देश का बँटवारा करा देगी अल्पसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनाने की कोशिश: रघुराम राजन

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भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और मशहूर अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस के पांचवें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित किया। रघुराम राजन ने इस दौरान अल्पसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनाने की कोशिश को लेकर देश को आगाह किया।

उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनाने का कोई भी प्रयास देश को विभाजित कर देगा और आंतरिक आक्रोश पैदा करेगा। रघुराम राजन ने कहा कि इसके लिए बहुसंख्यक अधिनायकवाद का सामना किया जाना चाहिए।

रघुराम राजन ने श्रीलंका का दिया उदाहरण

.हमारा भविष्य हमारे उदार लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं को मजबूत करने में है, उन्हें कमजोर करने में नहीं। इसके कई कारण हैं जिसकी वजह से हमें बहुसंख्यक अधिनायकवाद का सामना कर उसे हराना चाहिए।

.एक के लिए एक बड़े अल्पसंख्यक वर्ग को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का कोई भी प्रयास देश को विभाजित करेगा और आंतरिक आक्रोश पैदा करेगा। भू-राजनीतिक उथल-पुथल के इस युग में यह हमें कमजोर भी करेगा। हमें विदेशी दखल के प्रति अधिक संवेदनशील बनाएगा।

.भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ने श्रीलंका का उदाहरण देते हुए कहा कि इसका परिणाम देखने के लिए हमें दक्षिण में श्रीलंका की ओर देखना होगा।

.जब एक देश के राजनेता अल्पसंख्यकों पर हमला करके रोजगार पैदा करने में असमर्थता से ध्यान हटाने की कोशिश करते हैं। यह कहीं भी अच्छा नहीं होता है।

.रघुराम राजन ने कहा कि देश में ऐसा माहौल होना चाहिए जिसमें हर व्यक्ति के लिए विकास के अवसर मौजूद हाें।

रघुराम राजन ने कहा कि आज देश में कुछ तबकों के बीच यह भावना है कि लोकतंत्र भारतीय समूह को पीछे ले जा रहा है। भारत को कुछ नियंत्रण और संतुलन के साथ एक मजबूत अधिनायक की जरूरत है। हम इस दिशा में आगे बढ़ते दिख भी रहे हैं। मेरा मानना है कि यह तर्क पूरी तरह गलत है। यह विकास के एक पुराने मॉडल पर आधारित है जो वस्तुओं और पूंजी पर जोर देता है न कि लोगों और विचारों पर।

रघुराम राजन ने विकास के धीमे होने को लेकर भी सरकार को कहीं ना कहीं घेरने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि देश की धीमी वृद्धि में केवल कोरोना को दोष नहीं दिया जा सकता। हमारी अंडरपरफॉर्मेंस महामारी से पहले की है। लगभग एक दशक से या वैश्विक वित्तीय संकट की शुरुआत के बाद से हम उतना अच्छा नहीं कर रहे हैं जितना हम कर सकते थे। यही वजह है कि इस खराब प्रदर्शन से हमारे युवाओं के लिए अच्छे रोजगार सृजित करने में असमर्थता हुई है।

 

 

 

नवजीवन से साभार।


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