किसानों से माफी मांगें ‘कॉर्पोरेटजीवी’ पीएम, वापस लें किसान विरोधी कानून- किसान सभा


छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों और नागरिकों को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कल संसद में “परजीवी और आंदोलनजीवी” कहे जाने की तीखी निंदा की है और ऐसी अलोकतांत्रिक भाषा के लिए अन्नदाताओं से माफी मांगने और किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने की मांग की है।


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छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों और नागरिकों को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कल संसद में “परजीवी और आंदोलनजीवी” कहे जाने की तीखी निंदा की है और ऐसी अलोकतांत्रिक भाषा के लिए अन्नदाताओं से माफी मांगने और किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने की मांग की है। किसान सभा ने कहा है कि एक नागरिक के रूप में अपनी आजीविका की रक्षा के लिए आंदोलन करना हर किसान का संविधानप्रदत्त अधिकार है और किसी भी आंदोलन के बारे में ऐसी असभ्य भाषा कोई तानाशाह ही बोल सकता है, जो सपने में भी जन आंदोलन से डरता है।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि यह भाषा उस “कॉर्पोरेटजीवी” प्रधानमंत्री की है, जिनका मातृ संगठन आरएसएस ब्रिटिश शासन की गुलामी के खिलाफ इस देश की जनता के ‘गौरवशाली आंदोलन’ का कभी हिस्सा नहीं रहा और जो हमेशा फासीवादी हिटलर और मुसोलिनी की ‘विदेशी विध्वंसक विचारधारा (एफडीआई)’ से प्रेरित रहा।

उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को वर्ष 2014 के उस चुनावी वादे की याद दिलाई है, जिसमें भाजपा ने स्पष्ट रूप से सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा किया था। इस वादे को पूरा करने के बजाए आज वे किसान आंदोलन पर हमला कर रहे हैं और भारतीय कृषि और देश की खाद्य सुरक्षा को कॉरपोरेटों के हाथों में गिरवी रख रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को बनाने से पहले किसी भी किसान संगठन या राज्य सरकार तक से सलाह-मशविरा नहीं किया गया और न ही किसी संसदीय प्रक्रिया का पालन किया गया। यह इस सरकार पर देशी-विदेशी कॉर्पोरेट पूंजी की जकड़ को बताता है। इसलिए इस देशव्यापी किसान आंदोलन के लिए प्रधानमंत्री ही पूरी तरह जिम्मेदार है।

किसान सभा नेताओं ने कहा कि देश में कृषि संकट इतना गहरा है कि हर घंटे दो किसान आत्महत्या करने के लिए बाध्य हो रहे हैं, क्योंकि लाभकारी समर्थन मूल्य के अभाव में और कर्ज के बढ़ते बोझ के कारण कृषि अवहनीय हो गई है। देश के किसानों का 86% हिस्सा लघु और सीमांत किसानों का है, जिसका बाजार में निर्मम शोषण होता है और वे खेती-किसानी छोड़कर प्रवासी मजदूर बनने के लिए बाध्य हैं। इन तथ्यों की अनदेखी कर किसान आंदोलन को बदनाम करना संघ-भाजपा की सुनियोजित चाल है।

छत्तीसगढ़ किसान सभा ने देश की सभी जनवादी ताकतों, राजनैतिक पार्टियों और जन आंदोलनों से अपील की है कि देशव्यापी किसान आंदोलन को बदनाम करने की प्रधानमंत्री की कोशिशों का विरोध करें और किसान विरोधी काले कानूनों को वापस लेने और सभी किसानों और सभी फसलों के लिए कानूनन सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने  के आंदोलन को और ज्यादा मजबूत करें। इस आंदोलन की जीत ही देश की अर्थव्यवस्था को कॉर्पोरेट गुलामी के शिकंजे में फंसने से रोक सकती है।