राष्ट्रव्यापी हड़ताल शुरू होते ही सरकार ने पेश किया यूनियनों को ‘जकड़ने’ का बिल !


इसके पास हो जाने पर मज़दूर यूनियनों को राज्य और केंद्रीय स्तर पर मान्यता लेनी पड़ेगी।


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दो दिनों की राष्ट्रव्यापी मज़दूर हड़ताल के बीच मोदी सरकार ने लोकसभा में मज़दूरों का गला घोंटने का एक बिल लोकसभा में पेश कर दिया। जिन मज़दूर यूनियनों को मज़दूरों की आवाज़ कहा जाता है, बिल पास हुआ तो उनकी मान्यता के लिए सरकार का मुँह देखना पड़ेगा। वामपंथी दलों ने इस बिल का पुरज़ोर विरोध किया है। उनके सांसदों ने बिल पेश किए जाने पर सदन से वॉक आउट कर दिया।

हालाँकि यह ख़बर मीडिया से लगभग गायब है। 20 करोड़ मज़दूर और कर्मचारी 8 जनवरी से हड़ताल पर हैं जो आज भी जारी है। तमाम व्यवस्थाएँ अस्तव्यस्त हैं। लेकिन शायद ही किसी अख़बारों के पहले पन्ने पर यह ख़बर हो। उधर, मोदी सरकार ने हड़ताल के पहले दिन आनन-फानन में ‘ट्रेड यूनियन संशोधन विधेयक 2019’ पेश कर दिया जिसमें 1926 के कानून में संशोधन का प्रावधान है। केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने यह संशोधन विधेयक पेश किया। इसमें कथित रूप से नीति निर्माण में श्रमिक संगठनों की भागीदारी के लिए कानूनी रूपरेखा बनाने का प्रावधान है लेकिन वामपंथी सदस्य इसे बड़ी साज़िश बता रहे हैं क्योंकि इसके पास हो जाने पर मज़दूर यूनियनों को राज्य और केंद्रीय स्तर पर मान्यता लेनी पड़ेगी।

लोकसभा में आरएसपी के एन.के.प्रेमचंद्रन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि इसे सदन के नियमों को दरकिनार करके पेश किया गया, वहीं सीपीएम के एम.संपत ने आश्चर्य जताया कि सदस्यों को सुबह विधेयक की प्रति मिली और सदन की कार्यसूची में भी इसका ज़िक्र नहीं था। उन्होंने कहा कि जब लाखों लोग सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों का विरोध हड़ताल करके कर रहे हैं, ऐसे में इस तरह का विधेयक नहीं लाया जाना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि विधेयक ‘असंवैधानिक’ है। माकपा के एम.बी.राजेश और कांग्रेस के शशि थरूर ने भी विधेयक पेश किये जाने का विरोध किया। थरूर ने कहा कि सरकार को बिना पूर्व सूचना के इतनी जल्दबाजी में विधेयक पेश करने के विशेष कारण बताने चाहिए।