिखा कि चौहानठाकुर और पाल के ख़िलाफ़ सबूत हैं: “धार्मिक उन्माद फैलाने का वीडियो वायरल किया गया है[.] वीडियोग्राफ़ी के अवलोकन से विशाल ठाकुरसौरभ पालअनुकल्प चौहान के फ़ुटेज भी मौजूद हैं.”
12 फ़रवरी को तोमर ने अदालत से मांग की कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 के तहत चौहानठाकुर और पाल को भगोड़ा घोषित किया जाए और उनके ख़िलाफ़ ग़ैरज़मानती वारंट जारी किया जाएलेकिन कोर्ट ने ऐसा आदेश नहीं दिया और  ही तोमर ने इन आदेशों के लिए अदालत से दोबारा आग्रह किया.
आने वाले दिनों में पुलिस ने दो और मुसलमानों को गिरफ़्तार कर लियाइस तरह इस एफ़आईआर की जाँच के दौरान गिरफ़्तार किए गए मुसलमानों की संख्या 21 तक पहुँच गईघटना के दो महीने बाद तक भी कोई हिंदू गिरफ़्तार नहीं किया गया था.
 

हिंदुओं की गिरफ़्तारी

28 मार्च को पुलिस ने सात हिंदुओं को गिरफ़्तार कियाइनमें सिर्फ विशाल ठाकुर का नाम पहले आया थाउसने पुलिस को बयान दिया कि चंदन की मृत्यु होने पर बदला लेने के लिए उसने अन्य हिंदुओं के साथ पथरावआगज़नी और गोलीबारी की.
ठाकुर ने चौहान और पाल समेत कई अन्य हिंदुओं के नाम लिएपुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार करने की कोई कोशिश नहीं कीठाकुर ने तीन मुसलमानों के भी नाम लिएपुलिस ने इन मुसलमानों को कुछ घंटों में ही गिरफ़्तार कर लिया.

 

अप्रैल को चौहान ने आत्मसमर्पण कियाबिना वक्त ज़ाया किए उसने अगले दिन ही ज़मानत के लिए याचिका दायर कर दी.
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएमनेत्रपाल सिंह ने चौहान को फ़ौरन ज़मानत दे भी दी.
चौहान की ज़मानत होते ही सौरभ पाल  एक और हिंदू ने आत्मसमर्पण कर दिया.
आज तक इनके अलावा कोई भी हिंदू गिरफ़्तार नहीं किए गए हैं.
ऐसा नहीं है कि जाँच करने के लिए तोमर के पास हिंदुओं के नाम नहीं थे.
चंदन के कथित हत्यारे सलीम की माँ शकीरा बेगम ने 8 फ़रवरी को एसएचओ सिंह को एक पत्र लिखकर बताया कि 27 जनवरी को चंदन के दाहसंस्कार के बाद कुछ हिंदुओं ने उनके घर पर हमला करके सोने के ज़ेवरकैश और अन्य कीमती सामान लूट लियाउन्होंने ठाकुर और चौहान समेत 28 हिंदुओं के नाम भी दिए.
शकीरा बेगम ने अपने पत्र की कॉपी आदित्यनाथराज्यपाल राम नाइकजो बीजेपी नेता रहे हैंऔर पुलिस महानिदेशक को भेजी.
इनमें से किसी ने भी शकीरा बेगम के पत्र का जवाब नहीं दियापुलिस ने  तो शकीरा बेगम को कभी फ़ोन किया और  ही बयान दर्ज कराने के लिए उन्हें या उन दो चश्मदीद गवाहों को बुलाया जिनका नाम शकीरा बेगम ने अपने पत्र में लिखा था
13 मार्च को शमी अख़्तर नाम के एक शख़्स ने जो उसी इलाक़े में रहता है सीजेएम का दरवाज़ा खटखटाया और हिंसा के आरोप में 44 हिंदुओं के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश देने की अपील कीइन 44 नामों में चंदन गुप्ता और विवेक गुप्ता के अलावा अनुकल्प चौहान और विशाल ठाकुर के भी नाम शामिल थे. 44 में से21 नाम वही थे जिनका ज़िक्र शकीरा बेगम ने 8 फ़रवरी को एसएचओ रिपुदमन सिंह को लिखे पत्र में किया था.

सीजेएम ने पुलिस को आदेश दिया कि शमी अख़्तर की शिकायत को भी एफ़आईआर में शामिल करे और इसकी जाँच करेलेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं कियाजिसे अदालत के आदेश की अवमानना के रूप में देखा जाना चाहिए.

 

अनुकल्प चौहान की अजब दास्तान

जैसा कि ऊपर कहा हैजाँच अधिकारी तोमर ने सीडी में लिख दिया था कि अनुकल्प चौहानविशाल ठाकुर और सौरभ पाल 26 जनवरी से ग़ायब हैंलेकिन 27 जनवरी को चंदन की शवयात्र में कंधा देने वालों में चौहान सबसे आगेआगे चल रहा था.

 इससे पिछलीयानी हिंसा की रातचौहान ने यूट्यूब पर 6 मिनट 43 सेकेंड के एक ज़हरीले भाषण का वीडियो जारी कियाइसमें उसने कासगंज के मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा की धमकी देते हुए कहा: “इस शहर में जो रहेगा वो राधेराधे कहेगा.”

इसी वीडियो में चौहान ने मोटरसाइकिल रैली में अपनी भूमिका साफ़ करते हुए कहा ये ग़लत है कि “एबीवीपी” के साथ कोई गुट भिड़ गया था. “यह मेरी रैली थी.”
चंदन के अंतिम संस्कार के बाद हिंसा फिर भड़की और चार दिन जारी रहीलेकिन तोमर ने उस हिंसा में चौहान की भूमिका की कोई जाँच नहीं की.
चौंकाने वाली बात है कि एक दूसरे पुलिस वाले ने चौहान को चंदन की मौत का चश्मदीद गवाह मानते हुए उससे उसके घर पर 1 फ़रवरी को पूछताछ कीफिर भी तोमर का कहना था कि चौहान लापता है.
दो बार तोमर ने सीजेएम को लिखा कि चौहानठाकुर और पाल के ख़िलाफ़ ग़ैरज़मानती वारंट जारी कर उन्हें भगोड़ा घोषित करेंसीजेएम ने इस आग्रह को नज़रअंदाज़ कर दिया जबकि मुस्लिम अभियुक्तों के ख़िलाफ़ ये आदेश जारी कर दिए.
अगले डेढ़ महीने तक चौहानठाकुर और पाल के बारे में तोमर ख़ामोश रहे. 29 मार्च को जब ठाकुर और छह हिंदू गिरफ़्तार हुए तो तोमर ने केस डायरी में चौहान और पाल का नाम फिर लिया.
यहीं से तोमर ने पलटी मारी और ये साबित करने की कोशिशें शुरू कर दीं कि अनुकल्प चौहान हिंसा में शामिल नहीं था.
29 मार्च को विशाल ठाकुर की गिरफ़्तारी के तीन दिन बाद तोमर ने एक मुस्लिम “चश्मदीद” गवाह से पूछा कि क्या उसने चौहान को गोलीबारीआगज़नी और पथराव करते देखा थागवाह ने कहा: “अनुकल्प चौहान को मैंने फ़ायरिंग करतेआगज़नी करतेपथराव करते नहीं देखा था… मौक़े से मेरे सामने [वोभाग गया था.”
तोमर ने ये नहीं लिखा कि आख़िर ये चश्मदीद गवाह दो महीने तक सामने क्यों नहीं आया था ही तोमर ने ये बताया कि रैली में आए तमाम हिंदुओं में से सिर्फ़ चौहान के बारे में ही तोमर ने उस कथित गवाह से सवाल क्यों किए.
ये भी हैरानी की बात है कि गवाह ने सैंकड़ों की दंगाई भीड़ में चौहान को भागते देखा और इस बात को दो महीने याद भी रखा.
फिर भी तोमर ने इस “चश्मदीद” गवाह के बयान का यक़ीन किया और केस डायरी में अभियुक्तों और भगोड़ों की सूची सेऔर अदालत में दी ग़ैरज़मानती वारंट और भगोड़ा घोषित करने की अर्ज़ी से चौहान का नाम हटा दिया.
ज़ाहिर है चौहान की क़िस्मत पलट रही थी. 9 अप्रैल को जब एक और मुस्लिम अभियुक्त गिरफ़्तार हुआ तो उसके बयान में लिखे 11 हिंदुओं के नामों में चौहान का नाम नहीं थायही इशारा था चौहान के लिए अदालत में आत्मसमर्पण करने काजैसा कि पहले बताया जा चुका हैआत्मसमर्पण के अगले दिन ही चौहान को सीजेएम कीअदालत से ज़मानत भी मिल गई थी.
सीजेएम ने ज़मानत के अपने फ़ैसले में लिखा कि पुलिस रिपोर्ट और केस डायरी दोनों के मुताबिक़ आगज़नी (IPC-436) और हत्या की कोशिश (IPC-307) में चौहान की कोई भूमिका नहीं थी.
लेकिन केस डायरी में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा हैअगर पुलिस स्टेशन ने ऐसी कोई जानकारी सीजेएम को दी भी थी तो उसका केस डायरी में ज़िक्र नहीं है.
ख़तरनाक हथियार के साथ दंगा करने (IPC-148) का तीसरा आरोप सीजेएम ने ख़ुद से ही चौहान पर से हटा दियाज्ञात रहे कि चौहान के पिता उस समय ज़िला जज की अदालत में क्लर्क थे.
इस दौरान तोमर चौहान को बचाने के लिए जुटे रहे. 16 अप्रैल को दो नए “चश्मदीद” गवाहों नेजिनमें एक हिंदू हैतोमर को बताया कि उन्होंने चौहान और पाल को हिंसा से पहले भागते हुए देखा था.
उस रोज़ तोमर ने केस डायरी में लिखा कि चौहान और पाल पर आईपीसी की धाराएं 436 (आगज़नीऔर धारा 307 (हत्या की कोशिश) “प्रभावित नहीं हो रही है”.
दो दिन बाद गिरफ़्तार होने वाले दो अभियुक्तों ने भीजिनमें एक हिंदू हैतोमर को बताया कि उन्होंने चौहान और पाल को हिंसा फैलने से पहले घटनास्थल से चले जाते हुए देखा था.
23 अप्रैल को तोमर ने केस डायरी में लिखा जाँच से पता चला है कि चौहान और पाल हथियार के साथ दंगा करने मेंआगज़नी मेंऔर हत्या की कोशिश में शामिल नहीं थेइसलिएतोमर ने लिखाइनके ख़िलाफ़ लगाई गई आईपीसी की धाराएँ 148 (ख़तरनाक हथियारों से लैस होकर दंगा करना), 307 (हत्या की कोशिशऔर 436 (आगज़नीको वापस लिया जा रहा है.
ये तोमर की जाँच की आख़िरी छानबीन थी.

इसके तीन दिन बाद, 26 अप्रैल कोतोमर ने अदालत में इस केस से जुड़ी फ़ाइनल रिपोर्ट/चार्जशीट दाख़िल कर दी.

 

दूसरा एफ़आईआरघटनाक्रम

घटना से जुड़ा दूसरा एफ़आईआर (नं. 60/18) मृतक चंदन गुप्ता के पिता सुशील गुप्ता की शिकायत पर दर्ज किया गयापुलिस को दिए बयान में उन्होंने बताया कि गणतंत्र दिवस पर जब उनके बेटोंचंदन और विवेककी रैली तहसील रोड नाम की जगह पहुँची तो “हथियारों से लैस योजनाबद्ध तरीक़े से पहले से घात लगाए” कईमुसलमान वहाँ मौजूद थे.
सुशील गुप्ता ने कहा कि हाथों में तिरंगा लिए हिंदू लड़के “भारत माता की जय” और “वंदे मातरम्” का नारा लगा रहे थेतब मुसलमानों ने उनके तिरंगे छीनकर ज़मीन पर फेंक दिए और “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” और “हिन्दुस्तान मुर्दाबाद” चिल्लाने लगे.
सुशील गुप्ता ने कहा कि मुसलमानों ने बंदूकें तान कर हिंदुओं से “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” के नारे लगाने को कहा.
चंदन ने आपत्ति जताई तो मुसलमानों ने पत्थरबाज़ी की और गोलियाँ चलानी शुरू कर दीसुशील गुप्ता ने कहा कि तभी सलीम ने चंदन को गोली मार दी.
विवेक इत्यादि चंदन को पहले पुलिस स्टेशन ले गए और फिर अस्पतालजहाँ उसे “मृत घोषित कर दिया” गया.


दूसरा
 एफ़आईआर: 10 बड़ी ग़लतियाँ

घटना की शुरुआत का पता नहींपहले एफ़आईआर के मुताबिक़ हिंसा की शुरुआत बिलराम गेट चौराहे पर हुईकई हिंदुओं ने पुलिस को बाद में बताया कि फ़ायरिंग से बचने के लिए वे बिलराम गेट चौराहे से 300 मीटर दूर तहसील रोड की ओर भागेलेकिन शिकायतकर्ता सुशील गुप्ता के बयान के मुताबिक़ तहसील रोड पहुँचने सेपहले रैली में कोई रुकावट नहीं पड़ी थी.
अकल्पनीय क्रममुश्किल लगता है कि गोलियों से बचकर भाग रहा कोई व्यक्ति कुछ सेकेंड बाद आराम से झंडा लहराते हुए नारे लगाएगाये भी यक़ीन करना मुश्किल है कि जहाँ बिलराम गेट चौराहे पर मुसलमान गोली चला रहे थे महज़ 300 मीटर दूर तहसील रोड पर घात लगाए बैठे मुसलमानों ने पहले कहासुनी कीफिर नारेलगाए गएफिर हिंदुओं से तिरंगा छीनकर ज़मीन पर फेंकाऔर फिर गोली चलाई.

एफ़आईआर में देरी: गोली लगने के बाद जब चंदन गुप्ता को पुलिस स्टेशन लाया गया उस समय एफ़आईआर क्यों नहीं दर्ज किया गयासुशील गुप्ता ने एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए 11 घंटे क्यों इंतज़ार कियाबिना एफ़आईआर दर्ज हुए चंदन गुप्ता का पोस्टमार्टम कैसे हो गया?

ग़लत समयदूसरे एफ़आईआर में लिखा गया कि चंदन गुप्ता की मौत की पहली ख़बर रात बारह बजे के बादयानी 27 फ़रवरी की सुबह 12:17 बजेकासगंज थाने पहुँचीलेकिन थाने की जीडी में दर्ज है कि अस्पताल के एक वॉर्ड ब्वॉय ने चंदन की मौत की जानकारी देने वाली अस्पताल की मेमो रिपोर्ट को 26 जनवरी को दोपहर1:15 बजे थाने में लाकर सौंप दिया था.

दूसरा एफ़आईआर क्योंचंदन की मौत की सूचना थाने में दिन में मिल चुकी थी तो उसे पहले एफ़आईआर में ही लिखा जाना चाहिए थादूसरे एफ़आईआर में कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि उसकी ज़रूरत क्यों पड़ी.
ग़ैर– हाज़िर शिकायतकर्ता: चंदन के पिता सुशील गुप्ता रैली में नहीं थेउन्होंने दूसरे बेटे विवेक के हवाले से बयान देकर एफ़आईआर दर्ज करवायाविवेक रैली में शामिल थाफिर विवेक ने क्यों नहीं एफ़आईआर दर्ज कराया?
नामज़द अभियुक्त: दूसरे एफ़आईआर में सुशील गुप्ता ने 20 मुसलमानों के नाम दिएउनको ये नाम विवेक और अन्य लड़कों ने दिएविवेक इत्यादि ने ये नाम तब क्यों नहीं पुलिस को दिए जब वे दिन में चंदन को थाने लेकर आए थे?
अनुचित जाँच अधिकारीदूसरे एफ़आईआर के जाँच अधिकारी एसएचओ रिपुदमन सिंह हैंजबकि पहले एफ़आईआर में वो शिकायतकर्ता और चश्मदीद गवाह हैंइस प्रकार एसएचओ सिंह एक ही वारदात में शिकायतकर्ताजाँच अधिकारी और चश्मदीद गवाह बन गए हैं.
असत्यापित चोट: सुशील गुप्ता ने कहा रैली के अन्य लड़कों को भी गोलीबारी में चोटें आईंलेकिन उस सुबह एक ही और शख़्स को गोली लगी थीवो मुसलमान है और उसने घटनास्थल कहीं और बताया है.
चंदन को उठाकर ले जाना: विवेक और रैली के अन्य लड़के घायल चंदन को पुलिस स्टेशन लेकर गएरैली के ही लड़कों ने बाद में बयान दिए कि चंदन को गोली लगने से कुछ मिनट पहले वो बिलराम गेट चौराहे से थाने आना चाह रहे थे मगर उस रोड पर मुसलमान गोली चला रहे थे इसलिए उन्हें बीच में तहसील रोड भागना पड़ा थाऐसे हाल में तहसील रोड से ये हिंदू लड़के कैसे गोलियों से बचते हुए चंदन को वापस थाने की ओर ले जा सके थे?
दूसरे एफ़आईआर और उसकी जाँच की पड़ताल करने पर जवाब कम मिलते हैं और सवाल अधिक खड़े हो जाते हैंअलगअलग देखा जाए तो दोनों एफ़आईआर में ढेरों कमियाँ मिलती हैं.
लेकिन अगर दोनों एफ़आईआर को एक साथ जोड़ कर पढ़ा जाए तो पुलिस द्वारा बनाई कहानी बिलकुल ही ढह कर चूर हो जाती है.
 

पुलिस की कहानी में अंतर्विरोध

पुलिस की मूल कहानी है कि हिंसा बिलराम गेट चौराहे से शुरू हुईलेकिन शुरू से ही पुलिसवाले इसके उलटा बयान देते रहेकई चश्मदीद पुलिसवालों ने कहा कि दोनों गुटों के बिलराम गेट चौराहे पहुँचने से पहले ही हिंसा और फ़ायरिंग शुरू हो चुकी थी.
पहले एफ़आईआर के मुताबिक़ बिलराम गेट चौराहे पर जमा हिंदू मुसलमानों पर “गलियों के अंदर से” रैली रोकने का आरोप लगा रहे थे.
उसके मुताबिक़ जिस समय पुलिस हिंदुओं को शांत करने की कोशिश कर रही थी मुसलमान गलियों से पथराव और फ़ायरिंग करने लगे.
कुछ और पुलिसवालों ने बयान दिए कि हिंसा शुरू होने से पहले हिंदू और मुसलमानदोनों ही बिलराम गेट चौराहे पर मौजूद थे और पुलिस ने दोनों ही को शांत करने की कोशिश की थी.
पहले एफ़आईआर की जाँच के दौरान किसी पुलिसवाले ने नहीं कहा कि बिलराम गेट चौराहे पर फ़ायरिंग से बचने के लिए हिंदू लड़के तहसील रोड भागे या वहाँ सलीम ने चंदन को गोली मारी.
29 जनवरी को दिए अपने बयान में सिपाही बलबीर सिंह ने दो पारस्परिक विरोधी दावे किएपहला उसने कहा कि फ़ायरिंग और पथराव बिलराम गेट चौराहे पर झगड़े के बाद शुरू हुए
लेकिन उसी बयान में उसने ये भी कहा कि फ़ायरिंग और पथराव पहले शुरू हो चुके थे जिसके चलते हिंदू बिलराम गेट चौराहे तक भागे और मुसलमान लोग गोली चलाते उनके पीछे आए.
बलबीर सिंह के दोनों दावों के मुताबिक़ हिंदू और मुसलमान दोनों गोलियाँ चला रहे थेसिपाही बलबीर सिंह ने ये नहीं बताया कि किसने पहले गोली चलाई.
लखन प्रताप नाम के एक “स्वतंत्र” गवाह ने पुलिस को बयान दिया कि सुबह 9:45 बजे वो जब गणतंत्र दिवस समारोह देखने के लिए बिलराम गेट चौराहे पर पहुँचा तो वहाँ हिंसा पहले से जारी थी.
प्रताप ने कहा मुसलमान जबरदस्त पथराव कर रहे थे और गाड़ियों को आग लगा रहे थे.
प्रताप ने कहा: “पुलिस की गाड़ियों के साइरन की आवाज़ आने लगी तो उक्त लोग फ़ायरिंग  पथराव करते तहसील रोड की तरफ़ भाग गए.”
लेकिन अगर मुसलमान पुलिस के आने से पहले ही तहसील रोड की तरफ़ भाग गए थे तो पुलिस को वे बिलराम गेट चौराहे पर कैसे मिले थेऔर अगर मुसलमान तहसील रोड की तरफ़ भागते हुए फ़ायरिंग कर रहे थे तो फिर हिंदू भी उस तरफ़ क्यों भागे?
लखन प्रताप के एक साथी, “स्वतंत्र” गवाह अर्पित गुप्ता ने बताया कि कुछ मुसलमान तहसील रोड की उलटी दिशा में खेड़िया मोहल्ला को भागकर थाने के पीछे एक मस्जिद में छुप गए थे.
अगर ये सही है तो फिर पुलिस ने मस्जिद को घेरकर उन्हें बाहर क्यों नहीं निकलाअर्पित गुप्ता ने ये भी बताया कि उन्हीं मुसलमानों ने उस मस्जिद में आगज़नी की ताकि हिंदुओं पर उसका आरोप लगाया जा सकेहालाँकि अर्पित गुप्ता ने स्वीकार किया कि मस्जिद की आगज़नी उन्होंने ख़ुद नहीं देखा बल्कि सुनीसुनाई जानकारी केआधार पर पुलिस को बताया है.

आख़िर क्या हुआ था तहसील रोड पर?

हिंदुओं का कहना है कि हिंसा होने पर वे बिलराम गेट चौराहे से 300 मीटर दूर स्थित थाने को भागेमगर क्योंकि मुसलमान हर ओर से गोली चला रहे थे मजबूर होकर ये हिंदू थाने से पचास मीटर पहले मुड़ कर तहसील रोड भाग गए.
लेकिन दूसरे एफ़आईआर में बिलराम गेट चौराहे पर किसी हिंसा का कोई ज़िक्र ही नहीं हैबल्कि उसके मुताबिक़ तिरंगा लिए नारे लगाते हुए रैली के लोग सामान्य रूप से तहसील रोड पहुँचे थे.
जिस किसी ने दावा किया कि बिलराम गेट चौराहे पर हिंसा हुई उन्होंने ये भी स्वीकार किया कि तहसील रोड की हिंसा उसके बाद घटा.
लेकिन सिपाही बलबीर सिंह के मुताबिक़ जब वो बिलराम गेट चौराहे पहुँचा तो वहाँ दोनों गुट तहसील रोड की घटना के बारे में झगड़ रहे थे.
लेकिन अगर तहसील रोड की हिंसा तब तक नहीं हुई थी तो उसके बारे में झगड़ा कैसे कर रहे थे
हिंदुओं ने ये भी कहा कि वे बिलराम गेट चौराहे से थाने की तरफ़ भागे थे तो मुसलमान उनपर दाहिनी तरफ़ से गली सूत मंडी की ओर से गोलियाँ चला रहे थेलिहाज़ा इन हिंदुओं को मजबूरन बाईं तरफ़ तहसील रोड की तरफ़ मुड़ना पड़ा था.
गली सूत मंडी मुख्य रूप से हिंदुओं का मोहल्ला हैतहसील रोडजिधर ये हिंदू भागे थेमुस्लिमबाहुल मोहल्ला हैआख़िर कौन से मुसलमान हिंदुओं के इलाक़े से गोली चला रहे थेऔर हिंदू लोग मुसलमानों के मुहल्ले की तरफ़ क्यों भागे थे?
अधिकतर मुसलमान दोनों एफ़आईआर की चार्जशीटों में अभियुक्त हैंइन मुसलमानों की कथित हिंसा के क्रम को लेकर भी विरोधाभास है.
अगर दोनों चार्जशीटों को जोड़ कर देखा जाए तो घटनाक्रम ये बनता है कि पहले इन मुसलमानों ने बिलराम गेट चौराहे पर हिंदुओं पर हमला कियाजिससे बचने के लिए ये हिंदू तहसील रोड को भागेलेकिन इन हिंदुओं को ओवरटेक करके वही मुसलमान इन हिंदुओं से पहले तहसील रोड पहुँच गएजहाँ पर इन मुसलमानों ने इन्हीहिंदुओं पर एक बार फिर हमला कर दिया.
पुलिसवालों ने भी लगातार यही कहा कि बिलराम गेट चौराहे पर हमला करने के बाद ये मुसलमान तहसील रोड स्थित सलीम के घर भागे जिसके बाहर उन्होंने फिर हिंदुओं पर हमला किया और सलीम ने चंदन को गोली मार दी.
एक बात ये भी है कि तहसील रोड पर मुसलमानों द्वारा की गई कथित हिंसा की  कोई तस्वीर है और  ही कोई वीडियो सामने आया है.
पुलिस के मुताबिक़ जिस गोली से चंदन की हत्या हुई उसका खोखा खोजने पर नहीं मिला.
मेन रोड से मुड़ने के बाद तहसील रोड पर सलीम का घर 150 मीटर दूर हैइस रास्ते पर आमतौर पर काफ़ी हलचल रहती हैइसके बावजूद पुलिस को कोई “स्वतंत्र” गवाह नहीं मिला.
चार्जशीट में पुलिस ने इस घटना के चार गवाहों के नाम दिएइनमें एक मुसलमान हैलेकिन इन चारों गवाहों ने अपनेअपने बयानों में ये माना है कि उन्होंने घटना को देखा नहीं बल्कि उसके बारे में दूसरों से सुना है जिसे उन्होंने पुलिस को बताया है.

विवेक गुप्ता के असंगत बयान

सुशील गुप्ता ने पुलिस को दिए बयान में कहा कि जब रैली के लड़के तहसील रोड पहुँचे तो उनके हाथों में तिरंगा था और वे देशभक्ति से जुड़े नारे लगा रहे थेलेकिन विवेक गुप्ता ने 30 जनवरी को दिए बयान में ऐसा कुछ नहीं कहाबल्कि उसने ये कहाकि हिंदुओं पर चारों तरफ़ से फ़ायरिंग हो रही थी इसलिए वे ख़ुद को बचाने के लिएतहसील रोड की तरफ़ भागे थे.
दूसरे एफ़आईआर में लिखा गया कि तहसील रोड पर जब हिंदू पहुँचे तो मुसलमानों ने उन हिंदुओं के हाथों से तिरंगा छीन कर ज़मीन पर फेंक दिया और हिंदुओं से कहा कि वो “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” और “हिंदुस्तान मुर्दाबाद” के नारे लगाएँऔर जब हिंदुओं ने ऐसा करने से मना कर दिया तो मुसलमानों ने उनपर फ़ायरिंग शुरू करदी और सलीम ने चंदन को गोली मार दी.
लेकिन विवेक ने बयान दिया कि जब हिंदू तहसील रोड पहुँचे तो मुसलमानों ने उन्हें गालियाँ दीं और सलीम ने चंदन को गोली मार दीइसके बाद मुसलमानों ने “हिंदुस्तान मुर्दाबाद” और “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” के नारे लगाए और हिंदुओं से तिरंगा छीना.
सुशील गुप्ता के मुताबिक़ दूसरे एफ़आईआर में उनके द्वारा लिखाए 20 मुसलमानों के नाम उन्हें विवेक ने दिए थे क्योंकि सुशील ख़ुद वहाँ मौजूद नहीं थेलेकिन 30 जनवरी को विवेक ने अपने बयान में 20 नहीं 29 मुसलमानों के नाम लिएविवेक ने बयान में कहा: “[इनकोमैं अच्छी तरह से तथा मेरे साथी भी पूर्व से जानते  पहचानतेहैंइन लोगों का प्रतिदिन बाज़ार में आनाजाना रहता हैमैं एम.आरका काम करता हूँ इस वजह [सेमेरी विशेष रूप से बाज़ार के लोगों से जान पहचान रहती है.”
घटना के लगभग दो महीने बाद 19 मार्च को विवेक ने 30वें मुसलमान का नाम भी पुलिस को बतायालेकिन ये नहीं बताया कि इसका नाम पहले क्यों नहीं लिया था ही पुलिस ने ये जानने की कोशिश की.
ये अजीब बात है कि अगर तहसील रोड पर मौजूद मुसलमानों को विवेक गुप्ता इतनी अच्छी तरह से पहचानता था तो उसने अपने पिता को हिंसा की रात सिर्फ़ 20 मुसलमानों के ही नाम क्यों दिएपुलिस ने भी नहीं जानना चाहा कि आख़िर विवेक ने बाक़ी 10 नाम क्यों नहीं बताए थे.
अजीब ये भी है कि जबकि चंदन की हत्या वाली चार्जशीट में 36 गवाहों की सूची में विवेक का नाम दूसरे नंबर पर है — पहले नंबर पर उसके पिता सुशील का नाम है — पहले एफ़आईआर की चार्जशीट में गवाहों की सूची में विवेक गुप्ता का नाम ही नहीं है.
पहले एफ़आईआर के जाँच अधिकारी तोमर ने विवेक से बाक़ायदा 9 फ़रवरी को पूछताछ की थीऔर विवेक गुप्ता ने तोमर को दिए उस बयान में बिलराम गेट चौराहे से पहले कीऔर बिलराम गेट चौराहे पर हुईकथित हिंसा का सजीव विवरण तक दिया था.
इसी तरह जबकि सुशील गुप्ता ने अपने बयान में कहा था कि चंदन के अलावा दूसरे लड़कों को भी गोली लगी थीविवेक ने कहा कि रैली के दूसरे हिंदुओं को हिंसा में मामूली चोटें ही आई थीं.
ये समझ से परे है कि दोनों एफ़आईआर के जाँच अधिकारियों ने विवेक को आरोपी के तौर पर क्यों नहीं संदेह के घेरे में रखाजबकि कई पुलिस वाले और दूसरे स्वतंत्र गवाहों ने भी बयानों में जाँच अधिकारियों से कहा था कि उन्होंने मोटरसाइकिल रैली में शामिल हिंदुओं को हिंसा करते और गोलियाँ चलाते देखा था.
भारत के क़ानून के मुताबिक़ हिंसक भीड़ में शामिल हर व्यक्ति उस अपराध में बराबर का दोषी होता है भले ही किसी एक ने गोली चलाई हो या वार किया होयही वजह है कि चंदन गुप्ता की हत्या का आरोप सभी 24 मुसलमानों पर धारा 302 के तहत बराबर लगाया गया है जबकि चार्जशीट के मुताबिक़ सिर्फ़ सलीम ने कथित तौर परचंदन पर गोली चलाई थी.
ध्यान देने की बात ये भी है कि आम लोगों द्वारा बनाए गए रैली के किसी भी वीडियो में विवेक गुप्ता कहीं नहीं दिखाई देता है.

तीसरी कहानी

तहसील रोड पर हुई हिंसा को लेकर जहाँ सुशील गुप्ता और विवेक गुप्ता के बयान असंगत हैंवहीं पुलिस को दिए अनुकल्प चौहान के बयान से एक तीसरी ही कहानी सामने आती है.
जैसा कि ऊपर लिखा हैसुशील गुप्ता के मुताबिक़ मुसलमानों ने हिंदुओं से तिरंगा छीनाफिर उन्हें भारतविरोधी नारे लगाने को कहाऔर फिर सलीम ने चंदन को गोली मारी.
विवेक ने बयान दिया कि पहले मुसलमानों ने गोलीबारी कीजिसमें सलीम ने चंदन को गोली मारीफिर तिरंगा छीना और नारे लगाए.
लेकिन 1 फ़रवरी को दिए बयान में चौहान ने कहा कि मुसलमानों ने पहले गोली चलाईंफिर भारतविरोधी और पाकिस्तानसमर्थक नारे लगाए और हिंदुओं को भी ऐसे नारे लगाने को कहाऔर जब हिंदुओं ने ऐसा करने से मना किया तो सलीम ने चंदन को गोली मार दी.
उसी रोज़ सौरभ पाल ने भी यही बयान दियाचंदन की मौत की चार्जशीट में चौहान और पाल क्रमशगवाह नंबर 3 और 4 हैंपहले एफ़आईआर की चार्जशीट में ये दोनों अभियुक्त बनाए गए हैं.
दो रोज़ बाद, 3 फ़रवरी कोमोटरसाइकिल रैली में शामिल प्रतीक मालू और विवेक माहेश्वरी नाम के दो अन्य लड़कों ने भी पुलिस को दिए अपने बयानों में चौहान के बयान को शब्दशदोहराया.
रैली में भाग लेने वाले शुभ गोयल नाम के एक और हिंदू लड़के ने भी एक हफ़्ते बाद अपने बयान में वही कहा जो चौहान ने कहा था.
दूसरे एफ़आईआर की चार्जशीट में मालूमाहेश्वरी और गोयल क्रमशगवाह नं. 5, 6 और 7 हैंइनमें से किसी का भी नाम पहले एफ़आईआर की चार्जशीट में आरोपियों के तौर पर शामिल नहीं है.
चौहानपालमालूमाहेश्वरी और गोयलपाँचों ने पुलिस को दिए बयानों में कहा कि सलीम द्वारा चंदन गुप्ता को गोली मारे जाने के बाद वो चंदन को लेकर सबसे पहले कासगंज थाने गए.
लेकिन किसी ने ये नहीं बताया कि थाने पहुँचने पर उन्होंने उसी समय एफ़आईआर क्यों नहीं दर्ज कराया या दंगाई मुसलमानों के नाम उसी समय क्यों नहीं पुलिस में दे दिए.
इन पाँचों ने पुलिस को यही जानकारी दी कि मोटरसाइकिल रैली का आयोजन अनुकल्प चौहान ने किया था.
दोनों एफ़आईआर की जाँच तीन महीने चलीइस जाँच के दौरान दर्ज हुए गवाहों के बयानों में इन पाँचों लड़कों के ख़िलाफ़ जाँच के और इन्हें शुरू में ही गिरफ़्तार कर लेने के लिए पर्याप्त आधार थेपुलिस इनकी जाँच और गिरफ़्तारी लटकाती रहीमालूमाहेश्वरी और गोयल को पुलिस ने कभी भी गिरफ़्तार नहीं किया.
 

मौजूद नहींफिर भी आरोपी

तहसील रोड की कथित हिंसा के कम से कम तीन अभियुक्त ऐेसे हैं जो पुख़्ता तौर पर घटना के समय वहाँ मौजूद नहीं थे.
चंदन के कथित हत्यारे सलीम का भाई वसीम 26 जनवरी को कासगंज से पश्चिम में 60 किलोमीटर दूर हाथरस शहर में था.
25 जनवरी की रात वसीम एक मुस्लिम धार्मिक ग्रुप के साथ बाहर चला गया थाये लोग अगले दो दिन हाथरस रुके थे.
दस चश्मदीद गवाहों ने नोटराइज़्ड स्टैंप पेपर पर लिखकर पुलिस को दिया कि वसीम उनके साथ हाथरस में थाउनके मुताबिक़ हाथरस यात्रा के एक वीडियो में वसीम की मौजूदगी दिखती है.
मगर पुलिस ने इन लोगों के बयान तक नहीं लिए ही कथित वीडियो मांगापुलिस ने इनको मुक़दमे में गवाह भी नहीं बनाया.
एक दूसरा अभियुक्तज़ाहिद उर्फ़ जग्गा, 26 जनवरी की सुबह 330 किलोमीटर पूर्व स्थित राज्य की राजधानी लखनऊ में था.
जग्गा भी घटना से पिछली रात, 25 जनवरी कोअपने एक हिंदू दोस्त के साथ कासजंग से लखनऊ के लिए रवाना हो चुका था.
दरअसल उसके दोस्त की कार को लखनऊ पुलिस ने पहले से ज़ब्त किया हुआ था जिसे छुड़वाने के लिए ये दोनों लखनऊ गए थे.
लखनऊ के एक पुलिस स्टेशन के सीसीटीवी के 26 जनवरी की सुबह 8:30 बजे के फ़ुटेज में जग्गा और उसके दोस्त साफ़ दिख रहे हैं.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के एक मुस्लिम सदस्यसैय्यद ग़योरुल हसन रिज़वीने फ़रवरी में आदित्यनाथ को एक चिट्ठी लिख कर आग्रह किया कि जग्गा पर लगे आरोपों की दोबारा जाँच की जाए.
आज तक आदित्यनाथ की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है.
मुक़दमे का एक तीसरा अभियुक्तअसीम क़ुरैशीहिंसा के समय कासगंज से 70 किलोमीटर पश्चिम स्थित अलीगढ़ में थाइस बात की पुष्टि भी अलीगढ़ में सीसीटीवी फ़ुटेज से हो जाती है.
ऐसे पुख़्ता सबूतों के बावजूद वसीम और जग्गा छह महीनों से चंदन की हत्या के आरोप में जेल में हैं.
23 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वसीम को ज़मानत दे दीलेकिन उसे छोड़ने के बजाए कासगंज प्रशासन ने वसीम पर 6 अगस्त को राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगा दिया.   

घटनाक्रममुसलमानों की ज़बानी

पुलिसवालों के और रैली के हिंदुओं के बयानों को दोनों एफ़आईआर और चार्जशीटों में विस्तार से जगह मिली हैमगर मुसलमानों के बयान एफ़आईआरऔर चार्जशीटों में  के बराबर हैं.
मुसलमानों द्वारा इस घटना का विवरण सीधा और सपाट है.
मुसलमान कहते हैं कि हर साल अपने मोहल्ले में वो गणतंत्र दिवस मनाते हैं और इसी परंपरा में इस साल भी अब्दुल हमीद चौक पर तिरंगा फहराने का कार्यक्रम रखा गया था.
चंदन और चौहान द्वारा निकाली गई हिंदुओं की मोटरसाइकिल रैली वहाँ पहुँची और आगे जाने का रास्ता देने की माँग की.
मुसलमानों के मुताबिक़ जब उन्होंने आपत्ति जताई तो झड़प हुई और बाद में रैली के हिंदुओं ने पथराव और फ़ायरिंग किया.
मुसलमान कहते हैं उन्होंने गोली नहीं चलाईचंदन की मृत्यु या हिंदू की गोली से या बिलराम गेट चौराहे पर पुलिस की गोली से हुई.
मुसलमान कहते हैं कि हालाँकि लगातार ये दावा किया जा रहा है कि मुसलमानों ने बिलराम गेट चौराहे और तहसील रोड पर हिंदुओं पर गोलियाँ चलाईअब तक इसकी पुष्टि  ही किसी तस्वीर से और  ही किसी वीडियो से हुई है.
मुसलमानों का कहना है कि तहसील रोड पर कथित घटना कभी हुई ही नहीं

कार्रवाई के लिए मांगें

इस रिपोर्ट को जारी कर रही है ये जनसभा मांग करती है कि उत्तर प्रदेश सरकार:
  • भ्रष्ट चार्जशीटों के नाम पर चलाए जा रहे दोनों मुक़दमों को फ़ौरन वापस ले;
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर हाईकोर्ट की देखरेख में घटना की स्वतंत्र पुलिस जाँच करवाए;
  • दंगा  होने देने मेंऔर दंगा होने के बाद बढ़ने से रोकने मेंपुलिस और प्रशासन की नाकामी की उच्चस्तरीय जाँच कराए;
  • जाँच को भ्रष्ट किए जाने में और बेगुनाह मुसलमानों को फंसाए जाने में ज़िम्मेदारी तय करने के लिए उच्चस्तरीय जाँच कराए;
  • मुसलमानों पर लगाए गए झूठे आरोप वापस लेकर उनको रिहा करे;
  • मोटरसाइकिल रैली में शामिल हिंदुओं को गिरफ़्तार करे और हिंसा में उनकी भूमिका की जाँच करे