पहला पन्ना: ट्विटर ने कांग्रेस का और सरकार ने मीडिया का घोंटा गला!


द टेलीग्राफ अखबार का शीर्षक है, भारत की आत्मा को बचाने के लिए युद्ध। फ्लैग शीर्षक है, विपक्ष ने अधिनायकवाद से लड़ने की कसम खाई। अखबार ने बताया है कि 14 विपक्षी दलों के नेताओं के एक समूह ने संसद से विजय चौक तक विरोध मार्च किया। अखबार ने ट्वीटर की खबर अलग से छापी है और इसका शीर्षक लगाया है कांग्रेस का लॉकतंत्र बनाम ट्वीटर। इसमें बताया गया है कि कांग्रेस के जिन नेताओं के ट्वीटर अकाउंट चल रहे हैं उनमें कइयों ने राहुल गांधी की फोटो लगा रखी है और यह ट्वीटर के लॉकतंत्र का विरोध करने का उनका तरीका है।


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


राहुल गांधी ने कहा है कि विपक्ष को संसद में किसानों, गरीबों, युवाओं और पेगासुस जासूसी विवाद से संबंधित मामला नहीं उठाने दिया जा रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत को कुछ चुने हुए उद्यमियों को बेच रहे हैं। मैं देश नहीं बिकने दूंगा के बाद उन पर यह आरोप पर्याप्त गंभीर है लेकिन मीडिया को काबू में करने के बाद अब संसद को भी मनमाने ढंग से चलाने की कोशिशों का विरोध हो रहा है और ऐसे गंभीर मामले को आज अखबारों में लीड तो होना ही था पर शीर्षक में सरकार के प्रति नरमी या अपने काम से बचने की कोशिशें साफ दिखाई दे रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक आज पांच या छह कॉलम में नहीं है। आज दो कॉलम का विज्ञापन नहीं है जो किसी भी खबर को आठ कॉलम में तानने से रोकता था। फिर भी आज यह खबर सिर्फ तीन कॉलम में है।  

 

1.इंडियन एक्सप्रेस 

फ्लैग शीर्षक है – मानसून सत्र के बाद का दिन। मुख्य शीर्षक है, सरकार ने सदन को पटरी से उतार दिया : विपक्ष ने बाहर युद्ध की तैयारी की। इसके साथ उपशीर्षक है, ट्वीटर ने राहुल, कांग्रेस और 20 से ज्यादा नेताओं तथा पार्टी की राज्य इकाइयों के  हैंडल लॉक किए। वैसे तो ट्वीटर का मामला सरकार से अलग होना चाहिए पर एक साथ छापने का मकसद यह बताना हो सकता है कि ट्वीटर के बिना लड़ाई होगी कैसे? और इसीलिए शीर्षक में यह नहीं बताया गया है कि विपक्ष ने विजय चौक तक मार्च किया। इसकी बजाय एक और खबर है, सरकार ने आठ मंत्रियों को उतारा, धमकियों (खतरों) के आरोप लगाए। विज्ञापनों से भरे पहले पन्ने में इस अखबार ने इस खबर को बहुत कम जगह दी है। 

 

2.हिन्दुस्तान टाइम्स 

सदन के अंदर की अराजकता के लिए सरकार और विपक्ष बाहर भिड़े उपशीर्षक या खबर से संबंधित खास बिन्दुओं का शीर्षक है, टकराव संसद के बाहर पहुंचा। इसके बाद की लाइन से बताया गया है, मानसून सत्र अचानक खत्म होने से एक और राजनीतिक युद्ध शुरू हुआ। कहने की जरूरत नहीं है कि अखबार बता रहा है कि युद्ध क्यों शुरू हुआ पर पर दोष किसका है इसपर शीर्षक में कुछ नहीं है। एक बिन्दु यह भी है कि, मामले की जड़ में संसदीय कार्यवाही का सीसीटीवी का फुटेज है जो कथितरूप सेदिखाता है कि विपक्ष के नेता राज्य सभा में सुरक्षा कर्मियों से धुक्का मुक्की कर रहे हैं। अब राज्य सभा में विपक्ष के नेता सुरक्षा कर्मी से धक्का मुक्की तभी करेंगे जब वे वहां होंगे। सवाल है कि वे वहां थे क्यों और कौन सा मुद्दा महत्वपूर्ण है? संसद की कार्यवाही दिखाने वाले फुटेज में कथितरूप सेका क्या मतलब है और किस जरूरत से घुसाया गया है। क्या लोगों ने लाइव नहीं देखा है, क्या उसकी तस्वीरें नहीं दिखी हैं। जाहिर है, यह घटिया रिपोर्टिंग का उदाहरण है। अखबार ने इसके साथ दूसरी खबर में बताया है कि पेगासुस पर बहस क्यों नहीं हो सकती है। क्यों होनी चाहिए, ऐसा कभी इस अखबार ने बताया हो (संसद में मांग के दौरान) मुझे याद नहीं है।  

 

3.टाइम्स ऑफ इंडिया 

इस अखबार का शीर्षक ऐसे लिखा गया है जैसे यह सरकार का पक्ष बयान कर रहा हो। अखबारों के साथ कभी-कभी दिक्कत होती है कि घटना और प्रतिक्रिया दोनों हो चुकी होती है। अब ताजा खबर छापने की मजबूरी है कि प्रतिक्रिया को प्रमुखता दें घटना बाद में बताएं कि कल का अखबार छपने के बाद ऐसा हुआ था और उसपर यह प्रतिक्रिया हुई जो पहले बताई जा चुकी है। आमतौर पर यह नियम है। लेकिन सरकारी कार्रवाई पर विपक्ष के जवाब के मामले में यह फॉर्मूला अपनाया जाएगा तो आप विपक्ष के साथ लगेंगे क्योंकि विपक्ष का आरोप बाद में आएगा। टाइम्स ने विपक्ष के आरोप के बाद सरकारी जवाब को प्रमुखता दी है जो दरअसल औपचारिकता होती है। अखबार ने कल भी ऐसा ही किया था और शरद पवार के कहे को नीचे छापा था कि 55 साल के इतिहास में उन्होंने पहली बार देखा। कहने की जरूरत नहीं है कि अखबार सरकार की सेवा में तल्लीन है। और इसीलिए इसका शीर्षक है, “सरकार ने झूठ‘, ‘राज्यसभा में हिन्साकी निन्दा की; विपक्ष ने हमले का विरोध किया।” अब इसमें संपादकीय बुद्धिमानी का प्रयोग इतना ज्यादा है कि इसपर टिप्पणी करने की कोई जरूरत नहीं है। 

 

4.द हिन्दू 

द हिन्दू का शीर्षक टाइम्स ऑफ इंडिया का उल्टा है या मूल बात बताता है। इसे इनवर्टेड कॉमा में रखा गया है और इसका मतलब है कि यह विपक्ष का आरोप है लेकिन गाड़ी पटरी पर है और मामला मुद्दे पर। एक्सप्रेस की तरह यहां सरकार की मनमानी को गाड़ी पटरी पर से उतारना नहीं कहा गया है। हालांकि गाड़ी पटरी पर से उतर जाए तो सिस्टम ही दोषी होता है, भले सिस्टम अपने मुखिया को बचा ले और वह गाड्री का ड्राइवर या ट्रांसपोर्ट कंपनी का प्रधान, कोई भी हो सकता है। हिन्दू ने सरकारी पक्ष को भी उतनी ही प्रमुखता से छाप दिया है और वह यह है कि आरोप झूठ का पुलिन्दा है, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा। जब हिन्दुस्तान टाइम्स सरकारी टेलीविजन चैनल के फुटेज के तथ्य को कथित कह सकता है तो पीयूष गोयल से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं। यह अलग बात है कि अक्सर ऐसा कहने वाले रविशंकर प्रसाद आजकल पर्दे के पीछे कर दिए गए हैं। 

 

5.द टेलीग्राफ 

अखबार का शीर्षक है, भारत की आत्मा को बचाने के लिए युद्ध। फ्लैग शीर्षक है, विपक्ष ने अधिनायकवाद से लड़ने की कसम खाई। अखबार ने बताया है कि 14 विपक्षी दलों के नेताओं के एक समूह ने संसद से विजय चौक तक विरोध मार्च किया। अखबार ने ट्वीटर की खबर अलग से छापी है और इसका शीर्षक लगाया है कांग्रेस का लॉकतंत्र बनाम ट्वीटर। इसमें बताया गया है कि कांग्रेस के जिन नेताओं के ट्वीटर अकाउंट चल रहे हैं उनमें कइयों ने राहुल गांधी की फोटो लगा रखी है और यह ट्वीटर के लॉकतंत्र का विरोध करने का उनका तरीका है।  

कहने की जरूरत नहीं है कि आज की सभी खबरों में यही सबसे महत्वपूर्ण है और सभी अखबारों में लीड भी। इसके शीर्षक से हेडलाइन मैनेजमेंट का असर साफ दिखाई दे रहा है। इसमें सबसे खास है, टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक। जिसे सरकार की ओर से बनाने के लिए अच्छी-खासी प्रतिभा का उपयोग किया गया है।    

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।