कॉरपोरेट मीडिया के 12 ‘टॉप झूठ’ जो बीते साल बीजेपी के हित में गढ़े गए !



वे घुसपैठ या पाकिस्तानी गोलाबारी से हुए नुकसान की भरपाई के लिए तत्काल भारतीय सेना के हमले में पाकिस्तानी बंकर उड़ा देते हैं, मुसलमानों के  प्रति नफ़रत फैलाने के लिए पत्नी का गोश्त खाकर भूख मिटाने का फ़तवा दिला सकते हैं, राहुल गाँधी या गाँधी परिवार की तस्वीरों को चीन, पाकिस्तान या कहीं के भी लोगों के साथ दिखा सकते हैं जैसी ज़रूरत हो, धर्मांतरण से लेकर लव जिहाद तक उनका प्रिय विषय है और नास्त्रोदामस के नाम पर होने वाले मज़ाक को असल मानते हुए किसी ग़ैबी ट्र्ंक से नरेंद्र मोदी के अवतार की भविष्यवाणी खोज लाते हैं- जी हाँ, 2017 में कथित मुख्यधारा का कॉरपोरेट मीडिया ऐसी ही ख़बरों से पटा रहा जो सौ फ़ीसदी झूठी थीं। इन्हें चलाने वाले संपादक सालाना करोड़ों का पैकेज पाते हैं तो ज़ाहिर है, यह किसी लापरवाही का मसला नहीं, मोदी सरकार और बीजेपी के साथ नत्थी होकर उसकी ज़रूरतों के अनुरूप सहमति निर्माण का बड़ा खेल है। ऐसे झूठ पकड़ने वाली वेबसाइट आल्ट न्यूज़ ने पिछले साल के टॉप 12 झूठों की एक लिस्ट जारी की है जिसे हम आभार सहित यहाँ पेश कर रहे हैं ताकि 2018 में आप व्हाट्सऐप या फ़ेसबुक पर दिखने वाली किसी ख़बर को बिना दिमाग़ लगाए सच न मान लें-संपादक

2017 एक और ऐसे वर्ष के रूप में याद रखा जाएगा जिसमें मुख्यधारा के मीडिया की विश्‍वसनीयता और भरोसे में तेजी से गिरावट आते हुए दिखाई दी। यह ऐसा वर्ष था जिसमें मुख्यधारा के मीडिया ने झूठी खबरें तैयार करने और फैलाने में सोशल मीडिया को कड़ी टक्कर दी। ऑल्ट न्यूज आपके लिए ऐसी सर्वाधिक चर्चित घटनाओं की झलक पेश कर रहा है जिसमें मुख्यधारा के मीडिया को झूठी खबरों की रिपोर्ट देते हुए पकड़ा गया था। समाचार सबसे पहले पेश करने की होड़ में, तथ्य जांच नाम की चीज बेसहारा हो जाती है। लेकिन ऐसा हमेशा हड़बड़ी की वजह से ही नहीं होता है। इस वर्ष मुख्यधारा के मीडिया द्वारा एक खास एजेंडे से संचालित होकर झूठी कहानियां फैलाने की एक भयावह विविधता भी दिखाई दी।

ये 2017 में मुख्यधारा के मीडिया द्वारा परोसी गई शीर्ष झूठी खबरें हैं। बुनियादी तथ्य जांच करने में विफल रहने वाली सुस्त पत्रकारिता से लेकर खास एजेंडे से संचालित होने वाली जानबूझकर प्लांट की गई खबरों तक, आपको यहां हर तरह की खबर मिलेगी। बार-बार झूठी खबरें फैलाने वाले संस्‍थानों/लोगों पर ध्यान दें, इसके पैटर्न पर ध्यान दें और देखें कि किस तरह आम लोगों की राय को प्रभावित करने के लिए कोई झूठा नैरेटिव गढ़ने की पूरी कोशिश की जाती है।

1.  रिपब्लिक टीवीः चार करोड़ से अधिक के बिजली के बिल का भुगतान न करने के कारण जामा मस्जिद अंधेरे में

बिजली का बिल जमा न करने की वजह से जामा मस्जिद में अंधेरा होने की रिपब्लिक टीवी की खबर, झूठी खबरों की किसी भी शीर्ष खबरों की सूची में अपनी जगह बना लेगी। इस झूठी खबर का जन्म कई हिन्दुत्व ट्विटर हैंडल और झूठी खबरों की कुख्यात वेबसाइट पोस्टकार्ड न्यूज पर हुआ। रिपब्लिक टीवी ने जगह पर तथ्य जांच करने वाली टीम भेजी जिसने इमाम बुखारी के घर के बाहर जासूसी करते हुए कारों की गिनती की और उनके मॉडल दर्ज किये लेकिन यह टीम इस खबर की सच्चाई पता लगाना ही भूल गई। टीम मस्जिद के आसपास रहने वाले लोगों से यह पूछना भी भूल गई कि क्या मस्जिद में आमतौर पर रात के समय रोशनी होती है और रात में किस समय लाइटें बुझाई जाती है। मजेदार बात यह रही कि रिपोर्टर ने गेट पर लाइट की रोशनी में दिख रहे एक बोर्ड को तो दिखाया लेकिन उसे यह समझ नहीं आया कि जब बिजली काट दी गई है तो बोर्ड पर रोशनी क्यों है। बीएसईएस द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को नजंरदाज करते हुए इस तरह की तथाकथित जांच-पड़ताल के आधार पर, रिपब्लिक टीवी ने यह खबर दी कि चार करोड़ से अधिक का बिल न जमा करने की वजह से बीएसईएस ने जामा मस्जिद को झटका दिया। इस झूठी खबर का पर्दाफाश ऑल्ट न्यूज ने अपने लेख में किया जिसके बाद चैनल ने बिना कोई माफी मांगे या स्‍पष्‍टीकरण दिये बगैर चुपचाप अपना ट्वीट और वीडियो डिलीट कर दिया।

2. आज तकः सऊदी अरब में यह फतवा कि अगर पुरुषों को भूख लगे तो वे अपनी पत्नियों को खा सकते हैं

आज तक चैनल यह श्रेय पाने का पूरी तरह हकदार है कि उसने ऐसी खबर पर यकीन किया जो चीख-चीखकर अपने फर्जी खबर होने का इशारा कर रही थी। इंडिया टूडे के हिन्दी चैनल द्वारा की गई इस ‘‘स्टोरी‘‘ का जन्म मोरक्को के किसी ब्लॉगर द्वारा लिखे गये एक व्यंग्यात्मक कॉलम में हुआ था जिसकी सच्चाई स्वयं इंडिया टूडे की वेबसाइट, DailyO द्वारा 2015 में सामने ला दी गई थी। इस तथाकथित एक्सक्लूजिव खबर के बारे में जितनी कम बातें की जाएं, उतना बेहतर रहेगा लेकिन हम यह सोचने में मजबूर हो सकते हैं कि इस तरह की स्वाभाविक रूप से झूठी खबरें फैलाने के पीछे आज तक का क्या मकसद रहा होगा। आप आल्ट न्यूज के इस लेख में इस झूठी खबर के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।

3.  टाइम्स नाउः केरल में धर्मांतरण का रेट कार्ड सामने आया

टाइम्स नाउ के एंकरों ने सात साल पुरानी फोटोशॉप की गई फोटो पर अपना गला फाड़ा, यह बात सचमुच मजेदार रही। इस मामले में व्हाट्सऐप पत्रकारिता अपने असली रंग में नजर आई। राहुल श्रीशिवशंकर ने एक फोटोशॉप की गई फोटो जो कई वर्षों से व्हाट्सऐप पर घूमने के साथ-साथ वर्षों पहले झूठी भी साबित हो चुकी थी, पर बोलते हुए कहा, ‘‘हिन्दुओं को धर्मांतरित करने के लिए इस रेट कार्ड में बारीक अक्षरों में छपी इस तरह की खतरनाक बात मैं आपको बताना चाहता हूं। हिन्दू ब्राह्मण लड़की – पांच लाख रुपये, सिख पंजाबी लड़की, गुजराती ब्राह्मण के लिए सात लाख रुपये वगैरह, हिन्दू क्षत्रिय लड़की – साढ़े चार लाख, हिन्दू ओबीसी/एससी/एसटी – दो लाख रुपये, बौद्ध लड़की – डेढ़ लाख रुपये, जैन लड़की 3 लाख रुपये, खलीफा ने आपकी आस्था के लिए कीमत तय की है। (अनुवाद)‘‘ इस फर्जी रेट कार्ड के बारे में यहां पढ़ें जो नेशनल टीवी पर प्राइम टाइम शो का विषय बना।

टाइम्स नाउ ने केरल के कासरगोड को भारत का गाजा बताया। ‘‘आईएसआईएस गतिविधि के केंद्र में‘‘ जैसे वाक्यों के साथ हम इस स्टोरी के पीछे का एजेंडा जानने का काम पाठकों पर छोड़ते हैं।

4. टाइम्स ऑफ इंडियाः सीपीएम के साइबर सिपाहियों ने मूडी द्वारा भारत की रेटिंग बेहतर किए जाने के बाद आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर टॉम मूडी को ट्रोल किया

केरल का मजाक उड़ाना एजेंडे में सबसे ऊपर स्थान पाता रहा। सर्वोच्च साक्षरता वाले राज्य में ट्रोल्स ने क्रिकेटर मूडी को अनजाने में रेटिंग एजेंसी मूडी समझ लिया? क्या वाकई ऐसा हुआ टाइम्स ऑफ इंडिया? सावधानी से स्टोरी और इसके स्रोत पढ़ने के बाद आपको इसके सच होने की संभावना का संकेत मिल जाएगा लेकिन ऐसा करने के बजाय, टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने कोच्चि संस्करण के मुखपृष्ठ पर यह खबर छापी। इस दौरान टॉम मूडी की फेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी करने के लिए अपने को झूठमूठ में कॉमरेड बताने वाले आरएसएस समर्थकों ने टाइम्स ऑफ इंडिया का लिंक देते हुए सीपीएम का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर सच्चाई सामने आने पर, यह साफ था कि टाइम्स ऑफ इंडिया मजाक का पात्र बन गया। कहने की जरूरत नहीं है कि सोशल मीडिया पर हंगामा मचने के बाद बावजूद समाचारपत्र ने अपनी गलती स्वीकार नहीं की।

5. जी न्यूज, एबीपीः यूएई में दाउद इब्राहिम की 15,000 करोड़ कीमत की संपत्ति जब्त की गई

भारतीय मीडिया को दाउद से ज्यादा दिलचस्प कोई और नहीं लगता है चाहे इससे जुड़ी खबर में कोई दम न हो। राज्य में चुनावों के मौसम में जी न्यूज ने एक बार फिर से डी शब्द उछाल दिया। लेकिन जरा ठहरिए इस खबर का स्रोत यूएई के अधिकारी या विदेश मामलों का मंत्रालय या फिर भारतीय वाणिज्य दूतावास भी नहीं था बल्कि ये स्रोत जी न्यूज के अपने ‘‘स्रोत‘‘ थे। इसे बीजेपी द्वारा एक बड़ी कूटनीतिक कामयाबी के तौर पर पेश करते हुए ट्वीट किया गया जिसमें किसी सरकारी स्रोत नहीं बल्कि मीडिया रिपोर्ट को स्रोत बताया गया। जल्दी ही यह खबर पूरे मीडिया में फैल गई। पांच दिनों के भीतर, संदेह पैदा होने लगे और नई स्टोरी के शब्द बदलने लगे ‘‘जब्त करने की योजना है‘‘ और ‘‘कार्रवाई शुरू की।‘‘ आखिरकार यह समाचार आने के दो सप्ताह बाद, यूएई के अधिकारियों ने आधिकारिक रूप से इस खबर को नकार दिया

6. रिपब्लिक टीवी, सीएनएन न्यूज18: अरुंधति राय का बयान

 

‘‘कश्मीर में 70 लाख भारतीय सैनिक आजादी गैंग को हरा नहीं सकते हैं‘‘ (अनुवाद)  यह बयान अरुंधति राय के हवाले से दिया गया था। एक एक ऐसी यात्रा के दौरान, जो दरअसल कभी हुई ही नहीं, एक अस्तित्वहीन इंटरव्यू में एक झूठा बयान दिया गया जो रिपब्लिक टीवी और सीएनएन न्यूज18 द्वारा राय पर हमला बोलते हुए प्राइम टाइम बहस आयोजित करने के लिए पर्याप्त था। यह झूठी खबर किसी अनजानी पाकिस्तानी वेबसाइट से पैदा हुई और पूरी निष्ठा के साथ इसे पोस्टकार्ड न्यूज और अन्य झूठी खबरें फैलाने वाली वेबसाइटों द्वारा प्रचारित किया गया। इसके बार बीजेपी के सांसद परेश रावल ने राय पर जुबानी हमला बोला और इस विषया पर प्राइम टाइम की बहसें हुईं।

अर्णव गोस्वामी ने राय को ‘‘सिर्फ एक किताब के लिए पुरस्कार जीतने वाली लेखिका‘‘ बताया और लुटियंस मीडिया और स्यूडो लिबरल्स के अपने पसंदीदा विषय पर चर्चा करने लगेः ‘‘उन्होंने हमारी सेना पर उंगली उठाई, उन सबने मिलकर खास तौर पर लुटियंस मीडिया और झूठी स्यूडो-लिबरल्स भीड़ ने मिलकर हमारी सेना को अपशब्द कहे, और तालमेल के साथ और पूर्वनियोजित तरीके से कहे, सिर्फ एक किताब के लिए पुरस्कार जीतने वाली अरुंधति राय भारतीय सेना पर जुबानी हमला बोलने के लिए एक बार फिर से अप्रत्याशित तरीके से बाहर निकल आईं।‘‘ सीएनएन न्यूज18 के भुपेंद्र चौबे यह जानना चाहते थे कि क्या अरुंधति राय को ‘‘मानव कवच के तौर पर बांधने‘‘ के लिए कहने वाले परेश रावल सही कह रहे थे। बाद में चौबे ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया।

द वायर द्वारा की गई जांच-पड़ताल से इस झूठ का सच सामने आया जिसे न्यूज चैनलों ने हवा दी थी और न्यूजलॉन्ड्री के इस लेख से इसे विस्‍तार दिया। राय के झूठे उद्धरण पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यूजलॉन्ड्री ने एक ऑप-एड फिर से प्रकाशित किया और अपनी संपादकीय चूक के लिए माफी मांगते हुए इस लेख को वापस लिया। झूठी खबर के आधार पर अरुंधति राय पर हमला बोलने वाले रिपब्लिक टीवी या सीएनएन न्यूज18 की ओर से कोई खबर वापस नहीं ली गई या कोई माफी नहीं मांगी गई।

7. रिपब्लिक, जी न्यूज, टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनॉमिक टाइम्स, फायनेंशियल एक्सप्रेस: राष्ट्रपति कोविंद के एक घंटे में 30 लाख फॉलोअर बने

 

इस खबर को पढ़कर आप वाकई हैरान होंगे कि कोई कहानी कितनी अजीबोगरीब होनी चाहिए ताकि भारतीय मीडिया इसे झूठी खबर मान सके। बिना यह सोचे कि क्या वाकई ऐसा संभव है, भारतीय मीडिया का एक हिस्सा इस बात से अभिभूत हो गया कि एक घंटे में राष्ट्रपति कोविंद के तीस लाख फॉलोअर बन गए।

असल में, राष्ट्रपति कोविंद के साथ तो केवल राष्ट्रपति मुखर्जी के फॉलोअर अपने-आप जुड़े थे। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और विभिन्न मंत्रियों के ट्विटर एकाउंट को डिजिटल संपत्ति माना जाता है जो सरकार से संबंधित होती है। जब कोई पदासीन व्यक्ति बदलता है तो ट्विटर की स्ट्रेटेजी के अनुसार डिजिटल ट्रांजीशन होता है ताकि निरंतरता बनी रहे और पिछले व्यक्ति का डिजिटल इतिहास संरक्षित रहे। राष्ट्रपति मुखर्जी के सभी ट्वीट @POI13 के तहत आर्काइव किए गए थे। नया अकाउंट @RashtrapatiBhvn शून्य ट्वीट और पिछले अकाउंट के सभी फॉलोअर के साथ शुरू हुआ। यह भारतीय मीडिया की भेड़चाल मानसिकता का शानदार उदाहरण है जिसमें सबसे पहले खबर देने की भागमभागी में बुनियादी तथ्य जांच करने का कोई स्थान नहीं होता है। https://www.altnews.in/president-kovind-gains-3-million-new-followers-hour-get-real-indian-media/

8. आज तक, इंडिया टूडे, जी न्यूज, एबीवी न्यूज और इंडिया टीवीः सैनिकों का सिर काटने का तत्काल बदला लेते हुए भारतीय सेना ने किरपान और पिम्पल की पाकिस्तानी चौकियों को उड़ाया

1 मई को, जैसे ही नियंत्रण रेखा के पास भारत के दो सुरक्षा कर्मियों की हत्या और शव बिगाड़ने की खबर आई, कई समाचार संस्थानों ने भारतीय सेना द्वारा जवाबी कार्रवाई करने की खबर चलानी शुरू कर दी। सबसे पहले आज तक ने यह समाचार दिखाया जिसके बाद आज तक के सहयोची चैनल इंडिया टूडे तथा जी न्यूज, एबीवी न्यूज और इंडिया टीवी ने भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई के बारे में विस्तार से खबरें दिखानी शुरू कर दीं।

बाद में पता चला कि किरपान वास्तव में भारतीय चौकी थीे और भारतीय सेना द्वारा तत्काल जवाबी कार्रवाई करने की खबर झूठी थी। सेना से कोई पुष्टि प्राप्त किये बगैर टीवी चैनल अतिउत्साह में आ गए। सेना के प्रवक्ता ने हिन्दुस्तान टाइम्स से पुष्टि की, ‘‘सोमवार रात को हमारी ओर से केजी सेक्टर में किसी भी प्रकार की बदले की कार्रवाई नहीं की गई। वे (टीवी चैनल) हमसे कुछ भी पूछे बगैर शोर मचा रहे हैं। हम जवाबी कार्रवाई करेंगे और जब हम करेंगे तो आधिकारिक बयान देंगे। (अनुवाद)‘‘ आप इस छाती पीटने वाली झूठी खबर की सच्चाई के बारे में अधिक जानकारी यहां पढ़ सकते हैं।

9. रिपब्लिक टीवी, टाइम्स नाउः एक्सक्लूसिव! चीनी दल के साथ रॉबर्ड वाड्रा क्या कर रहे थे

हे भगवान! चीनी दल के साथ रॉबर्ट वॉड्रा की फोटो (अनुवाद)। हैशटैग और प्राइमटाइम शो चलाने के लिए रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ दोनों, रॉबर्ट वॉड्रा की एक फोटो देखकर अच्छे-खासे उत्साहित हो गए। इस तरह की बचकाना गलतियों से बचने के लिए ऑल्ट न्यूज को टाइम्स नाउ और रिपब्लिक टीवी दोनों के लिए एक ट्यूटोरियल वीडियो बनाना पड़ा। यह फोटो एक चीनी फूड फेस्टिवल की फोटो थी जिसमें भारत के (तत्कालीन) रेल मंत्री सुरेश प्रभु, सीपीएम के सीताराम येचुरी, जेडीयू के केसी त्याग और बीजेपी के अन्य नेता जैसे तरुण गोयल और उदित राज शामिल हुए थे। गूगल पर तुरंत सर्च करके ये दोनों चैनल शर्मिंदगी उठाने से बच सकते थे हालांकि हमें संदेह है कि वे इसे न तो शर्म की बात मानते हैं और न ही उनकी सच्चाई में कोई दिलचस्पी है।

10. जी न्यूजः नास्त्रेदमस ने सर्वोच्च नेता नरेंदस के उदय के बारे में भविष्यवाणी की थी

“Indus supremus gudjaratus status natus est

Patrus Theus boutiqus, studium bonus est

Namusprimum narendus est”

“The supreme leader of India will be born in the state of Gujarat

His father will sell tea in a shop

His first name will be narendus (Narendra)”

‘‘भारत के सर्वोच्च नेता गुजरात राज्य में जन्म लेंगे

उनके पिता दुकान में चाय बेचेंगे

उनका पहला नाम नरेंदस (नरेंद्र) होगा‘‘ (अनुवाद)

हां, फ्रांस्वा गोटियर ने इस कहानी को बनाया कि किस तरह एक पुराने लावारिस संदूक में उन्हें नास्त्रेदमस के उद्धरणों में सर्वोच्च नेता, नरेंदस के बारे में पता चला। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित, नास्त्रेदमस और भारत नामक एक ब्लॉग में गोटियर ने इन मजाकिया अंशों को साझा किया था। गोटियर को यह पुराना ट्रंक लंबे समय से बार-बार मिलता रहा है। यहां तक कि 1999 में उन्होंने बताया था कि 400 साल पहले आरएसएस की स्थापना असल में नास्त्रेदमस ने की थी।

हालांकि नरेंदस, वाजपायम, अडवानम और मुरलम जोशम के बारे में पढ़कर सभी इस मजाक का आनंद ले रहे थे लेकिन जी न्यूज ने इसे एक पूरी तरह विश्वसनीय कहानी समझा, जो उसके दर्शकों को दिखाए जाने के काबिल खबर है। इन मजाकिया उद्धरणों के बारे में अधिक यहां पढ़ें।

11. द हिन्दूः मरती हुई महिला का यौन-शोषण किया गया, वीडियो में दिखा

झूठी खबर का एक वाकई हताश करने वाला आलेख द हिन्दू द्वारा 8 सेकंड का फैसला था जोकि भगदड़ की शिकार महिला का अजनबी पुरुष द्वारा यौन-शोषण किए जाने के बारे में था। द हिन्दू का हवाला देते हुए कई समाचार संस्थानों ने इसे प्रकाशित किया और यह अंतर्राष्ट्रीय प्रेस में भी छप गया। पूरा वीडियो सामने आने पर इस यौन-शोषण के बारे में संदेह उठने लगे। वीडियो से यह पता नहीं लगता है कि यह यौन-उत्पीड़न का मामला था। प्रत्यक्षदर्शियों और पुलिस ने भी इस कहानी को सिरे से नकार दिया।

हालांकि द हिन्दू ने इस कहानी पर माफी मांगकर इसे वापस लिया लेकिन नुकसान हो चुका था। एक निर्दोष पुरुष छेड़छाड़ करने वाले आदमी के तौर पर चित्रित कर दिया गया था।

12. इंडिया टूडेः परेश मेस्ता मामला

“उसके चेहरे पर उबलता तेल डाला गया। नपुंसक किया गया।

सिर फाड़ दिया गया। झील में फेंक दिया।

क्या 21 वर्षीय परेश मेस्ता की हत्या से भारत आहत होगा?‘‘ (अनुवाद)

इंडिया टूडे के इस वर्णनात्मक ट्वीट जो बाद में झूठा साबित हुआ, झूठी खबर के खतरे को फिर से हमारे सामने लाकर खड़ा कर दिया। इंडिया टूडे के इस ट्वीट को उन खबरों के सत्यापन के तौर पर देखा गया था जो केवल बीजेपी एमएलए के दावे पर आधारित था।

फोरेंसिक रिपोर्ट ने इन दावों को झूठा साबित किया लेकिन तब तक अफवाह फैलने की वजह से सांप्रदायिक हिंसा की चिंगारी भड़क चुकी थी। पुलिस ने कहा, ‘‘प्रेस नोट्स, सोशल मीडिया और खास तौर पर व्हाट्सऐप के माध्यम से व्यक्तिगत फायदे के लिए झूठीे खबरों और अफवाहों को फैलाकर समाज में विभाजन पैदा करने की जानबूझकर कोशिश की गई।‘‘

इंडिया टूडे के संपादक, शिव अरूर ने इस लेख में अपनी स्थिति स्पष्ट की। याहू इंडिया के भूतपूर्व मैनेजिंग एडिटर, प्रेम पाणिक्कर ने उनकी आलोचना करते हुए लिखा कि किस तरह इंडिया टूडे की स्टोरी ने एक बेबुनियाद आरोप को हवा देकर इसे जिंदा किया जिसकी वजह से सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ।

इस साल चर्चा में रहने वाली दर्जनों खबरों में से शीर्ष कहानियों को चुनना मुश्किल काम था जिन्हें भारत के मुख्यधारा के मीडिया ने पूरी निष्ठा के साथ प्रचारित किया। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जैसे जब टाइम्स ऑफ इंडिया ने जेएनयू के गायब छात्र को आईएसआईएस का समर्थक घोषित किया या जब टाइम्स नाउ ने केरल स्टूडेंट यूनियन की रैली के वीडियो को बीजेपी के विरोध प्रदर्शन के तौर पर दिखाया या जब टाइम्स नाउ ने तोड़-मरोड़कर तथ्य पेश करते हुए‘#NotInMyName’ विरोध प्रदर्शन को बदनाम करने की कोशिश की या जब पंजाब केसरी ने घोषणा की कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का बजट राष्ट्रपति की तुलना में छह गुना अधिक था या जब टाइम्स नाउ ने पाकिस्तानी वीजा के लिए यूपीए पर हमला बोला जबकि इस तथ्य को नजरंदाज किया कि सबसे अधिक संख्या में वीजा बीजेपी शासन के दौरान जारी किए गए थे…।