स्मृतिशेष: निस्सीम ब्रह्माण्ड की अंतिम यात्रा पर निकल गया सदी का महानतम विज्ञानी

Mediavigil Desk
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दो हफ्ते पहले खगोलविद् नील डीग्रास टायसन के स्‍टार टॉक शो में जब स्‍टीफन हॉकिंग ने ब्रह्माण्‍ड की सीमा पर किए गए सवाल का जवाब दिया था, तो उन्‍हें देखकर ऐसा लगा था कि वे खुद किसी निस्‍सीम का हिस्‍सा हैं। उस ब्रह्माण्‍ड का, जिसकी सीमा उसकी निस्‍सीमता है या यों कहें कि जिसकी निस्‍सीमता ही उसकी सीमा है। हॉकिंग मर्त्‍यलोक की सीमा को तोड़कर आज उसी निस्‍सीम ब्रह्माण्‍ड का हिस्‍सा बन गए है।

हमारे दौर के सर्वाधिक रहस्‍यमय, सर्वाधिक चर्चित, अपने आप में ब्रह्माण्‍ड के एक दुर्बोध तत्‍व की तरह सीमित लेकिन असीम मेधा के धनी स्‍टीफन हॉकिंग नहीं रहे। उनका 76 साल की उम्र में देहांत हो गया। इसे देहांत कहना क्‍या ठीक है? हॉकिंग, जिनकी देह का अंत तो तभी हो गया था जब उन्‍हें 21 वर्ष की उम्र में गंभीर मोटर न्‍यूरॉन क्षय रोग से ग्रस्‍त पाया गया था। इसे लोकप्रिय भाषा में लू गेरिंग्‍स रोग कहते हैं।

उन्‍हें जीने के लिए दो साल का वक्‍त डॉक्‍टरों ने दिया। उनकी मांसपेशियां हिलने-डुलने में अक्षम थीं। वे बोल नहीं सकते थे। उनकी आवाज़ कंप्‍यूटर-सिंथेसाइज्‍़ड थी।  वे गहन अवसाद में चले गए थे। फिर उन्‍होंने तय किया कि वे डॉक्‍टरेट करेंगे। न्‍यूटन के 300 साल बाद वे युनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज में लुकाचियन प्रोफेसर ऑफ मैथेमैटिक्‍स के पद पर विराजे और देखते ही देखते दुनिया भर में खगोलविज्ञान का प्रतीक बन गए।

हॉकिंग हमारे समय में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने वाले भौतिकविज्ञानियों में सबसे अग्रणी रहे। उनकी देह 21 वर्ष की अवस्‍था में बेकार हो चुकी थी। स्‍टीफन हॉकिंग एक मस्तिष्‍क था। ऐसा मस्तिष्‍क, जो पचास बरस तक खगोलीय रहस्‍यों में सेंध लगाता रहा। उन्‍होंने एक बार कहा था, ”मेरा लक्ष्‍य सहज है। यह ब्रह्माण्‍ड की पूरी समझदारी हासिल करने का है, कि वह जैसा है वैसा क्‍यों है और आखिर उसका वजूद ही क्‍यों है।” जिंदगी भर वे आइंस्‍टीन के सापेक्षिकता के सिद्धांत को क्‍वांटम भौतिकी के साथ मिलाकर समझते रहे और अंतत: उन्‍होंने एक किताब लिखी, ”थियरी ऑफ एवरीथिंग” यानी सब कुछ का सिद्धांत।

स्‍टीफन हॉकिंग की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्‍तक है ”अ ब्रीफ हिस्‍ट्री ऑफ टाइम” (1988) जो ”समय का संक्षिप्‍त इतिहास” के नाम से गली-मोहल्‍लों, रेलवे स्‍टेशनों और ठेलों पर मिलती है। बिग बैंग के सिद्धांत को जितनी आसानी से हॉकिंग ने इस पुस्‍तक में समझाया है, वह अभूतपूर्व और अप्रतिम है। इस पुस्‍तक की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं और इसका बीस से ज्‍यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

वे दुनिया भर में लेक्‍चर देते थे। उनकी उंगलियां कीबोर्ड पर चलती थीं और आवाज़ एक सिंथेसाइज़र से निकलती थी। एक मान्‍यता यह भी थी कि स्‍टीफन हॉकिंग आइंस्‍टीन का पुनर्जन्‍म हैं। वे इसे मीडिया का दुष्‍प्रचार मानते थे। वे कहते थे, ”लोगों ने पहले आइंस्‍टीन को हीरो बनाया, अब वे मुझे हीरो बना रहे हैं हालांकि इसमें उतना दम नहीं है।”

हॉकिंग को हीरो बनना भले न पसंद रहा हो लेकिन उनके चार प्रिय शख्सियतों में एक हीरोइन ज़रूर थी। वे अपने जीवन में चार नायकों को सम्‍मान देते थे- गलीलियों, आइंस्‍टीन, डार्विन और मर्लिन मनरो। मनरो की तमाम तस्‍वीरें उन्‍होंने अपने कमरे में टांग रखी थीं।

स्‍टार टॉक में टायसन के जवाब में उन्‍होंने कहा थ कि बिग बैंग से पहले कुछ नहीं था। कुछ नहीं मतलब ‘कुछ नहीं’ भी नहीं था। बिग बैंग की थियरी को उनके रहते बहुत चुनौतियां मिलीं, लेकिन अपने वक्‍त में इस दुनिया में शायद वे अकेले इंसान थे जो दावा कर सकते थे कि उन्‍हें पता है कि समय से पहले क्‍या था।

हॉकिंग की मानें तो ब्रह्माण्‍ड का न आदि था, न अंत है। जो है निरंतर है। हॉकिंग का अंत नहीं हुआ है। वे उस महान निरंतरता में समा गए हैं जिसे उन्‍होंने जिंदगी भर समझने की कोशिश की। यह हॉकिंग की आखिरी रिसर्च यात्रा है। शायद, इससे कुछ और बेहतर निेकले…।

इस महान मेधा को श्रद्धांजलि।

देखें हाकिंग का आखिरी टॉक शो: