नई नारायण कथा: दो हजार तीस की सुर्खियां और पहाड़ों को देख हाथ हिलाता अकेला राजा


राजा जब-जब क्रुद्ध होता था, उसके मुंह से झाग रिसने लगता था, वह अपने मुंह से अपना ही नाम दुहराने लगता था और खिड़की के बाहर सूखे पहाड़ों को देखकर हाथ हिलाने लग जाता था


मीडिया विजिल मीडिया विजिल
अभी-अभी Published On :


हिंदू संस्‍कृति और धार्मिक जीवन-जगत का एक अभिन्‍न अंग है सत्‍यनारायण कथा। हम सब ने बचपन में सुनी है। अब भी सुनते हैं। उसमें कथाएं चाहे कितनी ही काल्‍पनिक व विविध हों, लेकिन उनमें सत्‍य का एक तत्‍व अवश्‍य होता है। इस अर्थ में कि वे सदियों के दौरान समाज के आज़माये हुए नैतिक नुस्‍खे हैं। समय बदला है तो कथाएं भी बदली हैं। उनमें सत्‍य हो या नहीं, इससे बहुत फ़र्क नहीं पड़ता। ज़रूरी यह है कि कथा मुकम्‍मल होनी चाहिए, चाहे नैतिक सबक दे या नहीं। फिर उन्‍हें आज़माने की किसमें हिम्‍मत जब कथा खुद राजा ही बांच रहा हो। ऐसी कथाओं को ही नई नारायण कथा कहा जाता है। इसमें राजा-प्रजा के रिश्‍ते समान हैं, केवल सत्‍य के संधान के तरीके बदल गए हैं। थोड़ा आधुनिक तरीके हैं। हमारा राजा वैज्ञानिक है। हमारी प्रजा लैब-रैट। यानी नई नारायण कथाओं में राजा खुद प्रजा पर ही प्रयोग करता है। प्रजा ऐसे प्रयोग खुद पर करवा के कृतकृत्‍य होती है। ऐसे प्रयोगों पर अजीत यादव गहरी नज़र रखते हैं। मीडियाविजिल पर सावन के सोमवार को आपने इस कथा का पहला पाठ सुना था। दूसरा पाठ भादो में शाया हुआ था। उसके बाद से लंबा अंतराल हुआ। अब जबकि बेमौसम माघ बरस रहा है, प्रस्‍तुत है नई नारायण कथा का अगला खंड – संपादक


लंबे समय तक महान पुण्यभूमि पर शासन करने के बाद राजा वृद्ध हो चला था। राजा चूंकि घोषित रूप से अविवाहित था, इसलिए उसके परिवार का कोई भी सदस्य वृद्धावस्था में उसके निकट नहीं था। यही कारण था कि राजा इस अवस्था से जुड़ी व्‍याधियों से हलकान रहने लगा था। सेवकों के अलावा कोई नहीं था जो उससे प्रेम करता हो। अब धीरे-धीरे उसके कई विश्वसनीय भी बीमार रहने लगे। राजा के निकट सहयोगियों अरूणेंद्र और अमितेंद्र भी आए दिन रूग्ण होकर शैय्या पर पड़े रहते थे। एसे में एकाकी राजा खिड़की से बाहर देखकर किसी अदृश्‍य प्रजा को हाथ हिलाकर वक्‍त काटा करता था।  

राजा ने अपनी युवावस्था में लोगों को अपने कारनामों के किस्से खूब सुनाए थे, लेकिन लंबे समय से पराए तो क्या, अपने लोगों ने भी उस पर भरोसा करना छोड़ दिया था। उसके मन की बातें सुनने वाले कुछ सिधार गए थे तो कुछ सुधर गए थे। तेजी से तो पता नहीं परंतु समय सबका बदला और अब राजा का समय भी पूर्व की तरह गौरवशाली नहीं रहा। राज्य के लगातार सिकुड़ने और नाममात्र की राजशाही बचने से राजा अब सजावटी हो चला था। अपने मकान रूपी महल में राजा पुरानी वैभवशाली स्वर्णिम दुनिया के सपनों में खोया रहता और अपने जीर्ण-शीर्ण सेनापति व विश्वस्त अजितेंद्र के साथ दुनिया के किस्से सुनता था। मन की बातें करने वाला राजा आज दूसरों के मन की बातें सुनने को विवश था। यह एक युगांतरकारी घटना थी जो अपने आप घट रही थी। दिखना तो उसे बहुत पहले ही बंद हो चुका था।

राज्य में वैद्य तो प्रचुर मात्रा में थे परंतु उपचार तो तब होता जब राजा को वास्‍तव में कोई व्‍याधि होती। लोग कहते फिरते थे कि यह मामला कुछ और ही है, कुछ ऊपरी हवा जैसा जान पड़ता है। एक दिन की बात है जब राजा और अजितेंद्र एकांत में बैठे थे। राजा ने कहा, “और बताएं सेनापति, क्या चल रहा है?” इस प्रश्न का उत्तर आज तक न तो कोई दे पाया है और न ही उस दिन अजितेंद्र के पास था। राजा से अजितेंद्र ने कहा, “मैं आज का तो नहीं लेकिन 30 वर्ष आगे का बता सकता हूं कि क्या चल रहा है।‘’ राजा बोला, “तुम 30 वर्ष आगे कैसे देख सकते हो अजितेंद्र?” अजितेंद्र ने उत्तर दिया- ‘’मन की आखों से’’। राजा ने इसे व्यंग्य माना या गंभीर जवाब, ये तो नहीं पता लेकिन अतीत में अजितेंद्र के विश्‍वव्‍यापी गुप्‍तचर अभियानों के किस्‍से याद कर के वह चुप मार गया।

अजितेंद्र ने बोलना जारी रखा- ‘’महाराज, राजतंत्र प्रतीकात्मक रूप से खत्म हो चुका है और पूरे क्षेत्र में आंशिक लोकतंत्र नाम की अव्यवस्था फैली हुई है।‘’ यह सुनकर राजा के चेहरे पर कोई भाव नहीं उभरे, जैसे उसे यह सब पता हो या खुद उसका ही षडयंत्र हो। राजा ने पूछा- ‘’फिर वहां क्या हो रहा है?” सेनापति ने कहा, “मुझे पूरे राज्य में चार खंभे दिखाई दे रहे हैं और कुछ प्रभावशाली जैसे दिखने वाले लोग उन खंभों को घेरे हुए हैं और वे उनकी प्राणों से ज़्यादा रक्षा कर रहे हैं। इन खंभों के बारे में लोग चौपाल की चर्चाओं में कहते थे कि सब आपस में जमीन के नीचे से ही मिले हुए है। इन्हीं चारों खंभों पर हमलावर ‘अन्य’ लोग वहां घुसने का प्रयास कर रहे हैं।‘’

राजा ने लंबी उसांस भरी- “हे भागवत घोर कलीयुग… ये क्या हो रहा है।‘’ सेनापति बोला- “राजन, उन चार खंभों को घेरे मुट्ठी भर लोगों ने ‘अन्य’ को खदेड़ दिया है, लेकिन यह उपाय अस्थायी लगता है। खंभों को घेरे मुट्ठी भर लोगों के मस्तक पर चिंता की लकीरें स्पष्ट देखी जा सकती हैं। हमलावर ‘नगर के विभिन्न इलाकों में बैठकें कर के आगे की रणनीति बना रहे हैं। हमारे गुप्तचरों ने सूचना दी है कि शीघ्र ही वे पूरी ताकत से हमला करेंगे, इसमें विश्वविद्यालयों के कुछ शिक्षक और छात्र अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। नगर में इन लोगों को निजता न भंग करने की शर्त पर एक स्थान दे दिया गया है जहां ये विरोध प्रदर्शन करते हैं।‘’

राजा के मुख से पुन: निकला- ‘हे भागवत”, राजा ने देववाणी में अपने प्रभु को याद किया। राजा ने पूछा- “यह कौन सा वर्ष चल रहा है सेनापति?’’ ‘’जी, 2030’’- सेनापति ने उत्तर दिया। ‘’तब तो बहुत दिन नहीं हुए अपना राज गए, उम्‍मीद है आज भी प्रजा अपना कहा मानती होगी’’- राजा ने संतोष भरी सांस ली। सेनापति ने कहा- ‘’नहीं महाराज, कल तक जिन ‘अन्यों’ की मांगों पर कोई ध्यान तक नहीं देता था आज उन्हें सीधा प्रसारित किया जा रहा है। जैसे मैं भविष्य में देख सकता हूं वैसे ही 2030 में ये ‘अन्य’ लोग आज घटने वाली घटनाओं को सीधा देख सकते हैं।”

राजा चौंका- ‘’ये क्या विपदा है सेनापति?” अजितेंद्र ने बोलना जारी रखा- ‘’वे इस औज़ार को बहुजन मीडिया के नाम से पुकारते हैं महाराज। इनकी सभाओं में सैकड़ों सीधा प्रसारण करने वाले यंत्र और लोग हैं। वहां वैसे तो हमारे लोग भी हैं, लेकिन वे निर्देशानुसार हाथ बांधे आलोचनात्मक मुद्रा में पीछे खड़े हैं।‘’ ये सुनकर राजा भड़क गया, उसने पूछा- ‘’मेरे अलावा और किसका निर्देश चल रहा है यहां?” सेनापति बोला- ‘’राजन, एक समाचारी इन बहुजनों का नायक है, नाम है शंबू कुमार। वह बहुजन मीडिया मुगल बन चुका है। वह दस समाचारी संस्थानों का मालिक है। उसके पास सहस्र समाचार पुरूष एवं महिलाएं दिन रात काम करते हैं।‘’

राजा बोला- ‘’हे भागवत! ये क्या! घोर कलीयुग! हमारे लोग कहां हैं?” सेनापति बोला- ‘’रात्रि नौ बजे वह दसों संस्थानों के परदे पर एक साथ अवतरित होता है और सिर्फ बहुजन की बात करता है, किन्‍हीं आंबेडकर, फुले, पेरियार, ललई सिंह यादव की बातें करता है। वह उन्हें महापुरुष कहता है। अपने संस्थान में रात्रि की समाचार बहसों में उच्च वर्ण के विद्वानों को बुला कर उन्हें उनके बहुजनों के विरूद्ध किए गए पापों के लिए अपमानित करता है और अपमानित होने के बदले उन्‍हें पैसे देता है।‘’

राजा के मस्तक पर चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं, वो ‘घोर कलीयुग, घोर कलीयुग’ का जाप ज़ोर जोर से करने लग। सेनापति ने बीच में बात रोककर कर उसे पदार्थ दिया। पदार्थ का प्रभाव चेहरे पर आता देख उसने राजा से लगे हाथ पूछ लिया- ‘’राजन, ये जो आप अपने श्रीमुख से कलीयुग-कलीयुग कह रहे थे, तो आपको उस शंबू समाचारी की पुत्री का नाम कैसे पता चला?’’

राजा चौंका- ‘’क्या? ये उसकी पुत्री का नाम है?” सेनापति ने मुंडी हिलायी और बोला- “हां राजन, उसकी पुत्री का नाम कलीशंबू कुमार सिंह है और आज कल उसका ही युग है। वह ही इन संस्थानों को संचालित करती है। वह समाचार दासों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करती है और किसी भी समय उनका अनुबंध समाप्त कर देती है। पीड़ित दास के सहदास अपने मुंह में इसके उपरांत पहले से भी बड़ा एक मोटा कपड़ा ठूंस लेते हैं। वह निरंतर उच्च वर्ण के लोगों पर प्रश्न उठाने का दबाव डालती है। शासन समाप्त होने के लंबे समय बाद भी वो उनके पूर्व जन्म के कर्मों तक पर उन्हें अपमानित करती है।‘’

राजा काफी देर तक शांत रहा। सेनापति ने सोचा सीधे कह दे कि आपका कलियुग अब खत्‍म हुआ, अब कलीयुग आ गया है लेकिन राजा को पुराने गुप्‍त रोग की आशंका से वह शांत ही रहा। थोड़ी देर बाद राजा ने सेनापति को अनुरोध मिश्रित आदेश देते हुए पूछा, “वैसे, ये बहुजन अपने समाचार संस्थानों में दिखाते क्या हैं, अजित?” सेनापति ने बताया कि इन लोगों ने उच्च वर्ण के लिए आरक्षित समाचार के व्यापार पर कब्ज़ा कर लिया है और इनके संस्थान में बहुतायत समाचारी निम्न वर्ण के लोग हैं। इनके गले में आंबेडकर, कांशीराम, बुद्ध, पेरियार, फुले के लॉकेट लटक रहे हैं। कुछ ने तो अपने हाथों पर ‘जय भीम’ के गुदने भी गुदवाए हुए हैं। राजा की बेचैनी बढ़ने लगी। उसने अजितेंद्र से पूछा- ‘’मैं पूछ रहा हूं कि इनके यहां खबरें क्‍या-क्‍या चलती हैं।‘’

सेनापति बोला- ‘’महाराज, आज की सबसे बड़ी हेडलाइन है- ‘’आंबेडकर मंदिर बनाने के लिए आंदोलन हुआ तेज़, बहुजन संत सरकार से नाराज़’’। खबर कहती है कि अब बहुजन ‘बौद्ध संसद’  में लेंगे कोई बड़ा फैसला और जल्दी ही मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया जाएगा। ऐंकर पूछ रहा है- क्या 2030 के चुनावों में मुख्य मुद्दा बनेगा अंबेडकर मंदिर?’’

‘’और हमारे लोग क्‍या समाचार चला रहे हैं’’- राजा ने व्‍यग्र होकर पूछा। सेनापति ने भारी मन से जवाब दिया- ‘गणराज्य’ नाम का एक मीडिया संस्थान है जिसमें बैठा उसका मालिक और संपादक अपने केश नोच रहा है। उसके दरबार में उसके मेहमानों की कुर्सियां खाली हैं। वह उन खाली कुर्सियों को ही डांट रहा है और उन्हें बाहर फेंकने की धमकियां दे रहा है लेकिन खाली कुर्सियां बिल्कुल भी नहीं डर रही हैं। नीचे की पट्टी पर समाचार चल रहा है कि आपके राज में उच्च वर्ण के लोगों के मिला दस फीसदी आरक्षण खत्म। ‘विश्व सवर्ण संगठन’ ने इस फैसले के खिलाफ बड़े आंदोलन की धमकी दी है। राजन, समाचार के अनुसार क्रोधित उच्च वर्ण के लोग ‘आंबेडकरवादी सरकार’  से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग कर रहे हैं।‘’

इतना सुनने के बाद राजा जब उठ खड़ा हुआ। क्रोध में उसकी देह कांप रही थी। उसके मुंह से लार टपकने को थी। उसने गरज़ती हुई आवाज़ में पूछा- ‘’हमारी तलवार कहां है?’’ सेनापति को समझने में देर न लगी कि राजा को एक बार फिर मिर्गी आने वाली है। अतीत का अनुभव था कि राजा जब-जब क्रुद्ध होता था, उसके मुंह से झाग रिसने लगता था, वह अपने मुंह से अपना ही नाम दुहराने लगता था और खिड़की के बाहर सूखे पहाड़ों को देखकर हाथ हिलाने लग जाता था। अजितेंद्र ने आसन्‍न भविष्‍य को भांपते हुए राजा को विश्राम कक्ष में ले जाने की कवायद की। सारे दरवाजे बंद कर दिए गए। सारी बत्तियां बुझा दी गईं। राजा हिलते-हिलते चुपचाप सपनों में खो गया।

उधर सेनापति अजितेंद्र की एक आंख अब भी 2030 में अटकी थी, जहां एक समाचार संस्थान में हेडलाइनें कुछ यूं चल रही थीं:

भैंस ले जा रहे ब्राह्मण युवकों को दबंगों ने पीटा, पिटाई का वीडियो वायरल

सरकार ने किया दबंगों का बचाव, महिष हत्‍या के आरोप में ब्राह्मण रासुका में निरुद्ध

राज्य में महिषालय निर्माण के लिए एक हजार करोड़ रूपए का केंद्रीय पैकेज मंजूर


क्रमश: