‘बुलडोज़र न्याय’ लिखना बंद करें, यह ‘बुलडोज़र आतंक’ है-पी. साईनाथ

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मशहूर पत्रकार पी.साईनाथ ने सलाह दी है कि ‘बुलडोज़र न्याय’ जैसे शब्दपद का इस्तेमाल करना बंद कर देना चाहिए। ये बुलडोज़र आतंक है न कि न्याय। ‘न्याय’ शब्द जोड़कर उसे सम्मान मत दीजिए। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में केंद्र की सत्ता कार्पोरेट का पर्याय है ऐसे में लेखकों और पत्रकारों की ज़िम्मेदारी बढ़ गयी है। झूठ को झूठ कहना, कार्पोरेट लूट से लड़ना, तार्किकता को बढ़ावा देना और संविधान को बचाने के लिए लड़ना आज लेखकों और पत्रकारों की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। ख़ासतौर पर देश में बढ़ती असमानता को उजागर करना आज की बड़ी ज़रूरत है।

सोमवार को दिल्ली के ऐवान-ए-ग़ालिब सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा ‘अमृत महोत्सव के दौर में प्रतिरोध’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय परिचर्चा का उद्घाटन करते हुए श्री साईनाथ ने ‘सत्ता को सच बताने’ के पत्रकारीय जुमले को क्लीशे क़रार देते हुए कहा कि आज सत्ता के बारे में सच बताना ज़्यादा ज़रूरी है। सत्ता को सच पता है, वह जो भी कर रही है, जानबूझकर कर रही है। उद्घटान सत्र का विषय था- ‘क्या-क्या तोड़ता है बुलडोज़र।’

उन्होंने कहा कि मौजूदा मीडिया सीधे कॉर्पोरेट के नियंत्रण में है जो आर्थिक और राजनीतिक रूढ़िवाद की शादी की पैदाइश है। यही वजह है कि तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ अंग्रेजी अख़बार में एक भी संपादकीय नहीं छपा और न मीडिया यह बताता है कि मुकेश अंबानी की व्यक्तिगत संपत्ति पंजाब और हरियाणा की सम्मिलित जीएसडीपी से ज़्यादा है। देश का ज्यादातर मीडिया मुकेश अंबानी के हाथ में है और जो नहीं है, वह उनके विज्ञापनों से दबा हुआ है।

हर साल 8 मार्च को दुनिया के ख़रबपतियों लिस्ट प्रकाशिकत करने वाली कॉर्पोरेट जगत की प्रिय फोर्ब्स पत्रिका का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 1991 में भारत में एक भी ‘डॉलर ख़रबपति’ नहीं था। लेकिन लेकिन 2012 में 53 डॉलर खरबपति हुए जो संख्या 2020 में 98 हो गयी है। दिलचस्प बात ये है कि इसके बाद आयी महामारी ने अर्थव्यवस्था को तगड़ी चोट दी लेकिन भारत के डॉलर ख़रबपतियों की संख्या 2021 में 140 और 2022 में 166 हो गयी। अंबानी की संपत्ति इस दौर में 136 फीसदी और अडानी की 436 फीसदी बढ़ी। आज अडानी की निजी संपत्ति 116.3 अरब डॉलर है और मुकेश अंबानी की 113 अरब डालर जो पंजाब और हरियाणा की सम्मिलित जीएसडीपी से ज्यादा है। सवाल है कि देश कौन चला रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में आईटी नहीं नहीं असमानता का क्षेत्र सबसे ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है जो सरकार की नीतियों का नतीजा है। लेकिन आज़ादी के अमृत महोत्सव के नाम पर 110 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं। सरकारी वेबसाइट बताती है कि हर घंटे इससे जुड़े दो इवेंट किये जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि देश एक विकट दौर से गुज़र रहा है जिसने लेखकों की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ा दी है। 2014 से पहले कस्बे और ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों पर हमले होते थे, लेकिन अब इलीट कहे जाने वाले भी सुरक्षित नहीं हैं। दाभोलकर, पनसारे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश जैसे लेखक-पत्रकारों की हत्या इसलिए की गयी क्योंकि वे भारतीय भाषाओं में सच उजागर कर रहे थे और तार्किकता का प्रचार कर रहे थे।

पी.साईनाथ ने कहा कि सत्ता और समाज के बारे में सच बोलना ऐतिहासिक दायित्व है। हर सेक्टर पर कार्पोरेट कंट्रोल है। देश कार्पोरेट स्टेट में बदल रहा है। खेती से जुड़ा काला कानून कार्पोरेट जगत के वकील ने ड्राफ्ट किया था, संसद में इस पर नहीं बहस हुई थी। ये कानून सिर्फ किसान नहीं पूरे समाज को प्रभावित करने वाला था। इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। इस तरह आर्टिकल 32 को खत्म कर दिया गया था जो न्याय पाने का अधिकार देता है। हमें बाबा साहेब अंबेडकर का संविधान सभा में दिया गया अंतिम भाषण याद रखना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता बनी रही तो यह राजनीतिक आज़ादी को खा जायेगी।

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्री की 20 लाख नौकरियाँ ख़त्म कर दी गयीं, इसका सबसे ज़्यादा नुकसान दलित, आदिवासी और गरीब ओबीसी को हुआ। अग्निपथ रिक्रूटमेंट नहीं रिटायरमेंट स्कीम है। सेना का जवान वर्दी में किसान है। यह किसान विरोधी नीति है। पीएम फसल बीमा योजना में 86 फ़ीसदी क्लेम खारिज कर दिये जा रहे हैं। यह हाल का सबसे बड़ा घोटाला है। यह योजना कार्पोरेट को फायदा देने के लिए लायी गयी थी। किसानों के स्पष्ट नुकसान की वजह से अब तक सात राज्य इससे हट चुके हैं जिसमें सबसे पहला गुजरात था।

पी.साईनाथ ने कहा कि आज ‘रिपब्लिक आफ रीज़न’ और ‘रिपब्लिक आफ रेज़’ के बीच संघर्ष हो रहा है। नवउदारवाद ने बुद्धिमत्ता और आत्मा का भी निजीकरण कर दिया है। जो बिका नहीं, वही पब्लिक इंटलेक्चुअल है। फासीवाद का कार्यक्रम है सत्ता पर कब्जा और उसे मज़बूत करना। बाक़ी नीतियाँ बाद की बात है। उन्होंने फ़ासीवाद से मोर्चा लेने व वाले जर्मन नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त की याद करते हुए कहा कि उन्होंन कहा था कि अंधेरे समय में अंधेरे समय के बारे में गीत गाये जायेंगे। पत्रकार और लेखक के रूप में आज हमारा भी यही काम है।


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