BHU: प्रेमचंद की स्‍मृति में कथाकार प्रियंवद का व्‍याख्‍यान

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रविवार को बीएचयू में एनी बेसेंट हाल में कला संकाय एवं प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा प्रख्यात कथाकार प्रेमचंद की याद में हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार एवं इतिहासविद प्रियंवद का एकल व्याख्यान आयोजित किया गया।

अपने व्याख्यान में इतिहास और दर्शन के सम्बंधों पर चर्चा करते हुए प्रियंवदजी ने कहा कि यह इतिहास पर निर्भर करता है कि वह किसे कितना स्थान देता है. उन्होंने इतिहास पर अपनी बात रखते हुए कि वह बौद्धिकता के रसायन से बना हुआ सबसे खतरनाक उत्पाद है जो राष्ट्रों को अहंकारी और निरर्थक बनाता है। इसके उदाहरण भारत विभाजन की घटना में देखे जा सकते हैं।

उन्होंने गांधी की चर्चा करते हुए कहा कि वे खुद को सनातनी मानते हुए भी सम्पूर्ण भारत को अपनी दृष्टि में रखते थे इसीलिए हिंदूवादी ताकतों के निशाने पर आए। गांधी की प्रासंगिकता के बारे में उन्होंने कहा कि हिंदुओं के साथ ही आजादी के बाद मुसलमानों ने भी गांधी को नहीं समझा.

अंग्रेजी विभाग के प्रो. संजय कुमार ने अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध कवि आलोचक टी एस इलियट के माध्यम से बताया कि जिस रचनाकार की हड्डियों में अच्छा इतिहासबोध होगा, वही अच्छा साहित्य लिख सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि साहित्य और इतिहास के बीच दूरी पैदा करने की प्रवृत्ति उन्नीसवीं शताब्दी से शुरू होती है, अन्यथा सच्चाई यह है कि साहित्य को इतिहास से अलग किया ही नहीं जा सकता.

बाद में कानपुर से आए सुपरिचित युवा कवि वीरू सोनकर का एकल कविता-पाठ हुआ. इस दौरान वीरू ने ‘नींद में देश’ , ‘पुनर्जन्म’, ‘पानी’,  ‘नयी आंख से’, ‘जंगल एक आवाज है’ , ‘काम पर लौटेगा समय’,  ‘भग्नावशेष’ आदि कविताओं का प्रभावशाली पाठ किया।

इस अवसर पर विशेष रूप से वरिष्ठ आलोचक प्रो.चौथीराम यादव, डा.वाचस्पति, प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल, प्रो. आशीष त्रिपाठी, शिवकुमार पराग, प्रो. चंपा सिंह, डा. प्रभाकर सिंह, प्रो. मदन लाल, डा. कविता आर्या, डा. प्रज्ञा पाण्डेय, डा. कुलभूषण मौर्य, राहुल विद्यार्थी सहित काफी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद रहे‌।

परिसंवाद के प्रारंभ में प्रारंभ में हिंदी विभाग के प्रो.राजकुमार ने स्वागत किया। संचालन डा. वंदना चौबे एवं आभार डा. नीरज खरे ने किया।


(प्रेस विज्ञप्ति)


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