यूपीएससी की बोतल से फिर बाहर निकला सीसैट का जिन्‍न, धरने पर बैठे प्रतियोगी छात्र


सीसैट लागू होने के बाद से हिंदी भाषा माध्यम से पेपर देने वाले छात्रों के चयन का आँकड़ा लगातार गिरता जा रहा है


मीडिया विजिल मीडिया विजिल
कैंपस Published On :



अमन कुमार

सिविल सेवाओं में सीसैट को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। इस प्रतिष्ठित परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र एक बार फिर धरने पर बैठ गए हैं। वजह है संघ लोकसेवा आयोग द्वारा जारी किया गया मुख्य परीक्षा का परिणाम। आयोग द्वारा जारी किये गए रिजल्ट में हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले कुल आठ छात्रों का चयन साक्षात्कार के लिये हुआ है। हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले छात्रों का आरोप है कि सीसैट के जरिये हिंदी भाषी छात्रों को जानबूझकर बाहर किया जा रहा है। 

विवाद की जड़ 2011 में लागू किया गया सीसैट है, जिससे अधिकांश हिन्दीभाषी छात्र प्रभावित हुए थे। इसके बाद छात्र सीसैट वापस लिए जाने के लिये आन्दोलन पर बैठे थे। तब सरकार ने इसको वापस तो नहीं किया था, लेकिन छात्रों को राहत देते हुए 2011-14 के बीच शामिल हुए छात्रों को अतिरिक्त प्रयास दिये थे। इसी बीच सिविल सेवाओं की परीक्षा में बदलाव करते हुए 2011 में सीसैट, 2013 में मुख्य परीक्षा के पैटर्न में बदलाव, 2014 में डिसीजन मेकिंग और 2015 में सीसैट क्वालीफाइंग कर दिया गया। 2015 के बाद सिविल सर्विस की मुख्य परीक्षा तक पहुँचने के लिये सीसैट क्वालिफाई करना आवश्यक है। इसके चलते किसी का जीएस वाला पेपर चाहे कितना भी अच्छा हुआ हो, लेकिन जब तक सीसैट के पेपर में पासिंग मार्क नहीं ला पाता, वो मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं हो पाएगा। 

सीसैट का विरोध करते हुए दिल्ली के मुखर्जीनगर में प्रतियोगी छात्र अघोषित भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं। यह इलाका सिविल सर्विस के कोचिंग संस्थानों का हब माना जाता है, जहां रह कर तमाम छात्र-छात्राएँ सिविल सर्विस की परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। इन्हीं में से एक धनंजय ओझा का कहना है कि सीसैट के कारण हिंदी भाषी और परंपरागत ग्रेजुएट होने वाले छात्रों की तुलना में इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रबंधन की पढ़ाई करने वाले छात्र ज्यादा सफल हो रहे हैं, जिनकी पूरी पढ़ाई अंग्रेजी में होती है। एप्टिट्यूड मूल रूप से प्रबंधन और इंजीनियरिंग का विषय है। इसे भाषाई बाध्यता बनाकर एक वर्ग के छात्रों को इस सम्मानजनक सेवा में आने से रोका जा रहा है।

इन सत्रों में परीक्षा देने वाले राजीव का कहना है कि पहले तो उन्हें समझ ही नहीं आया कि ये नया पैटर्न है क्या? और जब तक समझ पाता, एक प्रयास बर्बाद हो चुका था। यूपीएससी की तैयारी करने वाले रोहित का कहना है आयोग द्वारा ये बदलाव पेपर से कुछ महीने पहले किये गए थे, जिसके कारण उनका और अधिकांश हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वालों का एक प्रयास विफल रहा। 

इस मुद्दे पर कार्मिक मंत्री जितेन्द्र सिंह कहते हैं कि जिन छात्रों को सीसैट से नुकसान हुआ, उन्हें दो एक्स्ट्रा अटेम्पट दिए गए थे। सरकार के दावे को झूठ बताते हुए दीपिका कहती हैं कि सीसैट लागू होने के बाद आयोग द्वारा जो दो अतिरिक्त अटेम्प्ट दिये गए थे, वे सभी छात्रों के लिये थे। सरकार का यह दावा झूठा है। जो दो अटेम्पट मिले थे, वे सीसैट प्रभावित छात्रों को नहीं, बल्कि सभी छात्रों के लिए थे। जबकि हमारी मांग है कि सीसैट से प्रभावित होने वाले छात्रों को अलग से तीन अटेम्प्ट दिये जाएं। 

सीसैट लागू होने के बाद से हिंदी भाषा माध्यम से पेपर देने वाले छात्रों के चयन का आँकड़ा लगातार गिरता जा रहा है। इसके लागू होने के बाद से हिंदी माध्यम के छात्रों के चयन में लगभग 46 प्रतिशत की गिरावट आई है, यानी साफ है कि हिंदी को बिल्कुल उपेक्षित किया जा रहा है। यही वजह है कि 
यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्र इसके विरोध में फिर से धरने पर बैठ गए हैं। 2011 में भी सीसैट लागू किए जाने पर दिल्ली, इलाहाबाद और पटना के छात्रों ने इसका पुरजोर विरोध किया था।


Related