लू और चमकी बुखार से हुई मौतों की खबर डॉक्‍टरों की हड़ताल की तरह अखबारों में क्‍यों नहीं?

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


पश्चिम बंगाल के आंदोलनकारी जूनियर डॉक्टर के समर्थन में आईएमए की अपील पर आज देश भर में चिकित्सकों की हड़ताल है और इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर प्रकाशित अपील के अनुसार आज किसी भी हेल्थकेयर संस्थान में ओपीडी समेत कोई भी गैर आवश्यक सेवा उपलब्ध नहीं होगी। ये सेवाएं आज सुबह छह बजे से कल सुबह इसी समय तक उपलब्ध नहीं रहेंगी। हालांकि, इमरजेंसी और कैजुअल्टी की सेवाएं काम करती रहेंगी। आईएमए ने एक बयान में यह जानकारी दी है। आईएमए ने एक ऐसे कानून की मांग की है जो अस्पतालों में हिंसा करने वालों को कम से कम सात साल की कैद की सजा दे। यह सुनिश्चित किया जाए कि मामले दर्ज हों, अपराधी गिरफ्तार किए जाएं और उन्हें सजा मिलने का आश्वासन रहे। पॉस्को कानून में जो आवश्यक प्रावधान हैं उन्हें भी लागू किया जाना चाहिए।

मैं पहले लिख चुका हूं कि कोलकाता में डॉक्टर की हड़ताल क्यों और कैसे शुरू हुई। मैंने बताया था कि दिल्ली के अखबारों में कोलकाता में आम मरीजों की परेशानी के बावजूद हड़ताल की खबर पहले पन्ने पर नहीं छपी और राजनीतिक खबर तो तवज्जो दी जाती रही। इसके बाद अचानक आईएमए आंदोलनकारी चिकित्सकों के समर्थन में कूदा और पहले दिल्ली के अस्पतालों में तथा फिर देश भर के अस्पतालों में हड़ताल की अपील हुई और हड़ताल के कारण जनता की परेशानी की खबर आईएमए के सदस्यों की परेशानी की खबर बन गई। ऐसे में आज हड़ताल है और बंगाल में जूनियर डॉक्टर की हड़ताल खत्म होने के आसान हैं तो खबर प्रमुखता से छपनी ही है। लेकिन बिहार में लू से हो रही मौत और मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से बच्चों की मौत की खबर अभी दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर कम पहुंची है। केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन कल मुजफ्ऱपुर हो आए तब भी।

कोलकाता के अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ के मुताबिक आंदोलनकारी चिकित्सकों और मुख्यमंत्री ममत बनर्जी के बीच टकराव की स्थिति कम हो गई लगती है और मुमकिन है कि बताचीत हो। ऐसी खबर इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इडिया आदि में भी है। लेकिन बिहार की खबर अभी पहले पन्ने पर नहीं है। अमूमन एक जैसी खबर एक साथ छापने वाले अखबार भी डॉक्टर की हड़ताल और आंदोलन की खबर के साथ बिहार में बिना बड़ताल के बच्चों के चमकी से और बड़ों के लू से मरने की खबर पहले पन्ने पर एक साथ नहीं छाप रहे हैं। आज नवभारत टाइम्स में कोलकाता का आंदोलन खत्म होने के आसार की खबर के साथ देशभर में चिकित्सकों की हड़ताल की खबर और बिहार में 100 से ज्यादा बच्चे मरे – तीन खबरें लीड हैं। पर लू से भी बिहार में लोग मर रहे हैं यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। विस्तार अंदर के पन्ने पर है।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज फिर दिल्ली में अपराध की खबर को प्रमुखता से छापा है जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। इस खबर के मुताबिक, दिल्ली की सड़कों पर 30 दिन में गोली मारने की 43 घटनाओं में कम से कम 220 गोलियां चलीं। ये घटनाएं 17 मई से 15 जून के बीच की हैं। इन घटाओं में 16 मौतें हुईं और 22 जख्मी हुए। इनमें वो मामले शामिल नहीं हैं जहां लोगों को बंदूक की नोक पर रोका गया पर गोली नहीं चली। मारे गए लोगों में गैंगस्टर, सोशल मीडिया स्टार, प्रोपर्टी डीलर, जौहरी, होटलवाले, पत्रकार और कारोबारी सब शामिल हैं। हरेक मामले में अवैध पिस्तौल का उपयोग किया गया। नौ मामलों में पुलिस ने अपराधियों पर कम से कम 32 गोलियां चलाईं। इसके साथ ही, मुजफ्फरपुर अस्पताल में बच्चों की मौत की खबर आज पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। पर लू से मरने वालों की खबर अभी भी पहले पन्ने पर नहीं है।

हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं है। यहां टॉप पर दो कॉलम में खबर है, आंदोलन : देश भर में आज डॉक्टर हड़ताल पर रहेंगे। इस खबर में प्रमुखता से बताया गया है कि, आईएमए ने बंगाल के डॉक्टरों के समर्थन में उठाया कदम और आपात सेंवाएं बंद से बाहर रहेंगी। दिल्ली का एम्स हड़ताल में शामिल नहीं है। अखबार ने लिखा है, देशभर के डॉक्टर सोमवार को हड़ताल पर रहेंगे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने रविवार को कहा कि वह पहले से घोषित हड़ताल के फैसले पर कायम है। आईएमए ने यह फैसला पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की पिटाई के बाद चल रहे आंदोलन के समर्थन में किया है। आईएमए ने कहा कि बंगाल के डॉक्टरों के समर्थन और चिकित्सकों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय कानून की मांग को लेकर सोमवार को एक दिन की हड़ताल का आह्वान किया गया है।

दैनिक भास्कर में पहले पन्ने की खबर का शीर्षक है, देश भर में आज डॉक्टरों की हड़ताल, दिल्ली के 12 अस्पताल भी शामिल। अखबार ने स्थानीय खबर के लिहाज से इन अस्पतालों की सूची भी छापी है पर यह नहीं बताया है कि बिहार में डॉक्टर हड़ताल पर नहीं हैं फिर भी अस्पताल में बच्चे मर रहे हैं और लू लगने से लोगों को बचाया नहीं जा सक रहा है। राजस्थान पत्रिका में डॉक्टर की हड़ताल की खबर नहीं है पर बिहार में लू से 24 घंटे में 45 कीमौत शीर्षक खबर पहले पन्ने पर है। हालांकि, इसे बारिश के इंजतार से जोड़कर छापा गया है और बताया गया है कि दो दिनों में तेज हो सकता है मानून। अखबार ने इसके सात दो छोटी खबरें छापी हैं। एक का शीर्षक है, 43 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है बारिश में अब तक और दूसरी खबर है, महाराष्ट्र को भी इंतजार। नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर आज विज्ञापन है। न हड़ताल की खबर पहले पन्ने पर है ना खत्म होने के आसार की और ना बिहार में बच्चों या बड़ों की मौत की खबर। अमर उजाला में हड़ताल और वार्ता की खबर पहले पन्ने पर है लेकिन लू से मरीजों और चमकी से बच्चों की मौत की खबर अभी इस लायक नहीं हुई है।

अकेले दैनिक जागरण ने चिकित्सकों की हड़ताल से संबंधित मामलों को अंदर के पन्ने पर रखा है और पहले पन्ने पर खबर छापी है, बिहार में लू से दूसरे दिन 116 की मौत। इसके साथ यह भी छापा है कि गर्म हवाओं से लोगों को अभी नहीं मिलेगी निजात। दैनिक जागरण का उपशीर्षक है, लू के कहर से मरने वालों की संख्या 176 हुई। फिर भी दूसरे अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। खबर के मुताबिक सबसे अधिक मौत मगध और शाहाबाद क्षेत्र में हुईं, 82 लोगों की जान गई है। इसमें कहा है, बिहार में लू ने जैसा कहर बरपाया है वैसा शायद ही पहले कभी देखा-सुना गया हो। शनिवार को लू से 60 लोगों की जान जाने के बाद रविवार को 116 की मौत लू के कारण हो गई। औरंगाबाद में 35, गया में 28, नवादा 6, भभुआ 2 और सासाराम में 11, पटना में 10, जहानाबाद, छपरा व बक्सर में तीन-तीन, शेखपुरा, नालंदा में दो-दो, आरा, बेगूसराय में एक-एक, पूर्वी चंपारण में दो, सीतामढ़ी और दरभंगा में एक-एक, जमुई में दो, बांका, खगड़िया और लखीसराय में एक-एक की जान गई। इतनी मौतों के बाद गया के विष्णुपद श्मशान में रविवार को 72 लाशें जलाई गईं। डोमराजा ने कहा कि एक दिन में इतनी संख्या पहली बार देख रहे हैं।

बड़ी संख्या में लोगों के मरने की यह खबर जब पहले पन्ने पर नहीं है तो क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि अस्पताल में साधन-सुविधाओं की कमी की खबर छपेगी? इसलिए यह समझने की बात है कि मरीज की मौत पर पिटाई के बाद डॉक्टर क्यों हड़ताल करते हैं और क्यों आईएमए हड़ताल को देशव्यापी रूप देता है जबकि जनता को परेशानी बंगाल की हड़ताल से ही कम नहीं थी और बंगाल की हड़ताल के समर्थन में देश भर में हड़ताल करना दरअसल आम लोगों को परेशान करना ही है। क्या बंगाल के जूनियर चिकित्सकों के आंदोलन के समर्थन का कोई और तरीका नहीं था। और अगर नहीं था तो क्या आईएमए को अस्पतालों में जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने की मांग भी नहीं करनी चाहिए ताकि इलाज ठीक से हो सके और मरीज की मौत की स्थिति में डॉक्टर्स की पिटाई न हो। जबकि आईएमए कानून बनाकर पिटाई रोकने की मांग कर रहा है।


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