पहला पन्ना: संबित पात्रा के ट्वीट का बचाव, मंजुल का कार्टून हटवाना और अब घंटे भर की ‘परेशानी!’ 


“मेरा मानना है कि देश का मंत्री इतना कमजोर कभी नहीं रहा। मुझे लगता है तथा यह दिख भी रहा है कि सरकार ट्वीटर को अपने नियंत्रण में रखना चाहती है। वह नहीं चाहती है कि ट्वीटर बंद हो जाए। बेशक, ट्वीटर के संचालकों को यह सब समझ में आ रहा है और वे मंत्री जी से पंगा लेने की स्थिति में पहुंच गए हैं। वैसे भी एक घंटे ट्वीटर अकाउंट से वह छटपटा रहा है जिसकी सरकार ने देश के एक हिस्से में करोड़ों लोगों को सबसे लंबा इंटरनेट शटडाउन दिया है। जाहिर है, यह सब मीडिया की मिलीभगत से संभव हो रहा है।”


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था केंद्रीय सूचना और तकनालाजी मंत्री रविशंकर प्रसाद का ट्वीटर अकाउंट एक घंटे के लिए बंद किया जाना आज पहले पन्ने की खबर होगी। कल जब यह खबर आई तो मुझे यह जैसे को तैसा या जैसी करनी, वैसी भरनी का मामला लगा और मेरे विचार से एक मंत्री ने अपना जो हाल बनाया है, उसका यह प्रकटीकरण था। देर-सबेर होना ही था। कुछ अन्य के साथ यह सब पहले भी हो चुका है। मेरा मानना है कि देश का मंत्री इतना कमजोर कभी नहीं रहा। मुझे लगता है तथा यह दिख भी रहा है कि सरकार ट्वीटर को अपने नियंत्रण में रखना चाहती है। वह नहीं चाहती है कि ट्वीटर बंद हो जाए। बेशक, ट्वीटर के संचालकों को यह सब समझ में आ रहा है और वे मंत्री जी से पंगा लेने की स्थिति में पहुंच गए हैं। वैसे भी एक घंटे ट्वीटर अकाउंट से वह छटपटा रहा है जिसकी सरकार ने देश के एक हिस्से में करोड़ों लोगों को सबसे लंबा इंटरनेट शटडाउन दिया है। जाहिर है, यह सब मीडिया की मिलीभगत से संभव हो रहा है। 

हालांकि, बात मनमाने कानून की है और ट्वीटर भिन्न उपायों से इसे बताता रहता है। मंत्री जी भी अपने आचरण से बता रहे हैं कि वे देश और जनता के लिए नहीं, पार्टी के लिए काम कर रहे हैं और उसी के लिए चिन्तित हैं। मोटे तौर पर वे जिन कानूनों का हवाला दे रहे हैं उसी के तहत संबित पात्रा के ट्वीट से मैनिपुलेटेड का टैग हटवाना चाहते हैं, कार्टूनिस्ट मंजुल के कार्टून हटवाना चाहते हैं गाजियाबाद में जो हुआ उसके बाद ट्विटर के एक्शन नहीं लेने से उन्हें हैरानी हुई आदि-आदि। फेक न्‍यूज के नाम पर वे ट्वीटर को अतिसक्रिय रखना चाहते हैं पर खुद ही मैनिपुलेटेड टैग का विरोध करते हैं। अगर फेक न्यूज पर तुरंत कार्रवाई अपेक्षित है तो हर शिकायत पर कार्रवाई करनी होगी और जांच होने तक किसी भी अकाउंट को रोकना ही होगा। यह नियम आम आदमी के लिए हो सकता है तो मंत्री के लिए क्यों नहीं? वह भी तब जब मंत्री की पक्षपाती कार्रवाई जगजाहिर है। इसलिए मुझे लगता है कि ट्वीटर ने अगर मंत्री जी का खाता बंद किया तो उन्हीं कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने की मजबूरी में किया जो मंत्री जी ने बनाए हैं और जबरन लागू करना चाहते हैं।    

ट्वीटर की कल की कार्रवाई को मोटे तौर पर इसे ऐसे देखिए कि मंत्री जी ट्वीटर के खिलाफ काफी मुखर हैं, अखबारों में इंटरव्यू छपवा रहे हैं और टेलीविजन पर भी आ रहे हैं। इसका कोई क्लिप अगर वे अपने ट्वीटर हैंडल से साझा करें तो नियमानुसार वह उस चैनल का कॉपीराइट मटेरियल होगा और चैनल की शिकायत पर ट्वीटर को उसे हटाना होगा। लेकिन कॉपीराइट वाले मामले में जब ट्वीटर को पता है तो वह शिकायत का इंतजार क्यों करे? और पोस्ट करने पर चेतावनी क्यों न दे? वैसे भी, ये पोस्ट ट्वीटर पर ट्वीटर के ही खिलाफ होते हैं। निष्पक्षता का तकाजा है कि इन्हें रहने दिया जाए पर कॉपी राइट मामला तो स्पष्ट होना चाहिए? क्या नए कानून में इसपर कुछ है? मेरे ख्याल से मुझे अपना इंटरव्यू (भले किसी और ने लिया हो) एक समय के बाद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट करने का अधिकार मिलना चाहिए। और इंटरव्यू की शर्त यह हो सकती है। जनता को यह अधिकार दिलाना सरकार का काम है। लेकिन इसके लिए कानून को स्पष्ट होना होगा। यह नहीं चलेगा कि आप (या सरकार) पर नियम लागू नहीं हो और आप (यानी सरकार) जिसपर चाहें उस पर लागू कर दिया जाए। 

ट्वीटर की कार्रवाई बहुत स्पष्ट है कल की कार्रवाई इसी मामले में की गई थी या कोई और बात थी पर मुझे अच्छा लगा कि वह मंत्री को भी आम आदमी के बराबर मान रहा है। मंत्री जी को यह स्पष्ट करना चाहिए था और इसके लिए तारीफ करनी चाहिए थी या बताना चाहिए था कि क्यों यह आम आदमी के खिलाफ कार्रवाई से अलग है। अखबारों को भी अगर खबर को इतना महत्व देना था तो ये सब मुद्दे स्पष्ट करने चाहिए थे। पर ऐसा है नहीं। जहां तक गाजियाबाद वाला मामला है, अगर वीडियो गलत या फर्जी या संपादित है तो कार्रवाई पोस्ट करने वालों पर होनी चाहिए लेकिन ट्वीटर को ऐसे ही कानूनों और कार्रवाई से मध्यस्थ को मिलने वाली सुरक्षा से वंचित कर दिया गया है। हालांकि मेरी राय में इसके लिए थोपी गई शर्तें भी अव्यावहारिक है। दिलचस्प यह है कि छोटे वेबसाइटों और पोर्टल के लिए भी यही नियम है और छोटे पोर्टल तो ये सब शर्तें मान ही नहीं पाएंगे और देर सबेर वैसे ही धंधे से बाहर हो जाएंगे जैसे छोटे कारोबारी, दर्जी, हस्तशिल्प कलाकार आदि बाहर हो गए। हालत तो सरकार के बहुप्रचारित एमएसएमई क्षेत्र की भी बुरी है। पर प्रचार और हेडलाइन मैनेजमेंट से सब संभला हुआ है। 

अखबारों का काम था कि वे नए आईटी कानून की खामियां बताते, मंत्री के परस्पर विरोधी आदेशों की चर्चा करते पर यह सब नहीं करेके ट्वीटर की कार्रवाई और मंत्री के बयान ही प्रकाशित करते हैं। ऐसे में ट्वीटर भी इन्हीं के तरीके अपना रहा है और ऐसी कार्रवाई कर रहा है कि उसका पक्ष मंत्री जी की कार्रवाई से प्रचारित हो रहा है। वैसे भी सरकार का इरादा और लक्ष्य साफ होता तो यह अशोभनीय स्थिति आती ही नहीं। पर यह सरकार तो पूरी तरह प्रचारजीवी है और तमाम संवैधानिक संस्थानों को बगैर इमरजेंसी घोषित किए बाकायदा नष्ट करने या पंगु बनाने के बाद प्रधानमंत्री ने कल ट्वीट किया था, “इमरजेंसी के काले दिनों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। 1975 से 1977 के दौरान संस्थाओं की व्यवस्थित बर्बादी देखी गई। आइए, हम प्रण करें कि भारत की लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करने के लिए हर संभव काम करेंगे और संविधान प्रदत्त मूल्यों की रक्षा करें।” बेशक यह प्रधानमंत्री की आगे की योजना या इच्छा हो सकती है पर लोकतंत्र की बात उनके ट्वीट में अच्छी नहीं लगती है। खासकर कश्मीर के संदर्भ में या नोटबंद से लेकर लॉकडाउन के अंदाज में। या फिर विरोधियों से निपटने के लिए अभी तक अपना गए तरीकों में जब एक के कंप्यूटर में सबूत प्लांट करने का आरोप है और उसपर भी कार्रवाई नहीं हो रही है क्योंकि मामला अदातल में है। द टेलीग्राफ ने आज इस ट्वीट के साथ कई मामलों का उल्लेख किया है लेकिन बाकी संपादकों के लिए यह चर्चा का विषय नहीं है।   

दरअसल मीडिया का बड़ा हिस्सा सरकार की चाटुकारिता में लगा हुआ है और जनता अपनी बात सोशल मीडिया के जरिए रख पा रही है तो उसे नियंत्रित करने की हरसंभव कोशिश हो रही है। इस क्रम में मंत्री जी की भावना उनके इस ट्वीट से व्यक्त होती है। हालांकि ट्वीटर का अभी तक कुछ बिगड़ा नहीं है। ट्वीट इस प्रकार है, “अगर किसी विदेशी संस्‍था को लगता है कि वह खुद को भारत में अभिव्‍यक्ति की आजादी का झंडाबरदार बनकर कानून की पालना से खुद को बचा लेगी, तो ऐसी कोशिशें बेकार हैं।” इसीलिए इंडियन एक्सप्रेस में आज यह खबर लीड है। शीर्षक है, ट्वीटर ने आईटी मंत्री का खाता बंद किया, उन्होंने नियमों के उल्लंघन का हल्ला बोला। मुझे लगता है कि जब यह नियम नहीं  है कि मंत्री का खाता ब्लॉक नहीं किया जाएगा तो यह शीर्षक भ्रम फैलाने वाला है। अगर ऐसा है या अपेक्षित है तो साफ-साफ कहा जाना चाहिए। ट्वीटर ने कल की कार्रवाई से प्रचारकों की रणनीति का लाभ उठा लिया है और ऐसा वह शुरू से करता रहा है। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर सूचना की तरह है, ट्वीटर ने आईटी मंत्री को घंटे भर के लिए ब्लॉक किया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इस खबर को लीड बनाया है पर शीर्षक बिल्कुल स्पष्ट है। ट्वीटर ने कॉपीराइट की शिकायत पर (रविशंकर) प्रसाद को अस्थायी रूप से ब्लॉक किया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसके साथ यह भी बताया है कि ट्वीटर पूर्व में अमित शाह के खिलाफ, जून 21 में वेंकैया नायडू और कांग्रेस सांसद शशि थरूर के खिलाफ भी कार्रवाई कर चुका है और जाहिर है जो कानून है या मंत्री जी जिस ढंग से अनुपालन करवा रहे हैं उसमें उनका अकाउंट भी बंद हो गया भले वे आम जनता के लिए चिन्तित होने का दावा करें। द हिन्दू में इस खबर का शीर्षक है, अकाउंट बंद करने, ‘मनमानीकार्रवाई  के लिए आईटी मंत्री ने ट्वीटर पर हल्ला बोला। बेशक यह पहले पन्ने का शीर्षक हो गया है। लेकिन बाकी शीर्षक में वह बात नहीं है। 

द टेलीग्राफ ने इस बहाने चमड़ी की मोटाई या मोटाई की भी चर्चा कर ली है। सबसे मोटी किताब, सबसे गहरी हथियारबंदी इसके साथ प्रधानमंत्री के कल का ट्वीट भी लगाया गया है। मुख्य खबर का शीर्षक है, … उनका हमला सबसे जोरदार है और फिर तीसरी खबर है, ट्वीटर पर सबसे पतली चमड़ी का संकेत। पहली खबर के साथ लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करने के नरेन्द्र मोदी के ट्वीट के साथ बताया गया है कि मोदी राज में लोकतंत्र का क्या हाल है। और यह भी बताया है कि इमरजेंसी के लिए इंदिरा गांधी ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी और राहुल गांधी ने मार्च में कहा था, मैं समझता हूं कि वह एक गलती थी। बिल्कुल, वह गलती थी और मेरी दादी ने भी यही कहा था।” आज की तीसरी खबर के अनुसार पत्रकार रोहिनी सिंह ने कल ट्वीट किया था, एक वीडियो के कारण मुझे भी ऐसी नोटिस मिली थी। कॉपीराइट का मामला पश्चिम में बड़ा होता है। होता रहता है। थोड़ा कानून के बारे में पढ़िए (कानून मंत्री थी) और अपना ईमेल देखिए। आपको पता चल जाएगा कि किसने शिकायत की थी। उन्होंने आगे लिखा है, कानून वीआईपी या माननीय मंत्री तथा आम आदमी में भेदभाव नहीं करता है। क्योंकि कानून की नजर में हर कोई बराबर है। दुखद है कि ट्वीटर में भारत के मंत्रियों के खातों पर लाल बत्ती नहीं है। दूसरी ओर, तथ्य यह भी है कि ट्वीटर की नवीनतम पारदर्शी रिपोर्ट के अनुसार उसे जनवरी से जून 2020 के बीच अमेरिका के डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट ऐक्ट (डीएमसीए) के तहत 1,74,000 नोटिस मिले हैं और अनुपालन की दर 57 प्रतिशत है।  

आज एक और शर्मनाक खबर है जिसकी चर्चा होनी चाहिए थी पर यह कॉलम हेडलाइन मैनेजमेंट का शिकार हो गया। दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से कई लोगों की मौत के बावजूद प्रचारजीवी सिस्टम यह खबर छपवा रहा है कि अरविन्द केजरीवाल ने ज्यादा ऑक्सीजन की मांग की थी। वैसे तो उस स्थिति में ज्यादा मांग करना गलत नहीं था और था भी तो पूर्ति नहीं हुई और देश भर में लोग ऑक्सीजन की कमी से मरे। और सिस्टम इतना बेशर्म है कि उसपर अफसोस करने, उसका दोहराव रोकने के उपाय की बजाय यह प्रचारित करने में लगा है कि अरविन्द केजरीवाल ने कोई अपराध कर दिया हो जबकि मनीष सिसोदिया ने कहा है कि ऐसी कोई रिपोर्ट ही नहीं है।    

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।