स्मृति ईरानी की नाक के नीचे आकाशवाणी में फ्रीक्वेंसी घोटाले की तैयारी!

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आकाशवाणी के लोकप्रिय चैनल ऍफ़ ऍम गोल्ड की

17 साल पुरानी फ्रीक्वेंसी अकारण बदलने के फरमान से फिर उठा विवाद! 

 

अवधेश आर्य

 

ऍफ़ ऍम गोल्ड के फ्रीक्वेंसी घोटाले की खबरें एक बार फिर सुनाई दे रही हैं l हालाँकि इसे अभी घोटाला कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि जब तक हो न जाए और प्रमाणित न हो जाए तब तक घोटाला कैसे कहें ! और होने के बाद भी घोटालों का पता चलने में कई बार बरसों लग जाते हैं l मगर जैसा कि आकाशवाणी में काम करने वाले कई लोगों का मानना है और जैसा कि कोई 7 बरस पहले देश के राष्ट्रीय अख़बारों की सुर्खियाँ बनीं खबरें इशारा करती हैं, उसके आधार पर किसी गड़बड़ी की आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता l क्योंकि सन 2010 में भी आकाशवाणी दिल्ली के बहुप्रतिष्ठित और बेहद लोकप्रिय चैनल ऍफ़ ऍम गोल्ड की 106.4 मैगाहर्ट्ज़ की 9 साल से अधिक पुरानी फ्रीक्वेंसी बदलकर 100.1 मैगाहर्ट्ज़ करने की कोशिश हुई थी और इस सम्बन्ध में ऍफ़ ऍम गोल्ड पर उद्घोषणाएँ भी की जाने लगी थीं मगर तब एक प्रसिद्द चैनल की स्थापित फ्रीक्वेंसी को बदलने पर मीडिया ने सवाल खड़े किये थे और इस फ्रीक्वेंसी बदलाव से एक निजी मीडिया कंपनी को लाभ देने की शंका भी कुछ राष्ट्रीय अख़बारों ने ज़ाहिर की थी, नतीजतन आकाशवाणी के अधिकारियों ने फ़ौरन ये फैसला वापस ले लिया था l

दरअसल 100.1 मैगाहर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी पर उन्हीं दिनों भारत में हुए राष्ट्रमंडल खेलों की कवरेज के लिये एक चैनल “दिल्ली ऍफ़ऍम” शुरू किया गया था जो शायद ही किसी को ठीक से सुनायी दिया करता था l खेल ख़त्म होने के बाद ये चैनल भी बंद हो गया था l राष्ट्र मंडल खेलों के दौरान घोटालों का ज़बरदस्त माहौल बना हुआ था सो उनके बाद भी घोटालों के नशे की खुमारी में अधिकारीगण कमाई की और दूसरी तरकीबें सोचने लगे थे और ऐसे में आकाशवाणी/प्रसार भारती केकुछ अधिकारियों को संभवतः दिल्ली के बेहद मशहूर चैनल ऍफ़ ऍम गोल्ड की फ्रीक्वेंसी को दाँव पर लगा कर कुछ खा कमा लेने की बात सूझी होगी l मगर फ्रीक्वेंसी बदलने का कोई ठोस आधार वे प्रस्तुत नहीं कर पाये और जिस फ्रीक्वेंसी पर वे ऍफ़ ऍम गोल्ड को शिफ्ट कर रहे थे वह एक निहायत लचर प्रसारण करने वाली फ्रीक्वेंसी थी, जिसे लोग जानते भी न थे और जिस पर जाने के बाद कुछ ही दिनों में ऍफ़ ऍम गोल्ड ख़त्म भले न होता तो भी ख़ात्मे के कगार पर पहुँच ज़रूर जाता l निजी चैनलों का एकमात्र सशक्त प्रतिस्पर्धी रास्ते से हट जाता l एक नये निजी चैनल को 9 साल पुरानी बेहद लोकप्रिय फ्रीक्वेंसी बैठे बिठाये मिल जाती l  और इस तरह ऍफ़ ऍम गोल्ड की कहानी एक तरह से ख़त्म हो जाती l मगर ये हो न सका l लेकिन ऍफ़ ऍम गोल्ड की 106.4 मैगाहर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी से छेड़छाड़ का कीड़ा घोटालेबाज़ों के अन्दर कुलबुलाता रहा l

कोई तीन साल पहले 100.1 मैगाहर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी प्रसारण का स्तर कुछ ठीक करके दम तोड़ रहे विविध भारती को दे दी गयी जिससे उसका दिल्ली एनसीआर में प्रसारण होने लगा l मगर गत मार्च माह के बीचोबीच आकाशवाणी के अधिकारियों ने गुपचुप तौर पर व्हाट्सएप पर एक सूचना जारी की कि 9 अप्रैल 2018 से ऍफ़ ऍम गोल्ड (दिल्ली) चैनल की 106.4 मैगा हर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी विविध भारती की 100.1 मैगा हर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी से बदल दी जाएगी l यानी 9 अप्रैल 2018 से ऍफ़ ऍम गोल्ड अपनी कोई 17 बरस पुरानी सुप्रसिद्ध फ्रीक्वेंसी को छोड़कर विविध भारती की मात्र 3 बरस पुरानी लचर और विवादित रही फ्रीक्वेंसी पर चला जायेगा l जबकि बताया ये जा रहा है कि वर्तमान में ऍफ़ ऍम गोल्ड का प्रसारण 20 किलोवाट के ट्रांसमीटर से होता है और विविध भारती का सिर्फ 10 किलोवाट क्षमता के l यानी ऍफ़ ऍम गोल्ड को कम शक्तिशाली ट्रांसमीटर पर डालने का फैसला लिया गया है l    

इस बदलाव के सम्बन्ध में आकाशवाणी ने अपने फेसबुक पेज पर और ट्विटर पर एक-दो बार सूचना डालीं जिनमें कहीं पर भी फ्रीक्वेंसी बदलने का कोई भी कारणबताया नहीं गया l

गौरतलब है कि आकाशवाणी दिल्ली का ऍफ़ ऍम गोल्ड चैनल वर्तमान में इन्फोटेनमेंट का एकमात्र इतना बड़ा और लोकप्रिय चैनल है कि आज, आकाशवाणी अधिकारियों द्वारा इसका गला दबाने की तमाम कोशिशों के बाद भी ये प्रबुद्ध रेडियो प्रेमियों का पसंदीदा चैनल है l

गवर्नमेंट कॉलेज लुधियाना में शायर साहिर लुधियानवी के जूनियर और उनके मित्र रहे 91वर्षीय पूर्व सेनाधिकारी कर्नल वी एस सूद कहते हैं कि “मैं रेडियो अब कम सुन पाता हूँ, मगर जब भी सुनता हूँ ऍफ़ ऍम गोल्ड ही सुनता हूँ”साथ ही ये भी जोड़ते हैं कि “दरअसल जिसे थोड़ी भी तमीज़ होगी और रेडियो सुनने का शौक़ भी होगा तो वो ऍफ़ ऍम गोल्ड ही सुनेगा” lबीमा कंपनी से रिटायर हुए चंदर खेड़ा की सुबह ऍफ़ ऍम गोल्ड के भजनों से शुरू होती है तो शाम उस पर ग़ज़लों और नज्मों की महफ़िल के साथ मुकम्मल होती है l और ऐसे न जाने कितने ही ऍफ़ ऍम गोल्ड के शैदाई हैंजो अपने रेडियो सेट पर 106.4 मैगा हर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी सेट करके या किसी से करवाके रखते हैं ताकि उन्हें अपना पसंदीदा चैनल सुनने में कोई मशक़्क़त न करनी पड़े l मगर उन्हें आज नहीं पता कि आने वाले 9 अप्रैल से इसकी फ्रीक्वेंसी बदल जाएगी l ऐसे न जाने कितने लोग हैं जो इस तारीख़ से या उसके बाद 106.4 मैगा हर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी लगायेंगे और मन मार कर उस पर जो आ रहा होगा वह सुनेंगे या रेडियो सेट ऑफ़ कर देंगे और इसके साथ ही फ्रीक्वेंसी बदलने वालों का मनोरथ भी सफल हो जायेगा l

मालूम हो कि किसी रेडियो चैनल की फ्रीक्वेंसी उसकी पहचान होती है और चैनल लोकप्रिय हो तो उसका महत्व कुछ और ही हो जाता है l उसे तब तक बदलने का प्रश्न नहीं उठता जब तक कि उसके अलावा कोई विकल्प ही न हो l ख़ासकर ऍफ़ ऍम फ्रीक्वेंसी तो आकाशवाणी ने भी आज तक शायद ही किसी चैनल की बदली हो, वह भी इतनी लोकप्रियता के बाद l मज़े की बात ये है कि,2010 की ख़बरों के मुताबिक,आकाशवाणी के अधिकारियों ने अपने विवादित फ़ैसले पर उस वक़्त ये बहाना बनाते हुए मीडिया को सफाई दी थी कि संचार मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुसार आकाशवाणी को अपने ऍफ़ ऍम चैनलों की फ्रीक्वेंसी 100 से 103.7 मैगा हर्ट्ज़ के बीच रखनी है ताकि अन्य प्रसारकों को भी मंत्रालय अपनी योजना के अनुसार फ्रीक्वेंसी दे सके lसाथ ही ये भी कहा था कि हिसार और करनाल में ऍफ़ ऍम गोल्ड की 106.4 मैगा हर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी पर ही एक निजी चैनल भी चलता है जिससे वहां इसका प्रसारण बाधित होता है l मगर आकाशवाणी के अधिकारियों द्वारा तब बनाये गये ये दो बहाने भी आज लागू नहीं होते क्योंकि आज इस चैनल की फ्रीक्वेंसी आकाशवाणी के ही एक चैनल विविध भारती के साथ गुपचुप तौर से बदली जा रही है l जिसका कोई ठोस कारण आकाशवाणी ने कहीं नहीं दिया है l

दिलचस्प बात ये है कि कुछ दिन पूर्व फ्रीक्वेंसी बदलने को लेकर ऍफ़ ऍम गोल्ड पर आकाशवाणी का एक प्रोमो चलाया गया था जिसमें अधिकारियों ने अपने मन के चोर को खुद ही उजागर कर दिया था l इस प्रोमो में आकाशवाणी के दो एंकर बातें करते हैं कि हमारे दो चैनल ऍफ़ ऍम गोल्ड और विविध भारती 9अप्रैल से अपना पता (फ्रीक्वेंसी) बदल रहे है और “पता बदलना कोई ख़ता तो नहीं”l यानीआकाशवाणी के अधिकारियों को डर है कि उनकी कारगुज़ारी को संदेह से देखा जाएगा l

2010 के प्रकरण से जुडी ख़बरों के अनुसार प्रसार भारती की तत्कालीन चेयरपर्सन मृणाल पांडे ने स्पष्ट कहा था कि आकाशवाणी के अधिकारियों ने इस मामले में बोर्ड को अँधेरे में रखा और फिर ये क़दम वापस ले लिया गया था l मगर आज भी प्रसार भारती बोर्ड को और सम्बंधित मंत्रालय को अँधेरे में रखा गया है या सब हाथ मिलाकर चल रहे हैं, कहना मुश्किल है l

ऍफ़ ऍम गोल्ड की एक आर.जे. कहती हैं कि उनका चैनल बहुत से निजी चैनलों की आँख की किरकिरी है l कुछ ने तो इसका प्रोग्राम फॉर्मेट फॉलो करके अपनी पहचान बनायी है l अब वे चाहते हैं कि किसी तरह ऍफ़ ऍम गोल्ड सुनायी देना बंद हो जाये ताकि लोग हमें सुनें l ज़ाहिर है आकाशवाणी के अधिकारी इसमें उनकी पूरी मदद कर रहे हैं क्योंकि इस बीच गढ़ मुक्तेश्वर तक साफ़ सुना जाने वाला ऍफ़ ऍम गोल्ड आजकल नोएडा में भी साफ़ नहीं सुनायी दे रहा है यानी इसकी 106.4 मैगा हर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी के प्रसारण को अभी से ख़राब कर फ्रीक्वेंसी बदलने की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है l हालाँकि 20 किलोवाट का शक्तिशाली ट्रांसमीटर होने के बावजूद कई बार इसका प्रसारण ख़राब कर देने की शिकायतें सामने आती रही हैं और आज भी निजी चैनलों की तुलना में आकाशवाणी के चैनल कमज़ोर सुनाई देते हैं l जबकि उपकरणों और संसाधनों के मामले में निजी चैनल आकाशवाणी के आगे कहीं नहीं ठहरते l  

आकाशवाणी के कुछ लोगों की मानें तो ऍफ़ ऍम गोल्ड, दिल्ली की लोकप्रियता से पिछले कोई डेढ़ दशक से कुछ विदेशी और निजी मीडिया संस्थान परेशान रहे हैं l  क्योंकि इसकी वजह से उनकी दाल गलने में मुश्किलें पेश आती रही हैं l ऐसे में उनके और आकाशवाणी के ही कुछ अधिकारियों(जिनका इन देशी-विदेशी मीडिया समूहों से कोई अच्छा कनेक्शन है) के गठजोड़ से इस चैनल की दशा बिगाड़ने के समय-समय पर प्रयत्न हुए हैं l  

आकाशवाणी दिल्ली के उद्घोषकों की यूनियन ए.आइ.आर. ब्रोडकास्टिंग  प्रोफेशनल्स एसोसिएशन(ए.आइ.आर.बी.पी.ए.)ने आकाशवाणी महानिदेशक फ़य्याज़ शहरयार को ईमेल भेजकर फ्रीक्वेंसी से ऐसी कोई भी छेड़छाड़ न करने का आग्रह किया है और इस ईमेल की कॉपी सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी के साथ-साथ प्रसार भारती के चेयरमैन और सीईओको भी भेजी हैं l मगर अपनी जवाब न देने की परंपरा पर कायम रहते हुए महानिदेशक ने उसका कोई जवाब नहीं दिया है l यूनियन के महासचिव संजीव अग्निहोत्री का कहना है कि बहुत से ऍफ़ ऍम गोल्ड के चाहने वाले इस बात को जानकार आहत हैं और वे भी इस बारे में मंत्रियों, सांसदों और सम्बंधित अधिकारियों को लिख रहे हैं l यूनियन ने अपनी बात डी राजा, जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, जावेद अली खान, इनोसेंट,ज्योतिरादित्य सिंधिया, रणदीप सुरजेवाला, मनोज तिवारी समेत भाजपा और विभिन्न दलों के कई सांसदों और नेताओं तक पहुंचायी है और अधिकांश ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है l गौरतलब है कि आकाशवाणी के पास आज गर्व करने को एकमात्र दिल्ली का ऍफ़ ऍम गोल्ड चैनल ही बचा है जो कि पिछले कोई 10 वर्षों से अधिकारियों की मनमानी का शिकार रहा है l इस दौरान ये चैनल अनेक बार विवादों में रहा है कभी यौन उत्पीडन की शिकायतों की वजह से तो कभी अधिकारियों की अन्य मनमानियों के चलते l ऍफ़ ऍम की बोलने की ख़ास शैली को ईजाद करने वाला आकाशवाणी दिल्ली का रेनबो चैनल भ्रष्ट, अयोग्य और घमंडी कार्यक्रम अधिशासियों और उच्च अधिकारियों की मनमानी के चलते आज बुरे हालात से गुज़र रहा है l अब निहित स्वार्थों के चलते अधिकारियों की ये कोशिश लग रही है कि कैसे ऍफ़ ऍम गोल्ड भी बर्बादी की राह में धकेला जाय l

 

 

 

2.

40 कैज़ुअल एनाउंसरों की सेवा समाप्त, इनमें 30 महिलाएँ!

 

पिछले दिनों प्रसार भारती और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के बीच हुए विवाद की खबरें सामने आयीं और अंततः मंत्रालय ने प्रसार भारती को दी जाने वाली सहायता राशि बंद कर दी l बस मंत्रालय के इस क़दम के बाद ही आकाशवाणी ने पैसों की कमी का रोना शुरू कर दिया और इस प्रलाप की आड़ में आकाशवाणी को फ़िज़ूल खर्ची से बचाने का सबसे सही तरीका उन्हें वर्षों से आकाशवाणी की सेवा कर रहे आकस्मिक कर्मियों को काम से बाहर कर देने के रूप में नज़र आया वो भी ख़ासकर दिल्ली में कार्यरत आकस्मिक कर्मियों की छंटनी करके l और अपने इस तरीके को आजमाते हुए उन्होंने इसी 1 अप्रैल से आकाशवाणी दिल्ली की  डी.टी.एच. सेवा में वर्षों से कार्यरत कोई 40 आकस्मिक उद्घोषकों की ड्यूटी बंद कर दी है जिनमें 30 से अधिक तो महिलाएँ ही हैं l ये सरकार के महिला सशक्तिकरण के दावे को मज़बूत करने का आकाशवाणी का एक बड़ा प्रयास है जिसमें प्रसार भारती और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का उसे कितना सहयोग मिल रहा है पता नहीं l यानी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर उसे रोज़गार मिले तो छीन लो l उसका सशक्तिकरण तो बचने और पढ़ जाने से हो ही जायेगा l जहाँ तक आकाशवाणी के पैसों की कमी का रोना रोने की और फिजूल ख़र्चियों पर अंकुश लगाने की बात है तो ज़रा पिछले डेढ़ दशक में आकाशवाणी के संसद मार्ग स्थित कार्यालयों में क्या हुआ उसका बस ऊपरी तौर पर जायजा ले लेते हैं बाकी अनुमान लग ही जाएगा l

सच तो ये है कि देश भर में आकाशवाणी के विभिन्न चैनल कैजुअल कर्मियों के बूते पर ही काम कर रहे हैं और ये चैनल आकाशवाणी के सबसे बड़ा लोक प्रसारक होने की गवाही देते हैं और उसके ध्येय वाक्य “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” की भी लाज रखते हैं जिसे प्रसार भारती निर्लज्जता से किसी पंसारी की दुकान बनाने पर तुली हुई है l सच तो ये है कि मुफ्त की खाने वाले आकाशवाणी के अधिकारियों की बड़ी फ़ौज में से अधिकांश को सेवानिवृत्त कर उसे चलाने की ज़िम्मेदारी नियमित और आकस्मिक उद्घोषकों, प्रस्तोताओं, समाचार वाचकों को सौंप दी जाये तो आकाशवाणी का स्वरूप निखर उठे और पैसा भी खूब बचे l लेकिन इसके उलटे आकाशवाणी ने पिछले डेढ़ दशकों में ख़ुद को यहाँ के सेवानिवृत्त कर्मियों का पालन-पोषण केंद्र बना दिया है l सिर्फ आकाशवाणी महानिदेशालय की बात करें तो उसमें ही, आर टी आई के तहत प्राप्त एक सूचना के अनुसार यहाँ के 66 सेवानिवृत्त कर्मी अपनी पेंशन के साथ-साथ तन्ख्वाह भी लेते हुए काम कर रहे थे l जबकि इस जवाब में भी आकाशवाणी ने कुछ सेवानिवृत्त कर्मियों के नाम  छुपा लिए थे l प्राप्त सूची में क़रीब 80 बरस के एक सज्जन भी पेंशन के अलावा पचास हज़ार रुपये तनख्वाह पाते हुए काम कर रहे थे और इन सभी लोगों में बीस से पिचानवे हज़ार रुपये तक मासिक वेतन( पेंशन के अतिरिक्त) पाने वाले लोग थे हालाँकि उनकी पेंशन की जानकारी व्यक्तिगत सूचना कह कर छुपा ली गयी थी l

जो भी हो, यहाँ मुद्दा ये है कि क्या इन लोगों की ज़रूरत सच में आकाशवाणी को है ? दरअसल आकाशवाणी के सेवानिवृत्त कर्मियों को पुनः सेवा में रखने की नीति यहीं के अधिकारियों ने अपने रिटायरमेंट के बाद की कमाई सुनिश्चित करने के लिए बना रखी है सो ये उन्हें काम देने की उपयोगिता के पक्ष में भी तर्क दे देते हैं l

एक दशक से अधिक का समय हो गया संसद मार्ग दिल्ली स्थित आकाशवाणी भवन परिसर में न्यू ब्राडकास्टिंग हाउस नाम की भव्य ईमारत का करोड़ों रुपये में निर्माण हुए l यहाँ पर सारे स्टूडियो और बहुत से कार्यालय स्थानांतरित किये गए जबकि जानकार लोग कहते हैं कि काम तो पहले भी बहुत अच्छा चल रहा था l इसकी क्या ज़रुरत थी l मगर नयी ईमारत के बनने के बाद भी इसमें और इसकी परिसर में पिछले एक दशक के दौरान तकरीबन हमेशा ही कुछ न कुछ निर्माण कार्य चलता ही रहा है l क्यों ? करवाने वाले ही जानते होंगे l

अब बात उपकरणों की भी कर लें नयी इमारत के स्टूडियो यूँ तो पहले से ही एक से एक उपकरणों से लैस किये गए थे मगर वक़्त के साथ साथ उनकी और भी खरीद होती गयी l  और एक आर टी आई के जवाब के मुताबिक करीब पांच बरस पहले नेतिया नाम के एक विदेशी सॉफ्टवेअर की करीब 25 करोड़ रुपये में खरीद की गयी जिसके रखरखाव का वार्षिकखर्च 3 करोड़ रुपये के आसपास बताया जाता है l  इसे कार्यक्रमों की गुणवत्ता बढाने के लिए लाया गया था मगर इसे इस्तेमाल करनेवाले एक घटिया स्तर का सॉफ्टवेर बताते हैं जिसे लगाने की कोई ज़रुरत नहीं थी l खबर ये भी है कि अब फिर गुणवत्ता बढाने के लिए कुछ और प्रयास चल रहे हैं l

दरअसल आकाशवाणी की गुणवत्ता जो रेडियो पर सुनाई देता है बस उसी से तय होती है l मगर उसे और अच्छा बनाने के लिए उद्घोषकों और प्रस्तोताओं को क्या मूल सहायता दी जाय इस पर आकाशवाणी के अधिकारियों ने कभी कुछ करने की ज़रुरत नहीं समझी l मिसाल के तौर पर स्टूडियोज से सीडी प्लेयर हटा दिये गये हैं मगर एक बड़ी सीडी लायब्ररी अभी भी चालू है जिसमें रखी सीडियों की कोई कैटलॉगिंग न होने की वजह से उद्घोषकों को अपने कार्यक्रम के अनुरूप गाने वगैरह ढूँढने में कभी-कभी घंटों लग जाते हैं पर सफलता नहीं मिलती l दरअसल इस लायब्ररी की अब कोई उपयोगिता नहीं इसकी सारी सीडियां कंप्यूटर में अपलोड हो जानी चाहियें ताकि उद्घोषकों को अपने काम के गीत, ग़ज़लें वगैरह मिल सकें l मगर इतनी मेहनत आखिर कौन करे ! आकाशवाणी के कई नियमित कर्मचारी भी आज बस टाइम पास करने के लिए काम करते नज़र आते हैं क्योंकि उनकी वर्षों से पदोन्नतियां लटकी हुई हैं l जिन सुनहरे सपनों के साथ कभी इस लोक प्रसारक में सेवा देने आये थे वे अब चूर-चूर हो चुके हैं l इसलिए आकस्मिक कर्मियों पर रौब जमाकर, उन्हें सीख देकर वे अक्सर अपनी प्रभुता और सर्जनात्मकता का सुखद एहसास करते हैं और प्रभावशाली लोगों को बतौर एक्सपर्ट विभिन्न कार्यक्रमों में फीस देकर बुलाकर वे उनसे अपने ताल्लुकात बनाया करते हैं ताकि वक़्त ज़रुरत पर काम आयें l हालाँकि कुछ अवसरों के अलावा इन तथाकथित एक्सपर्टों पर इस हद तक पैसा बर्बाद करने की आकाशवाणी को ज़रुरत नहीं है l

 

अवधेश आर्य एआइआरबीपीए (ऑल इंडिया रेडियो ब्रॉडकास्टिंग प्रोफ़ेशनल्स एसोसिएशन) के अध्यक्ष हैं।



 

 


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