‘गेम ऑफ़ लाइफ’ : तय हुआ कि दुनिया किसी ईश्वर का ‘गेम’ नहीं !

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ईश्वर का अस्तित्व मानव जगत की सबसे प्राचीन पहेली है। ईश्वर को प्रमाणित करने के तर्कों के बराबर ही खंडन करने वाले तर्क हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए उपनिषदों में कहा गया कि ईश्वर अनिर्वचनीय है, अनादि है अनंत है। तर्क से परे है। मनुष्य परमेश्वर को जान ही नहीं सकता (यानी विश्वास करो, तर्क नहीं)। बहरहाल दार्शनिकों ने कार्य-कारण सिद्धांत को काफ़ी महत्व दिया कि अगर कोई चीज़ है तो उसे बनाने वाला भी है। यानी जगत है तो उसका निर्माता भी होगा। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने अपने प्रसिद्ध लेख मैं नास्तिक क्यों हूँ ऐसे तर्कों की अच्छी ख़बर ली थी। लेकिन इधर, विज्ञान ने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध किया है कि जगत की रचना के लिए किसी ईश्वर की आवश्यकता नहीं थी। धरती के सबसे महान जीवित विज्ञानी कहे जाने वाले स्टीफन हॉकिंग ने इस दिशा में महत्वपूर्ण काम किया है। उनकी किताब द ग्रैण्ड डिज़ायन को लेकर पढ़िए मुकेश असीम की यह महत्वपूर्ण टिप्पणी-संपादक 

स्टीफन हॉकिंग की एक किताब है The Grand Design – इसमें वे जगत के उद्भव और विकास के दार्शनिक सवालों का जवाब क्वांटम भौतिकी के आधार पर देते हुए बताते हैं कि जगत का सारा कारोबार पदार्थ के अपने नियमों से संचालित होता है इसमें कोई ‘ईश्वरीय’ भूमिका की गुंजाईश नहीं। वैसे भी 2014 में हॉकिंग घोषणा कर ही चुके हैं – ‘There is no God.’ स्पेनिश अखबार एलमुंडो को एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘विज्ञान की समझ से पहले यह मानना स्वाभाविक लगता है कि दुनिया की रचना ईश्वर ने की। पर अब विज्ञान ज्यादा ठोस और यकीनी व्याख्या दे चुका है।’ पर उसकी चर्चा अभी नहीं।

यहां चर्चा उनकी उपरोक्त पुस्तक के एक दिलचस्प हिस्से की, जहां हॉकिंग कैंब्रिज के गणितज्ञ जॉनकॉनवे द्वारा 1970 में रचित ‘गेम ऑफ़ लाइफ’ नामक एक कम्प्यूटर चालित प्रयोग का उदाहरण देते हैं। इस प्रयोग का मूल विचार बहुत सरल है – एक शतरंज की बिसात जिसे कितना भी बड़ा किया जा सके, उसमें वैसे ही दो किस्म के वर्ग/खाने – हरा/काला (जीवित/मृत)| इसमें तीन ही सरल नियम हैं:

  1. जन्म – 3 जीवित पड़ोसियों वाला मृत खाना अगली पीढ़ी में जीवित हो जायेगा
  2. जीवन – 2 या तीन जीवित पड़ोसियों वाला जीवित खाना जीवित ही रहेगा
  3. मृत्यु – अन्य सब जीवित खाने मृत हो जायेंगे

इस बहुत सरल नियमों वाले प्रयोग को जब चलाया जाता है तो बड़े दिलचस्प नतीजे सामने आते हैं। इस बिसात के आकार और हरे/काले वर्गों की संख्या के अनुसार इनकी अन्तर्क्रियाओं से स्वतः ही बहुत सारे नियम सृजित होने लगते हैं, जो प्राकृतिक नियमों की तरह ही हैं – उन्हें कोई बनाता नहीं, पर प्रेक्षण से उन्हें जानकर इन वर्गों के आगामी व्यवहार को बताया (predict)  जा सकता है; इस समझ से उनकी संख्याओं/स्थितियों को बदलकर नए व्यवहार उत्पन्न किये जा  सकते हैं।

जैसे-जैसे इस बिसात का आकार बढ़ाया जाता है, वर्गों के समूह नई और जटिल शक्ल अख्तियार करते हैं, नई प्रक्रियाओं से गुजरते हैं व एक आकार से दूसरे आकार पैदा होने लगते हैं जिनकी अपनी निश्चित गतिकी होती है। यह सब अनिश्चित ढंग से नहीं बल्कि नियमबद्ध तरीके से होता है, जिसको जाना और परिभाषित किया जा सकता है। इससे बनने वाले आकारों – ब्लिंकर्ज, ब्लॉक्स, ग्लाइडर्ज, स्पेसशिप और ग्लाइडर गन – की धाराओं से कम्प्यूटर प्रोग्राम की तरह सूचनाओं को प्रक्रमित कर नतीजे निकाले जा सकते हैं। पर इससे भी आगे अगर वर्गों की शुरुआती संख्या 100 ख़रब हो तो इसके आकार खुद को दोहराने-प्रजनित करने लगते हैं जो जीवित इकाई की एक मूल पहचान है। याद रहे कि एक जीवित कोशिका भी लगभग इतने ही संख्या के अणुओं का समूह है !

यह तो रही सिर्फ एक द्वि-आयामी शतरंजी बिसात पर मात्र दो प्रकार के वर्गों से पैदा हो सकने वाले जटिल नियमों, और उनसे संचलित जटिल स्वरूपों के अस्तित्व में आने की संभावनाएं। इसके मुकाबले हम कल्पना कर सकते हैं हमारे कई किस्म के लगभग असीमित-असंख्य कणों से बने बहुआयामी जगत में उनकी क्रिया-प्रतिक्रियाओं और अंतर्विरोधों से विकसित हो सकने वाले अत्यंत जटिल नियमों और उनसे जनित स्वरूपों की – परमाणुओं से अणुओं, विभिन्न तत्वों, जटिल यौगिकों, प्रोटीन, डीएनए, आरएनए, वायरस, बैक्टीरिया, कोशिकाएं, बहु कोशिकीय जीव, सचेतन जीव से होकर स्वयं प्रकृति को समझने और समझ कर उसको प्रभावित कर सकने वाले सामाजिक चिंतनशील प्राणी मनुष्य की भी।

बिना जटिल नियमों के बहुत सरल कणों के समुच्चय से यहां तक के इस अत्यंत जटिल स्वरूपों-नियमों तक के विकास के लिए किसी बाहरी हस्तक्षेप, किसी सचेतन बुद्धिमान बाहरी शक्ति की कोई आवश्यकता ही नहीं है। यह तो स्वयं पदार्थ जगत की अंतर्क्रियाओं और अंतर्विरोधों से उत्पन्न गति का नतीजा है| यह सवाल उठाया जा सकता है कि यह आरंभिक अवस्था कहां से आई, उसके लिए तो ईश्वर की जरुरत होगी – तो शुरू में ही मैंने कहा कि इसका एक जवाब तो हॉकिंग ने दिया है, पर उसकी चर्चा किसी अलग लेख में की जाएगी।

इस प्रयोग से सम्बंधित बहुत सी जानकारी और इसके बहुत से संस्करण ऑनलाइन उपलब्ध हैं, चला कर देखे जा सकते हैं।  हां, अपने कम्प्यूटर की शक्ति की सीमा तक ही करके देखा जा सकता है।

 

 

मुकेश असीम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।