CBI और ED के प्रमुखों का कार्यकाल बढ़ाने को चुनौती देते हुए कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका!

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केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के प्रमुखों का कार्यकाल 5 साल बढ़ाने वाले अध्यादेशों के खिलाफ कांग्रेस गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस संबंध में याचिका दायर करते हुए अध्यादेशों को रद्द करने की मांग की है। याचिका में सुरजेवाला ने अध्यादेश को जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता को नष्ट करने वाला बताया है। बताते चलें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई यह तीसरी याचिका है। इससे पहले तृणमूल कांग्रेस नेता और सांसद महुआ मोइत्रा ने भी याचिका दायर की है। इन दोनों याचिकाओं के अलावा वकील एमएल शर्मा ने भी केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ हैं।

अध्यादेश संबंधित जांच संस्थानों की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा: सुरजेवाला

सुरजेवाला ने 14 नवंबर को कार्मिक मंत्रालय की 15 नवंबर की अधिसूचना के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अध्यादेश, 2021 और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) अध्यादेश, 2021 के खिलाफ याचिका दायर की है। अधिसूचना मौलिक नियमों में संशोधन करती है, जो सरकार को ईडी, सीबीआई प्रमुखों के साथ-साथ रक्षा, गृह और विदेश सचिवों के कार्यकाल का विस्तार करने में सक्षम बनाती है। सुरजेवाला ने दावा किया कि ये अध्यादेश भारत सरकार को ईडी और सीबीआई के निदेशकों के कार्यकाल के लिए एक-एक साल के लिए विस्तार देने का अधिकार देते हैं। सुरजेवाला ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में सरकार पर कई आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि इस तरह का अध्यादेश संबंधित जांच संस्थानों की स्वतंत्रता पर स्पष्ट रूप से प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

एजेंसियों के स्वतंत्र कामकाज के लिए विरोधी: सुरजेवाला

सुरजेवाला ने यह आरोप भी लगाया कि यह कदम अस्थायी रूप से और थोड़ी-थोड़ी अवधि के लिए सेवा विस्तार देने से जांच एजेंसियों पर कार्यपालिका के नियंत्रण की पुष्टि करता है, और उनके स्वतंत्र कामकाज के लिए सीधे विरोधी है। कांग्रेस नेता ने कहा कि सीबीआई और ईडी के डायरेक्टरों का दो साल का एक निश्चित कार्यकाल था, लेकिन अब उन्हें एक-एक साल का विस्तार दिया जा सकता है, जब तक कि उनकी नियुक्ति की शुरुआती तिथि से पांच साल से अधिक न हो। उन्होंने यह भी कहा कि इसका मतलब यह होगा कि हर सेवा विस्तार नियुक्ति करने वाले प्राधिकार के विवेक और शालीनता पर निर्भर करेगा।


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