पाकिस्तानी छी न्यूज़ के ‘चौधरी’ पर चला चाबुक ! भारत में कब होगा ?

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पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी (पेमरा) ने समाचार चैनलों की दादागीरी पर नकेल कस दी है। यह कार्रवाई पाकिस्तानी के मशहूर लाल बैंड के सिंगर और राजनीति विज्ञान के शिक्षक डॉक्टर तैमूर रहमान की शिकायत पर की गई है। अप्रैल 2015 में एक्सप्रेस न्यूज़ चैनल ने तैमूर रहमान के ख़िलाफ़ झूठी ख़बर चलाई थी। चैनल के एंकर अहमद कुरैशी ने उनपर पाकिस्तान विरोधी से लेकर हिन्दुस्तान परस्त होने का आरोप बिना किसी सुबूत के लगा दिया गया था।

अपनी चेतावनी में पेमरा ने कहा है कि किसी भी पाकिस्तानी नागरिक के लिए पाकिस्तान विरोधी, इस्लाम विरोधी, पाकिस्तान का दुश्मन, काफ़िर जैसे शब्दों का इस्तेमाल न्यूज़ चैनलों को नहीं करना है। अगर मनमानी हुई तो चैनलों की ख़ैर नहीं है। डॉक्टर तैमूर रहमान लाहौरी यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़ में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उनका बैंड ‘लाल’ दक्षिण एशिया में एक चर्चित नाम है। पाकिस्तान में वामपंथ की राजनीति के अलावा वह मानवाधिकार के मुद्दों की एक मुखर आवाज़ भी हैं। आपसी रिश्तों को मज़बूत करने के लिए वो अपनी टीम के साथ हिन्दुस्तान भी आते रहते हैं। पेमरा ने कहा है कि एक्सप्रेस चैनल 15 दिनों के भीतर एक माफीमनामा प्रसारित करे, वरना कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहे।

मामला पाकिस्तान के अशांत प्रांत बलूचिस्तान के एक प्रोग्राम से जुड़ा है। तैमूर रहमान ने बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना की बर्बर कार्रवाइयों के विरुद्ध 12 अप्रैल 2015 को यूनिवर्सिटी में एक प्रोग्राम आयोजित किया था। इसमें बलूचिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता मामा क़दीर समेत कई हस्तियां शामिल होने वाली थीं लेकिन आख़िरी समय में प्रबंधन ने राष्ट्रविरोधी करार देते हुए इसे रद्द कर दिया। उन्हें कराची में भी ये प्रोग्राम करने की इजाज़त नहीं मिली। आख़िर में इस्लामाबाद की मशहूर हस्ती सबीन महमूद ने कहा कि वह उनके दफ्तर में प्रोग्राम करवाएं। 24 अप्रैल 2015 की शाम हुए कार्यक्रम के बाद सबीन जब अपने घर लौट रही थीं तो अज्ञात हमलावरों ने उनके सीने में पांच गोलियां उतारकर हत्या कर दी। 12 अप्रैल 2015 को जब यह प्रोग्राम लाहौर में रद्द हुआ तो एक्सप्रेस चैनल ने इसके आयोजक तैमूर रहमान पर बुलेटिन चलाया। अपनी रिपोर्ट में एंकर अहमद कुरैशी ने बताया कि तैमूर रहमान के चचा असद रहमान 1970 में लंदन में पढ़ाई कर रहे थे। तभी वह रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी और भारत की खुफिया एजेंसी के संपर्क में आए। फिर उन्हीं के इशारों पर बलूचिस्तान में जाकर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध में जुट गए। एंकर कुरैशी ने कहा कि तैमूर रहमान उसी राष्ट्रविरोधी असद रहमान के भतीजे हैं और मानवाधिकार के नाम पर देशविरोधी प्रोग्राम करवा रहे हैं। फिर 24 अप्रैल को इस्लामाबाद में हुए प्रोग्राम के ठीक दो दिन बाद 26 अप्रैल को एंकर अहमद कुरैशी ने फिर एक बुलेटिन चलाया। इस बार अहमद कुरैशी ने इस पेशे की सभी मर्यादाओं को ताक पर रख दिया। कंगारू कोर्ट की तर्ज़ पर कुरैशी ने अपने भाषण से तैमूर रहमान को मुजरिम करार दे दिया। साथ ही, बार-बार यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट को सलाह भी देते रहे कि तैमूर से सख्ती से पूछताछ की जानी चाहिए। इस प्रोग्राम का मकसद पता किया जाना चाहिए।

भारत के ‘राष्ट्रवादी’ एंकरों की तर्ज़ पर कुरैशी अपने बुलेटिन में कहते हैं कि जब पाकिस्तानी सैनिक बलूचिस्तान में मारे जाते हैं तब इन्हें मानवाधिकार की याद नहीं आती। इन सैनिकों का खून तैमूर जैसे लोगों पर भी है क्योंकि इनकी वजह से दहशतगर्दों के हौसले बुलंद होते हैं। कुरैशी ने यह भी कहा कि जब इनके प्रोग्राम को सरकार रोकती है तो ये लोग मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आज़ादी का हवाला देते हैं लेकिन सैनिकों की मौत पर चुप रहते हैं। कुरैशी बिल्कुल उन्हीं तर्कों के साथ वामपंथी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमला कर रहे थे जिस तरह भारतीय न्यूज़ चैनल फिलहाल जेएनयू और वहां के स्टूडेंट्स और कार्यकर्ताओं पर फिलहाल कर रहे हैं। तैमूर इन सभी आरोपों से बेहद नाराज़ थे। लिहाज़ा उन्होंने चैनल पर मानहानि का मुकदमा किया और न्यूज़ चैनलों की नियामक संस्था पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी का दरवाज़ा खटखटाया। कई दौर की सुनवाई के बाद पेमरा ने चैनल और एंकर अहमद कुरैशी को दोषी पाया है।

यह केस जीतने के बाद तैमूर रहमान ने अपील की है कि जेएनयू संघर्ष में लड़ रहे साथियों को भी छेड़छाड़ किए गए वीडियो को लेकर कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए। इसमें कोई शक़ नहीं कि भारत के मुक़ाबले पाकिस्तान में मानवाधिकार से जुड़े प्रोग्राम करवाना जोखिम भरा काम है। बावजूद इसके पाकिस्तान में हक़ की लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ता चुप नहीं रहते हैं। इस्लामाबाद में जिस सबीन महमूद ने अपने दफ्तर में प्रोग्राम की इजाज़त दी थी, इसकी भनक आईएसएआई को लग गई थी। एक्सप्रेस न्यूज़ के एंकर अहमद कुरैशी अपने बुलेटिन में कहते हैं कि प्रोग्राम से ठीक एक हफ्ता पहले आईएसआई ने सबीन के दफ्तर जाकर ये प्रोग्राम रद्द करने के लिए कहा था लेकिन वो नहीं मानीं। प्रोग्राम ख़त्म होने के बाद सबीन ने ट्वीट करते हुए एक फोटो भी लगाई थी लेकिन घर पहुंचने से पहले ही उनकी हत्या कर दी गई। अहमद कुरैशी अपने बुलेटिन में इशारों में कहते हैं कि इस हत्या के लिए आईएसआई पर आरोप मढ़ा जा रहा है, फिर वो अपना तर्क पेश करते हैं। कुरैशी कहते हैं कि बलूचिस्तान के लोग ख़तरनाक और हत्यारे होते हैं। इनके प्रोग्राम को जब मीडिया ने कवर नहीं किया तो घर पहुंचने से पहले सबीन की हत्या हो गई, फिर सभी को इस प्रोग्राम के बारे में पता चल गया। फिर कातिल कौन है? कातिल यही लोग हैं। वो तो बेचारी आदर्शवादी महिला थीं। नहीं जानती थीं इन लोगों के बारे में और इनकी राजनीति का शिकार हो गईं।

.शाहनवाज़ मलिक