‘आज तक’ संपादकों की पेशी पर सुप्रीमकोर्ट की रोक, न्यायपालिका बनाम विधायिका की बहस शुरु !

Mediavigil Desk
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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधानसभा को ‘आज तक’ के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से रोक दिया है। विधानसभा की जाँच कमेटी ने मुजफ्फर नगर दंगे पर प्रसारित चैनल के स्टिंग को गलत पाया था। इस स्टिंग में आज़म ख़ान को दोषी बताया गया था लेकिन जाँच कमेटी ने पाया कि ऐसा बिना पुख्ता प्रमाण के कहा गया। इसे विशेषाधिकार हनन का मामला मानते हुए टीवी टुडे ग्रुप के संपादकों को 4 मार्च को तलब किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत मिल गई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह विशेषधिकार हनन का मामला नहीं। अगर स्टिंग या मीडिया में चली खबर गलत हो तब भी इस पर पुलिस या कोई जांच एजेंसी कार्रवाई कर सकती है। यह करना विधानसभा का काम नहीं। सुप्रीम कोर्ट के इस रुख को देखते हुए विधानसभा के विशेषाधिकार से जुड़ी संवैधानिक स्थिति पर बहस शुरू हो गई है। खबर है कि यूपी विधानसभा अध्यक्ष इस मुद्दे पर जल्द ही सर्वदलीय बैठक बुला सकते हैं।

विधानसभा समिति की 350 पेज की रिपोर्ट जब विधानसभा के पटल पर रखी गई थी तो बीजेपी को छोड़कर सभी दलों ने एक सुर में चैनल के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की माँग की थी। समिति के सभापति सतीश निगम ने कहा था कि मीडिया टीआरपी का खेल और व्यापार का साधन बन गया है। अपने व्यापार के अति उत्साह और पैसे के खेल में मीडिया के लोग क्या-क्या कर जाते हैं और उसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसका उसको अहसास नहीं है।

रिपोर्ट में चैनल के मैनेजिंग एडिटर सुप्रिया प्रसाद और अब चैनल से अलग हो चुके एसआईटी हेड दीपक शर्मा समेत कई एंकरों और एडिटरों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 153ए, 295ए, 463, 469, 471 और सीआरपीसी की धारा 200, 202 के तहत कार्रवाई की सिफ़ारिश की गई है।

बहरहाल, सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद अब देखना यह है कि विधानसभा अपने अधिकार के लिए लड़ती है, या फिर आजतक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई शुरु करती है जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है।