साहित्य अकादमी पुरस्कृत लेखक पर भगवा गिरोह के हमले के खिलाफ IWF का वक्तव्य

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मलयाली लेखक एस. हरीश के समर्थन में इंडियन राइटर्स फोरम (IWF) का संयुक्त बयान, 23 जुलाई २०१८ 
 
आत्म-प्रतिबन्ध के खिलाफ लेखक 

हमारी सांस्‍कृतिक बिरादरी पर एक बार फिर गिरोहों का हमला हुआ है। अपने परिवार के खिलाफ हिंसक धमकियों की प्रतिक्रिया में मलयालम के लेखक एस. हरीश ने अपना उपन्‍यास मीसा (मूंछ) वापस ले लिया है जो धारावाहिक के रूप में मातृभूमि साप्ताहिक अखबार में प्रकाशित हो रहा था। उनका कहना है कि वे अब इसे तभी प्रकाशित करेंगे जब ”माहौल अनुकूल होगा”।

‘मीसा’ हरीश का पहला उपन्‍यास है। हरीश को लघु गल्‍प के लिए केरल का साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार दिया जा चुका है। इस उपन्‍यास के शुरुआती तीन अध्‍याय साप्‍ताहिक पत्र मातृभूमि में धारावाहिक रूप में छपे थे जिसके चलते सुधी पाठकों की उम्‍मीद काफी बढ़ गई थी। इसके बाद ही दक्षिणपंथी गिरोहों ने लेखक के खिलाफ प्रचार अभियान शुरू कर दिया जैसा कि हमने हाल के वर्षों में देखा है।

हरीश के ऊपर ”धार्मिक भावनाओं को आहत” करने और ”हिंदुओं को बदनाम” करने का आरोप लगाया गया। उन्‍हें धमकी दी गई कि ”उन्‍हें सबक सिखाने के लिए” उनका हाथ काट दिया जाएगा। सोशल मीडिया पर उनके साथ गाली-गलौज की गई और धमकियां दी गईं जिसके चलते उन्‍होंने अपने अकाउंट बंद कर दिए। उनके परिवार के सदस्‍यों को बुरी तरह ट्रोल किया गया। साप्‍ताहिक पत्र की प्रतियां जलाई गईं जिसके कारण संपादक को ट्वीट करना पड़ा कि साहित्‍य की मॉब लिंचिंग की जा रही है।

हरीश पर हमले का संदर्भ उपन्‍यास के एक किरदार द्वारा महिलाओं के मंदिर जाने को लेकर की गई टिप्‍पणी है। यह उस किरदार का कथन था, लेखक का नहीं और धारावाहिक के प्रकाशन के साथ अभी तो पात्रों को स्‍थापित करने का काम ही शुरू हुआ था। ऐसे तोड़-मरोड़ कर किए जाने वाले पाठ से खतरा पैदा होता है कि फिर सारे सिनेमा, साहित्‍य और कलाओं पर ऐसा ही हमला संभव है। इसके अलावा, अगर उपन्‍यास से किसी को असहमति है तो इसका मतलब यह नहीं कि लेखक को प्रताडि़त किया जाए। हमारी विविध सांस्‍कृतिक अभिव्‍यक्तियों पर हमला करने वाले गुंडे चाहते हैं कि हम एक नहीं कई उपन्‍यासों से महरूम रह जाएं।

केरल के कई लेखकों ने हरीश के साथ एकजुटता दिखाई है। लेखक और पाठक सहित एक लोकतंत्र का नागरिक होने के नाते हम माहौल के बदलने का इंतज़ार नहीं करते रह सकते। देश के सांस्‍कृतिक वातावरण का निर्माण हम लेखक और कलाकार ही करते हैं, सांप्रदायिक नेता नहीं। हमें इस बात पर ज़ोर देना होगा कि इस विविधतापूर्ण समाज की अभिव्‍यक्ति के लिए अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता अनिवार्य है, समाज की मौजूदा और अतीत की दरारों की पड़ताल के लिए आलोचनात्‍मक सोच की ज़रूरत है और इनके लिए ज़रूयरी है कि हम संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का प्रयोग करें।

हम पेरुमल मुरुगन की कहानी का दुहराव नहीं होने दे सकते जब लेखक ने दबावों के चलते अपने भीतर के रचनाकार की मौत का एलान कर दिया था। हाल ही में केरल के कवि करीप्‍पुझा श्रीकुमार और देश के अन्‍य हिस्‍सों में लेखकों पर जिस तरीके का हमला हुआ है, हम ऐसे और हमले स्‍वीकार नहीं कर सकते। यह फेहरिस्‍त बढ़ती जा रही है। सांस्‍कृतिक बिरादरी में हम अपने साथियों से अपील करते हैं कि वे दक्षिणपंथी गिरोहों के आतंक के भय से खुद को आत्‍मप्रतिबंधित करने से बचें। हम केंद्र सरकार और राज्‍य सरकार का आह्वान करते हैं कि वे लेखकों और कलाकारों को उनका काम करने के लिए सुरक्षित माहौल मुहैया करवाएं।

किसी भी लेखक को उसकी कलम रख देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कोई भी लोकतंत्र, कोई भी संस्‍कृति जिंदा नहीं रह सकती यदि उसके लेखकों को शांत करा दिया गया। यही वजह है कि हमारे पास जितने भी शब्‍द हैं, उनके सहारे हमें लेखकों को आत्‍मप्रतिबंध में धकेले जाने के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी।


के सच्चिदानंदन

गीता हरिहरन

रोमिला थापर

पॉल ज़कारिया

नयनतारा सहगल

एनएस माधवन

टीएम कृष्‍णा

पेरुमल मुरुगन

शशि देशपांडे

किरन नागरकर

गणेश देवी

केकी दारूवाला

सुनील पी. इलायिडम

केपी रामुन्‍नी

सेतु

हंसदा सौवेंद्र शेखर

ऋतु मेनन

जेरी पिंटो

चंदन गौड़ा

आतमजीत सिह

आर्शिया सत्‍तर

दामोदर मौज़ो

रफीक़ अहमद

मीना अलेक्‍जेंडर

मनोज कुरूर

रुबिन डीक्रूज़

डोना मयूरा

मेघा पानसारे

शेखर पाठक

संदेश भंडारे

बनानी चक्रवर्ती

अजित मगदुम    

माधव पालशिकर

वीनू अब्राहम

प्रमोद मुंगाटे

प्रमोद निगुडकर

श्रीलता के

अरुंधती घोष

कविता मुरलीधरन

शांता गोखले