SC/ST के प्रमोशन में आरक्षण के निर्णयों पर दोबारा नहीं होगा विचार: सुप्रीम कोर्ट

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प्रमोशन में रिजर्वेशन के मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति (Scheduled Castes) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes ) (SC/ST) के कर्मचारियों को पदोन्नति (promotion) में आरक्षण प्रदान करने के लिए नीतियों में उन तमाम शर्तों को पूरा करना होगा, जो विभिन्न संविधान पीठों द्वारा पिछले दो फैसलों में निर्धारित की गई हैं। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह एम. नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) के मामलों में दिए गए फैसलों पर दोबारा विचार नहीं करेगी। इन दोनों फैसलों में प्रमोशन में आरक्षण से जुड़ी नीतियों के लिए शर्तें रखी गई थीं। कोर्ट ने केंद्रीय गृह सचिव एके भल्ला के खिलाफ जारी अवमानना के नोटिस को वापस लेने से भी इनकार कर दिया।

HC के फैसलों के आधार पर दायर 130 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा SC..

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ मंगलवार को 11 विभिन्न उच्च न्यायालयों के फैसलों के आधार पर दायर 130 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। बता दें कि पिछले दस वर्षों में विभिन्न उच्च न्यायालयों ने विभिन्न आरक्षण नीतियों पर अपने निर्णय दिए हैं। ये सभी फैसले महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब आदि राज्यों से संबंधित हैं।

जैसे ही सुनवाई शुरू हुई पीठ ने कहा, ‘ यह स्पष्ट किया जा रहा हैं कि नागराज या जरनैल सिंह मामले को हम दोबारा नहीं खोल रहे हैं। इन मामलों में हमारे पास सीमित गुंजाइश है। इन दोनों मामलों में हम सिर्फ यह जांचेंगे कि क्या सर्वोच्च न्यायालय के इन दो निर्णयों में निर्धारित सिद्धांतों का पालन उच्च न्यायालय के निर्णयों में किया गया है या नही?

बता दें कि इन दोनों मामलों में, शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों के लिए यह अनिवार्य कर दिया था कि पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति वर्ग के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को दर्शाने वाले मात्रात्मक डेटा एकत्र करें, प्रशासनिक दक्षता और सार्वजनिक रोजगार पर आरक्षण के प्रभाव का आकलन करें।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नागराज या जरनैल सिंह मामले को दोबारा खोल से मना करने पर केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने नागराज मामले में फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि एससी-एसटी का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व (inadequate representation) दिखाने के लिए मात्रात्मक डेटा (quantitative data) के संग्रह की स्थिति “अस्पष्ट” है।

पिछले फैसलों को स्पष्ट करने के लिए दिशा-निर्देश देने के अनुरोध को SC ने ठुकराया..

सर्वोच्च न्यायालय के इन दो निर्णयों में निर्धारित सिद्धांतों को लेकर आरक्षित श्रेणी (reserved category) के कुछ उम्मीदवारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भी पीठ से कहा कि दोनो निर्णय यह परिभाषित नहीं करते हैं कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व (adequate representation) या कुशल कामकाज का क्या मतलब है। अधिवक्ता ने कहा कि इससे पदोन्नति में आरक्षण को लेकर भ्रम की स्थिति है। अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट से अनुरोध किया कि पीठ पिछले फैसलों को स्पष्ट करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश दे सकती है। लेकिन बेंच ने उनके इस अनुरोध को नामंजूर कर दिया।

आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह कि पिछले फैसलों को फिर से खोलने की दलीलों पर सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के प्रतिनिधि वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन, गोपाल शंकरनारायणन और कुमार परिमल ने कड़ी आपत्ति जताई।

रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र की ओर से पदोन्नति करने की अनुमति देने से SC का इनकार..

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने देश भर में 1.3 लाख से अधिक रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से एक बार फिर से पदोन्नति करने की अनुमति मांगी। उन्होंने कहा कि ये पदोन्नति विशुद्ध रूप से वरिष्ठता के आधार पर की जाएगी। ऐसे उम्मीदवारों की पदोन्नति के खिलाफ निर्णय के परिणामस्वरूप निचले पद पर वापस भेजा जा सकता है। लेकिन पीठ ने एक बार फिर से इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया। बता दें इससे पहले भी दो बार जुलाई 2020 और जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने तदर्थ पदोन्नति की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया था। जबकि इस बार वेणुगोपाल ने यह तर्क देते हुए अनुमति मांगी थी कि अप्रैल 2019 में अदालत के यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने से कई विभागों में कामकाज बहुत मुश्किल हो गया है।

एके भल्ला को जारी अवमानना ​​नोटिस को वापस लेने से SC का इनकार..

वहीं, पीठ ने अटॉर्नी जनरल द्वारा कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सचिव एके भल्ला को जारी अवमानना ​​नोटिस को वापस लेने के अनुरोध को भी ठुकरा दिया। बता दें कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों की पदोन्नति पर यथास्थिति के आदेश के कथित उल्लंघन के लिए नोटिस दिया गया था।

सिद्धांतों का पालन कैसे किया जाए यह राज्यों को तय करना है..

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम नागराज या जरनैल सिंह मामलों में दिए गए निर्णयों का पालन कैसे करें, इस बारे में कोई दिशा-निर्देश नहीं देने जा रहे हैं। हम जरनैल सिंह मामले में पहले ही कह चुके हैं कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और समग्र दक्षता के संदर्भ में नागराज मामले के सिद्धांतों का पालन कैसे किया जाए यह राज्यों को ही पता लगाना है। इसी के साथ एससी और एसटी की पदोन्नति में आरक्षण निर्णयों पर पुनर्विचार करने से कोर्ट ने पूरी तरह इंकार कर दिया।

 


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