CG : पत्रकार सुरक्षा कानून पर सरकार की ढिलाई के खिलाफ 28 Sep-2 Oct तक आन्दोलन

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फाइल फोटो


पत्रकारों की हत्या और उन पर होने वाले हमलों की रोकथाम के लिए ‘पत्रकार सुरक्षा कानून’बनाने पत्रकारों की एक पुरानी मांग रही है. किन्तु पत्रकारों पर लगातर हमले जारी है और इस कानून का कहीं अता-पता नहीं. छत्तीसगढ़ में पत्रकार सुरक्षा कानून को लेकर अंतिम सूचना यह थी कि इस कानून का मसविदा छत्‍तीसगढ़ की सरकार में लंबित है जिसने इसकी समीक्षा के लिए एक कमेटी गठित कर दी गई है. किन्तु विषय पर वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ल ने फोन पर मीडिया विजिल को बताया कि राज्य की वर्तमान कांग्रेस सरकार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं दिखती. आलम यह है कि जिस समिति का गठन किया गया है उसकी आज तक एक भी बैठक नहीं हुई और इस समिति के लिए मनोनीत सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आफताब आलम आज तक एक बार भी किसी बैठक के लिए दिल्ली से रायपुर नहीं आये हैं. उन्होंने कहा कि -“हमारे साथ धोखा हुआ है.”

कलम शुक्ला ने इस संदर्भ में अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि :

पत्रकार सुरक्षा कानून और पत्रकारिता के लिए निर्भीक माहौल देने के वादे की याद दिलाने व पत्रकारों पर हमले के खिलाफ 28 सितम्बर से 2 अक्टूबर पत्रकारों का प्रदेशव्यापी आंदोलन!

साथियों,
पत्रकार सुरक्षा कानून की लड़ाई शुरू हुए अब 5 साल होने जा रहे हैं ऐसा लग रहा है कि जहां से हमने शुरू किया था आज वही खड़े हैं. हमारे साथ धोखा हुआ, पहले भाजपा की सरकार ने धोखा किया, तब आज की सरकार के लोग विपक्ष में थे. इन्होंने निजि बिल लाने का वादा किया, नहीं लाएं चुनाव में घोषणा पत्र में पत्रकार सुरक्षा कानून का वादा किया. इस कानून को बनाने के लिए एक कमेटी बनाई गई है जिसमें सुप्रीम कोर्ट रिटायर्ड जस्टिस आफताब आलम को नियुक्त किया गया है.पर स्थिति यह है कि उन्होंने अभी तक छत्तीसगढ़ का दौरा भी नहीं किया. कोई बैठक नहीं हुई, कोई रूपरेखा नहीं बनाई गई. सब कुछ हवा-हवाई है.

सरकार में सलाहकार के रूप में हमारे दो बुद्धिजीवी पत्रकार साथी के शामिल होने से हमारी अपेक्षाएं कुछ बढ़ गई थी. पर सच यही है कि हमारे द्वारा तैयार कानून के ड्राप्ट को कचरे में फेंक दिया गया है.जिस ड्राप्ट को लेकर पूरे देश में पत्रकारों के बीच उत्साह और अपेक्षाएं जुड़ी है, उस पर कोई पहल नही हो रही.पत्रकारों पर हमले पहले से और ज्यादा बढ़ गया है. पत्रकारों के खिलाफ बनाये गए फर्जी प्रकरण भी वादा करने के बाद भी वापस नही हुए.

लगता है यह सब ऐसे ही कुछ चुपचाप नहीं होने वाला, इसके लिए हम को अभी भी लड़ाई जारी रखनी पड़ेगी.
अतः मैं प्रदेश भर के पत्रकार साथियों से अपील करता हूं कि आप सब अपने संगठन, संघ, प्रेस क्लब, के दायरे से बाहर आकर एकजुट होकर इस आंदोलन को गति प्रदान करें प्रदेश के क्रांतिकारी योद्धा शहीद शंकर गुहा नियोगी की पुण्यतिथि 28 सितंबर से सरकार के खिलाफ असहयोग और भूख हड़ताल से शुरू कर महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती तक रायपुर के बूढ़ा तालाब के पास इकट्ठा होकर सरकार को याद दिलाएं की उन्होंने 100 दिन के भीतर अधिकार सुरक्षा कानून लाने का वादा किया था, पर 250 दिन तो बीत गए हैं.

 

कमल शुक्ला की एक रिपोर्ट:

अगस्त माह में पत्रकारों के लिए पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर और नई सरकार द्वारा इस बिल को अगले शीतकालीन सत्र में विधानसभा में पेश कराने हेतु प्रयास किया जा रहा है।

अकेले छत्तीसगढ़ राज्य में राज्य बनने के बाद 2 सौ से अधिक पत्रकारों को समाचार छापने/दिखाने के बाद उत्पन्न हुए विवादों के बाद जेल भेजा गया। जबकि 2018 दिसम्बर से नई कांग्रेस सरकार के सत्ता में आते ही महज 10 महीनों में 22 पत्रकारो पर फ़र्ज़ी पुलिस प्रकरण बनाये गए। वहीं 6 पत्रकारो को जेल भी भेजा गया व तीन पत्रकारों की थानों में निर्मम पिटाई हुई। इसके सांथ ही पांच दूसरे पत्रकारों पर माफियाओं/आपराधिक तत्वों व राजनीतिज्ञों ने प्राण घातक हमले किये।। जबकि राज्य के निर्माण के बाद से अब तक करीब 6 पत्रकारो की निर्मम हत्यायें की गई। दुःखद तो यह रहा कि किसी भी हत्या कांड का खुलासा नही हुआ न ही कोई जिम्मेदार हत्यारा जेल भेजा गया। इधर अब तक मिले अपुष्ट आंकड़ों में कार्य के दबाव और पुलिस/ प्रसाशनिक एवं राजनीतिक माफियाओं के भयादोहन की वजह से राज्य में 20 पत्रकारों ने जान देने की कोशिश की। जबकि 8 ने आत्महत्याएं कर भी ली।। इनमें से दो युवा पत्रकारों ने तो एक ही दिन में वर्ष 17 जून 2018 को क्रमश: अम्बिकापुर और जगदलपुर में आत्म -हत्याएं कर ली थी। इधर वर्ष 2018 रायगढ़ जिले के युवा पत्रकार सौरभ अग्रवाल सहित राज्य में चार अन्य पत्रकारों ने लगातार हो रही बेजा पुलिस प्रताड़नाओ से तंग आकर अपनी जान देने की कोशिश की थी। जिनमे से दो पत्रकार तो बेहद गम्भीर हालात से बचाए गए।

प्रदेश में पत्रकारों की हत्या की जांच भी ठंठे बस्ते में है। स्व.सुशील पाठक जिनकी हत्या 19 दिसम्बर 2010 में गोली मारकर की गई थी, से लेकर स्व.उमेश राजपूत,स्व.नैमिचन्द जैन,स्व. साँई रेड्डी,स्व.अच्युदानंद साहू की जांच रिपार्ट आनी बाकी है।”

देश भर की पुलिस हम पत्रकारों के प्रति कैसी घृणित सोंच रखती है। आपकी खबरें अगर राजनेताओं, माफ़ियायों, नक्सलियों और पुलिस के विरुद्ध है तो परिणाम कितने घातक होंगे आप भली-भांति जानते है। *बहरहाल हमारे प्रदेश में 200 से अधिक निर्दोष पत्रकारों को पुलिस प्रताड़ना के बाद शेष बची न्यायिक प्रक्रियाओं से गुजरना बाकी है। जिनमें एक नाम नितिन सिन्हा का भी है। कोल माफिया राजनीतिज्ञ के विरुद्ध खबर लगाने की भूल या साहस के बदले में चार फ़र्ज़ी पुलिस प्रकरण एक के बाद एक बनाये गए।

इधर बीते तीन महीनों में आठ पत्रकारों(योगेश मिश्रा,कमल शुक्ल,राहुल गिरी गोस्वामी,विक्रम चौहान,कौशलेंद्र यादव,चंचल सिंह,दिलीप शर्मा,हुमेश जयसवाल,आकाश मिश्रा)पर फ़र्ज़ी पुलिस प्रकरण बनाये जाने के बाद भी राज्य की नई और कथित संवेदनशील भूपेश(कांग्रेस)सरकार की चुप्पी या मौन सहमति भी समझ से परे है। जबकि राज्य में पत्रकारों के विरुद्ध प्रताड़नाओं का दौर थमने का नाम नही ले रहा है।

अम्बिकापुर में अभी हाल ही में घटी यह घटना जिसमें पत्रकार संतोष कश्यप व पत्रकार श्रवण महंत के साथ पुलिस के द्वारा जमकर की गई मारपीट तथा उन्हें सरेआम यह धमकी दिया जाना कि “ज्यादा पत्रकारिता करते हो तुम्हारी पत्रकारिता तुम्हारे गां.. में घुसेड़ देंगे” बेहद चिंतनीय है। हालांकि मारपीट से दोनो पत्रकार बुरी तरह घायल हो गए जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाना पड़ा।

इन सभी मुद्दों पर कार्यवाही और पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की मांग को लेकर फिर से एक बड़ा आंदोलन का निर्णय लिया गया है। आंदोलन पत्रकार सुरक्षा संयुक्त संघर्ष समिति छत्तीसगढ़ के बैनर में आगामी 28 सितम्बर (शंकर गुहा नियोगी की पूण्य तिथि ) से 2 अक्टूबर ( महात्मागांधी की 150 वीं जयंती)तक रायपुर में करने का निर्णय लिया गया है।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तीसरे दिन ही भूपेश बघेल ने देश का पहला पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की घोषणा की थी. कांग्रेस ने अपने जन घोषणा पत्र में भी इस बात का एलान किया था कि सरकार बनते ही पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाएगा.

https://www.youtube.com/watch?v=zmlJnqulOi8

जिसके बाद देश भर में इसकी चर्चा हुई और पत्रकारों में एक उम्मीद जगी थी.

बता दें कि देशभर में पत्रकारों पर हमलों को लेकर पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) की ओर से बीते वर्ष 22-23 सितम्बर को दिल्ली में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ था. जिसमें सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ था कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पत्रकार सुरक्षा कानून की आवश्यकता है. दिल्‍ली में आयोजित सीएएजे के सम्‍मेलन को एक साल गुज़र गया. इस दौरान पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, अकादमिकों और लेखकों पर विभिन्‍न किस्‍म के हमलों होते रहे. छत्‍तीसगढ़ से लेकर उत्‍तर-पूर्व और केरल तक पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और हत्‍याएं हुईं. यूपी से महाराष्‍ट्र तक सोशल मीडिया पोस्‍टों पर गिरफ्तारियां हुईं. ट्रोल अब भी सक्रिय हैं. अनुच्‍छेद 370 हटाये जाने के बाद कश्‍मीर आज मीडिया का गला घोंटे जाने का सबसे ज्‍वलन्‍त उदाहरण बन चुका है. देश भर में अभिव्‍यक्ति की आज़ादी को कुचला जा रहा है और इसकी रफ्तार बढ़ती जा रही है.


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