‘जेएनयू नारेबाज़ी’ पर दो साल बाद भी चार्जशीट नहीं ! क्या ‘नक़ाबपोश’ वाक़ई सरकारी थे ?

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ठीक दो साल पहले 9  फ़रवरी 2016 को न्यूज़ चैनलों के ज़रिए जेएनयू में लगे ‘भारत की बर्बादी’ के सही-ग़लत वीडियो घर-घर पहुँचे थे। इसी के बाद आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों ने पूरे जेएनयू को देशद्रोही साबित करने की देशव्यापी मुहिम शुरू कर दी थी। पुलिस ने तेज़ी दिखाते हुए मौक़े पर मौजूद न रहने के बावजूद छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को दो अन्य छात्रनेताओं के साथ गिरफ़्तार कर लिया था। ये छात्रनेता जेल और अदालत में पिटाई के दौर से गुज़रे, लेकिन नारे लगाने वाले नक़ाबपोश कौन थे, इस पर पुलिस और सरकार दो साल बाद भी पूरी तरह मौन हैं।

वाक़ई यह अजीब बात है कि ख़ुद को स्कॉटलैंडयार्ड की पुलिस समझने वाली दिल्ली पुलिस आज तक इस मामले में कोई चार्जशीट दायर नहीं कर पाई,  न उन नक़ाबपोशों के बारे में ही कुछ पता चला है जिनको नारेबाज़ी करते टीवी सक्रीन पर देखा गया। इस संबंध में आज इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने चार्जशीट न दाखिल किए जाने को लेकर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रो.जयति घोष का आरोप सही है। मशहूर अर्थशास्त्री और जेनयू में तीस साल से पढ़ा रहीं प्रो.जयति घोष ने ‘आल्टरनेटिव क्लास’ शृंखला के तहत परिसर में 5 मार्च 2016 को दिए गए अपने लेक्चर के बाद साफ़ कहा था कि देशविरोधी नारेबाज़ी करने वाले दरअसल आई.बी. के लोग थे और यह जेएनयू को बदनाम करने की बड़ी मुहिम के तहत किया गया। उन्होंने आरोप लगाया था कि सरकार हर उस व्यक्ति और संस्था को ‘देशद्रोही’ कहकर निशान बना रही है जो सरकार की दमनकारी और जनविरोधी नीतियों का विरोध करते हैं। चूँकि जेएनयू प्रतिवाद का बड़ा केंद्र है, इसलिए वह केंद्र सरकार के निशाने पर ख़ासतौर से है। इस संबंध में 6 मार्च 2016 को नवभारत टाइम्स में छपी ख़बर आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

जो भी हो, दो साल में चंद नक़ाबपोश नारेबाज़ों को न पकड़े जाने का सवाल अहम है, जबकि जेएनयू के छात्रनेताओं और वामपंथी समझे जाने वाले शिक्षकों के ख़िलाफ़ रात-दिन अभियान चलाने में कोई कोताही नहीं की गई। वैसे, तमाम परेशानियों और हो हल्ले के बीच जेएनयू को पिछले साल राष्ट्रपति से देश की सर्वश्रेष्ठ युनिवर्सिटी का ख़िताब भी मिला।

बहरहाल, जेएनयू नारेबाज़ी कांड से चर्चित हुए जेएनयू के छात्रनेता प्रतिवाद के तमाम मोर्चों पर सक्रिय दिखते हैं। वे अपने ऊपर लगे आरोपों से निश्चिंत दिखते हैं।  अगर सरकार अपने आरोप साबित नहीं कर पाई तो एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा वाली युनिवर्सिटी को बर्बाद और बदनाम करने की साज़िश का ऐसा दाग़ उसके माथे पर लगेगा, जिसे छुड़ाना काफ़ी मुश्किल होगा।

 

.बर्बरीक

 

इस वीडियो में सुनिए प्रो.जयति घोष का आरोप कि जेएनयू की घटना के पीछे आईबी का हाथ है-

 

 

 



 

 


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