राजीव दीक्षित की स्टोरी पर पाठकों की तीखी प्रतिक्रिया देख फर्स्टपोस्ट ने मार दिया यू-टर्न!

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
अभी-अभी Published On :


दीपांकर पटेल 

फर्स्टपोस्ट क्या कर रहा है? उसके एडिटर क्या कर रहे हैं?

फर्स्टपोस्ट ने राजीव दीक्षित की पुण्यतिथि 30 नवंबर को दो लेखों की एक श्रृंखला के माध्यम से सोशल मीडिया में हिट हो रहे उनके दावों का “नीर-छीर” परीक्षण किया और उन्हें झूठा और पोस्ट-ट्रुथ का जनक बताते हुए लिखा कि, “राजीव दीक्षित पिछली सदी के एक महान अर्धज्ञानी थे।” इन लेखों को FirstPost के लिए अविनाश द्विवेदी ने लिखा था।

जब इन दोनों लेखों पर सोशल मीडिया यूजर्स ने नकारात्मक प्रतिक्रिया दी तो हिट-शेयर के बाजार को बचाने के लिए फर्स्ट पोस्ट के एडिटोरियल लेवल से डैमेज कन्ट्रोल की कोशिश हुई और सीनियर एडिटर किंशुक प्रवाल ने फटाफट राजीव दीक्षित का ‘खीर-खीर’ गुणगान करते हुए एक स्टोरी लिख डाली।

नीर-क्षीर से खीर-खीर के बीच फर्स्टपोस्ट इन दोनों ही स्टोरी के विपरीत कथनों और तथ्यों पर अब फंसता जा रहा है।

पहली स्टोरी में जहां राजीव दीक्षित के IIT से M.Tech. किये जाने के दावे को झूठा बताया गया है और एक RTI की कॉपी भी लगाई है जिससे ये साफ होता है कि वो IIT कानपुर कभी गये ही नहीं। वहीं दूसरी स्टोरी में उन्हें IIT से M.Tech. करने वाला महान वैज्ञानिक बताते हुए लेखक अभीभूत है। क्या सीनियर एडिटर किंशुक प्रवाल RTI के जवाब को अविनाश की स्टोरी छपने के 4 घंटे बाद ही भूल गये?

क्या पब्लिक को खुश करने के चक्कर में पब्लिक पर्सेप्शन ही खबर बन जायेगा?

किंशुक प्रवाल की स्टोरी पर एक यूजर का कमेंट आया जिसमें कहा गया कि फर्स्ट पोस्ट खुद ही कन्फ्यूज्ड है। तो फर्स्टपोस्ट रिप्लाई करता है कि हमने आपके सामने दोनो पक्ष रखे हैं।

क्या…? ये क्या है? पक्ष…? पक्ष तो ठीक है एडिटर साहब लेकिन तथ्य का क्या करेंगे? आपके दोनो पत्रकार पक्ष-विपक्ष खेलेंगे तो तथ्यों का क्या होगा?

फर्स्टपोस्ट का सीनियर एडीटर पक्ष रख रहा है? राजीव दीक्षित महान बनाओ समिति का स्पोक्सपर्सन है क्या?

रीडर हर्ट हो गये तो अपनी ही पब्लिश की हुई स्टोरी के तथ्यों के विपरीत जाकर रीडर को खुश करेंगे?

क्या आपके सीनियर एडिटर पहले भी किसी के विरोध में स्टोरी छपने पर उसके स्पोक्सपर्सन बनते रहे हैं?

आपने तो स्टोरी के नीचे ये तक नहीं लिखा है कि ‘इस लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के अपने हैं, उनका तथ्यों से लेना देना नहीं है’। बताइये?

अब दोनों स्टोरी के कन्टेंट पर कुछ बात करते हैं ।

सीनियर एडिटर किंशुक प्रवाल की जो खीर-खीर बखान करने वाली स्टोरी है उसमें वही सब कंटेंट है जो राजीव दीक्षित को महान वैज्ञानिक बताने वाली वेबसाइटों का होता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं है, इससे कम कुछ नहीं है।

और जिस लेख में राजीव दीक्षित के दावों का नीर-क्षीर परीक्षण किया गया है उसे फर्स्टपोस्ट के अविनाश द्विवेदी ने लिखा है। उसमे क्या लिखा है?

इसमें अविनाश किसी वेबसाइट को निशाना बनाते हुए ये लिख रहे हैं, “जिस दौर में पोस्ट ट्रुथ के जुमले पर दुनिया भर में बहस चल रही थी, एक वेबसाइट जिसके बड़ी संख्या में इंटरनेट पर पाठक हैं, राजीव दीक्षित को स्थापित करने में जुटी थी, उसने ना सिर्फ इस अर्धज्ञानी पर स्पेशल फीचर लगाया बल्कि उसका फैलाया सारा वैचारिक कचरा एक जगह पर इकट्ठा कर दिया था।”

अविनाश सम्भवत: लल्लनटॉप  में पिछले साल 30 नवम्बर 2016 को राजीव दीक्षित की पुण्यतिथि पर उनके ऊपर छपी फीचर स्टोरी की बात कर रहे हैं जिसमें उनके कई वीडिओ को एक सिरीज में लगाकर पेश कर दिया गया था। अब लल्लनटॉप  में छपी इस स्टोरी की डेट को अपडेट करके 30 नवम्बर 2017 कर दिया गया है। स्टोरी नई जैसी दिखने लगी है, लेकिन फेसबुक के नम्बर ऑफ शेयर पुराने ही हैं। ऑनलाइन मीडिया को ये तगड़ी बीमारी लगी है। होने ये लगा है कि पिछली साल जिस भी महापुरुष के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर फीचर लिखा था डेट बदलकर ताजा करके फिर से उसे इस साल जन्मदिन और पुण्यतिथि पर लॉन्च कर देते हैं।

अविनाश द्विवेदी के ये दोनों ही लेख वेल रीसर्च्ड और तथ्यों पर आधारित प्रतीत होते हैं और एक-दो तथ्यों को छोड़ दिया जाय तो तथ्यों में संदेह नहीं है।लेकिन ऐसा लगता है कि अविनाश ने इस स्टोरी का कुछ महत्वपूर्ण हिस्सा पूर्व IAS संजीव सबलोक की वेबसाइट https://www.sabhlokcity.com से लिया है। इस स्टोरी को बनाने में अविनाश ने अपने बेहतरीन पत्रकारीय लेखन कौशल का इस्तेमाल किया है लेकिन संजीव के तर्को से सहमत होकर और लगभग उन्हीं की भाषा में अविनाश अपने लेख में भी सवाल पूछते नजर आते हैं। यहीं से राजीव दीक्षित की B.Tech. डिग्री फर्जी होने का तर्क आता है जिसमें इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में B.tech. न होने की बात अविनाश करते हैं।

जबकि राजीव दीक्षित के JK INSTITUTE से B.Tech. होने की बात उनके समर्थक कहते हैं । उनके समर्थकों का ये दावा झूठा हो सकता है। राजीव दीक्षित की गलतबयानी को लेकर कोई संदेह नहीं है। कभी उन्हें करीब से जानने वाले प्रदीप सिंह भी बताते हैं कि ‘वो नेताओं की तरह पब्लिक देखकर कुछ ज्यादा ही बोल जाते थे’। राजीव दीक्षित की ज्यादातर बातें तो गलत तथ्यों पर ही आधारित होती थी। नेहरू-एडविना के बारे में वो जो बोले थे वो तो बस नमूना है।

अब थोड़ा https://www.sabhlokcity.com वाले पूर्व IAS संजीव सबलोक के बारे में भी जान लीजिए। ये स्वर्ण भारत पार्टी चलाते हैं, अन्ना आंदोलन में भी थोड़ा-बहुत थे। मोदी की नीतियों के विरोधी हैं लेकिन बाबा रामदेव के कभी समर्थक बन जाते हैं कभी विरोधी। पतंजली आश्रम में भाषण भी देते रहते हैं। अब अगर ये बाबा रामदेव के समर्थक हैं तो जन स्थापित तर्कों से राजीव दीक्षित के क्या हुए?

अब आपकी समझ में आ गया होगा कि एक पूर्व IAS राजीव दीक्षित में इतना इंट्रेस्ट क्यों ले रहा है। सब गोलमाल है…..

मैं तो कहूंगा राजीव दीक्षित के झूठे दावे वाला वीडियो भी न देखें उनकी मौत की साजिश वाला यूट्यूब वीडियो न देखें… क्योंकि आप फर्जी अपना दिमाग और डेटा खर्च करेंगे।

क्योंकि… बाबा-बाबा हैं…!