पहला पन्ना: एकतरफ़ा ख़बरें छापने का सिलसिला टूट नहीं रहा है!


टाइम्स ऑफ इंडिया में आज यह मामला दो कॉलम में छपा है। शीर्षक है, “राज्यसभा में धक्का-मुक्की के लिए विपक्षी सांसदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की संभावना।” देश के लिए हंसते-हंसते फांसी पर लटक जाने वालों के देश में सख्त कार्रवाई से अखबार का क्या मतलब है, मैं नहीं जानता पर तथ्य यही है पूरी आशंका होने के बावजूद धर्मविशेष के सुरक्षाकर्मियों को नहीं हटाने वाली इंदिरागांधी अपने ही सुरक्षाकर्मियों के हाथों मारी गईं फिर भी उनके बेटे इतना नहीं डरें कि लाल किले से भाषण के लिए कंटेनर की दीवार खड़ी कर दें या घर बैठ जाएं और अंततः वे भी मारे गए।


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


वैसे तो आज अफगानिस्तान में तालिबान का नियंत्रण बढ़ने की खबर ज्यादातर अखबारों में लीड है लेकिन मैं बात करूंगा संसद में हंगामे की, संसद का सत्र पहले खत्म कर दिए जाने की और सांसदों कोसुरक्षाकर्मियों से पिटवाने के आरोपों की। कुल मिलाकर, इन आरोपों की कि संसद में विपक्ष को बोलनेनहीं दिया जाता है। कहने की जरूरत नहीं है कि मामला बहुत गंभीर है पर अखबारों में ऐसा कुछ दिखनहीं रहा है और यह दिलचस्प है कि सरकार ने विपक्ष पर ही आरोप लगाए हैं और प्रचारक उसी को हवा देरहे हैं। इस मामले में आज के अखबारों की खबरें ऐसी ही हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज यह मामला दो कॉलम में छपा है। शीर्षक है, “राज्यसभा में धक्का-मुक्की के लिए विपक्षी सांसदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की संभावना।” देश के लिए हंसते-हंसते फांसी पर लटक जाने वालों के देश में सख्त कार्रवाई से अखबार का क्या मतलब है, मैं नहीं जानता पर तथ्य यही है पूरी आशंका होने के बावजूद धर्मविशेष के सुरक्षाकर्मियों को नहीं हटाने वाली इंदिरागांधी अपने ही सुरक्षाकर्मियों के हाथों मारी गईं फिर भी उनके बेटे इतना नहीं डरें कि लाल किले से भाषण के लिए कंटेनर की दीवार खड़ी कर दें या घर बैठ जाएं और अंततः वे भी मारे गए।

ऐसे में अगर संसद में बहस नहीं होने दी जा रही है तो उसका विरोध होगा और उसके लिए कोई भी सजा मामूली है। जहां तक खबर के अनुसार संभावना है, इस देश में हत्यारों, बलात्कारियों और अपहरणकर फिरौती वसूलने वालों के खिलाफ तो कार्रवाई होने में वर्षों लग जाते हैं वहां सांसदों के खिलाफ कब क्या कार्रवाई होगी इसपर अटकल लगाने में किसकी दिलचस्पी हो सकती है? फिर भी टाइम्स ऑफ इंडिया नेआज यही किया है। बेशक, कार्रवाई का फैसला हो जाता तो यह खबर होती पर सरकार क्या सोच रही है यह बताना था तो यह भी बताना चाहिए कि विपक्ष क्या कर और कह रहा है। वैसे ही, जैसे इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है।

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह सिंगल कॉलम में लेकिन टॉप पर है। पूरी खबर अंदर होने की सूचना है। इसका शीर्षक है, “राज्यसभा विपक्षी सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की योजना बना रहा है।” मुझे नहीं लगता कि विपक्षी सदस्यों पर जो आरोप है वह सही है और उसके लिए सजा होगी पर अगर बिना सुनवाई मनमानी सजा हो सकती हो तो भी वह इतनी सख्त नहीं हो सकती है कि उस पर चिन्ता की जाए। इसके मुकाबले जो स्थिति बनी है उसमें आगे क्या हो सकता है और देश हित में क्या होना चाहिए इस पर चर्चा ज्यादा दिलचस्प और जरूरी है, पर वह नहीं हो रही है।

इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर ज्यादा स्पष्ट है लेकिन यहां विपक्ष का भी पक्ष है, हालांकि हिन्दुस्तान टाइम्स में विपक्ष का पक्ष भी सिंगल कॉलम में है। लेकिन उसकी चर्चा बाद में। यहां फ्लैग शीर्षक है,“राज्य सभा में 11 अगस्त के अराजक दृश्य।” मुख्य शीर्षक है, “वेंकैया ने “उप्रदवी” विपक्षी सांसदों के खिलाफ कार्रवाई पर विचार किया, सलाह मांगी।” उपशीर्षक है, “कार्रवाई की सिफारिश के लिए समिति की किस्म – एथिक्स, प्रीविलेज, स्पेशल पर फैसला करना है।” यहां याद आया कि पेगासुस मामले में संसदीय समिति की बैठक में भाजपा सांसद उपस्थित तो हुए पर दस्तखत करने से मना कर दिया और इस कारण कोरम पूरा न होने से बैठक नहीं हो सकी। दूसरी ओर, संबंधित सरकारी अफसर भी इस बैठक में नहीं आए। और उनके खिलाफ भी कार्रवाई की बातचीत चल रही थी। उसे अखबारों में प्राथमिकता मिली होगी तो आप जानते ही होंगे।

इंडियन एक्सप्रेस ने अच्छा यह किया है कि इसमें विपक्ष का पक्ष भी है। वेंकैया नायडू वाली खबर के नीचे ही एक खबर का शीर्षक है, “सरकार ने विपक्ष को बोलने ही नहीं दिया अगर हमारी आवाज ही नहीं होगी तो हम मुद्दे कैसे उठाएंगे : खड़गे।” कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार जो चाहती है, करती है या जिसे ठीक समझती है, वही करती है। प्रचारक उसके साथ हैं। लेकिन विपक्ष का कहा सामने नहीं आएगा तो जनता अच्छे बुरे का, लोकतांत्रिक और तानाशाह में से अच्छे नेता का चुनाव कैसे करगी। मीडिया जनता को उनके नेताओं के बारे में बता ही नहीं रहा है। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि विपक्षी नेताओं (और उनके काम को) गलत या बुरा प्रचारित किया जा रहा है और सरकार जो भी करे, उसका समर्थन होता है, उसे प्रचारित किया जाता है।

द हिन्दू में आज यह खबर बिल्कुल अलग शीर्षक से है। “सदन चर्चा के लिए है राजनीतिक युद्ध के लिए नहीं : वेकैया।” हालांकि, पहले पेज पर जितनी खबर छपी है उससे यह पता नहीं चल रहा है कि उन्होंने यह बात कहां किस मौका पर कही। यह खबर पेज 10 पर जारी है। बेशक, वेंकैया नायडू ने ऐसा कहा है तो छपने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन कहां, किस मौके पर कहा यह भी बता दिया जाता तो तय करना आसान होता कि अलग-अलग शीर्षक से छपी ऐसी सूचनाएं प्रचार हैं या खबर। अकले द हिन्दू ने आज इस खबर के साथ एक और खबर छापी है। इनवर्टेड कॉमा में इसका शीर्षक है,”उद्योग के व्यवहा रराष्ट्रहित के खिलाफ हैं।”

इसके मुताबिक, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने बगैर किसी उकसावे के 19 मिनट तक निन्दा भाषण किया और इसमें जोर देकर कहा कि भारतीय उद्योग के कारोबारी व्यवहार राष्ट्रीय हित के खिलाफ है। इससे इंडिया इंक के सीईओ चकित हैं (क्योंकि) इसमें उन्होंने अकेले 153 साल पुराने टाटा समूह के खिलाफ बोला और कहा कि यह उनके दिल से निकला था। सीआईआई की इस बैठक में मंत्री की टिप्पणी के बाद सरकार में बवाल मचा हुआ है और सीआईआई से कहा गया है कि वह इसका वीडियो अपने यू ट्यूब चैनल से हटा दे। इन सारी बातों से आप समझ सकते हैं कि हेडलाइन मैनेजमेंट पर सरकार का कितना जोर है और उसे कितनी कामयाबी मिल रही है।

इन सभी अखबारों से अलग, द टेलीग्राफ में विपक्षी सांसदों को सजा देने की सरकारी तैयारी की खबर पहले पन्ने पर नहीं है और जो लीड है वह सिर्फ हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम में है। द टेलीग्राफ की इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, क्या हम ट्वीटर को अपनी राजनीति तय करने देंगे : राहुल। मुख्य शीर्षक है, कॉरपोरेट नियंत्रण का सवाल। कहने की जरूरत नहीं है कि ट्वीटर का मामला देश के नए आईटी कानूनों से जुड़ा हुआ है और मेरा मानना है कि सरकार ने कानून ही ऐसे बनाए हैं कि ट्वीटर से सरकार अपने मन की करवा सकती है और यह पहले भी दिखा है।

अभी भी राहुल गांधी (और कांग्रेस के नेताओ) पर जो फोटो पोस्ट करने के लिए कार्रवाई की गई है उसपर सरकार ने कार्रवाई नहीं ही है। अगर कोई काम कानूनन गलत है तो सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए और सरकारी कार्रवाई के बिना ट्वीटर को कार्रवाई करने देना या करने के लिए कहना ट्वीटर को जरूरत से ज्यादा अधिकार देना है। पर असल में सरकार यह मानकर चल रही है कि वह मौजूदा कानूनों से ट्वीटर को अपने नियंत्रण में रखकर अपने अनुसार फैसले करवा सकेगी। यही हो रहा है और मीडिया इसे लोगों को बता भी नहीं रहा है। आज अकेले द टेलीग्राफने इस अपनी लीड खबर के जरिए जनता की जानकारी में लाने की कोशिश की है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।