
जवाब भी आपका, सवाल भी आपका !
तुम्हारे चरणों की धूल हूँ मैं…!
पत्रकारों का तो इतना भी नहीं छुपा है !
ये रिश्ता क्या कहलाता है….!
बात-बात पर काटने दौड़ने वाले भी मालिक तो तो पहचानते ही हैं…!
साईं दरबार में गोसाईं..!
इमरजेंसी का ज़माना नहीं कि झुकने को कहना पड़े..!
मौका मिला तो दिखा दी हक़ीक़त.!
बस यही बाक़ी था…!
(अभार सभी का जिन्होंने कार्टून बनाया या छापा। साभार प्रकाशित)
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