अख़बारों ने भाषा के हैलीकॉप्टर में घुमाया ‘बलात्कारी’ बाबा को !

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राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से निकलने वाले ज़्यादातर अख़बारों (अपवाद हो सकते हैं) में आज बाबा राम रहीम के फ़ैसले से जुड़ी मुख्य ख़बर से बलात्कार शब्द ग़ायब है। कहीं यौन शोषण मामला लिखकर काम चलाया गया है तो कहीं सिर्फ दोषी क़रार लिखा गया है।

आमतौर पर ‘बलात्कारी’ के प्रति अख़बार में जैसी भाषा होती है, वह भी ग़ायब है। बाबा दोषी होने के बाद भी सत्ता के ही नहीं, भाषा के हैलीक़ाप्टर पर सवार हैं। राम-रहीम गुरमीत सिंह के प्रति पूरे सम्मान से बात की जा रही है। बाबा के बारे में ‘था’ नहीं ‘थे’ या ‘है’नहीं ‘हैं’ का ही प्रयोग किया गया है।

वैसे, यह सम्मान किसी के भी प्रति होना चाहिए। लेकिन आम तौर पर आरोपी को दोषी क़रार देने को उद्धत रहने वाले और ‘कथित’ जैसे ज़रूरी शब्द को विदा दे चुके अख़बारों का यह रवैया उसकी सामाजिक-राजनीतिक अवस्थिति की गवाही है।

ज़ाहिर है, यह सब संयोग नहीं है। मीडिया के शोधार्थी अरविंद दास ने इस विषय पर एक ज़रूरी टिप्पणी अपनी फ़ेसबुक दीवार पर चिपकाई है।

अरविंद लिखते हैं–

‘हिंदी अख़बारों में बलात्कार की रिपोर्टिंग शोध का विषय है. कल डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को कोर्ट ने बलात्कार के मामले में दोषी करार दिया. सभी प्रमुख हिंदी अखबारों की पहली ख़बर यही है, पर यदि हेडलाइन पर ध्यान दें तो ऐसा लगता है कि एक तरह का दबाव या भय खबर लिखते वक्त उनमें व्याप्त है. वे हेडलाइन में बलात्कार का उल्लेख नहीं करते. यहाँ तक कि नवभारत टाइम्स के पहले पन्ने पर पूरी स्टोरी में बलात्कार शब्द का उल्लेख नहीं मिलता!

दैनिक जागरण: डेरा प्रमुख दोषी करार, भारी हिंसा में 32 मरे
दैनिक भास्कर: राम रहीम दोषी, समर्थकों का तांडव
जनसत्ता: आग के हवाले पंचकूला, 30 मरे
नवभारत टाइम्स:डेरा समर्थक भड़के, कई जगह हिंसा
हिंदुस्तान: बाबा दोषी साबित, चेलों ने हिंसा फैलाई

वहीं, Indian Express लिखता है: 28 die, a state burns for 1 rape convict
The Hindu लिखता है: 30 die in protest after Dera Chief convicted of rape

पर Times of India (नवभारत टाइम्स भी यहीं से छपता है) लिखता है: Baba behind bars, followers run riot
ठीक इसी तरह Hindustan Times (दैनिक हिंदुस्तान भी यहीं से छपता है) लिखता है: Godman guilty, devotees run riot

मैंने अपने पीएचडी शोध के दौरान पाया था कि ‘हिंदी अखबारों में बलात्कार से संबंधित खबरों की भाषा आक्रोश और क्षोभ के बदले एक तरह की रसलीनता को अभिव्यक्त करती है.’

साफ़ है कि कुछ अंग्रेज़ी अख़बारों ने जहाँ रेप शब्द लिखने में कोताही नहीं की है, वहीं ज़्यादातर हिंदी अख़बारों ने ‘बलात्कार’ शब्द के प्रति हिचक दिखाई है। दोषी क़रार दिए जाने के पहले बाबा के प्रति ये अख़बार किस तरह पेश आ रहे थे, समझना मुश्किल नहीं है। ये संसाधन से भरे पूरे अख़बार हैं, जिन्होंने बाबा से उत्पीड़ित लोगों के प्रति कभी सहानुभूति नहीं जताई।

सिरसा से निकलने वाले अख़बार ‘पूरा सच’ के संपादक रामचंद छत्रपति ने बाबा के करतूतों पर लिखी गई पीड़ित की चिट्ठी छापी थी जिसके बाद उनकी हत्या कर दी गई थी, लेकिन ‘आधा सच’ का धंधा करने वाले बड़े कारोबारी अख़बारों के लिए वह जैसे किसी और दुनिया के प्राणी थे। उन्होंने इसे कभी मुद्दा नहीं बनाया और पत्रकार के हत्यारे की चकमक ज़िंदगी, उसकी फ़िल्मों का पीआर करते रहे। उन्होंने कभी उन राजनीतिक दलों को भी कठघरे में नहीं खड़ा किया जो चुनाव दर चुनाव बाबा के दरबार में वोटों की भीख माँगने पहुँचते थे।

बलात्कारी बाबा गुरमीत सिंह राम रहीम अगर भाषा के हैलीकॉप्टर पर सवार हैं,तो वह यूँ ही नहीं है।

.बर्बरीक