‘न जान देंगे,न जमीन देंगे’- गडचिरोली में ‘भूमकाल’ का ऐलान !

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*भूमकाल– बस्तर के आदिवासी इलाके में 1910 में हुआ भीषण विद्रोह। शाब्दिक अर्थ-भूमि में कंपन।

11 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र विधान सभा के शीतकालीन नागपुर सत्र के पहले दिन गडचिरोली जिले के विभिन्न क्षेत्रो में लोगो ने संगठित होकर प्रस्तावित खनन परियोजनायों एवं वर्त्तमान सरकार के जनविरोधी नीतियों का जोरदार विरोध किया. माँग की गई कि पेसा, वन अधिकार कानून का प्रभावी अमल हो, ग्रामसभाओं की सार्वभौमकिता को स्वीकार किया जाए, आदिवासी एवं अन्य समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा हो, साथ ही प्रशासनिक गतिरोध और दमन को बंद किया जाये।

इस जोरदार प्रदर्शन में विधानसभा की विरोधी पार्टियों का आह्वान किया गया कि वे गडचिरोली के आदिवासी क्षेत्र के सवालों, मुख्यतः जनविरोधी खनन और विस्थापन के सवाल को लेकर विधान सभा में सवाल उठायें और सरकार को घेरे।

आंदोलन के क्रम में उत्तर गडचिरोली के कोरची तहसील में वन अधिकार कानून के प्रभावी अमल की मुख्य मांग के साथ स्थानीय जनता द्वारा रास्ता रोको आन्दोलन किया गया, वहीं दक्षिण गडचिरोली के एटापल्ली में सुरजागड़ के खनन के मुख्य मुद्दे के पर एटापल्ली एवं भामरागड तहसील के ग्रामीणों ने अपने पारंपरिक वाद्य-नृत्य के साथ उप-विभागीय अधिकारी के कार्यालय का किया घेराव किया।

एटापल्ली में एक दिन पहले ही लोग जमा होने लगे थे। उन्होंने रात ठण्ड में गुजारी और दिन में हजारों की तादाद में एस.डी.ओ. के कार्यालय पर प्रदर्शन किया। इस दौरान भारी संख्या में पुलिस बल तैनात रहा।

प्रदर्शनकारियों ने माँग की कि रोजगार और विकास के नाम पर सुरजागड़ इलाके के देव, पवित्र डोंगर-पहाड़ और वनों को नष्ट करने वाले, आदिम संस्कृति को ख़त्म करने का  प्रयास करने वाले, और स्थानीय लोगों को विस्थापित करने पर तुले सभी खदानों को गैर कानूनी घोषित कर उन्हें तुरंत बंद किया जाये। इस संबंध में किए गए सभी एम.ओ.यु. (सहमति पत्र) रद्द किये जायें। खनन का विरोध कर रहे स्थनीय लोगों पर किये जा रहे पुलिसिया दमन को तुरंत रोका जाये। पेसा एवं वन अधिकार कानूनों का प्रभावी अमल।

प्रदर्शनकारियों ने “हम अपना पहाड़ नहीं देंगे..”, “सुरजागड़ हमारा है..”  के नारों के साथ बड़ी रैली निकाली. साथ में वे गीत भी गा रहे थे। उप-विभागीय अधिकारी के कार्यालय पर घेरा डालकर सभा की गई। प्रशासन ने भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया था। देर शाम तक प्रशासन के साथ वार्ता चली जिसमें साफ कहा गया कि अगर सरकार जल्द ही सुरजागड़ में चल रही खदान बंद नहीं करती है और अन्य खदानों को मंजूरी देने की प्रक्रिया को ऐसे ही आगे चलाती रहती है तो पूरे क्षेत्र में जोरदार आन्दोलन शुरू किया जायेगा।

जनसभा में जानकारी देते हुए सुरजागड़ पारंपरिक इलाका गोटुल समिति के प्रतिनिधि एवं जिला परिषद् सदस्य सैनु गोटा ने कहा की, एटापल्ली के सुरजागड इलाके में सुरजागड, बांडे, दमकोंडवाही, मोहंदी, गुडजुर क्षेत्र के साथ-साथ अन्य ११ जगह खदानें प्रस्तावित की गयी हैं. वर्त्तमान में सुरजागड में लॉयड्स मेटल्स एंड इंजीनियर्स इस कंपनी को लोहा खदान का आवंटन किया गया है। सरकार, ग्रामसभा का विरोध होते हुए भी सुरजागड़ के क्षत्र में ‘गोपानी” कंपनी को नए खनन पत्ते का आवंटन की प्रक्रिया चला रही है, जिसको हाल ही में FAC के आगे चर्चा के लिए रखा गया था. इन सभी खनन क्षेत्रों को प्रस्तावित करते वक्त या मंजूरी देते हुए वन संवर्धन कानून 1980, पर्यावरण अधिनियम 1986, पेसा कानून 1996, महाराष्ट्र ग्रामपंचायत अधिनियम 1959 के प्रकरण 3A के कालम 54, अनुसूचित जाति एवं अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन हक मान्यता) अधिनियम 2006, खान एवं खनन अधिनियम और अन्य कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन खुद प्रशासन और सरकार द्वारा किया जा रहा है. जो इन खदानों को गैरकानूनी बना देती है।

सभा को संबोधित करते हुए भामरागड पट्टी पारंपरिक समिति के प्रतिनिधि एवं जिला परिषद् सदस्य एड. लालसू नागोटी ने कहा की सुरजगड़ और अन्य जगहों पर जहाँ ये खदानें प्रस्तावित हैं या जहां मंजूरी दी गयी है उन्हीं जगहों पर हमारे ठाकुरदेव, तल्लोरमुत्ते, माराई सेडो, बंडापेन आदि देवताओं के पवित्र पहाड़ और जंगल हैं, जो कि यहां के स्थानीय आदिवासी एवं अन्य समुदायों की मुख्य सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासते हैं. इन सभी प्रस्तावित खदानों से लगभग 15,946 एकड़ और लगभग ४० हजार एकड़ जंगल-जमीन खदान पूरक कामों के लिए नष्ट किया जायेगा. इससे सिर्फ सुरजागड़ क्षेत्र ही नहीं बल्कि एटापल्ली, भामरागड और अन्य तहसील के ग्रामसभाओं के लोगो का वनों पर आधारित शाश्वत रोजगार प्रभावित और ख़तम हो जायेगा. इन्ही कारणों से प्रस्तावित एवं आवंटित खदानों का एटापल्ली एवं भामरागड तहसील की ग्रामसभाएं पुरजोर विरोध करती हैं।

सुरजागड़ क्षेत्र के साथ अन्य क्षेत्र से आये प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि विकास और रोजगार के जुमलो द्वारा लोगों की सहानभूति पाकर राजनैतिक व्यक्ति एवं प्रशासन के अधिकारी सिर्फ दलाली कमाने हेतु पूंजीपतियों को गडचिरोली के बहुमूल्य संसाधन बेच रहे हैं. जनता ने ये मांग रखी की अगर सरकार को स्थानीय युवाओं को सच मे रोजगार मुहैया कराना है तो गडचिरोली जिले में रिक्त सभी पदों को भरकर रोजगार के अवसर खोले जायें. और लघु वन उपजो पर आधारित शाश्वत रोजगार के साधन निर्मित किये जायें।

प्रदर्शनकारियों ने सुरजागड़ क्षेत्र में बढ़ते सैन्यकरण की जोरदार निंदा की। उन्होंने आरोप लगाया कि सुरजागड़ एवं अन्य क्षेत्रों में, खनन का विरोध कर रहे आदिवासियों पर पुलिस द्वारा दमन रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है. कानूनों का दुरुपयोग कर पुलिस अलग-अलग तरीके से लोगों को प्रताड़ित करने का काम कर रही है। ग्रामसभाओं के अधिकारों को लेकर कम कर रहे लोगों पर मारपीट और दमन लादा जा रहा है जिसके चलते आम जनता हताश और निराश जिन्दगी जीने को मजबूर हो गई है। इन सभी हालात से जनता के बीच असंतोष बढ़ता जा रहा है।

माँग की गई कि आदिवासी एवं अन्य समुदायों की सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक प्रथा, परंपरा, बोलीभाषा, देवी-देवता, जल-जंगल-जमीन, संसाधन और वन आधारित शाश्वत रोजगार और विकास के निर्माण के लिए गडचिरोली जिले की सभी खदानें रद्द कर दी जायें। इस के साथ साथ आदिवासी क्षेत्र की संस्कृति-परंपरा रक्षण, पेसा-वन अधिकार कानून का ओर प्रभावी अमल, जनता के लोकतांत्रित आन्दोलन पर पुलिसिया दमन का विरोध और अन्य मुद्दों को लेकर विचार रखे गए और विस्थापन के खिलाफ आन्दोलन को और भी मजबूत बनाने का आवाहन किया गया.इन सभी मुद्दों पर उप-विभागीय अधिकारी के माध्यम से महाराष्ट्र के राज्यपाल एवं जिला अधिकारी के नाम ज्ञापन दिया गया। ज्ञापन में कहा गया कि-

  1. लोगों के भारी विरोध के बावजूद शुरू की गयी ‘सुरजागड खदान’ में खनन प्रक्रिया को तुरंत बंद किया जाय, लोगो के सहमति बिना ‘लॉयड्स मेटल्स एंड इंजीनियर्स’ कंपनी से किये गए एम.ओ.यू. तत्कात रद्द किए जाएं।
  2. दमकोंडवाही, बांडे, गुड़जुर, आगरी-मसेली खदानों और अन्य सभी प्रस्तावित खदाने और उससे जुड़े एम.ओ.यू. तत्कात रद्द किए जायें और आगे स्थानीय लोगों की सहमति के बिना कोई भी नया एम.ओ.यू. हस्ताक्षर नहीं किया जाये।
  3. गडचिरोली जिले में सविधान की 5वीं अनुसूची और पेसा कानून को सख्ती से लागू किया जाये और ग्रामसभाओं के सार्वभौम अधिकारों को मान्य किया जाये।
  4. सामूहिक वन अधिकार प्रक्रिया को कायदे से अमल किया जाये, प्रलंबित सामूहिक एवं वैयक्तिक दावों को तुरंत मंजूर किया जाये.
  5. आदिवासियों के मौलिक अधिकार और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षा दी जाय. ‘माडिया गोंड’ आदिम जमती समूहों को वन अधिकार कानून में निहित 3.1.e के तहत ‘Habitate Rights’ (आवासीय एवं क्षेत्रित वन अधिकार) की प्रक्रिया को पूरा कर अधिकारों को मान्यता दी जाये।
  6. पेसा, वन अधिकार कानून के अमल, ग्रामसभा के सक्षमीकरण के लिए काम कर रहे और जनविरोधी खनन के खिलाफ लोकतांत्रिक संघर्ष कर रहे लोगों पर किये जा रहे पुलिसिया दमन तुरंत रोका जाये। गैरकानूनी गिरफ़्तारी और फर्जी मामलों की निष्पक्ष जाँच की जाये। बेगुनाहों को तुरंत रिहा किया जाये।

साथ ही शिक्षा और आरोग्य व्यवस्था सुचारू तरीके से चलाने, किसानो का कर्ज माफ करने आदि मुद्दों एवं जनता की अन्य मांगो को भी ज्ञापन में शामिल किया गया।

आन्दोलन में जिला परिषद् सदस्य सैनु गोटा, जिला परिषद् सदस्य एड. लालसू नागोटी, भामरागड पं. समिति सभापति सुखराम मडावी, एटापल्ली पं. समिति सभापति बेबी लेकामी, भामरागड पं. समिति उपसभापति प्रेमिला कुड्यामी, एटापल्ली पं. समिति उपसभापति नितेश नरोटे, एटापल्ली पं. समिति सदस्य शिला गोटा, जिला परिषद् संजय चरडूके, भामरागड पं. समिति सदस्य गोई कोडापे, सुरजागड़ सरपंच कल्पना आलाम, नगरपंचायत उपाध्यक्ष रमेश गंपावर, माजी जिला परिषद् सदस्य अमोल मारकवार, नंदू मत्तामी प्रमुख रूप से उपस्थित थे। एटापल्ली एवं भामरागड के विभिन्न क्षेत्रो से ग्रामीणों ने हजारो की तादाद में हिस्सा लिया।

 

एड. लालसू नागोटी और सैनु गोटा द्वारा भेजी गई प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित रिपोर्ट।