चुनाव आयोग EVM को लेकर क्या और क्यों छिपा रहे हैं ! क्या आयोग ने झूठ बोला है ?



झूठ झूठ और सिर्फ झूठ! जी हां,हम बात कर रहे हैं केंद्रीय चुनाव आयोग की. EVM को लेकर चुनाव आयोग ने जितने झूठ अब तक बोले हैं उसे देखकर लगता है कि चुनाव में निष्पक्षता और पारदर्शिता की बात करना अब दिवास्वप्न देखने के बराबर है.

पहला झूठ

चुनाव आयोग लगातार कहता रहा है कि चुनावी प्रक्रिया में किसी प्राइवेट फर्म को शामिल नहीं किया गया. लेकिन कल क्विंट ने इस झूठ का भी पर्दाफाश किया है. द क्विंट के पास 2017 के एक RTI का जवाब मौजूद है. इसके मुताबिक, EVM और VVPAT बनाने वाली ECIL कंपनी ने बताया है कि उन्होंने M/s T&M सर्विसेज कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड नाम की मुंबई की एक निजी कम्पनी के इंजीनियरों की सेवाएं “कंसल्टेंट” यानी सलाहकार के तौर पर ली थीं.
इतना ही नहीं चुनाव आयोग ने 2017 में खुद अपने पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को गुमराह किया क्योंकि क्विंट के सवाल पर कुरैशी जी की प्रतिक्रिया कुछ यूं थी “किसी ने मुझसे पूछा था कि क्या चुनाव आयोग EVMs की FLC का काम बाहरी कंपनियों को दे रहा है? इस पर सम्बंधित चुनाव अधिकारी ने मुझे भरोसा दिया था कि किसी बाहरी कंपनी को काम नहीं दिया गया है. उसने कहा कि सभी मशीनों की जांच BEL/ECIL के इनहाउस इंजीनियरों ने की थी, और वो भी अनियमित तरीके से.”जानकारों का तो यहाँ तक मानना है कि 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान दो अलग-अलग EVM बनाने वाली कम्पनियों ECIL और BEL ने लगभग 2,200 इंजीनियरों को काम पर लगाया था जिनका काम बेहद संवेदनशील था, जिनमें EVMs और VVPATs की जांच और रख-रखाव भी शामिल थे. उनकी सेवाएं First Level Checking (FLC) से लेकर वोटों की गिनती खत्म होने तक ली गई थीं.

दूसरा झूठ

यह झूठ इतना बड़ा है कि EVM की विश्वसनीयता पर ही बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाता है. भारत मे जो मशीन इस्तेमाल की जा रही हैं वह DRE यानी डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन है ,जो कि वोट को डायरेक्ट इलेक्ट्रॉनिक मेमोरी में सेव कर लेती है.जिस चिप में यह मेमोरी सेव होती है वह चिप भारत मे नही बनती.दरअसल हमारे पास देश में सेमी-कंडक्टर माइक्रोचिप्स बनाने की क्षमता ही नहीं है विदेशी कम्पनी न सिर्फ वह चिप बनाती है बल्कि उस पर सॉफ्टवेयर प्रोग्राम राईट भी करती है. उसके बाद इस तरह से उसकी सीलिंग की जाती है कि उसे कोई पढ़ न सके रिराइट न कर सके लेकिन यह बात कि ईवीएम की माइक्रोचिप वन टाइम प्रोग्रामेबल है.

यह बात चुनाव आयोग केवल उस चिप निर्माता कंपनी के भरोसे ही कह रहा है, उसके स्वयं के पास उसे जांचने का कोई तरीका नही है. अब सबसे बड़ी बात समझिए.चुनाव के पहले एक शख्स वेंकटेश नायक ने एक RTI डाली जिसमे पता चला कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा बनाई गईं ईवीएम और वीवीपैट में प्रयुक्त माइक्रो कंट्रोलर चिप का निर्माण अमेरिका स्थित अरबों डॉलर की कंपनी एनएक्सपी ने किया है. इन्हीं ईवीएम और वीवीपैट का प्रयोग इन चुनावों में हुआ है. माइक्रो कंट्रोलर चिप के बारे में चुनाव आयोग का कहना है कि ये वन टाइम प्रोग्रामेबल है, जबकि इसे बनाने वाली कंपनी की वेबसाइट पर लिखा है कि इसमें तीन तरह की मेमोरी एसआरएम, फ्लैश और ईईपीआरओएम का प्रयोग होता है.जानकार बता रहे हैं कि जिन माइक्रो कंट्रोलर चिप में फ्लैश मेमोरी का प्रयोग होता है, उन्हें वन टाइम प्रोग्रामेबल नहीं कहा जाता है.

यानी उन पर दूसरी बार प्रोग्राम रिराइट किया जा सकता है. यह इतनी बड़ी बात है कि चुनाव आयोग जो हर स्तर पर यह कहता आया है कि EVM में छेड़छाड़ करना सम्भव ही नही है यह महल पूरी तरह से भरभराकर गिर जाता हैतीसरा झूठ.चुनाव आयोग चुनाव के पहले ही कहता आया है कि EVM ओर VVPAT की पर्ची के मिलान 100 प्रतिशत मिलते है आयोग का कहना था कि कुल 10.35 लाख ईवीएम और वीवीपैट मशीनों में से 479 वीवीपैट पर्चियों और ईवीएम का मिलान करने पर नतीजे सही आएंगे. आयोग ने ये आंकड़ा इंडियन स्टेटिकल इंस्टीट्यूट (आईएसआई) के अध्ययन के आधार पर देने का दावा किया था.लेकिन एक आरटीआई से पता चला है कि ये अध्ययन आईएसआई को बताए बिना ही कुछ लोगों की टीम बनाकर किया गया हालांकि कोर्ट ने यह समझा कि अध्ययन आईएसआई ने ही किया है.नतीजा यह हुआ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में EC के आंकड़े कहते हैं कि तमिलनाडु की कांचीपुरम सीट पर 12,14,086 वोट पड़े. लेकिन जब सभी EVMs की गिनती हुई तो 12,32,417 वोट निकले.

यानी जितने वोट पड़े, गिनती में उससे 18,331 वोट ज्यादा निकले. कैसे? निर्वाचन आयोग के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है सिर्फ कांची की ही बात नही है तमिलनाडु की ही दूसरी सीट धर्मपुरी पर तथा पेरेमबदुर में भी यही हाल है, उत्तर प्रदेश की मथुरा सीट का है.2019 में पहले चार चरण में 373 सीटों के लिए वोट पड़े. वोटों की गिनती के बाद इनमें 220 से ज्यादा सीटों पर मतदान से ज्यादा वोट काउंट दर्ज किये गए. बाकी सीटों पर वोटों की संख्या में कमी पाई गई.जब इस बात का जवाब इलेक्शन कमीशन से मांगा गया तो उसने सारे डाटा ही अपनी वेबसाइट से हटा लिए.इसके अलावा भी ऐसे बहुत से तथ्य है जो साबित करते हैं कि चुनाव आयोग का निष्पक्ष चुनाव कराने के दावे पूरी तरह से झूठे हैसबसे बड़ी मूर्खता तो हमारे विपक्षी दल करते है जो एक स्वर में यह नही बोलते कि जब तक बैलेट की व्यवस्था नही की जाएगी तब तक वह चुनाव का बहिष्कार करेंगे


गिरीश मालवीय स्वतंत्र विश्लेषक हैं . उनके फेसबुक दीवार से साभार