मासुका बनाने की मांग तेज़, दिल्ली में आज जारी होगा प्रस्तावित कानून का ड्राफ्ट

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इस देश को आज़ादी मिले सत्‍तर साल हो गए और संविधान को बने भी तकरीबन इतने ही साल हुए, लेकिन आज तक संविधान में वर्णित अनुच्‍छेद 21 का पूरी तरह सम्‍मान नहीं किया जा सका है जो हर नागरिक को उसके जीवन औी निजी स्‍वतंत्रता की रक्षा की गारंटी देता है। जीवन की सुरक्षा की गारंटी का मतलब है आजीविका की गारंटी, खाने-पीने की गारंटी, अपने तौर-तरीके से जीने की गारंटी। निजी स्‍वतंत्रता का दायरा तो खैर बहुत बड़ा है और आजकल तो राज्‍य ही बताने लगा है कि क्‍या खाना है, क्‍या पहनना है और कैसे जीना है। अनुच्‍छेद 21 का संवैधानिक संकट इस देश में शाश्‍वत रहा है और जब-जब इसका अहसास कुछ लोगों को शिद्दत से होता है, वे इसे पूरी तरह लागू करने और इसका सम्‍मान करने का दबाव बनाने के बजाय नए-नए कानून लेकर आ जाते हैं। एक समय में भोजन के अधिकार का कानून बना जबकि यह अनुच्‍छेद 21 में पहले से समाहित था। उसके बाद रोजगार गारंटी के अधिकार का कानून बना। फिर खाद्य सुरक्षा का कानून बना। ये सब अधिकार अनुच्‍छेद 21 के अंतर्गत आते थे लेकिन अलग से बनाए गए। अब मानव सुरक्षा कानून यानी मासुका बनाने की मांग अचानक तेज़ हो गई है।

दिल्‍ली के कॉंस्टिट्यूशन क्‍लब में शुक्रवार को नागरिक समाज के कुछ बड़े चेहरे और संगठन मिलकर मासुका का एक मसविदा पेश करेंगे और सरकार से मानव सुरक्षा कानून बनाने की मांग करेंगे। जिस तरह से देश में पिछले दिनों हिंसा बढ़ी है और लोगों को हिंसक भीड़ द्वारा मारा-काटा जा रहा है, ऐसे में चिंताएं वाजिब हैं लेकिन संविधान में वर्णित अधिकारों के समानांतर उन्‍हीं अधिकारों के लिए एक नया कानून बनाने की मांग बिलकुल नई परिघटना है जिसे हम नागरिक समाज और एनजीओ के उभार के वक्‍त से देखते आए हैं। जीवन के अधिकार का सम्‍मान जब संविधान में होते हुए नहीं किया जा सका है तो इसके लिए अलग से एक नया कानून बनाकर यह काम कैसे हो सकता है? क्‍या निर्भया कानून बनाने से बलात्‍कार रुक गए या फिर खाद्य सुरक्षा कानून बनाने से सबको खाना मिल गया?

Shashi Tharoor speaks about Mob violence & raised his support to #MASUKA Draft to be released tomorrow

Posted by National Campaign Against Mob Lynching on Thursday, July 6, 2017

इस पर लंबी बहस मुमकिन है, लेकिन फिलहाल मानव सुरक्षा कानून के लिए नागरिक समाज के तमाम धड़े और संगठनों समेत कुछ गणमान्‍य व्‍यक्ति एकजुट हो रहे हैं। इसे कांग्रेस का भी परोक्ष समर्थन हासिल है, जैसा कि इसके फेसबुक पेज पर कांग्रेसी नेताओं के पोस्‍ट किए गए संदेशों से जाहिर होता है। इस कानून के लिए प्रचार का जिम्‍मा अभिनेत्री स्‍वरा भास्‍कर ने संभाला है जो एक ऑनलाइन पिटीशन इसके समर्थन में चला रही हैं।

मौजूदा सामाजिक हालात को देखते हुए इसे एक सदिच्‍छा भरी पहल कहा जा सकता है, लेकिन यह बात नागरिक समाज के सोचने की है कि नए-नए कानूनों की मांग कर के कहीं हम संविधान की मूल भावना के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे हैं।


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