चुनाव चर्चा:आम चुनाव टाले जाने की मांग का औचित्य नहीं पर कुछ भी संभव


गणपत सिंह वसावा ने कहा है कि पुलवामा हमला का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ तत्काल जवाबी कार्रवाई जरूरी है, चाहे इसके लिए आगामी लोक सभा चुनाव विलंब से कराने पड़ें।




  चंद्र प्रकाश झा 

भारतीय जनता पार्टी ने आधिकारिक रूप से तो अभी तक ऐसा  बिलकुल नहीं कहा है। पर उसके समर्थकों के बीच से लगातार ऐसी आवाजें उठ रही है  कि 17 वीं लोक सभा के चुनाव, पुलवामा में आतंकी हमला का ‘ बदला ‘ लेने के लिए स्थगित कर दिए जाएँ। मीडिया की खबरों के मुताबिक़ गुजरात के वन, आदिवासी विकास एवं पर्यटन मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ प्रांतीय नेता गणपत सिंह वसावा ने कहा है कि पुलवामा हमला का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ तत्काल जवाबी कार्रवाई जरूरी है,  चाहे इसके लिए आगामी लोक सभा चुनाव विलंब से कराने पड़ें।

उन्होंने  सूरत में एक जनसभा में  कहा कि यदि चुनाव में दो महीने की देरी होती है तो भी ठीक है। लेकिन पाकिस्तान को एक सबक सिखाया ही जाना चाहिए। वसावा ने गुजराती में कहा, ”अत्यारे चुनाव रोकी दो, अने पाकिस्तान ने ठोकी दो ” (आगामी चुनाव को रोक दो और पाकिस्तान को ठोक दो )।  खबरिया टीवी चैनल ‘आज तक’ ने एक वीडिओ के साथ खबर दी है कि पुलवामा में आतंकी हमले में ‘शहीद हुए 40 जवानों की शहादत पर देश में आक्रोश है। पुलवामा हमले के चार दिन बाद राजधानी दिल्ली में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। यहां कारोबारियों ने मांग की है कि, लोकसभा चुनाव रोक दो, पाकिस्तान को ठोक दो।’  ऐसी ही खबरें विभिन्न समाचार माध्यमों से देश के कई स्थानों से मिली है।

गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में गुरुवार को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक काफिले पर आतंकवादी फ़िदायी हमले में इस बल के 40 जवानों की मृत्यु हो गई। आतंकी गुट,  जैश-ए-मोहम्मद के एक आत्मघाती हमलावर ने पुलवामाजिले में विस्फोटकों से भरे अपने वाहन को सुरक्षाबलों के काफिले की एक बस से टकरा दिया था।

सवाल स्पष्ट है कि क्या ‘ पुलवामा में आतंकी हमला का बदला ‘ लेने के लिए 17 वीं लोक सभा के चुनाव रोक दिए जाने की वास्तविक जरुरत पड़ गई है।  यह कॉलम चुनावों पर केंद्रित है इसलिए हम पुलवामा में आतंकी हमला को लेकर सैन्य आदि बातों की चर्चा सिर्फ प्रासंगिक तौर पर कर रहे है। लेकिन यह इंगित करना जरुरी है कि इस आतंकी हमले के बाद से उसके आम चुनाव पर संभावित और असंभावित असर के बारे में मीडिया और ख़ास तौर पर  टीवी चैनलों पर तीखी बहस  शुरू हो गई।

गौरतलब है कि भारत को चुनाव के ऐन पहले युद्ध का सामना करना पड़ा है।   बारहवीं लोकसभा में 21 मार्च 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार लोक सभा में विश्वास मत एक वोट से हार गई तो राष्ट्रपति ने विधिवेत्ताओं के परामर्श से निर्वाचन आयोग को 13 वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव कराने आदेश  दे दिए थे। निर्वाचन आयोग ने घोषणा कर दी थी कि चुनाव सितंबर- अक्तूबर में होंगे लेकिन बीच में ही भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल की लड़ाई शुरू हो गई। चुनाव कार्यक्रम में देरी हो गई। लेकिन निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के साथ ही चुनाव प्रक्रिया फिर पटरी पर आ गई। परिणाम भाजपा के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस गठबंधन के पक्ष में गए। एनडीए ने लोकसभा की 545 में से  303 सीटें जीतीं। ध्यान देने की बात है कि चुनाव कार्यक्रम, टीवी चैनलों को नहीं बल्कि निर्वाचन आयोग को तय करना है और उसने कारगिल की लड़ाई के बीच में आ जाने के बावजूद चुनाव की प्रक्रिया तनिक विलम्ब से ही सही, पूरी की। इसलिए मौजूदा हालात में जब युद्ध की कोई वास्तविक स्थिति फिलहाल तो नहीं है, आम चुनाव स्थगित करने का कोई औचित्य नज़र नहीं आता। वैसे भी जानकार लोग कहते हैं कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चुनाव टाले जाने की मांग को लेकर शायद ही सहमत हों। पुलवामा प्रकरण के बाद शनिवार को विपक्षी दलों की केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में बुलाई गयी बैठक में राष्ट्र के साथ पूर्ण एकजुटता व्यक्त की गई। बैठक में आम चुनाव स्थगित करने के बारे में किसी ने कोई विचार नहीं व्यक्त किया। 

इस बीच, हिन्दुस्तान टाइम्स ने खबर दी है कि पुलवामा आतंकी हमला के कारण आगामी लोक सभा चुनाव और राज्य विधान सभा चुनाव के समय को लेकर संशय उठ खड़े हुए हैं। निर्वाचन आयोग ने पुलवामा आतंकी हमला के पहले ही इन चुनाव की तैयारियों को लेकर दिल्ली में सोमवार को एक बैठक बुलाई थी। इसमें अन्य अधिकारियों के अलावा राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को भी भाग लेना था।  तत्काल जानकारी उपलब्ध नहीं है कि इस बैठक का क्या हुआ। खबर है कि निर्वाचन आयोग जम्मू -कश्मीर विधान सभा के भी नए चुनाव आगामी मई तक लोकसभा चुनाव के साथ ही कराने पर विचार कर रहा था। विधान सभा चुनाव लंबित हैं , जो नवम्बर  2018 से भंग है। उसकी विधानसभा को भंग करने के छह माह के भीतर यानि आगामी मई तक नए चुनाव कराये जाने हैं। जम्मू -कश्मीर की विधान सभा का कार्यकाल छह वर्ष का होता है। जम्मू कश्मीर में छह लोक सभा सीट है जिनमें से एक , अनंतनाग अरसे से रिक्त है।  यह सीट  जम्मू -कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ( पीडीपी ) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती के इस्तीफा से रिक्त हुई थी  जो उन्होंने अपने पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद उनकी जगह राज्य का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद दिया था।  जम्मू -कश्मीर विधान सभा की 111 सीटों में से 24 पाकिस्तान अधिकृत हिस्से में हैं जहां राज्य के संविधान की धारा 48 के तहत चुनाव कराने की अनिवार्यता नहीं है। इसी बरस 16 जून को भाजपा की समर्थन वापसी से महबूबा मुफ्ती सरकार गिर जाने के बाद वहाँ पहले विधान सभा को  निलंबित किया गया और फिर भंग कर दिया गया।

बहरहाल,  संवैधानिक प्रावधानों के तहत लोक सभा के कार्यकाल के दौरान यदि आपातकाल लागू कर दिया जाता है तो संसद को उसका कार्यकाल  विधिक प्रक्रिया से एक बार में  अधिकतम एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार है। आपातकाल समाप्त होने की दशा में उसका कार्यकाल किसी भी हालत में छ: माह से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। 16 वीं लोक सभा की पहली बैठक चार जून 2014 को हुई थी। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार पांच वर्ष का उसका निर्धारित कार्यकाल, अन्य किसी उपाय किये बगैर तीन जून 2019 को स्वतः समाप्त हो जाएगा।

(मीडिया विजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)