अमेरिका से जापान तक क्यों क़हर बरपा रही है तपन!

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चंद्रभूषण

 

जुलाई का महीना पूरी दुनिया के लिए आफत बना हुआ है। अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कई इलाकों में गर्मी लगातार नए-नए रिकॉर्ड कायम कर रही है। कुछ जगहों पर सौ साल के और कुछ जगह ऑल-टाइम टेंपरेचर रिकॉर्ड टूट गए हैं। पुरानी दुनिया में जापान और दोनों कोरिया से लेकर स्वीडन, ग्रीस और अल्जीरिया तक और नई दुनिया में कनाडा और अमेरिका के कई इलाकों में हीट वेव से सैकड़ों लोग मारे गए हैं और बड़े-बड़े जंगली इलाकों के जलकर भस्म हो जाने की घटनाएं दर्ज की गई हैं।

दूसरी तरफ भारत के करीब पड़ने वाले कुछ इलाकों में, खासकर दक्षिणी चीन, लाओस, थाईलैंड और कंबोडिया में भयानक बारिश ने तबाही मचा रखी है। इन सभी देशों में बहस चल रही है कि यह हीट वेव और इसी के परिणाम स्वरूप कुछेक इलाकों में जारी प्रलयंकारी बारिश का सिलसिला कब तक चलेगा। यह भी कि इसका संबंध ग्लोबल वार्मिंग से है, या इसे सहज प्राकृतिक चक्र के हिस्से के रूप में लिया जाना चाहिए।

इसका जवाब इस रूप में दिया जा रहा है कि यह साल ‘ला नीना’ का है, यानी प्रशांत महासागर अपने सामान्य तापमान से ठंडा है। अल नीनो यानी प्रशांत महासागर के गर्म होने का साल आगे आने वाला है। उसके स्पष्ट प्रभाव अगले एक-दो महीनों में दिखने लगेंगे। उसके चलते दुनिया में जो गर्मी बढ़ेगी, सूखे आदि की घटनाएं दर्ज की जाएंगी, उसे जरूर प्राकृतिक चक्र का हिस्सा कहा जाएगा। लेकिन अभी जो हो रहा है, उसे तो कतई नहीं।

वैज्ञानिक पृथ्वी की समूची गोलाई के खासकर उत्तर वाले हिस्से में गर्मी के तांडव को जेट स्ट्रीम के मई से ही एक जगह ठहर जाने का नतीजा मान रहे हैं। जेट स्ट्रीम का नाम आसमान में लगभग छह किलोमीटर ऊपर चलने वाली सर्पाकार तेज हवाओं को दिया गया है, जिनके प्रभाव में नीचे भी हवाओं का संचरण होता है और जून-जुलाई में होने वाली बरसातें दुनिया को राहत देती हुई धीरे-धीरे उत्तरी गोलार्ध को जाड़े की तरफ ले जाती हैं।

लेकिन यह विरला मौका है, जब जेट स्ट्रीम इस कदर खामोश पड़ी है, जैसे उसका कोई अस्तित्व ही न हो। वैज्ञानिक हलकों में इस बात को दर्ज किया जा रहा था, लेकिन जून को गर्मी का स्वाभाविक महीना मानकर आम दायरों में इसका कोई नोटिस नहीं लिया गया। अब जुलाई में हालात बेकाबू होते दिख रहे हैं तो हर जगह जेट स्ट्रीम के ठहराव की ही चर्चा चल रही है, लेकिन इसकी वजहों के बारे में होती है तो होश उड़ जाते हैं।

जेट स्ट्रीम पैदा ही इसलिए होती है कि उत्तर के ध्रुवीय इलाकों से आने वाली ठंडी हवाएं दक्षिण में अफ्रीका से उठने वाली गर्म हवाओं से मई-जून में टकराती हैं। दोनों में तापमान का अंतर जितना ज्यादा होता है, जेट स्ट्रीम उतनी तेज होती है। लेकिन इस बार सुदूर उत्तरी इलाकों का तापमान ही बहुत ज्यादा है। आर्कटिक सर्कल में पड़ने वाले नॉर्वे के इलाकों में एक अर्से से 32.5 डिग्री सेल्सियस का तापमान दर्ज किया जा रहा है, जो उत्तरी भारत में मार्च के महीने में देखा जाता है।

ऐसे में जेट स्ट्रीम बनेगी कहां से और अमेरिका, कनाडा से लेकर ब्रिटेन, स्वीडन, ग्रीस, अल्जीरिया और सुदूर पूरब में जापान और कोरिया तक मौसम खुशगवार होगा तो कैसे? खुद हमारे यहां भी लोकल बरसातों से ऊपर उठकर चौतरफा सावन आएगा तो कैसे? आज भी ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी प्रभावों के बारे में हम ऐसे बात करते हैं, जैसे यह सुदूर भविष्य से जुड़ी कोई आशंका हो। लेकिन इस बार उत्तरी गोलार्ध की गर्मियां हमें बता रही हैं कि हम विनाश के अगल-बगल नहीं, उसके ठीक बीच में बैठे हैं।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और उन इक्का-दुक्का लोगों में हैं जो विज्ञान और उससे जुड़ी जटिलताओं को सरल हिंदी में पाठकों के बीच पहुँचाते हैं।

 

#तस्वीर http://brandsauthority.com से साभार।