कोरोना ने ध्वस्त कर दिया है ‘गुजरात मॉडल’

देवेश त्रिपाठी
ख़बर Published On :


बीते शुक्रवार गुजरात के अहमदाबाद शहर के म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा ने कहा कि मई के अंत तक कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर 8 लाख पहुंच सकती है। दूसरी तरफ़ केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी शुक्रवार को कहा कि हैदराबाद, चेन्नई, सूरत के साथ अहमदाबाद सबसे तेज़ी से उभरता हुआ कोरोना हॉटस्पॉट है और इन शहरों की हालत बेहद गंभीर है। गुजरात में कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है और फ़िलहाल महाराष्ट्र के बाद सबसे ज़्यादा कोरोना मामले गुजरात में ही हैं। गुजरात में संक्रमितों की संख्या 3 हज़ार को पार कर चुकी है और इसमें से लगभग 2 हज़ार मामले तो अकेले अहमदाबाद में दर्ज़ किये गये हैं।

अहमदाबाद के म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा का बयान आने और इस बयान की तस्दीक करते केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के कथन के बाद सवाल उठता है कि क्या सरकार यह कहना चाह रही है कि स्थिति हमारे हाथ से बाहर जा चुकी है? क्या इसका मतलब यह भी नहीं हुआ कि सरकार प्रत्यक्ष रूप से यह कह रही है कि कोरोना संक्रमितों की संख्या लाखों में पहुंचने वाली है और सरकार इसे नियंत्रित नहीं कर सकती? क्या अवाम के बीच इस तरह के बयान पहुंचाकर सरकार जनता को आने वाले वक़्त के लिए मानसिक रूप से तैयार करना चाह रही है, जिससे लोग यह मान लें कि सरकार चाहे कितने भी प्रयास कर ले, यही हमारी नियति है, और इतने लोग तो संक्रमित होंगे ही? याद कीजिये, हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मुंबई में भी संक्रमितों की संख्या 8.5 लाख तक पहुंचने की आशंका व्यक्त की थी।

सत्ताधारी बीजेपी द्वारा जिस गुजरात मॉडल की मिसाल पिछले एक दशक से पूरे देश को दी जाती रही, जिसका पोस्टर बॉय बनाकर गुजरात सीएम नरेंद्र मोदी को विकास-पुरुष की छवि ओढ़ाई गयी, और जिसके सहारे उन्हें प्रधानमंत्री मोदी बनाया गया, उस मॉडल की सच्चाई यही है कि गुजरात अब कोरोना संक्रमितों के मामले में अब दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। अव्वल तो यह हमारे वक़्त का सबसे बड़ा सवाल बन जाना चाहिए था कि क्या प्रधानमंत्री मोदी व गृह मंत्री अमित शाह के गृहराज्य गुजरात के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद में भी कोरोना को लेकर ढिलाई बरती गयी? 

हम पिछले दो-तीन महीनों के बीते दौर पर नज़र डालें तो इन सवालों में सच्चाई नज़र आती है। अहमदाबाद ही वह शहर था जब फरवरी महीने में प्रधानमंत्री मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप के साथ लाखों लोगों की मौजूदगी में रंगारंग आयोजन किया था। तब तक दुनिया में कोरोना को लेकर गंभीर स्थिति पैदा हो चुकी थी। लेकिन, दिशानिर्देश तो छोड़िए, तब तक भारत सरकार की तरफ़ से सार्वजनिक रूप से कोरोना को लेकर देश के सामने स्थिति भी स्पष्ट नहीं की गयी थी। 30 जनवरी को देश में कोरोना का मामला सामने आ चुका था। सरकार का कहना है कि हमने उसके बाद से ही प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। ट्रंप के भारत दौरे के वक़्त अमेरिका भी प्रभावित देशों में शामिल हो चुका था, लेकिन ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं जो बताती है कि डोनाल्ड ट्रंप के साथ डेलिगेशन में आये किसी भी इंसान की स्क्रीनिंग की गयी हो। हां, उस दौरान मोदी सरकार की मुस्तैदी इस बात को लेकर ज़रूर दिखी थी, जब उन्होंने अहमदाबाद एयरपोर्ट से लेकर आयोजन स्थल मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम के रास्ते के दोनों तरफ़ दीवारें खड़ी करवा दी थीं कि कहीं गरीबी या गरीब लोग प्रधानमंत्री मोदी जी के गुजरात मॉडल की बखिया न उधेड़ दें।

अहमदाबाद की कोताही, किस मुस्तैदी की मिसाल है?

कोरोना को लेकर सरकार की मुस्तैदी यूं समझिए कि 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित करते हुए कोरोना को महामारी का दर्जा दिया था और कहा था कि यह दुनिया के सामने खड़ा इस समय का सबसे बड़ा संकट है। मुस्तैदी ही थी कि 13 मार्च को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने डब्ल्यूएचओ के बयान से इत्तेफाक ज़ाहिर नहीं किया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया लगातार भारत की ख़स्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं की ओर इशारा कर रही थी, तमाम जानकार लगातार कह रहे थे कि भारत को जांच में तेज़ी लानी चाहिए। सरकार की मुस्तैदी ही थी कि 19 मार्च तक देश स्वास्थ्य से जुड़ी इक्विपमेंट और अन्य सामग्रियों का निर्यात करता रहा। यह सरकार की मुस्तैदी ही थी कि पूरे गुजरात में 30 मार्च तक मात्र 1321 टेस्ट किये गये थे, और मीडिया ने अहमदाबाद सहित पूरे देश में कोरोना के असली ‘गुनाहगार’ तब्लीग़ी जमात का पर्दाफाश कर दिया था। लॉकडाउन के बाद सरकार की मुस्तैदियों से खुश होकर प्रवासी मज़दूर पैदल ही घरों की ओर निकल गये थे। इसी माह सूरत में अटके मज़दूरों ने तो कई बार प्रोटेस्ट कर लिया। अब जबकि आईसीएमआर के अनुसार, 23 अप्रैल तक गुजरात में 43284 टेस्ट किये जा चुके हैं और लगभग 3 हज़ार संक्रमित हैं, अहमदाबाद में हर 7-8 दिन में मामले दोगुने हो रहे हैं और इस बीच यह भी सामने आ चुका है कि देश के 69 फीसदी कोरोना संक्रमितों में कोविड-19 के लक्षण नहीं पाये गये हैं, तो स्थिति हाथ से बाहर जाती देख सरकार ने अब आशंकाएं व्यक्त करने में मुस्तैदी दिखायी है कि फलां-फलां शहरों में लाखों मामले आ सकते हैं। इतनी मजबूत सरकार किसी क्षण इतनी कमज़ोर दिखायी देगी, देश के किसी 28 इंची सीने वाले इंसान ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा।


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