मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच गाँधी जी का ‘फ़र्ज़ी’ पत्र!

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पंकज चतुर्वेदी

 

“निजी तौर पर मुझे फर्क नहीं पड़ता कि कहाँ मस्जिद या मंदिर है , क्योंकि मैं आस्था की किसी इमारत से नहीं आंकता लेकिन इस पर विमर्श जरुरी है कि क्या इन दिनों गोएबल्स ने “गांधी” को भी अपने झूठ चक्र में घसीट लिया है?

इन दिनों सोशल मिडिया और उसके आधार पर टेलीविजन की “कुत्ता घसीट बहस “ में इस बात को उछला जा रहा है की महत्मा गाँधी ने कहा था – “मन्दिरों को तोड़ कर बनाई गई मस्जिदें गुलामी का प्रतीक हैं.” यह दावा किया जा रहा है की इस तरह का लेख 27 जुलाई 1937 के दिल्ली से प्रकाशित अखबार “सेवा समर्पण” में छपा था . कहा जा रहा है कि इस तर्क का लेख गांधी जी ने रामगोपाल शरद नामक पाठक के उस खत के जवाब में लिखा था जिसमें मुग़ल शासकों द्वारा कुछ मंदिरों को तोड़ कर उस पर मस्जिद बनाने की बात कही गई थी , कहा जा रहा है की गांधी जी ने लिखा था – “ मुग़ल शासकों द्वारा नष्ट किये गए मंदिर गुलामी के सतत प्रतीक हैं , इसी लिए हिन्दू –मुस्लिम दोनों को मिल बैठ कर इन विवादित इमामर्तों का मसला सुलझा लेना चाहिए.” इसका संदर्भ लिखा है –27-7-1937 (नवजीवन )

एक बात और – कोई भी उस अखबार, लेखन की मूल प्रति नहीं दे पा रहा है – नवम्बर 1986 के एक अखबार की कथित क्लिपिंग में यह दावा है.

इन दिनों देश के हर मस्जिद के नीचे मंदिर तलाशने के दावों के बीच यह लेख वे लोग सबसे ज्यादा फैला रहे हैं जिनके लिए गांधी “वध” करने लायक पापी था .
यह सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी के भाषण, साक्षात्कार, लेख , विमर्श और यहाँ तक कि भेजे गए पात्र और टेलिग्राम्स को collected works of Mahatmaa Gandhi (CWMG) सी डब्लू एम् जी के 98 खण्डों में एकत्र किया गया है . इस महा समग्र में कोई पचास हज़ार पृष्ठ हैं .

इस संकलन के खंड 65 में गांधी जी के 15 मार्च 1937 से 31 जुलाई 1937 तक के लेखन व् विचार संकलित हैं इस हिस्से में न तो गांधी जी का मुग़ल और गुलामी की प्रतीक मस्जिदों सम्बन्धी कोई लेख है और न ही राम गोपाल शरद या फिर सेवा समर्पण नामक किसी पत्रिका का उल्लेख . जाहिर है कि गांधी अब गप्प या अफवाह में पिरोये जा रहे हैं और इसे व्हाट्सैप विश्विद्यालय के प्रखर रोज्गारित छात्र हवा दे रहे हैं.

एक बात और, महात्मा गान्धी ने कभी भी मुगल-काल को गुलामी का समय नहीं कहा है. 24 मार्च 1921 को कटक (उड़ीसा) में गांधी जे का यह भाषण गौरतलब है जिसमें उन्होंने कहा था – “ ब्रितानी हुकुमत से पहले का काल गुलामी का काल नहीं था. मुग़ल शःसं में हमें कुछ आज़ाद थी, अकबर के समय महाराणा प्रताप जन्म लेता था और औरंगजेब के समय वीर शिवाजी का उदय होता है, क्या ब्रितान्नी हुकुमत के 150 साल में कोई प्रताप या शिवाजी जन्म ले पाया ?”

सन 1926 इमं गांधी जी को एक पत्र मिला था –“ बनारस (काशी) का मंदिर गवाह है जो कि सदियों से खड़ा ह , यहा तक की भगवान बुद्ध के समय में भी था, जिन्दा पीर, सुलात औलिया कहलाने वाले औरंगजेब के आदेश पर पुराने मंदिर पर मस्जिद खड़ी कर दी गई . क्या यह सब बातें आपके लिए गौण हैं महात्मा जी ?”

इसके जवाब में गांधी जी ने 04 नवम्बर 1926 के “यंग इंडिया” में लिखा – “ यह तथ्य मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं यह एक इंसान की बर्बरता को प्रगट करते हैं लेकिन साथ ही यह मुझे असहिष्णु होने की चेतावनी देते हैं .यह मुझे इस तरह की  असहिष्णुता के बावजूद सहिष्णु बने रहने की सीख देते हैं.”

गांधी जी मंदिर के एक हिस्से पर मस्जिद बनाए जाने के तथ्य को सहिष्णु बने रहने का पाठ बताते हैं, जाहिर है कि महात्मा गान्धी के नाम से जो कथित लेख शाखा , सेना, परिषद् और नोयडा की मुर्गा मंडी के जरिये लोगों के दिमाग में घुसाया जा रहा है , वह फर्जी, कूट रचित और सत्य के परे है. यह धीरे धीरे गांधी को सांप्रदायिक या हिन्दू  (जैसा पाकिस्तान बनाने वाले कहते रहे ) स्थापित करने की कुत्सित साजिश हैं.”

लेखक पंकज चतुर्वेदी की उपरोक्त फेसबुक टिप्पणी पर बनारस निवासी मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता अफलातून देसाई ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी में महात्मा गाँधी का एक प्रवचन पेश किया जो बेहद महत्वपूर्ण है। अफलातून लिखते हैं-

”‘.. कनॉट प्लेस के पास एक मस्जिद में हनुमान जी बिराजते हैं , मेरे लिए वह मात्र एक पत्थर का टुकड़ा है जिसकी आकृति हनुमान जी की तरह है और उस पर सिन्दूर लगा दिया गया है । वे पूजा के लायक नहीं ।पूजा के लिए उनकी प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिए , उन्हें हक से बैठना चाहिए । ऐसे जहां तहां मूर्ति रखना धर्म का अपमान करना है ।उससे मूर्ति भी बिगड़ती है और मस्जिद भी । मस्जिदों की रक्षा के लिए पुलिस का पहरा क्यों होना चाहिये ? सरकार को पुलिस का पहरा क्यों रखना पड़े ? हम उन्हें कह दें कि हम अपनी मूर्तियां खुद उठा लेंगे , मस्जिदों की मरम्मत कर देंगे । हम हिन्दू मूर्तिपूजक हो कर , अपनी मूर्तियों का अपमान करते हैं और अपना धर्म बिगाड़ते हैं ।

‘ इसलिए हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरे जो भी मुझे सुनना चाहते हैं और सिखों को बहुत अदब से कहना चाहूंगा कि सिख अगर गुरु नानक के दिन से सचमुच साफ हो गये , तो हिन्दू अपने आप साफ हो जायेंगे । हम बिगड़ते ही न जायें , हिंदू धर्म को धूल में न मिलायें । अपने धर्म को और देश को हम आज मटियामेट कर रहे हैं । ईश्वर हमें इससे बचा ले ‘। ( मो.क.गांधी,प्रार्थना प्रवचन ,खंड २ , पृ. १४४ – १५० तथा संपूर्ण गांधी वांग्मय , खंड : ९० )