बकाया भुगतान और घर वापसी की मांग को लेकर सूरत में मज़दूरों का हिंसक प्रदर्शन

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सूरत। गुजरात के सूरत जिले के सीमावर्ती इलाके लसकाणा के मज़दूर बस्तियों में रहने वाले मशीनकरघा मज़दूर घर न जा पाने से नाराज़ होकर हज़ारों की संख्या में देर शाम सड़क पर उतर गये. इस दौरान मज़दूरों ने सड़क जाम कर दी और इसके बाद हिंसा भड़क गयी. हिंसा में दर्जनों सब्जी की दुकानें जला दी गयीं, साथ ही साथ एक लकड़ी के गोदाम से लकड़ियां निकालकर मुख्य सड़क पर आग के हवाले कर दी गयीं. स्थिति को संभालने पहुंची पुलिस की कई गाड़ियां भी फूंक दी गयीं.

प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों ने मांग की है कि उन्हें जल्द-से-जल्द घर भेजने का इंतज़ाम सरकार करे और उनके बकाया पैसों का भुगतान भी तुरंत कराया जाये. पुलिस ने 70 मज़दूरों को हिरासत में ले लिया है.

स्थानीय लोगों के अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा के लगभग 20000 मज़दूर, जो डायमंड नगर इंडस्ट्रियल एरिया की फैक्ट्रियों में काम करते हैं, खाना और वेतन न मिलने से नाराज़ थे. इसके बाद पिछले दो दिनों से लॉकडाउन बढ़ने की आशंकाओं ने उनका धीरज तोड़ दिया. उड़ीसा सरकार ने तो 30 अप्रैल तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा भी कर दी है. इससे मज़दूरों के बीच चिंता और घबराहट बढ़ गयी. अपने घरों से हज़ारों किमी दूर काम करने आये मज़दूरों में लॉकडाउन बढ़ने की स्थिति में अपने परिवार वालों की चिंता पसरी हुई है.

सूरत पुलिस के अनुसार, खाने की कोई समस्या मज़दूरों को नहीं है. मज़दूर बस्तियों में 31 खाने के मेस चलाये जा रहे हैं और कुछ स्वयंसेवी संगठन भी भोजन की आपूर्ति कर रहे हैं. पुलिस का कहना है कि मज़दूरों की नाराज़गी केवल अपने घर जाने को लेकर है.

सूरत में मज़दूरों का यह प्रदर्शन बताता है कि मोदी सरकार द्वारा स्थितियां नियंत्रण में होने के दावे खोखले हैं. इससे पहले जब देश की राजधानी दिल्ली में मज़दूर पैदल ही अपने घरों की तरफ निकल गये थे तो मामले की लीपापोती की गयी थी. इसके बाद से मीडिया तबलीग़ी जमात के पीछे व्यस्त हो गयी थी और अवाम भी मज़दूरों को बिसरा चुकी थी. ऐसे में मज़दूरों का प्रदर्शन सरकारी इंतजाम व उसके रवैये पर सवाल खड़े करता है. इस बीच जब भारत में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं और लॉकडाउन सख्त किया जा रहा है, हज़ारों की संख्या में मज़दूरों का प्रदर्शन के लिए इकट्ठा होने को मजबूर होना कोरोना के लिहाज़ से भी सुरक्षित नहीं है.