नहीं रहे हिमालय के लाल सुंदरलाल बहुगुणा

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मशहूर पर्यावरणविद् और चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का आद दोपहर 94 साल की अवस्था में निधन हो गया। वे कोरोना से संक्रमित होकर 8 मई से ऋषिकेश के आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती थे। उन्हें 2009 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था।

उनके शरीर के शांत होने के कुछ देर पहले उनके बेटे और मशहूर पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा ने एक तस्वीर के साथ उनकी स्थिति की जानकारी फ़ेसबुक पर पोस्ट की थी।

गाँधी जी के अनुयायी और पर्यावरण संरक्षण के लिए आजीवन प्रतिबद्ध रहे सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को टिहरी में हुआ था। वे 13 साल की उम्र से ही राजनीति में सक्रिय हो गये थे । टिहरी राजशाही के विरोध में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। आज़ादी के बाद उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों की जगह सामाजिक कामों को अपना लक्ष्य बनाया। उन्होंने टिहरी के आसपास शराब के खिलाफ अभियान चलाया और 1960 के दशक से पर्यावरण सुरक्षा के लिए खुद को समर्पित कर दिया। 1974 का मशहूर चिपको आंदोलन उन्हीं की प्रेरणा से चला था जब ग्रामीण महिलाएं पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उनसे चिपककर खड़ी हो गयी थीं। उनके आग्रह पर प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने पेड़ों की कटान पर 15 साल के लिए रोक लगा दी थी। उन्होंने बाद में टिहरी बाँध के ख़िलाफ़ भी आंदोलन किया और 84 दिनों का अपना प्रसिद्ध अनशन किया।

उनके निधन पर विभिन्न राजनेताओं और दलों ने शोक व्यक्त किया है। अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा ने इस संबंध में शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है। संगठन की ओर से भेजी गयी विज्ञप्ति में कहा गया है कि किसानों और जनांदोलनों ने अपना सच्चा साती खो दिया है। सुंदरलाल बहुगुणा ने युवावस्था में टिहरी राजशाही के खिलाफ चले प्रजामण्डल आंदोलन से जन आंदोलनों में अपनी शिरकत शुरू की। उसके बाद उन्होंने जल, जंगल, जमीन पर जनता के अधिकार की लड़ाई में सात दशक तक सक्रिय भागीदारी की।  चिपको आंदोलन और टिहरी बांध के खिलाफ दशकों तक चले किसान आंदोलनों में उनकी नेतृत्वकारी भूमिका कभी भुलायी नहीं जा सकती। सुंदरलाल बहुगुणा का जाना उत्तराखण्ड और पूरी दुनिया में जन आंदोलनों के लिए एक बड़ी क्षति है। किसानों ने अपना एक सच्चा साथी खो दिया है।

 


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