पहला पन्ना: भास्कर छापे को अब टैक्स से जोड़ा,पनामा पेपर्स का शिगूफ़ा छोड़ा था TOI ने!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज इंडियन एक्सप्रेस में खबर है, “छापों के बाद आयकर वालों ने दैनिक भास्कर समूह पर फंड्स ट्रांसफर और 700 करोड़ रुपए पर कर चोरी का आरोप लगाया”। यह खबर द हिन्दूमें भी छोटी सी है और इंडियन एक्सप्रेस में दो कॉलम में चार लाइन के शीर्षक के साथ है। दिलचस्प यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर नहीं है। आप जानते हैं कि छापे की कार्रवाई की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में तीन कॉलम में छपी थी। एक नई बात लाल स्याही में बताई गई थी, “सरकार ने कहा कि कार्रवाई पनामा लीक मामले में है”।

शुक्रवार को मैंने लिखा थाटाइम्स ऑफ इंडिया में सरकारी पक्ष को प्रमुखता देना आज की सबसे अनूठी खबर है और अखबार ने पनामा लीक के दूसरे मामलों की चर्चा नहीं करके केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का बयान तो छापा ही है अनाम सूत्रों के हवाले से लिखा है, बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी के आरोप हैं …. परिवार के सदस्यों के नाम पनामा लीक केस में भी थे, विभागीय डाटा बेस, बैंकिंग पूछताछ और गुप्त पूछताछ का विश्लेषण करने के बाद तलाशी का सहारा लिया गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापे की कार्रवाई का यह फॉलो अप आज फिर पहले पन्ने पर क्यों नहीं छापा मैं नहीं जानता पर सवाल उठता है कि दैनिक भास्कर समूह ने यह चोरी और गड़बड़ी कर कैसे ली। सरकार कहां थी उसकी नजर तो हर लेन-देन पर होने का दावा किया जाता है। वैसे भी, डिजिटल भारत में नकद लेन-देन होता नहीं है, टीडीएस स्रोत पर ही काटने का नियम है, हर साल रिटर्न फाइल करना ही है और रिटर्न फाइल नहीं करने पर दूना टीडीएस काटने जैसा नियम इस साल से लागू हो गया है फिर भी पहले की तरह टैक्स चौरी कैसे जारी है, किसके भरोसे?     

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार 700 करोड़ रुपए पर टैक्स की चोरी छह साल में की गई है। सवाल उठता है कि छह साल से टैक्स चोरी चल रही थी और सरकार को पता नहीं चला या सरकार आंख मूंदे हुए थी। दोनों ही गलत है। अखबार समूह को टैक्स चोरी की इजाजत देना और चोरी से आंख मूंद लेना लगभग एक ही बात है और अखबार के मामले में कहा जा सकता है कि जब तक खबरों से शिकायत नहीं थी तब तक करने दिया गया और अब खबरों से शिकायत हुई तो कार्रवाई हो गई। यह सबके समझने की बात भी है। और इसमें कुछ नया नहीं है। सरकारें ऐसे ही कार्रवाई करती हैं और यह सरकर भी कोई अलग नहीं है। खबर में ही बताया गया है कि विभाग ने दैनिक भास्कर समूह का नाम नहीं लिया और इंडियन एक्सप्रेस ने पुष्टि की तो पता चला कि 6000 करोड़ रुपए का एक प्रमुख समूह जिसकी दिलचस्पी  मीडिया, भू संपदा, टेक्सटाइल और पावर में है, भास्कर समूह ही है। पर सवाल उठता है कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने आज इस खबर को उतनी ही प्रमुखता क्यों नहीं दी जितनी पहले दिन सरकारी और गलत खबर को दी थी। आज इस खबर में दैनिक भास्कर का नाम नहीं है और उस दिन खबर अनाम सरकारी सूत्रों के हवाले से थी। मुझे तो लगता है कि यह छापे की कार्रवाई को सही ठहराने की कोशिशों का हिस्सा है और छापे का मकसद समूह का डराना और बचाव में उलझा देना ही है। 

इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि अखबार समूह से संपर्क करने की कोशिशें नाकाम रहीं और गुरुवार को दिव्य भास्कर गुजरात के संपादक ने कहा था कि, पहले भिन्न तरीकों से दबाव बनाने की कोशिश की गई, ढाई महीनों से केंद्र और राज्य सरकारों ने विज्ञापन देना बंद कर दिया था। जाहिर है, सरकार या सरकारों की नाराजगी तो पहले से थी और विज्ञापन रोकना काम नहीं आया तो छापा मारा गया। हालांकि, विज्ञापन रोकने से पहले छापा पड़ा होता तो सरकार के लिए यह कहना आसान होता और यकीन करने लायक होता कि अलग विभाग अलग स्वतंत्रतापूर्वक काम कर रहे हैं। लेकिन इस सरकार को ऐसी छोटी बातों से कोई मतलब नहीं है और उसे अपने प्रचारकों पर पूरा भरोसा है। वे मामला संभाल ही लेते हैं। पर मुद्दा यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का क्या हुआ। पनामा मामले की जांच की चर्चा क्यों नहीं है और नहीं है तो टाइम्स ने अपनी गलत खबर को सुधारने वाली खबर उसी प्रमुखता से क्यों नहीं प्रकाशित की। आज इंडियन एक्सप्रेस में जो खबर छपी है वह सरकारी ही है और टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले सेवा करने की ही कोशिश की थी। अब अपनी साख बनाने के लिए पुरानी खबर को ठीक करना – पत्रकारीय जरूरत है लेकिन उसकी भी परवाह नहीं की गई।      

आज की बाकी खबरों में हिन्दुस्तान टाइम्स के अधपन्ने की लीड खास है। इसके अनुसार दिल्ली में सिनेमा, स्पा, पूल आदि खुल जाएंगे। पर सवाल उठता है कि स्कूल क्यों नहीं खुल रहे हैं। अभी तक का अनुभव तो यही है कि बच्चे नहीं के बराबर संक्रमित हो रहे हैं और शिक्षा के मामले को प्राथमिकता देने के लिए तमाम सावधानियों के साथ स्कूल खोलने को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। अगर मॉल और स्पा खुल सकते हैं तो स्कूल क्यों नहीं। दिलचस्प यह है कि आज ही एक केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का यह आरोप छपा है कि निजी क्षेत्र टीकाकरण अभियान में पीछे हैं। द हिन्दू में यह खबर लीड है और इसका उपशीर्षक है, उन्होंने कहा, केंद्र सरकार हर किसी को निशुल्क टीका लगवाने के लिए प्रतिबद्ध है। सवाल उठता है कि केंद्र सरकार प्रतिबद्ध है तो टीके तेजी से क्यों नहीं लग रहे हैं और निजी क्षेत्र ढीले हैं तो सरकार क्यों परेशान है। जब मुफ्त लग रहे हैं तो पैसे देकर कोई क्यों लगवाए? हर कोई मुफ्त वाले का इंतजार करेगा। इस खबर से पता चलता है कि सरकारों की प्राथमिकता क्या है। दिल्ली सरकार शिक्षा पर काम करने के बावजूद स्कूल नहीं खोल पा रही है और केंद्र सरकार के मंत्री (और दिल्ली के अखबारों के लिए भी) वह मुद्दा नहीं है और जल्दी से सबको टीका लगवाकर स्कूल भी खोलने पर ध्यान देने की बजाय निजी क्षेत्र की कुशलता पर सरकार अपना समय खराब कर रही है।    

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और मशहूर अनुवादक हैं।