ऐसी कमेटी का किसान क्या करेंगे, योर ऑनर?

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
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सुप्रीम कोर्ट का सरकार को फटकार लगाने का लहजा भले ही आपको कड़ा लगा हो, आप अगर अदालत द्वारा किसान और सरकार के बीच गतिरोध सुलझाने की कमेटी के लिए सुझाए गए नामों को देखेंगे तो काफी-कुछ साफ दिखने लगेगा। इस कमेटी में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सुझाए गए सभी नाम, पहले से ही कृषि क़ानूनों, खेती को बाज़ार के लिए खोल देने और कारपोरेट समर्थक नीतियों के समर्थक हैं। इनमें से दो नाम, डॉ प्रमोद जोशी और अशोक गुलाटी पहले से ही सरकार और कृषि क़ानूनों के समर्थन में लेख लिखते रहे हैं, तो दो किसान नेता अनिल घणावत और भूपिंदर मान भी सरकार और इन क़ानूनों का समर्थन करते रहे हैं।

आइये कुछ और जानते हैं कमेटी के सदस्यों के बारे में-

1. अशोक गुलाटी

पद्मश्री  अशोक गुलाटी भारत सरकार के कमीशन ऑफ एग्रिकल्चर कॉस्ट्स एंड प्राइसेज़ (सीएसीपी) के पूर्व चेयरमैन हैं। सीएसीपी भारत सरकार की खाद्य आपूर्ति और दाम निर्धारण नीति पर काम करती है। अशोक गुलाटी फिलहाल इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेश्नल इकोनॉमिक पॉलिसी में कृषि क्षेत्र के प्रोफेसर हैं। अशोक गुलाटी को मोदी सरकार ने साल 2015 में पद्म श्री से नवाज़ा था।

प्रोफेसर अशोक गुलाटी कृषि में कॉर्पोरेट क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने की वक़ालत करते रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार इस क्षेत्र में निवेश की ज़रूरतें पूरा नहीं कर सकती। वैसे, वे पंजाब और हरियाणा के किसानों की एमएसपी को लेकर चिंताएं जायज़ बताते हैं लेकिन कहते हैं कि देश के बाकी किसान एमएसपी पर अपना उपज नहीं बेचते हैं। ऐसे में किसान संगठनों को ज़रूरी बदलावों को नहीं रोकना चाहिए। ये ‘बदलाव’ भारतीय कृषि क्षेत्र में लंबे समय से चर्चा का विषय रहे हैं।

2. प्रमोद कुमार जोशी

प्रमोद कुमार जोशी कृषि क्षेत्र में शोध करते रहे हैं। वे मानते हैं कि तीनों कृषि क़ानून किसानों के हित में हैं और इससे किसानों को मुनाफा होगा। प्रमोद जोशी का मानना है कि एमएसपी से परे नई मूल्य नीति पर विचार करने की ज़रूरत है। यह किसानों, उपभोक्ताओं और सरकार के लिए एक जीत होनी चाहिए। जोशी का कहना है कि एमएसपी को घाटे की अवधि के दौरान लागू किया गया था जिसे अब हम पार कर चुके हैं।

उन्होंने हैदराबाद स्थित रिसर्च सेंटर नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च मैनेजमेंट और नेशनल सेंटर फॉर एग्रिकल्चरल इकोनॉमिक्स पॉलिसी रिसर्च में डायरेक्टर के पद पर काम किया है। उन्होंने इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट में साउथ एशिया को-ऑर्डिनेटर के पद पर भी काम किया है। इनके अलावा डॉ जोशी इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ अर्थशास्त्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं।

3. अनिल घणावत

अनिल घणानत शेतकारी संगठन के अध्यक्ष हैं। यह संगठन कृषि क़ानून के समर्थन में हैं। अनिल घणावत कह चुके हैं कि यह कृषि क़ानून ‘किसानों के लिए वित्तीय स्वतंत्रता’ की दिशा में पहला क़दम है। बीते दिनों उन्होंने कहा था कि इस क़ानून के ज़रिये एपीएमसी की शक्तियों को सीमित किया गया है जो एक अच्छा क़दम है। उन्होंने तीनों क़ानून का स्वागत करते हुए कहा है कि कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा और कृषि आधारित उद्यमों को बढ़ावा मिलेगा।


4.भूपिंदर सिंह मान 

भूपिंदर सिंह पूर्व राज्यसभा सांसद हैं और वर्तमान में भारतीय किसान यूनियन के अपने गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे कृषि क्षेत्र को बाज़ार के लिए खोलने के हिमायती रहे हैं और 14 दिसंबर को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से उन्होंने मुलाकात करके कृषि क़ानूनों का समर्थन भी किया था।

यानी, कमेटी के चारों सदस्य नये कृषि कानूनों के पक्ष में है। ऐसे  में सुप्रीम कोर्ट का कमेटी बनाने का फैसला सवालों और विवादों में घिरता नज़र आ रहा है।

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