82 साल की उम्र में पद्मश्री लेना ‘श्रीहीन’ कर देता, उस्ताद इमरत खाँ ने ठुकरा दिया!

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सितार और सुरबहार के जादू से दुनिया को दीवाना बनाने वाले, इमदादख़ानी घराने के बुज़ुर्ग फ़नकार उस्ताद इमरत खाँ को सरकार ने पद्मश्री देने का ऐलान किया था। लेकिन उस्ताद ने इसे सम्मान से ज़्यादा अपमान समझा। क्योंकि उनके तमाम समकक्ष फ़नकारों को अब तक पद्मविभूषण तक मिल चुका है। उस्ताद का कहना है कि यह उनके शागिर्दों के लिए ठीक है। उन्होंने इस सिलसिले में एक वक्तव्य जारी किया है। पढ़ें-

 

उस्ताद इमरत ख़ाँ का वक्तव्य

 

मेरी ज़िन्दगी के आख़िरी दौर में, जबकि मैं ८२ साल का हो चला हूँ, भारत सरकार ने मुझे पद्मश्री अवार्ड देना तय किया है।

मैं इसके पीछे जो नेक इरादा है उसकी क़द्र करता हूँ, लेकिन इस अवार्ड के मक़सद को लेकर बिना किसी दुराग्रह के यह कह सकता हूँ कि यह मेरे लिए ख़ुशी की नहीं, उलझन की बात है। यह अवार्ड अगर मिलना था तो कई दशक पहले मिल जाना चाहिए था—जबकि मुझसे जूनियर लोगों को पद्मभूषण दिया जा चुका है।

मैंने भी हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में बहुत योगदान दिया है और उसके व्यापक प्रसार में लगा रहा हूँ। ख़ासकर सितारवादन की विकसित शैली और अपने पूर्वजों के सुरबहार वाद्य को दुनिया भर में फैलाने में मैंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। मुझे हिन्दुस्तानी कला और संस्कृति के आधारस्तंभों, अपने समय की महान विभूतियों, के साथ बराबरी की सोहबत में संगीत बजाने का सौभाग्य हासिल हुआ। इनमें उस्ताद विलायत ख़ाँ साहब, उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ साहब, उस्ताद अहमद जान थिरकवा ख़ाँ साहब, पंडित वी जी जोग और अन्य बड़ी हस्तियाँ शामिल हैं। इनमें से हरेक निर्विवाद रूप से हिन्दुस्तानी संगीत के उच्चतम स्तर तक पहुँची हुई हस्ती है, और इन सभी को पद्मभूषण या पद्मविभूषण से नवाज़ा गया था।

मेरा काम और योगदान सबके सामने है और मेरे शिष्य, जिनमें मेरे बेटे भी शामिल हैं, अपने समय की कसौटी पर खरे उतरेंगे और इस बात का सबूत देंगे कि मैं किस हद तक अपने आदर्शों और अपनी जड़ों के प्रति सच्चा रहा हूँ। संगीत ही मेरा जीवन है, और मैंने एकनिष्ठता से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रंग-रूप और रूह की पाकीज़गी को बचाए रखा है, और किसी भी तरह के बिगाड़ से उसकी हिफ़ाज़त की है। मैं और मेरे शिष्य विश्व के सभी आलातरीन मंचों पर सितार और सुरबहार के माध्यम से इस धरोहर को पेश करते रहे हैं। ये संगीतकार इसी रिवायत को आज की पीढ़ी तक पहुँचाने में कामयाब रहे हैं।

ज़िंदगी के इस मुक़ाम पर मुझे यह ठीक नहीं लगता कि उम्र या शोहरत के पैमाने पर मेरे काम और ख़िदमत को मेरे शागिर्दों और बेटों के स्तर से कम करके आंका जाए।

मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी समझौते नहीं किये। अब जाकर ऐसे अवार्ड को लेना, जो भारतीय संगीत में मेरे योगदान और मेरी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से क़तई मेल नहीं खाता, अपनी और अपनी कला की अवमानना करना होगा। मैं ख़ुदगर्ज़ नहीं हूँ, लेकिन भारतीय शास्त्रीय संगीत के सुनहरी दौर के महानतम संगीतज्ञ मुझे जो प्यार, भरोसा और इज़्ज़त बख़्श चुके हैं मुझे उसका भी ख़याल रखना है। मैं इसी धरोहर की आबरू रखने के ख़याल से यह क़दम उठा रहा हूँ।

विनीत

इमरत ख़ाँ