पटना: बाढ़ से बजबजाते शहर में फाइव स्टार गांधी समागम? नीतीश कुमार से कुछ सवाल

अभिषेक रंजन सिंह
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महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर पटना में आयोजित सरकारी समागम पर हुए भारी भरकम खर्च पर कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने सवाल खड़े किए हैं। लोहियावादी विचारों के प्रबल समर्थक वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक रंजन सिंह ने फेसबुक पर एक टिप्पणी लिखकर बिहार के मुख्यमंत्री से कुछ वाजिब सवाल पूछे हैं तो जनसत्ता के पूर्व संपादक राहुल देव ने ट्वीट में कुछ सवाल उठाये हैं। नीचे देखें राहुल देव का ट्वीट और उसके बाद पढ़ें अभिषेक रंजन सिंह की टिप्पणीः (संपादक)


पटना में आयोजित ‘चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह’ (अप्रैल 2017) में सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा बतौर उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी उद्घाटन सत्र में उपस्थित थे। वहीं इस बार ‘ज्ञान भवन’ में बापू की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित ‘गाँधी विचार समागम’ में प्रदेश के उप-मुखिया सुशील कुमार मोदी उपस्थित थे।

गत वर्ष ‘चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह’ में भाजपा से जुड़े सांसद व विधायक इसलिए उपस्थित नहीं हुए कि राज्य सरकार ने उन्हें आमंत्रण नहीं दिया था। ऐसा भाजपा से जुड़े नेताओं का कहना था। उस वक़्त बिहार में जदयू, राजद, कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी। अब जदयू-भाजपा की सरकार है, तो राजद का कहना है कि राज्य सरकार ने निमंत्रण नहीं दिया।

अव्वल तो यह कि ‘गांधी विचार समागम’ के दो दिनी कार्यक्रम में कोई कांग्रेसी विधायक-नेता भी इस बार नहीं आया। कांग्रेस के नेताओं के लिए भी गांधी से अधिक न्योता-निमंत्रण का महत्व हो गया।

बिहार की राजनीति में यह कुसंस्कृति दिनों-दिन बढ़ रही है। ऐसे आयोजनों में न्योता-बुलावा की कोई ज़रूरत नहीं होती या होनी चाहिए। लेकिन विवेक शून्य नेता चाहे वे किसी भी दल से सम्बद्ध हों, वे अगर ऐसे आयोजनों में कार्ड मिलने पर जाना पसंद करते हैं तो उनकी बुद्धि के क्या कहने!

वैसे, बिहार की राजनीति में यह कोई नई परंपरा नहीं है। नीतीश कुमार भी इस मामले में काफ़ी रंग दिखा चुके हैं। कहने को ज्ञान, त्याग और मोक्ष की भूमि है बिहार, लेकिन उसका लेशमात्र भी नेताओं के व्यवहार में नहीं दिखता।

इस बार के कार्यक्रम की सुशील कुमार मोदी शोभा बढ़ा रहे थे, जबकि उन्हीं की पार्टी के मंत्री प्रेम कुमार ‘चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह’  में हुए करोड़ों रुपये के ख़र्च पर सवाल उठा चुके हैं। उनका आरोप था कि नीतीश कुमार गाँधी के नाम पर अपनी राजनीति व छवि को चमका रहे हैं। इस बार बापू की 150वीं जयंती पर भाजपा नेतागण ख़ामोश हैं क्योंकि राज्य की सत्ता में उनकी भागीदारी है।

मुमकिन है इस बार राजद, रालोसपा, हम और जाप जैसी पार्टियां नीतीश कुमार पर आरोप लगाएं कि सादगी-सरलता के प्रतीक महात्मा गाँधी की जयंती पर राज्य सरकार ने करोड़ों रुपये आख़िर क्यों फूंके? अगर वे न भी पूछें, फ़िर भी ये प्रश्न तो उत्तर मांगेंगे ही!

विलासिता से कोसों दूर एवं सात्विक जीवन जीने वाले महात्मा गाँधी की डेढ़ सौवीं जयंती पर पटना बुलाए गए गाँधीवादियों को राजधानी के चाणक्य और मौर्य जैसे फोर स्टार होटलों में ठहराने की व्यवस्था क्यों करायी गयी? गाँधी पर बोलने वाले कई गाँधीवादी वक्ताओं के लिए महंगे रूट पर ऊँची क़ीमतों पर हवाई टिकट क्यों बुक कराये गये? सवाल तो यह उठेंगे कि कोई सच्चा गाँधीवादी भला कैसे पांचसितारा होटलों में ठहरने और दोनों तरफ़ के विमान टिकटों पर हामी भर सकता है?

डॉ. लोहिया कहा करते थे- ‘सर्किट हाउस सरकारी धर्मशालाएं हैं, नेताओं-अधिकारियों की तरह ज़रूरतमंद आम जनता को भी इसमें रहने का अधिकार मिलना चाहिए’। लेकिन ‘चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह’  में आमंत्रित एक भी गाँधीवादी वक्ता को उसमें नहीं ठहराया गया! आख़िर क्यों? जबकि, पटना के सर्किट हाउस में क़रीब डेढ़ दर्ज़न वातानुकूलित कमरे हैं और यह चाणक्य फोर स्टार होटल से महज़ चंद फर्लांग की दूरी पर है।

राजधानी पटना, जहां ‘गाँधी विचार समागम’ चल रहा हो, उसी नगर का आधा से ज़्यादा इलाक़ा बदबूदार पानी से भरा हो और वहां के लोगों को खाने-पीने से लेकर बेशुमार तकलीफ़ों का सामना करना पड़ रहा हो? वहाँ तो जनता पूछेगी- क्या यही गाँधी दर्शन है?

आज अगर गाँधी होते,तो ऐसे हालात में क्या वे इस प्रकार के किसी आयोजन का समर्थन करते? डॉ. राममनोहर लोहिया ने ही लोकसभा में देश की जनता की दैनिक कमाई चार आने के बरक्स प्रधानमंत्री के रोज़मर्रा के शाही ख़र्च पर नेहरू को निरुत्तर कर दिया था! फ़र्ज़ करें, अगर आज वे होते तो गाँधी जयंती के बहाने बिहार सरकार द्वारा पानी की तरह बहाये गये पैसे के सवाल पर क्या करते?

वैसे ‘गाँधी विचार समागम’ में उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने क्या भाषण दिया? वे जो भी बोले हों, लेकिन यह उनकी आचरण की भाषा तो कत्तई हो नहीं सकती। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गाँधी-लोहिया प्रेम भी संदिग्ध है! इसकी मिसाल ग्वालियर में 11 फरवरी, 2018 को आयोजित ‘डॉ.राममनोहर लोहिया स्मृति व्याख्यान’ में देखने को मिली थी, जब नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति की उपस्थिति में डॉ. लोहिया से संबंधित एक बड़ा वादा किया था।

एक उच्च शैक्षणिक संस्थान में नीतीश कुमार ने डॉ. लोहिया से जुड़ा यह वादा किया था, जिसमें सैकड़ों छात्र-छात्राओं, अध्यापकों के अलावा ग्वालियर समेत आसपास के अंचलों से आये कई वैचारिक समाजवादी एवं बुद्धिजीवी मौजूद थे। मुख्यमंत्री का यह वादा कोई सड़क, पुल या सामुदायिक भवन बनाने का भी नहीं था और न ही वे किसी इंतिखाबी/चुनावी जलसे को खिताब कर रहे थे। उनका यह वादा उस विचार पुरुष के प्रति था, जिनके नाम पर आज उन्हें सत्ता, शोहरत और यश हासिल है।

उनके लिए खूब तालियां बजीं और अगले दिन अख़बारों व न्यूज़ वेब पोर्टल पर नीतीश कुमार के इस वादे से जुड़ीं ख़बरें प्रमुखता से प्रकाशित हुईं। उन्नीस महीने हो गए, लेकिन चम्बल की धरती पर किए उस वादे का क्या हुआ मुख्यमंत्री जी? स्मरण है भी या नहीं?


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