विवेक तिवारी के परिजनों को चार दिन में 40 लाख पर जीतेंद्र यादव को आठ महीने में कुछ भी नहीं!



 

लखनऊ में यूपी पुलिस के सिपाहियों के हाथो क़त्ल हुए विवेक तिवारी के परिजनों को ढाढ़स बँधाने और मदद करने में सरकार ने जैसी तत्परता दिखाई वह क़ाबिले तारीफ़ है। परिवार को चालीस लाख रुपये, रहने को मकान और पत्नी को नौकरी देने में सिर्फ़ चार दिन लगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने परिवार को अपने दफ्तर बुलाकर मुलाक़ात की तो कई मंत्री विवेक तिवारी के घर शोक जताने पहुँचे। विपक्षी दलों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। अखिलेश यादव घर जाकर शोकाकुल परिजनों से मिले तो मायावती ने आनन-फानन में प्रेस कान्फ्रेंस करके बताया कि योगी राज में ब्राह्मण सुरक्षित नहीं हैं।

लेकिन राजनीतिक दलो की इस तत्परता पर तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं। यूपी में दर्जनों परिवार ऐसे हैं जो अपने बच्चों के फ़र्जी मुठभेड़ में मारे जाने की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन कोई सुनने को भी तैयार नहीं है। जिस समय लखनऊ में विवेक तिवारी की मौत पर हाहाकर था, दिल्ली में नौशाद और मुस्तकीम के परिजन प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में ज़ार-जा़र रोते हुए गुहार लगा रहे थे। लेकिन किसी ने भी नोटिस लेने लायक़ नहीं समझा।

इस बीच सोशल मीडिया पर जिम ट्रेनर जीतेंद्र यादव का मामला भी उठ गया है। बीती 3 फ़रवरी की रात जीतेंद्र को नोएडा में सेक्टर 122 के चौकी इंचार्ज दिनेश दर्शन शर्मा ने गोली मार दी थी। जीतेंद्र स्कॉर्पियो से अपने दोस्तों के साथ गाजियाबाद से बहन की सगाई से लौट रहा था। यह सीधे-सीधे फ़ेक एन्काउंटर का मसला था। जीतेंद्र के दोस्तों ने आरोप लगाया था कि कि विजय दर्शन शर्मा ने धमकी दी थी कि ‘प्रमोशन का सीज़न चल रहा है और आउट आफ प्रमोशन के लिए उन्हें एक-दो को टपकाना है।’

जीतेंद्र के गले में गोली लगी थी। बचना मुश्किल लग रहा था। काफ़ी दिनों तक वह अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहा था। किसी तरह जान तो बच गई लेकिन है वह अभी भी अस्पताल में। इस बीच न उसकी सुध लेने अखिलेश यादव पहुँचे और न मायावती। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए तो जैसे यह कोई मामला ही नहीं था। जबकि जीतेंद्र का परिवार किन तक़लीफ़ों से गुज़र रहा होगा, इसे समझना मुश्किल नहीं है।

वैसे, गोली चलाने की कोई वजह प्रशासन नहीं बता पाया। दारोगा गिरफ़्तार कर लिया गया। चार पुलिसवाले सस्पेंड हुए। लेकिन फिर भी जीतेंद्र को कोई सरकारी मदद नहीं पहुँची।

तो क्या यह ‘तिवारी’ और ‘यादव’ होने का फ़र्क है ?

इंडिया टुडे के पूर्व संपादक और सामाजिक प्रश्नों पर तीखी बहस चलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इस मुद्दे को जीतेंद्र की पिछड़ी जाति से जोड़ा है। ऊपर दिख रही तस्वीर का हवाला देते हुए उन्होंने अपनी फ़ेसबुक वॉल पर लिखा है–

इस तस्वीर में एक बच्चा है. गौर से देखिए. उसकी आंखों में कुछ सवाल हैं!

क्या ओबीसी होना कोई अपराध है? #JusticeForJitendraYadav

बीजेपी की सरकार अगर हिंदुओं की सरकार होती तो सिर्फ तिवारी परिवार का ख्याल न रखती. दरअसल बीजेपी बात हिंदुओं की करती है, लेकिन सरकार ब्राह्मणों के लिए चलाती है.

योगी जी के पुलिस की गोली का निशाना बने जितेंद्र यादव ने पूछा- मुझे सरकार ने मुआवज़ा क्यों नहीं दिया.?

जितेंद्र यादव ने कहा उनके दो बच्चे हैं। बीवी बच्चों के खर्च के साथ-साथ उनके इलाज में हर महीने 70 हजार रुपए खर्च होते हैं जबकि आमदनी का जरिया बंद हो चुका है, ऐसे में आर्थिक तौर पर भी उनके सामने बड़ी चुनौती खड़ी है।

 

क्या दिलीप मंडल के सवालों का कोई जवाब है? वैसे यह सवाल अखिलेश और मायावती की ओर से क्यो ंनहीं आते..कौन रोकता है उन्हें?