निर्यात पर प्रतिबंध के बीच, भारतीय गेंहू तुर्की ने लौटाया, मिस्र ने सीमा पर रोका?

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
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जहां एक ओर भारत सरकार ने देश में खाद्यान्न की कमी की संभावना को देखते हुए, देर से ही सही गेंहू के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहीं 13 मई को इस प्रतिबंध के ठीक पहले, तुर्की को गेंहू निर्यात करने की मंज़ूरी दे दी गई थी। इसके साथ ही मिस्र से भी गेंहू की आपूर्ति को लेकर समझौता हो गया था। इसी के तहत, तुर्की को भेजे जाने वाले 56,000 टन गेंहू की खेप को तुर्की ने वापस कर दिया है, तो मिस्र ने भारतीय गेंहू की खेप को अपनी सीमा पर ही रोक दिया है और भारतीय अधिकारी कस्टम क्लीयरेंस का इंतज़ार कर रहे हैं।

तुर्की ने क्यों लौटाया भारतीय गेंहू?

दरअसल तुर्की से भारतीय गेहूं को वायरस से संक्रमित होने के आधार पर वापस लौटाया गया। तुर्की में, इस गेंहू में रूबेला वायरस पाए जाने की शिकायत को मिली। जिसके बाद तुर्की ने इस खेप को लेने से मना कर दिया। भारतीय अधिकारियों की मानें तो तुर्की को भेजी गई गेहूं की खेप सीधे भारत से निर्यात न कर के, आईटीसी लिमिटेड द्वारा नीदरलैंड की एक कंपनी को बेचा, जिसने गेंहू को तुर्की पहुंचाया।हालांकि यहां पर ये जानकारी हमारे पास नहीं है कि ये गेंहू भारत से पहले नीदरलैंड या किसी और स्थान पर गया या फिर खरीद कर सीधे, डच कंपनी द्वारा तुर्की भेजा गया।

क्या हुआ मिस्र में?

मिस्र का पोर्ट सैयद बंदरगाह

बताया जा रहा है कि ये गेंहू, तुर्की में रिजेक्ट होने के बाद, इसको एक मिस्री व्यापारी ने खरीद लिया और इसे मिस्र पहुंचाया गया। अब रॉयटर्स के हवाले से ख़बर मिली है कि मिस्र के प्लांट क्वारंटीन चीफ अहमद अल अत्तर के मुताबिक, 55 हज़ार टन गेहूं लाद कर ला रहे इस जहाज को रोक दिया गया है। इसको मिस्र में प्रवेश करने की अनुमति देने से फिलहाल मना कर दिया गया है। 

क्या है भारत का पक्ष?

इस पर भारत सरकार का कहना है कि मिस्र को गेहूं के निर्यात के लिए कस्टम क्लियरेंस मिलने का इंतजार किया जाएगा। हालांकि जब पहले तुर्की से गेंहू वापस लौटाया गया था, तो इस पर सरकार की अलग प्रतिक्रिया आई थी। उस समय बाकायदा विस्तृत प्रतिक्रिया में खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा था कि गेहूं की इस खेप को भारत से निर्यात करने के पहले ही, क्वारंटीन समेत बाकी सुरक्षा प्रक्रियाओं को पूरा किया गया था। लेकिन उस समय भी तुर्की के अधिकारियों की ओर से न तो कोई प्रतिक्रिया मिली थी, न ही भारत सरकार ने कहा था कि तुर्की के अधिकारियों से उनकी कोई बात हुई।

मिस्र से क्या है निर्यात डील?

भारत और मिस्र के बीच मई में ही गेंहू के निर्यात को लेकर डील हुई। ये डील मिस्र के खाद्य आपूर्ति मंत्री अली मोसेलही के ज़रिए हुई। इसके तहत, मिस्र -भारत से 5 लाख टन गेहूं सीधे आयात करेगा। भारत ने 13 मई को जब गेंहू निर्यात पर प्रतिबंध लगाया, तो इस डील पर भी सवाल उठे, लेकिन तब भी मिस्र के खाद्य मंत्री ने बयान दिया था कि इस प्रतिबंध का इस डील पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि ये दो देशों के बीच हुआ समझौता है। 

हालांकि ये भी जान लेना चाहिए कि अभी तक 5 लाख टन गेंहू के निर्यात की इस डील पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं। इसीलिए मिस्र की सीमा पर भारतीय गेंहू को अंदर न घुसने देने का ये फ़ैसला, चिंताजानक है।

भारतीय गेंहू खरीदने के पीछे का कारण

अब सवाल ये है कि आख़िर भारतीय गेंहू को लेकर इतनी चर्चा क्यों है? क्या इसका कारण भारतीय गेंहू का बेहतर होना है? या फिर इसका कारण यूक्रेन का युद्ध में फंसा होना है? दरअसल पहला कारण, जिसके बारे में कई जगह बात हुई, वह निराधार है। भारतीय गेंहू गुणवत्ता में यूरोपीय गेंहू से बेहतर नहीं है। साथ ही यूक्रेन युद्ध एक कारण ज़रूर है, लेकिन सबसे अहम कारण नहीं है।

आकलन सही हुए तो देश में इस साल होगा गंभीर अन्न संकट

सबसे अहम कारण है, भारतीय गेंहू का दाम। मिस्र, जो कि दुनिया में सबसे बड़ा गेंहू आयातक देश है – वह दुनिया के तमाम अलग-अलग देशों से गेंहू आयात करता है। यूरोपीय यूनियन का गेंहू, पहले भी भारतीय गेंहू के मुक़ाबले महंगा था ही और इसीलिए कई देश भारत से गेंहू के निर्यात को तरजीह देते रहे हैं। लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण और उसका फ़ायदा उठाते हुए भी – यूरोपीय यूनियन से आयातित गेंहू की कीमत 36-40 रुपए प्रति किलो ($456.68 प्रति टन) के आसपास जा पहुंची है, जबकि भारतीय गेंहू अभी भी आयातकों को 26 से 30 रुपए प्रति किलो के आसपास मिल रहा है। इसको जब आप कई हज़ार टन या कुछ लाख टन में परिवर्तित करते हैं, तो ये बड़ा अंतर हो जाता है। ज़ाहिर है कि दुनिया का सबसे बड़ा गेंहू आयातक होने के नाते, मिस्र के लिए ये डील अहम है।

लेकिन अब इस जहाज़ को रोके जाने, इसकी गुणवत्ता या वायरस से संक्रमित होने की आशंका के चलते और अभी तक मिस्र के खाद्य मंत्री के साथ हुई डील पर हस्ताक्षर कर के उसके पूरे न होने के कारण, पहले से ही खाद्य संकट की आशंका से जूझ रहे देश के लिए अब एक व्यापार या निर्यात संकट की आशंका भी खड़ी हो गई है।