… 12 मई की दोपहर जब कटी हुई फोनलाइन पर तीन मिनट तक ऑन एयर चिल्‍लाते रहे अर्नब!

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शुक्रवार 12 मई को अर्नब गोस्‍वामी, राजीव चंद्रशेखर और मोहनदास पै के रिपब्लिक टीवी पर जिस तरीके से कांग्रेस के पैनलिस्‍ट ब्रजेश कलप्‍पा को ऑन एयर अर्नब ने गालियां दीं, उसे सबने देखा था। यह बात पहली बार सामने आई है कि कुल छह मिनट के फोन कॉल के दौरान अर्नब आखिरी तीन मिनट तक डेड फोन लाइन पर चिल्‍लाते रहे थे क्‍योंकि उनकी मंशा भांप कर ब्रजेश कलप्‍पा ने फोन तीसरे मिनट में ही काट दिया था।

कलप्‍पा ने दि क्विंट नामक वेबसाइट पर अपना पक्ष रखते हुए बताया है कि कैसे उनका वह पुराना मित्र जो काफी विनम्र और मृदुभाषी हुआ करता था, आज आक्रामक और बर्बर अर्नब गोस्‍वामी में तब्‍दील हो चुका है। उनके लेख के कुछ अहम अंश हम नीचे प्रकाशित कर रहे हैं।

उससे पहले देखें कटी हुई फोन लाइन पर अर्नब की एकतरफ़ा चिल्‍लाहट:

  


ब्रजेश कलप्‍पा, साभार दि क्विंट

मेरे पास जब वह बहुचर्चित फोन कॉल शुक्रवार, 12 मई की दोपहर खाने के वक्‍त आया तो मैंने रिपब्लिक टीवी के असाइनमेंट डेस्‍क पर बैठे शख्‍स से शुरू में यही कहा कि कांग्रेस चूंकि रिपब्लिक से बात नहीं करती, इसलिए मुझे माफ़ कर दिया जाए। उनके असाइनमेंट डेस्‍क ने हालांकि यह कह कर मुझे भ्रमित किया कि कांग्रेस के दूसरे नेता भी उनसे बात करने को तैयार हो गए हैं। इसी वजह से मैंने कॉल स्‍वीकार कर ली।

अगले छह मिनट तक जो कुछ हुआ, उसे अब अधिकतर लोग देख चुके हैं- और देखकर आतंकित हो चुके हैं- कि किस तरह से अर्नब ने मुझे गालियां दीं-: नादान से लेकर कीड़ा तक कहा, लैपडॉग से लेकर लुनेटिक कहा और लगातार मुझे शट अप कहते रहे।

शुरुआत में मुझे जो सदमा लगा वह दर्शकों को समझ में आ गया होगा। मामला मेरे ऊपर हो रहे हमले का केवल नहीं था, बल्कि उस शख्‍स का था जो मेरे ऊपर हमला दाग रहा था।

अर्नब जैसे ही भड़भड़ाते हुए लाइन पर आए, मुझे उनकी बर्बर मंशा समझ में आ गई और मैंने अपनी ओर से यह कहते हुए संवाद समाप्‍त कर दिया कि ”आप जिससे चाहें उससे अपनी तानाशाही आवाज़ में बात कर सकते हैं, लेकिन मुझसे नहीं” और मैंने फोन रख दिया। अर्नब उसके बाद पूरे तीन मिनट तक डेड फोनलाइन पर एकतरफ़ा तरीके से चिल्‍लाते रहे।

मैं अर्नब को पहली बार 2004 में मिला था जब वे एनडीटीवी में एंकर-रिपोर्टर हुआ करते थे। वे कपिल सिब्‍बल पर एक फीचर शूट कर रहे थे जो उस वक्‍त चांदनी चौक से चुनाव में उतरे थे। उस वक्‍त अर्नब एक दोस्‍ताना, विनम्र और संजीदा शख्‍स हुआ करते थे…।

… इसीलिए उन्‍होंने जब अपनी कुख्‍यात फोन कॉल की शुरुआत यह कहते हुए की- ”ब्रजेश कलप्‍पा, शट अप और मुझे सुनिए”, तो मैं हतप्रभ रह गया। ऐसा पहली बार नहीं था कि मैंने उनकी राजनीतिक संबद्धताओं पर कुछ कहा था।

… और देखिए: उस छह मिनट के फोन संवाद (अगर संवाद कह सकें तो) के बाद अर्नब ने मुझे ऑफ एयर कॉल कियाा उनके शब्‍द थे, ”ब्रजेश कलप्‍पा, हम आपके तमाम गुप्‍त सौदों के बारे में जानते हैं, आपके तमाम छुपे हुए धंधों का हमें पता है, हमें पता है कि आप पैस बनाने के लिए कौन से रैकेट चलाते हैं।”

मेरी प्रतिक्रिया सीधी और सहज थी, ”अर्नब, आगे बढ़ो और मेरा सार्वजनिक परदाफाश कर दो। मेरा राज़ खोलने का यह सुनहरा अवसर चूकना नहीं।”

उसने तुरंत स्‍वर बदलते हुए कर्नाटक सरकार में भ्रष्‍टाचार की बात करनी शुरू कर दी। फिर मैंने उसे बताया कि यह बातचीत रिकॉर्ड हो रही है तो तुरंत उसने फिर स्‍वर बदला और कहा कि मुझे इलाज की ज़रूरत है।


Photo courtesy thequint