मृणाल पाण्डेय के ट्वीट में मोदी नहीं, गधा ही है वैशाखनंदन !

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पंकज श्रीवास्तव

सोशल मीडिया में हल्ला है कि वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डेय ने माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वैशाखनंदन कह दिया। वैशाखनंदन चूँकि गधे को कहा जाता है, तो अर्थ यह निकला कि मृणाल पांडेय ने प्रधानमंत्री को गधा कह दिया। इस पर आपत्ति जताने वालों में स्वाभाविक ही तमाम बुद्धिजीवी और वरिष्ठ पत्रकार भी हैं (कुछ ऐसे भी हैं जो इस बहाने बार-बार मोदी जी को वैशाखनंदन कहने का सुख ले रहे हैं।)

यह सारा विवाद मृणाल पांडेय के एक ट्विट से उपजा है जिसमें उन्होंने गधे की तस्वीर के साथ लिखा कि जुमलाजयंती पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन।

 

हिंदी की मशहूर लेखिका शिवानी की बेटी और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ा चुकीं मृणाल पाण्डेय क्या वाक़ई भाषा की मर्यादा भूल गई हैं ? क्या साप्ताहिक हिंदुस्तान, हिंदुस्तान और एनडीटीवी की संपादक रह चुकीं नामी पत्रकार और लेखिका मृणाल पांडेय ने वाक़ई मर्यादा तोड़ी है ? प्रसार भारती की पूर्व चेयरमैन और बेहद सौम्य छवि वाली मृणाल पाण्डेय ने आख़िर ऐसा किया क्यों ?

इन सवालों को पूछने से पहले मृणाल जी के वाक़्य पर ग़ौर किया जाना चाहिए। इसमें वैशाखनंदन यानी गधे को ख़ुश बताया जा रहा है ‘जुमलाजयंती’ पर। यानी जयंती इस गधे की नहीं है, जुमला बोलने वाले की है। यानी वह इस गधे से अलग कोई विभूति है जो जुलमेबाज़ है। अगर मान लिया जाए कि जुमला बोलने वाले के रूप में मोदी जी की ओर ही इशारा है, तो इस ट्वीट में दर्ज वैशाखनंदन वह कैसे हो सकते हैं !  (वैसे, यह ट्वीट 16 सितंबर का है जबकि मोदी जी का जश्ने यौमे पैदाइश, माफ़ कीजिए शुभ जन्मोत्सव 17 सितंबर को था।)

यही वजह है कि मृणाल पाण्डेय इस मुद्दे पर ना कोई सफ़ाई दे रही हैं और ना माफ़ी माँग रही हैं। उलटा, ट्वीटर पर आपत्ति जताने वालों को समझ-बूझ की नसीहत दे रही हैं।

 

 

वैसे यूपी चुनाव में गधे से प्रेरणा लेने का सार्वजनिक ऐलान कर चुके मोदी जी को शायद ही अपने जन्मदिन पर किसी वैशाखनंद के ख़ुश होने पर ऐतराज़ हो। फिर यह हल्ला क्यों ?  मृणाल पांडेय पर अधिक से अधिक यह आरोप लग सकता है कि वे प्रधानमंत्री को ‘जुमलेबाज़’ ठहरा रही हैं। लेकिन इसकी गवाही तो पूरी अर्थव्यवस्था दे रही है कि प्रधानमंत्री के वादे और इरादे, जुमले साबित हो रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो यह एक वरिष्ठ पत्रकार की मोदी सरकार पर बेहद गंभीर और सुचिंतित टिप्पणी है। ऐसा लगता है मृणाल पाण्डेय ‘अच्छे दिन’ के नारे से नाउम्मीद हो चुकी हैं, और इस ‘ढोल’ पर ‘रोमांचित, आनंदित और पुलकित’ लोग उनकी उनकी नज़र में दरअसल वैशाखनंदन हैं।

हर लिहाज़ से यह कहना नाइंसाफ़ी ही होगी कि उन्होंने मोदी जी को वैशाखनंदन कहा है।

भाषा के मोर्चे पर जैसा अकाल पड़ा है, उसमें ऐसी दुर्घटनाएँ अब आम हैं। गधे को वैशाखनंदन कहा जाता है, यह जानने वाले भी तेज़ी से कम होते जा रहे हैं (अगल-बगल वालों से आज़माइश कर लीजिए !) और क्यों कहा जाता है, इसे जानने वाले तो और भी कम हैं।

अब मौक़ा मिला है तो इस पर विचार कर ही लिया जाए। मीडिया विजिल के स्तंभकार गिरीश मालवीय ने इस संबंध में प्रकाश डालते हुए जो लिखा है, पढ़ लीजिए–

“वैशाखनंदन” गधे को क्यों कहा जाता है इस को भी जान लेना समीचीन होगा

जब हरियाली का मौसम आता है तो सभी जानवर अति प्रसन्न हो उठते हैं क्योंकि अब उन्हें सर्वत्र हरी हरी घास पेट भर कर मिलती है । समस्त जानवर भर पेट हरी हरी घास खाकर हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं। किन्तु गधा एक ऐसा प्राणी है जो हरियाली के मौसम में बहुत ही कमजोर हो जाता है। लेकिन जब हरियाली समाप्त हो जाती है और वैशाख का महीना आता है, खाने हेतु सूखी घास ही रह जाती है, वह भी बहुत कम मात्रा में, तब यह गधा अधिक हृष्ट पुष्ट हो जाता है। आखिर ऐसा कैसे होता हैं ?

वजह यह है कि जब हरियाली मैं गधा घास चरता है तो बार बार पीछे मुड़कर देखता है कि वह कितनी घास खा चूका है।  वह पाता है कि पीछे तो हरा ही हरा नजर आ रहा है अर्थात उसने अभी बहुत ही अल्प मात्रा में घास खाई है, इस प्रकार पूरी हरियाली के मौसम में गधा अधिक खाकर भी मानसिक रूप से अतृप्त ही रहता है। वैशाख माह में जब गधा घास चरता है तो पीछे मुड़कर देखने  पर पात़ा है कि पीछे मात्र मिटटी है। तब वह तृप्त होता है कि अरे वाह उसने तो पूरी घास चुन चुनकर खा डाली है। पीछे बिलकुल भी घास नहीं छोड़ी। “