कई राज्यों में कोयले की किल्लत से बिजली आपूर्ति कम, आठ से दस घंटे की कटौती!

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कोयला आधारित बिजली उत्पादन केंद्रों में कोयले का स्टॉक बहुत कम हो गया है, जिसके कारण देश के कई राज्यों में बिजली उत्पादन संयंत्रों में कोयले की कमी से बिजली संकट बढ़ता जा रहा है। पूरे भारत में लगभग 10 हज़ार मेगावाट बिजली की कमी है। झारखंड और बिहार का बिजली संकट से बुरा हाल है अधिक लागत पर भी बिजली नहीं मिल पा रही है।

बिजली संकट का प्रमुख कारण बिजली उत्पादन संयंत्रों के लिए कोयले की भारी कमी है। झारखंड के बिजली उत्पादन संयंत्रों में भी सीमित कोयला भंडार है। झारखंड में आपूर्ति में कमी के कारण 285 मेगावाट से 430 मेगावाट तक लोड शेडिंग करनी पड़ी। इससे गांवों में दिन में 8 से 10 घंटे तक बिजली गुल रही। वहीं, बिहार में पांच गुना अधिक लागत पर भी बिजली कंपनियां पूरी बिजली नहीं दे पा रही हैं। राज्य सरकार ने नेशनल पावर एक्सचेंज से बढ़ी हुई दर पर बिजली खरीदने की पहल की है, लेकिन इसकी उपलब्धता नहीं है।

5 रुपये प्रति यूनिट से बढ़कर दर 20 रुपये प्रति यूनिट…

ऊर्जा विकास निगम के अनुसार, केंद्रीय पूल से राज्यों को मांग से काफी कम बिजली मिल रही है। नेशनल पावर एक्सचेंज में भी बिजली की कमी है। पूरे भारत में करीब 10 हजार मेगावाट बिजली की कमी है। इसके चलते नेशनल पावर एक्सचेंज में बिजली की प्रति यूनिट दर में चौतरफा बढ़ोतरी हुई है। आम तौर पर 5 रुपये प्रति यूनिट मिलता है लेकिन आज बिजली की यह दर 20 रुपये प्रति यूनिट हो गई है। त्योहार के कारण आने वाले दिनों में बिजली संकट और भी बढ़ सकता है।

झारखंड..

  • मांग – लगभग 2200 मेगावाट
  • उपलब्धता-अधिकतम 500 मेगावाट

शेष मांग केंद्रीय पूल के माध्यम से प्रदान की जाने वाली बिजली से आती है। इसे डीवीसी और एनटीपीसी की इकाइयों के माध्यम से बिजली मिलती है। इसका एक बड़ा हिस्सा रेलवे के पास भी जाता है।

बिहार में 5 गुना कीमत पर भी नहीं मिल रही पूरी बिजली..

कोयला संकट से बिजली उत्पादन में आई कमी ने बिहार के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। एनटीपीसी को अभी भी केवल 3 से साढ़े तीन हजार मेगावाट बिजली ही मिल रही है, जबकि बिहार की वर्तमान खपत 5600 मेगावाट प्रतिदिन है।बिहार को कम से कम 400 मेगावाट बिजली बाजार से खरीदनी है। ऐसे में बिजली कंपनी को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है।


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