पहला पन्ना: इमरजेंसी जैसा हाल बताती ख़बरों को ग़ायब करता एक्सप्रेस और मोदी सेवा में जुटा TOI


इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। होती भी तो सिंगल कॉलम ही होनी थी लेकिन अखिल गोगोई वाली खबर द हिन्दू में चार कॉलम में है, द टेलीग्राफ में टॉप पर दो कॉलम में है, हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर दो कॉलम में है और टाइम्स ऑफ इंडिया में आधा पन्ना विज्ञापन है फिर भी पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है तथा पेज 10 पर विवरण होने की सूचना है।


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज के अखबारों में दो उल्लेखनीय खबरें हैं। पहली खबर तो असम की है। वहां दिसंबर 2019 से जेल में बंद अखिल गोगोई को उनपर लगाए गए सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। अखिल गोगोई को असम में सीएए के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों में कथित भूमिका के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दो मामले दर्ज किये गये थे। द हिन्दू के अनुसार, पहले मामले में वे 25 जून को (जब सरकार इमरजेंसी को याद कर रही था) बरी कर दिए गए थे। अखिल शिवसागर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक हैं और विशेष एनआईए अदालत के आदेश के बाद उन्हें गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से रिहा कर दिया गया। अदालत ने गुवाहाटी केंद्रीय कारागार को उनकी रिहाई के आदेश दिए थे। दूसरी खबर फरवरी 2018 के एक मामले से संबंधित है। आपको याद होगा कि दिल्ली के (उस समय के) मुख्य सचिव अंशु प्रकाश ने अपने ऊपर हमले का आरोप लगाया था। इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के विधायक पर भी आरोप हैं। मामला दिल्ली पुलिस देख रही है जो केंद्रीय गृहमंत्रालय को रिपोर्ट करती है और हाल में प्रधानमंत्री की एक बैठक में देर से आने के लिए पश्चिम बंगाल के उस समय के मुख्य सचिव के खिलाफ कार्रवाई चल रही है। यह मामला भी गृहमंत्रालय देख रहा है पर अलग है। 

द हिन्दू में पहले पन्ने पर यह खबर छोटी सी है। अंदर (पेज 8) पर बताया गया है कि बैठक में शामिल होने का दावा करने वाले वी.के जैन ने एक बयान में कहा है कि बैठक राशन की डोर स्टेप डिलीवरी से संबंधित थी। आप जानते हैं कि दिल्ली सरकार की यह योजना केंद्र सरकार की मंजूरी नहीं मिलने के कारण लागू नहीं हो पा रही है। आज इस खबर से मुझे याद आया कि यह मामला 2018 से चल रहा है और अब समझ में आ रहा है कि तब विवाद क्यों हुआ होगा और क्यों नहीं खत्म हो रहा है या अदालत में लटका हुआ है। आज की खबर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है उस पर आने से पहले कोशिश कर रहा हूं कि मैं भी मामले को समझ लूं और आप भी समझ  सकें। श्री जैन का यह बयान अंशु प्रकाश पर हमले के आरोपियों को नहीं दिया गया है और द हिन्दू की खबर कह रही है कि बैठक राशन की डोर स्टेप डिलीवरी से संबंधित विज्ञापन के फंड जारी करने से संबंधित थी। 

टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर सिंगल कॉलम में है और अंदर (पेज सात पर) बताया गया है कि अंशु प्रकाश ने उस समय आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री केजरीवाल और उप मुख्य मंत्री मनीष सिसोदिया की मौजूदगी में आप विधायकों ने 19 फरवरी की (18-19 की रात रही होगी) आधी रात की एक बैठक में उनपर हमला किया था और यह सरकार के तीन साल पूर्ण करने पर जारी किए जाने वाले विज्ञापन के लिए धन से संबंधित था। मुझे नहीं पता विज्ञापन तीन साल पूरे होने पर जारी किया जाना था या राशन की डोर स्टेप डिलीवरी से संबंधित था। अगर राशन से संबंधित था तो अभी यह मामला गर्म है। इसका उल्लेख प्रमुखता से होना चाहिए था पर टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के साथ हाईलाइट किया गया है कि बैठक तीन साल पूर्ण होने पर जारी किए जाने वाले विज्ञापन के लिए था। 

इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। होती भी तो सिंगल कॉलम ही होनी थी लेकिन अखिल गोगोई वाली खबर द हिन्दू में चार कॉलम में है, द टेलीग्राफ में टॉप पर दो कॉलम में है, हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर दो कॉलम में है और टाइम्स ऑफ इंडिया में आधा पन्ना विज्ञापन है फिर भी पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है तथा पेज 10 पर विवरण होने की सूचना है। जाहिर है, गोगोई की खबर ज्यादा महत्वपूर्ण है और अंशु प्रकाश वाली खबर दिल्ली की है इसलिए द टेलीग्राफ में दिल्ली की पुरानी खबर पहले पन्ने पर होनी नहीं थी। बचता है हिन्दुस्तान टाइम्स। यहां यह खबर सिंगल कॉलम में लेकिन टॉप पर है। पहले पन्ने की इस खबर में बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्य सचिव के मामले में दिल्ली पुलिस की दलील खारिज की।

 द हिन्दू में अंशु प्रकाश वाली खबर का शीर्षक है, “अंशु प्रकाश मामला: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की दलील खारिज की।उपशीर्षक है, (कहा) जांच एजेंसी को निष्पक्ष होने की जिम्मेदारी पूरी करनी होती है।यहां यह सवाल उठता है कि जांच एजेंसी निष्पक्ष होने की जिम्मेदारी से बचना क्यों चाहती है (या चाहती है भी कि नहीं)। यह काम मीडिया का था पर मीडिया अक्सर  अपना काम नहीं करते है और इसका कारण अघोषित इमरजेंसी को भी माना जाए तो दूसरी तरफ सरकार असली या 46 साल पुराने इमरजेंसी को कोसने से बाज नहीं आती है। खबर के अनुसार, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को (इस मामले में) एक गवाह के बयान को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और अन्य 11 विधायकों के साथ साझा करने का निर्देश दिया है। दिल्ली पुलिस इसी निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी। जहां उसकी मांग और दलील खारिज हो गई। दलील थी कि इस बैठक में शामिल होने का दावा करने वाले वीके जैन का बयान केस डायरी का हिस्सा है और साझा किया जाना जरूरी नहीं है। अदालत ने कहा कि पुलिस तकनीकी आधार बता रही है लेकिन निष्पक्ष ट्रायल का उद्देश्य पूरा करने के लिए सामान्य समझ से अभियुक्त को बयान की कॉपी देनी चाहिए। हाईकोर्ट के आदेश ने अभियुक्त के निष्पक्ष ट्रायल के अधिकार की रक्षा की है। यही नहीं, अदालत ने आगे कहा, आपके लिए यह महत्वपूर्ण राजनीतिक मामला होगा पर हमारे लिए यह कानूनन कुछ नहीं है …. यह इस लायक नहीं है, न्यायमूर्ति ने मौखिक तौर पर कहा।     

 

डॉक्टर्स डे

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर सिंगल कॉलम की खबर है, प्रधानमंत्री ने मानवता की सेवा में मारे गए चिकित्सकों को श्रद्धांजलि दी। सिंगल कॉलम की इस खबर में प्रधानमंत्री की फोटो भी है। अखबार ने अधपन्ने का पिछला हिस्सा देखने के लिए भी लिखा है। यहां दूसरी खबर है, “संरचना की कमजोरी के बावजूद हमारे चिकित्सकों ने लाखों जानें बचाईं : प्रधानमंत्री।”  इस खबर के साथ दो कॉलम की एक फोटू है। इसका कैप्शन है, मुंबई में डॉक्टर्स ने गुरुवार को अपने काम से ब्रेक लिया। इसके साथ टाइम्स ने अपना नजरिया भी बताया है, कोविड-19 संकट के दौरान डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने खूब परिश्रम किया है। कई इस घातक वायरस के शिकार हुए हैं। देश उनका कृतज्ञ है। लेकिन वायरस से लड़ने वालों की प्रशंसा तब ज्यादा अर्थपूर्ण होगी जब हम उनके लिए बेहतर काम की स्थितियां बनाएंगे। इस समय, शीघ्रता से इसकी आवश्यकता है। इस खबर के साथ सिंगल कॉलम की खबर है, “डॉक्टर्स अच्छा वेतन पाने के लिए संघर्ष करते हैं : मुख्य न्यायाधीश।”  

द टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक है, “चिकित्सकों का कर्ज उतारने का समय आ गया है उन्हें बलि का बकरा बनाने का नहीं।” आर बालाजी की बाईलाइन वाली खबर इस प्रकार है, भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने गुरुवार को इस बात पर चिन्ता जताई कि देश में किसी अन्य की नाकामी के लिए चिकित्सकों पर हमला किया जा रहा है और सरकार हेल्थकेयर को प्राथमिकता नहीं दे रही है। वे डॉक्टर्स डे पर चिकित्सा क्षेत्र के लोगों को संबोधित कर रहे थे। द टेलीग्राफ ने इस खबर के साथ वही फोटो छापी है जो टीओआई में अंदर के पन्ने पर है। कैप्शन का अंतर भी खबर प्रस्तुत करने की गंभीरता में अंतर बताता है। अखबार ने मुख्य न्यायाधीश के भाषण का बड़ा हिस्सा छापा है और बताया है कि किसी का नाम लिए बगैर उन्होंने क्या सब कहा। आप उनकी चिन्ता से सहमत या असहमत हो सकते हैं पर उन्होंने जो कहा है उसे जानते, समझते और महसूस करते हुए प्रधानमंत्री के बयान को पहले पन्ने पर और मुख्य न्यायाधीश को अधपन्ने के पीछ कैसे छाप सकते हैं। वह भी सिंगल कॉलम में। इमरजेंसी को नहीं भूलने वालों के बावजूद देश में खबरों के साथ यह सब हो रहा है और हम कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि मीडिया स्वतंत्र है और सरकार ट्वीटर को काबू करने में व्यस्त है। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।