मर्यादा पुरुषाेत्तम श्री राम के नाम एक पाती…

सत्यम श्रीवास्तव
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प्रिय श्री राम,

जय सिया राम!

हो सकता है मुझसे पहले यह बात आपसे बहुतों ने कही हो पर आपने अनसुना कर दिया हो या उस समय ठीक से समझ न पाये हों इसलिए आज मैं लाखों-करोड़ों हिंदुओं, सनातन धर्म के अवलंबियों, वैष्णवों, शैवों, शाक्तों, वेदांतियों, निर्गुणियों, निरंजनों और यहां तक कि नास्तिकों की भी तरफ से आपसे यह कहना चाहता हूँ कि आप गलत संगत में पड़ गए हो। आप गलत लोगों की तरफ चले गए हो और आपको पता भी नहीं चला कि कैसे उन्होंने अपना उल्लू सीधा करने के लिए आपका बेतहाशा इस्तेमाल कर लिया। कभी खुद को आईने में देखना- उन्होंने आपकी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि से एक ऐसे विद्रूप प्रतीक में बदल दिया है कि उसे आप खुद देखना पसंद नहीं करोगे। उन्होंने आपके बदन से मर्यादा का एक-एक वस्त्र उतार फेंका है।

अपने बाल काल को छोड़ दो तो याद है, आपको किसी ने बिना अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के बाहर निकलते नहीं देखा था। हालांकि बाल काल में भी अपने भाइयों के बिना नहीं देखे गए। कैसा तो मुसकुराते थे। अहा, क्या मुस्कुराहट थी। एक बाजू सीता एक बाजू लक्ष्मण। जब कभी कनखियों से सीता से ‘नैनों का नैनों से संभाषण’ करते थे आपकी मुस्कुराहट कान के कोरों तक फैल जाती थी।

क्या तो उदात्तता थी आपके मुखमंडल पर। आपके सामने आकर रावण को भी ‘डर’ नहीं लगा था बल्कि उसका अभिमान ही बढ़ गया था कि ये सरल सहज मासूम सा दिखने वाला नर उसका क्या बिगड़ लेगा। आपकी गरिमामय मर्यादा ही तो आपकी ताकत थी। विवेक, संयम, धैर्य, संतोष, विनम्रता, ये सब आपके आभूषण थे भाई। आप हारों का सहारा थे। ‘एकर का भरोसा चोला माटी के राम’।

सब विद्या आती थी आपको पर पूरे जीवन में उसका प्रदर्शन नहीं किया। आपके तरकश में एक से एक तीर रहते थे पर मजाल कि कभी किसी मज़लूम पर उसका इस्तेमाल किया हो आपने। आप अपने पाँव से छूकर किसी को शापमुक्त कर सकते थे। उसे नया जीवन दे सकते थे। आपने कितने ही बेसहारों को हिम्मत दी, उन्हें न्याय दिया।

आपको याद तो होगा जब एक साजिश से रावण सीता को अपनी लंका में ले गया था, तब आप कैसा फूट- फूट कर रोये थे। नदी, पहाड़, पेड़, पक्षी, सब से कैसे बिलख बिलख कर पूछ रहे थे कि तुमने मेरी सीता को देखा है कहीं। याद है जब लक्ष्मण को मेघनाद ने मूर्छित कर दिया था, आप उनका सर अपनी गोदी में रखकर रोते रहे थे और कितनी बेचैनी से हनुमान के संजीवनी लाने का रास्ता देखते रहे रहे थे रात भर। आपके इन्हीं गुणों को देखकर हर मर्द आपके जैसे होने और बनने की कामना करता रहा है। शक्ति का संचय करना और उसका अन्याय के खिलाफ इस्तेमाल करना आप ही ने तो हिंदुस्तान के मर्दों को सिखाया था।

आप केवल एक नाम नहीं थे, आपको हर किसी ने भगवान की तरह देखा भी नहीं। आप में अपना बेटा देखा, बड़ा भाई देखा, दोस्त देखा, गुरुओं ने एक अच्छा शिष्य देखा। आपने कभी झूठ नहीं बोला, शक्ति का गैर-ज़रूरी प्रदर्शन नहीं किया। अपने समीप आए लोगों का दिल जीता, उनसे प्रेम किया, दोस्तियां निभाईं, दूसरे का हित खुद से पहले देखा। पिता के एक बार कह देने पर राजपाट छोड़ दिया। जिस एक माँ के सौतेले व्यवहार से आपको दुनिया के कष्ट झेलने पड़े, सबसे पहले उसी के चरणों को प्रणाम किया। आपने कभी द्वेष नहीं पाला। रंजिश नहीं निकाली।

आपने समावेश किया। तमाम संप्रदायों के बीच चलते आ रहे रहे झगड़ों को हमेशा हमेशा के लिए मिटा दिया। सबको एक कर दिया। जब आपको घर-घर पहुंचाने वाला कवि आपको, आपके स्वरूप, आपके चरित्र को गढ़ रहा था तब उसी कवि ने लिखा कि ‘देश मलेच्छषुक्रांता’ था। और आपका वह कवि भी आपको इसलिए रच सका क्योंकि आपको रचने के लिए वही तथाकथित मलेच्छ बादशाह उसे वज़ीफ़ा दे रहा था। आप सब की ज़रूरत थे। एक खुशहाल समाज को आपके जैसे युगांतरकारी चरित्र की प्रतीक्षा थी। जिस समय आप रच दिये गये आपको हाथों हाथ लेकर सबने अपने-अपने घरों में बैठा लिया ताकि सभी के घरों में आपसी प्यार, सम्मान, मर्यादा और त्याग की भावना बनी रहे। आप हिंदुस्तान के दिल में रहते आए हो। आपने हिंदुस्तान का मानस गढ़ा है। आपको रचने वाले कवि ने अपनी सुंदर कविताई में मानस लिखा। ‘रामचरित मानस’। देख आओ, आज भी अमूमन  हिन्दू घरों में आप सम्मान से रहल पर लाल कपड़े में सजे धजे बैठे हो।

पता नहीं आपको याद है कि नहीं या इन दानवों की संगत में आप भूल गए कि आपको उस आदमी ने अपनी अंतिम सांस तक याद रखा जिसने पूरी दुनिया को करुणा और अहिंसा के माध्यम से इंसानियत का सबसे बड़ा पाठ पढ़ाया। आज उस आदमी के माध्यम से आपको पूरी दुनिया जानती है। क्यों? क्योंकि जब आपके इन नए दोस्तों ने उसके सीने में तीन गोलियां दागीं तब उसकी ज़बान पर केवल तुम्हारा नाम आया- हे राम!

आप दीनों के दयाल थे, अनाथों के नाथ। लेकिन आपकी इस नयी संगत ने आपको ज़मीन के छोटे से हिस्से में समेट कर रख दिया। वो भी बिना सीता, बिना लक्ष्मण, बिना हनुमान और बिना आपके दो और भाइयों  –भरत और शत्रुघ्न के। वो भरा पूरा परिवार आपसे आपके सामने छीन  लिया गया और आप अकेले धनुष ताने खड़े हो गए। किसके कहने पर मित्र? इन पाखंडियों के?

जब आपके मंदिर के लिए आततायियों की तरह इन ज़ालिमों ने ख़ुदा के एक घर को ढहाया तब हमें लगा था कि अब आपकी गलतफ़हमियां दूर होंगी और आप ज़रूर कुछ ऐसा करोगे कि ख़ुदा का घर बचा रह जाये क्योंकि आप तो कम से कम ऐसा नहीं चाहते कि एक ख़ुदा  के लिए दूसरे ख़ुदा का घर टूटे। अफ़सोस मेरे ईश्वर, मेरे ख़ुदा, आपने कुछ नहीं किया। हालांकि यहां तक आते-आते आपके चेहरे पर अब वह मनमोहक मुस्कान नहीं बची थी और निरंतर क्रोध की ज्वाला धधकने लगी थी। अपनी जटाएं खोले, आग्नेय नेत्रों से किसी की तरफ अपने धनुष की प्रत्यंचा ताने आपको दिखलाया जाने लगा। पूरे देश में आपकी इस तस्वीर ने डर और खौफ़ का ऐसा मंज़र रचा कि आपका यह आर्यवर्त हमेशा के लिए खौफ़ में जीने के लिए अभिशप्त हो गया। आज भी कोई नहीं मानता कि यह सब आपकी इच्छा से हुआ होगा।

हिन्दी के बड़े कवि कुँवर नारायण याद हैं आपको? जब आपके नाम पर ख़ुदा का घर तोड़ा गया तब उन्होंने क्या लिखा? उन्होंने लिखा –  “इससे बड़ा क्या हो सकता है हमारा दुर्भाग्य, एक विवादित स्थल में सिमट कर रह गया तुम्हारा साम्राज्य”। आपको बुरा नहीं लगा?

आप ही ने तो सिखाया था कि पापी को एक समय तक ही सहन किया जा सकता है। याद है जब लंका जाने के लिए तुमने समुद्र से रास्ता मांगा उसने देने से मना कर दिया। आपने क्या किया? तब पहली बार आपको गुस्सा आया और आपने अपना उग्र रूप दिखाया। उसी एक तस्वीर को लेकर आपकी यह नई संगत अपनी राजनीति कर रही है। आपकी जीवन भर की विनम्रता, मर्यादा, करुणा, परपीड़ा सब भुला दिया।

आज जब मैं यह चिट्ठी लिख रहा हूँ तब देश की राजधानी दिल्ली में लड़कियों के एक कॉलेज में जाकर उनकी मर्यादा भंग की गयी। सुन नहीं पाओगे पर सुनो- आपका नाम लेकर ही इस नए कैंप के कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने अपने पैंट की जिप खोलकर लड़कियों के सामने हस्तमैथुन किया… उन्हें डर नहीं था, शर्म नहीं थी, लिहाज नहीं था क्योंकि वो यह सब करते हुए आपका नाम ले रहे थे।

वो लोग इसे आपका राज यानी रामराज्य कहते हैं। इससे भी पहले आपका नाम लेकर अपने कैंप के बलात्कारियों को बचाते आए हैं। कम से कम अपने सूर्यवंश की प्रतिष्ठा और मर्यादा के बारे में ही सोचो राजन। लौट आओ, छोड़ दो उनका शिविर। छीन लो उनसे आपका नाम लेने का अधिकार। दंडित करो उन्हें कि उन्होंने आपका नाम लेकर इस प्यारे भारतवर्ष को नरक बना डाला है। आपका राज ऐसा तो नहीं रहा होगा? आपने तो अपने राज की पवित्रता बचाए रखने के लिए प्राणों से प्रिय अपनी पत्नी का त्याग कर दिया था और जिसकी तोहमत आप पर आज भी है और लोग आज भी इस आचरण की निंदा करते हैं। लेकिन आप यह अधिकार देते आए हो कि आपके राज काज की निंदा की जा सकती है । आज आपके नाम पर सत्ता में आए  पाखंडी, स्वार्थी और मानवता के दुश्मन थोड़ी सी आलोचना पर राजद्रोह ठोक देते हैं।

कितना बर्दाश्त करोगे प्रभु इनको। और क्या दिन दिखाओगे अपने नाम पर? यह आपकी कोई लीला तो हो नहीं सकती क्योंकि आप लीलाएं नहीं किया करते और इसीलिए आप मर्यादा पुरषोत्तम हो।

अगर मेरी बातें, शिकायतें, उलाहने और मशविरे बुरे लगें तो माफ करना। लेकिन अपने भाई और मित्र की तरह आपको समझाने की कोशिश की है। हो सके तो कुछ करिए या प्रतीक्षा करिए जब लोग आपका नाम प्यार और सम्मान से नहीं डर से लेंगे। बहुत कुछ हो चुका है आपके नाम से जो यहां लिखा नहीं गया। कम लिखा ज़्यादा समझना।

तुम्हारा ही

शुभचिंतक